वो खौफनाक रात
वो खौफनाक रात
नही भूलती वो रात,जाने कौन थी वो, हम सहारपुर से लुधियाना की तरफ जा रहे थे, रात का समय था।
हमें लघुशँका के लिए जाना था तो रास्ते खाली सड़क देख कर गाड़ी रोक ली और हल्के हो लिए। रात के कुछ
ग्यारह बजे थे, हम बस गाड़ी में तीन दोस्त ही थे सो मस्ती मज़ा करते जा रहे थे, हँसी ठिठैली चल रही थी कि अचानक से
चरमरा कर गाड़ी की ब्रेक लगी।
ओए सोनु क्या हुआ,एकदम से ब्रेक कैसे लगा दी। ओए टीटू वो सामने देख,ब्रेक ना लगाता तो वो बँदा मर जाता। चल, उतर कर देखैं तो कौन है। हम सब गाड़ी से उतरते है। साहब मेरे बच्चे घर पर इन्तज़ार कर रहे हैं, बिन माँ के बच्चे हैं उनके लिए खाना ले कर जा रहा था, रास्ते में स्कुटर ख़राब हो गया है और कोई सवारी भी नहीं मिल रही, आप की मेहरबानी होगी थोड़ा आगे तक छोड़ दो।
हमने देखा जिधर उसने ईशारा किया था, थोड़ी दूरी पर स्कुटर पड़ा था, वो बोला साहब स्कुटर पड़ा रहने दो कल को कोई आ कर ले जाएगा, और हमने उसे गाड़ी मै अपने साथ बैठा लिया और जहाँ आगे उसने कहा वहाँ उसे छोड़ दिया। जैसे ही वो गाड़ी से ऊतरा पलक झपकते ही धन्यवाद कह कर आँखो से ओझल हो गया। ओए सोनू ये देख जहाँ वो बँदा बैठा था वो जगह तो खून से लतपत है, अरे हरि तु देख ज़रा क्या टीटू सच कह रहा है या इस को चढ़ गई है, लगता है इसने ज्यादा पी ली है, हाँ सोनू टीटू सच कह रहा है , और हम सब की सिट्टी पिट्टी गुम। आगे का रास्ता राम-राम जपते हुए तय करते हैं और सुबह के अखबार में उसी बँदे की तस्वीर नज़र आती है कि एक टरक उसे बेदर्दी से कुचल गया जिससे उसका मुँह -सिर कुछ भी नहीं नज़र आ रहा। अब तक वो खौफ़नाक रात नहीं भूलती।