नारी को नारी सा मान चाहिए
नारी को नारी सा मान चाहिए
'ना देवी सा मान चाहिए,
ना दासी सा अपमान चाहिए,
इस पुरुष प्रधान समाज में,
नारी को नारी सा सम्मान चाहिए,
पूजी जाती थी सदियों से नारी जहाँ,
मुझे आज फिर वही हिंदुस्तान चाहिए।
शिवलिंग पूजे जाते है जहाँ
मंदिर और शिवालों में,
शक्तिलिंग का प्रयोग होता है
वहाँ असभ्य सी,तुच्छ गालियों में,
फिर ये आश्चर्य कैसा ?
फिर ये विडंबना कैसी ?
गर बेटे झूले सोने के पालने में
बेटियाँ मिले गंदी नालियों में,
जगतजननी कहलाती है जो
नींव ही बनके ना दब जाए वो
जीवन के इस आधार को
अब अपना अलग आसमान चाहिए।
इस पुरुष प्रधान समाज में
नारी को नारी सा सम्मान चाहिए,
पूजी जाती थी सदियों से नारी जहाँ
मुझे आज फिर वही हिंदुस्तान चाहिए।
पिता के दो कटु वचन निभाए श्री राम ने,
विवाह के सात पवित्र वचनों से बदल गए,
सीता को अग्नि में तपाकर भी फिर क्यों
स्वयं एक धोबी की बात से पिघल गए,
प्रतियोगिता में जीते थे जिसे
प्रतियोगिता में ही उसे हार गए
पांच पांडव अपनी पांचाली को
जीते जी ही क्यों मार गए,
बचा ना सके जो लाज द्रोपदी के तन की
समझे ना जो पीड़ा नारी के कोमल मन की,
ना ऐसे राम के राज्य
ना ही अर्जुन के तीर-कमान चाहिए,
इस पुरुष प्रधान समाज में
नारी को नारी सा सम्मान चाहिए,
पूजी जाती थी सदियों से नारी जहाँ
मुझे आज फिर वही हिंदुस्तान चाहिए।
फूल ही फूल ना खिले हो हर तरफ
फूलों को खिलाने वाली ये कलियाँ भी रहे ,
हर चमन में अपनी आज़ादी से उड़ सके
ऐसी निर्भय-चंचल ये तितलियाँ भी रहे।
ना अब कसे फिकरे कोई भी
ना कोई फिर अपशब्द कहे
वो सच में इंसान है अगर तो
अपनी इंसानियत की हद में रहे,
ना दामिनी को दर्द मिले फिर
ना नन्ही गुड़ियों से खेले कोई
कन्या तो स्वयं शक्ति का अंश है
नहीं मिट्टी के खिलोनों के मेले कोई
इन मासूम नन्हीं कलियों के चेहरों पर
अब आशाओं से भरी मुस्कान चाहिए,
इस पुरुष प्रधान समाज में
नारी को नारी सा सम्मान चाहिए,
पूजी जाती थी सदियों से नारी जहाँ
मुझे आज फिर वही हिंदुस्तान चाहिए।।