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कुमार संदीप

Drama

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कुमार संदीप

Drama

ज़िंदगी

ज़िंदगी

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ज़िंदगी कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है। आज मुनिया के जीवन में असमय ही पहाड़ टूट पड़ा। बीमारी की वजह से बेवक्त ही पति का देहांत हो गया। अब मुनिया अकेली हो चुकी थी। दस वर्षीय बेटी के अलावा उसका कोई अपना नहीं था। अंतिम संस्कार के सभी कर्म उसने किए।

और एक संकल्प लिया कि तन पर चाहे जितनी तकलीफ उठानी पड़े सभी तकलीफ़ सहन करूँगी। और हाँ तकलीफ़ सहन कर मैं अपनी गुड़िया रानी को पढ़ाऊंगी ताकि भविष्य में कोई भी बाधा यदि बिटिया रानी के सामने आए तो बेटी मायूस न हो। बाधाओं का डरकर नहीं डटकर सामना करेगी मेरी बेटी मैं बेटी को इस काबिल बनाऊँगी। इधर बेटी भी मेहनत और लगन से पढ़ने लगी और माँ की बदौलत उसने अपनी एक अलग पहचान दुनिया के समक्ष प्रस्तुत की।

इस लघुकथा का उद्देश्य है कि ज़िंदगी में कई बार मुश्किलें ऐसी भी आतींं हैं जब हम टूट जाते हैं। पर मुश्किलों से मुँह मोड़ने की बजाय हमें उन मुश्किलों का डटकर सामना करना चाहिए सफलता एक दिन निश्चित प्राप्त होगी।


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