एक मुलाकात ज़िंदगी के साथ
एक मुलाकात ज़िंदगी के साथ
यूँही चलते-चलते आज ज़िंदगी से
मेरी मुलाकात हुई,दो बात हुई
उतसुकता वश मैं पूछ ही बैठी
कैसी हो तुम सखी?
कुछ इठलाती,आँखे मटकाती बलखाती हुई वो बोली
मैं तो बहुत मज़े में हूँ, यूँ मानो तो सातवे आसमान पे हूँ
जब उसने पूछा तो मुख से यह निकला
हरदम क्यों बस तुम मुझे ही नचाती हो?
नित नई उलझनों में उलझाती हो
जैसे मैं किसी चक्रव्यु में ही फँसती जाती
हर पल ही कुछ शिक्षा देती
ज़रा मुस्कुराती फिर हस कर चली जाती
दूसरे ही पल नई चुनौती के साथ खड़ी मैं तुम्हें पाती
आख़िर क्यों नहीं तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ देती हो ?
ज़िंदगी कुछ मुस्कुरा कर बोली
अरे हट पगली, ऐसा भी कहीं होता है क्या ?
अंधेरे के बाद उजाला ,सुख के बाद दुख
पतझड़ के बाद बसंत,यही तो सृष्टि का नियम है
आख़िर सीता माता को भी अग्नि परीक्षा देनी ही पड़ी थी
फिर हम तो ठहरे इंसान
इसी उतार चढ़ाव के संतुलन का नाम ही ज़िंदगी है
जो भगवान की दी हुई नियामत है
इसलिए इसे खुलकर जियो !
और ज़िंदगी का लुत्फ उठाओ !