वृक्ष की याचना
वृक्ष की याचना
एक लकड़हारा घने जंगल के बीच चोरी-चोरी पेड़ काट रहा है...खटाक...खटाक। कुल्हाड़ी की मार से पेड़ लगातार जख़्मी होता जा रहा है। उसके ज़ख्म से सफेद श्राव होने लगता है। पता नहीं आँसू हैं या श्वेत रक्तकण ? जब पेड़ कुल्हाड़ी के लगातार वार से कटकर गिरने को होता है तो उसके याचना -स्वर फूट पड़ते हैं- "प्रिय मित्र ! तुम मुझे क्यों काट रहे हो ?"
जवाब मिलता है- "मैं तुम्हें बेचकर अपने बाल-बच्चों का भरण-पोषण करूँगा।"
वृक्ष- "जीविकोपार्जन के और भी तो तरीके हैं मित्र। मैं तो तुम्हारा अभिन्न मित्र हूँ। तुम मुझ पर नहीं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हो।"
फिर कुल्हाड़ी का एक जोरदार प्रहार होता है और दरख़्त घहराकर जमींदोज हो जाता है।
गिरते-गिरते एक अत्यंत करुण याचना वृक्ष से सुनाई पड़ती है- "मेरे दोस्त ! मैं तो तुम्हारे लिए ही बना हूँ। तुम मेरे तन से कुछ भी बनवा सकते हो, यथा- टेबल, खिड़की, दरवाज़े, पलंग इत्यादि। परन्तु मित्र ! एक गुज़ारिश है, कभी कुर्सी मत बनवाना, बस 'कुर्सी' मत बनवाना।
