तेरा ज़िक्र
तेरा ज़िक्र
तेरा ज़िक्र, जब उड़ेगा फज़ा में किसी दिन
मुझे हरफ़ दर हरफ़ उकेरा जाएगा।
तेरी रूखसती में सलीके से, मेरा ज़िक्र,
तेरे पैरों में फूलों सा बिखेरा जाएगा।
संवारा जाएगा कभी सुर्ख चांदनी को जो,
ज़िक्र तेरा, तकमील में आएगा ही आएगा।
वो आखिरत की सुनाएगा कहानियां, मगर
माझी मुसाफिर को किनारे लगा के ही जाएगा।