बुढ़ापा
बुढ़ापा
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आम ने ख़ास से पूछा..
कैसे हो मित्र
कुछ खास नहीं
एक साँस है,
एक आस है
उम्र के पड़ाव पर ,
खुद को संभालता हूँ
और
एक बूढ़े वृक्ष की तरह
अपनी शाखों को सहेजता हूँ।
जड़ों में संस्कार की खाद मिली
मैं उसकी लाज बचाता हूँ
मन थोडा कुंठित रहता है
न चाहने पर भी
पत्ते पीले पड़ते है, झड़ते है
इस अवस्था में भी
मौसम आने पर,
फल, मालिक को देता हूँ
उफ़! तक नहीं करता हूँ
समय के साथ
बदलने की कोशिश करता हूँ।
क्योकि मैं बूढ़ा ज़रूर हूँ
कमजोर नहीं ।
छाँव और फल दोनों ही देता हूँ
मैं अपना कर्म करता हूँ।