मन की आवाज़
मन की आवाज़
गहराईयों में मत घुसो तुम
मन का कहना मानो
स्वच्छ परिमल आत्मा है सबका
अच्छे से पहचानो ।
सूक्ष्म दृष्टि से मत देखो तुम
कुछ दिनों के मेहमानों
नहीं कोई जीव छोटा बड़ा
अच्छे से पहचानो ।
अज्ञानी तो वह है, जिसकी
हृदय है जहर से भरा
साधु सज्जन वह ही कहां ?
जिनकी वाणी न मिठास भरा।
रे मनुष्य अभिमान में इतना
क्यों है मन ही मन इठलाता
निर्मल हृदय से परिहार करो सब
कटने वाला है जीवन का खाता।