यादों का आंदोलन
यादों का आंदोलन
तू जब से चली गई है,
मेरी दुनिया जैसे बदल गई है।
हर आहट में, हर सन्नाटे में,
तेरी यादें जैसे गूंजने लगी हैं।
तेरे मुस्कुराने का असर अब भी,
मेरे हर पल में समाया हुआ है।
तेरी हंसी की गूंज,
मेरे कानों में बसी हुई है।
तेरी यादों का आंदोलन,
हर दिन, हर रात मुझमें बढ़ता है।
मैं कभी खो जाता हूँ तुझमें,
फिर लौट आता हूँ, पर ये यादें कभी नहीं जातीं।
आंधी के रुख में, तेरा नाम फिजाओं में घुलता है,
जैसे कोई कविता बन रही हो, अनकही और अधूरी।
तेरी तस्वीरें मेरी आँखों में हर रोज़ बसी रहती हैं,
जैसे हर चित्र में, मैं और तू साकार होते हैं।
क्या ये आंदोलन कभी थमेगा?
क्या तेरी यादें कभी खो जाएंगी?
नहीं, तेरी यादों का यह आंदोलन
सभी सीमा-रेखाओं को पार कर जाएगा,
जहाँ मेरी आत्मा तुझसे मिल पाएगी।
तेरी यादें एक आंदोलन की तरह,
मेरे दिल में सजीव रहती हैं।
और मैं इस आंदोलन का हिस्सा,
बस तेरे होने की कसक महसूस करता हूँ।

