वृद्धाश्रम...
वृद्धाश्रम...
बैंच पर बैठी यशोदा के सामने रखी खाने की थाली में से आज एक कोऱ भी नहीं निकला हुआ देख मोहन बोला :- क्या हुआ बहन... किस सोच में डूबीं हुई हो..!
यशोदा की आंखों के पास और गालों पर पड़ी झूर्रियो से आंसू की एक धार यकायक बहने लगी..।
वो देख मोहन से रहा नहीं गया और अपना खाना आधे में छोड़ कर यशोदा के पास आया और उनको ढांढस बंधाने लगा..।
कुछ देर में पास बैठी कोमल और राधा भी यशोदा के पास आ गई....। सभी अपना अपना खाना छोड़कर उसके पास आए और रोने का कारण पुछा..!
लड़खड़ाती जुबान से यशोदा बोली :- मेरे बेटे का जन्मदिन हैं आज... बहुत याद आ रहीं हैं..।
इतने में हरि बोला :- अरे ये तो बहुत अच्छी बात हैं.. इसमें रोना कैसा... ये तो खुशी की बात हैं...यशोदा बहन आज तो पार्टी देनी पड़ेगी आपको..। क्यूँ दोस्तों क्या बोलते हो..!
यशोदा का मन बदलने के लिए हरि ने सभी को इशारा किया तो सभी बोल पड़े :- हां... यशोदा बहन.... बात तो बिल्कुल सही हैं..। अरे हम बुड्ढे हो गए हैं तो क्या हुवा.... पार्टी का शौक तो हमें भी हैं..।
मस्ती करते हुए मोहन बोला :- मैं तो चिकन खाऊंगा चिकन...।
हरि मुड बनाने के लिए बोला :- ओ.... मोहनिया... चिकन खाने के लिए मुंह में दांत भी जरूरी हैं....और पेट में आंत भी.... तेरे तो दोनों नहीं हैं...।
ये सुन यशोदा के साथ साथ वहाँ खड़े सभी बुजुर्ग ठहाके मारकर हंसने लगे....।
कुछ देर तक सभी एक दूसरे के साथ छेड़छाड़ और मस्ती मजाक करते रहें...।
ये सब देख यशोदा मन में सोचने लगी :- मैं भी किसके लिए रो रहीं हूँ..। उस बेटे के लिए... जिसने बोझ समझकर मुझे यहाँ वृद्धाश्रम में छोड़ दिया....। उस बेटे के लिए जिसके पास मेरे घुटने के आपरेशन के लिए पैसे नहीं थें...लेकिन घर में कार रखने के लिए दुसरे ही दिन पैसे आ गए....। उस बेटे के लिए जो अपने बाप के मरते ही प्रोप्रटी के लिए मुझपर चिल्लाने और मारने के लिए आ गया था...।
आज उसके जन्म दिन के लिए मैं यहाँ रो रहीं हूँ लेकिन उसे मेरी याद भी नहीं होगी...। उस एक खून के रिश्ते को निभाने के लिए मैं यहाँ इन सब को दुखी कर रही हूँ....इन सब ने मुझे हिम्मत देने के लिए अपना खाना तक आधे में छोड़ दिया...।
यशोदा ऐसा सोचकर उन सभी को देखे जा रहीं थीं तभी हरि बोला :- अरे यशोदा बहन चिंता नहीं करने का.... पार्टी का खर्चा आधा आधा कर लेंगे... बस आप हां तो करो...।
यशोदा ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा :- हां... हरि भाई...। पार्टी तो पक्की.... लेकिन बेटे के जन्मदिन की नहीं... आप सभी के साथ एक नए रिश्ते की शुरुआत के लिए...।
मैं पिछले नौ महिनों से यहाँ हूँ... लेकिन हर दिन हर पल सिर्फ अपने बेटे के लौटने की आस लिए... दरवाजे की तरफ़ नजर टिकाए रहतीं थीं..। कभी मैने आप सब की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया...। उस रिश्ते से ज्यादा मजबूत तो हमारा रिश्ता हैं..इंसानियत का रिश्ता...अपनेपन का रिश्ता... प्यार का रिश्ता..। पार्टी तो जरूर होगी... जरूर होगी...।
कहते कहते यशोदा की फिर से आंखे भर आई.... लेकिन इस बार ये आंसू गम़ के नहीं खुशी के थें...। ये अनुभव यशोदा के लिए नया था.... लेकिन आज वो खुश थीं..।