Mamta Karan

Tragedy

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Mamta Karan

Tragedy

वृद्धाश्रम

वृद्धाश्रम

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प्यार माँ बेटा का : -

कुछ दशक पहले की बात है, देश मे छोटा परिवार सुखी परिवार का बहुत प्रचलन था।

दुखिया काका को ये बात जंच गई, तीन साल का एक बेटा था दीपक, छोटी बेटी के जन्म के बाद काकी का नसबंदी कराने के बाद ही अस्पताल से छुट्टी लिए।

कुछ दिन तो सब ठिक था। अचानक एक दिन दुखिया काका का देहांत हो गया, सब कहते हैं उनको मिर्गी का बीमारी था, आग पानी से परहेज था उनको।

एक दिन बिना किसी को बताये तालाब मे नहाने चले गये और ये हादसा हो गया।

काका के नहीं रहने पर काकी बहुत दुखी रहने लगी, काका के मौत का जिम्मेदार अपनी छोटी बच्ची को समझने लगी, इसीलिये उसका देखभाल ठीक से नहीं करती थी। कहने लगी कौन सा मनहूस घड़ी मे तू पैदा हुई जो बाप को खा गई। जब विधाता रूठते हैं तो सब तरफ से समय

बिगड़ जाता है , छोटी को चिकन पॉक्स हो गया देखभाल के कमी के कारण वो भी एक दिन चल बसी।

अब काकी का जीने का सहारा एक मात्र दीपक बचा सो काकी जैसे जैसे होश सम्हालकर पूरे जी जान से दीपक का देखभाल करने

लगी, अपने हजार दुख सहकर भी दीपक को कोई कमी नहीं होने दी। दीपक भी पढ़ाई मे पूरा ध्यान लगाता था, जैसे तैसे दीपक बिकॉम पास कर गया।

पढ़ाई में अव्वल रहने के कारण बैंक में नौकरी हो गया। कुछ दिन बाद दीपक की शादी हुई , पहले से घर मे कोई था नहीं सो घर में एक आदमी को पाकर

दीपक बहुत खुश था। पत्नी को बहुत प्यार करता था ,उसका किसी बात का अवहेलना नहीं करता था।  लेकिन ये क्या इस बात का उसकी पत्नी गलत फायदा उठाने लगी , हमेशा उसके माँ के साथ किच - किच करने लगी , हद्द तो तब हो गई जब वो एक दिन दीपक को ये कह दी कि मैं आपके माँ के साथ नहीं रहूँगी, आप इन्हें वृद्धा आश्रम दे आओ, इतना सुनते हीं दीपक सुन्न रह गया, मानो काटो तो खून नहीं जैसे।


अपनी पत्नी को बहुत समझाने का प्रयास किया पर कुछ सुनने को तैयार नहीं। दीपक भी मन हीं मन ये ठान लिए कि तुम क्या जानो मेरी माँ मेरे लिये क्या है, तुम्हारे कहने से हम थोड़े न अपनी माँ को वृद्धाश्रम दे आयेंगे। पर कुछ दिन बाद देख रहे हैं कि उनकी पत्नी माँ का बड़ा अवहेलना कर रही है , बात करना छोड़ दी , खाना परसकर नहीं दे रही है, इतना ही नहीं माँ के साथ उनका भी अनदेखा होने लगा। फिर दीपक ने एक फैसला लिया माँ को वृद्धाश्रम छोड़ आये , उधरे से तलाक का पेपर बनवा लिए। घर आकर पत्नी से बोले ये लो इसपर साइन करो , पत्नी बोली ये क्या है , दीपक बोले मैने फैसला

किया है कि ये घर आजतक जो भी मेरे पास पैसा है वो सब मैं तुम को दे देता हूँ, और मैं कल से अपनी माँ के पास वृद्धाश्रम मे रहूँगा , इतना सुनते ही पत्नी खूब जोर -जोर से रोने लगी बोली ऐसा कहीं होता है क्या , वो एकदम सख्त आवाज़ में बोले मैं फैसला कर चुका हूँ, तुम साइन करो।

देखो आज तीन दिन हो गया मेरी माँ वहाँ आश्रम में कुछ नहीं खाई है, और यहाँ मैं तीन दिन से भूखा हूँ।

इतना सुनते ही पत्नी बोली आप मुझे माँ के पास ले चलीये, मैं उनसे माफी माँगूंगी उन्हें घर लेकर आउगीं। फिर दोनों आश्रम गये माँ को घर लाये अब सब ठीक है। लेकिन दीपक के माँ जैसी और कई माँएं आज भी आशा देख रही है , कि मेरा बेटा मुझे लेने कब आयेगा।


   


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