मिलूँ भी जब मिलूँ मैं तुमसे
मिलूँ भी जब मिलूँ मैं तुमसे
तेरी आरज़ुओं को मुट्ठियों में समेटे
हर सांस को बाँहों में लपेटे
कुछ अपना - सा बिखर जाता है मुझमें
मिलूँ भी जब मिलूँ मैं तुमसे
ऐसा लगे मानो मिलूँ मैं मुझसे !
मीलों के फासले ये कैसे
पर चाँद हर रोज़ है मिलाता तुमसे
इनायत की है बादलों से मैंने
उनकी कुछ पसीने की बूंद से ही
महका देना फ़िज़ा यूँ जैसे
हर चुस्की लेकर तेरी
कुछ चाय - सा उबाल आता मुझमें
मिलूँ भी जब मिलूँ मैं तुमसे
ऐसा लगे मानो मिलूँ मैं मुझसे !
हर पहेली में छुपा तू एक राज़
जैसे हर राह में मिलूँ तुझसे
फिर से हमराज़ कैसे
करवटें तो लाख काटी मैंने
तेरी सिलवटों में
मुस्करा कर मुँह फेर
जाना ये तेरा मिजाज़ जैसे
हर पतझड़ समेट तेरी
कुछ बसंत - सा बह जाता मुझमें
मिलूँ भी जब मिलूँ मैं तुमसे
ऐसा लगे मानो मिलूँ मैं मुझसे !
कुछ अंदर ही अंदर झूम रहा है
करूंं इबादत या करूंं सजदा
कि दिल सातवें आसमां पर झूम रहा है
मेरी रूह की हर गली बीच
तेरा ही गुल खिला है
हर नुक्कड़ और नज़ारे में
बस तू ही तू मुझको मिला है
हर कीचड़ में तुझको पा कर
कुछ कमल - सा खिल जाता है मुझमें
मिलूँ भी जब मिलूँ मैं तुमसे
ऐसा लगे मानो मिलूँ मैं मुझसे !
कुछ खाली कुछ गुमनाम - सा है
प्यार है जो तेरा
बड़ा कत्लेआम - सा है
बेचैन कर देती है
वो निगाहें ही तेरी
तू जो मिला है
ऐसे जैसे कोई इनाम - सा है
हर लौ में जल कर उनकी
कुछ शमाँ - सा जल जाता मुझमें
मिलूँ भी जब मिलूँ मैं तुमसे
ऐसा लगे मानो मिलूँ मैं मुझसे !