Anil Garg

Drama

2.8  

Anil Garg

Drama

वो हवस भरी लड़कीं- 1

वो हवस भरी लड़कीं- 1

13 mins
6.4K


मेरे पुलिस सायरन जैसी फ़ोन की घण्टी से मेरी आँख खुली तो रात के कोई ढाई बजे थे। मैने गुस्से भरी नजरों से अपने फ़ोन की और देखा? और इस वक़्त मन ही मन उस काल करने वाले को मन मन की हजारों गालियां देते हुए मैने फ़ोन को कान पर लगाया।

" कहां आग लग गई" मैंने अलसाये से स्वर में उस फ़ोन करने वाले को बोला।

" अनुज...अनुज बोल रहे हो?" उधर से किसी महिला का घबराया हुआ स्वर मेरे कानों में पड़ा।

" हां मोहतरमा! जब फ़ोन आपने अनुज को मिलाया है तो अनुज ही बोल रहा होगा ना?" मैं लड़कीं की आवाज को सुनकर अपनी औकात पर आ चुका था।

" अनुज मैं सौम्या बोल रही हूँ?" उधर से इतना सुनते ही मैंने अपने फ़ोन की स्क्रीन पर पहली बार नजर डाली तो उस पर सौम्या का नाम ही फ़्लैश हो रहा था।

सौम्या का नाम देखते ही आपके इस सेवक का सुर बदल चुका था।

" क्या हुआ सौम्या? तुम ठीक तो हो? इस वक़्त क्यो फ़ोन किया?" मैने चिंतित स्वर में सौम्या से पूछा।

" अनुज मेरी जान ख़तरे में है?कोई शख्स कई दिनों से मेरा पीछा कर रहा है? और आज तो इस वक़्त वो मेरी कोठी के बाहर ही घूम रहा है? मुझे बहुत डर लग रहा है?क्या तुम इस वक़्त मेरे घर आ सकते हो? " सौम्या का स्वर अभी भी डर से कांप रहा था।

मैने एक बार फिर से घड़ी के ऊपर नजर डाली। रात का अंतिम प्रहर बस शुरू होने को ही था। लेकिन मैं इस शोख चंचल हसीना को उसके पास आने से मना भी नहीं कर सकता था। मैंने उसे उसके पास तत्काल आने का आस्वासन दिया। और फ़ोन को रख दिया।

मैंने जल्दी से कपडे पहने? क्योकि आपके इस सेवक को रात को बिना कपड़ों के ही सोना पसंद है? मैने अपने घर को लॉक किया और गाड़ी निकाल कर अशोक विहार की और दौड़ा दी।

सौम्या गुप्ता जो आज तक़दीर से और कुछ आपके इस बन्दानवाज की मेहरबानी से आज 300 करोड के एम्पायर की मालिक थी। वो इस वक़्त किसी मुसीबत में थी?जो लोग सौम्या के बारे में नहीं जानते उन्हें बता दूं कि सौम्या एक बला की हसीन लड़कीं है? जिसकी सुंदरता के आगे बढ़ी से बड़ी फिल्मी हीरोइन भी पानी भरती हुई नजर आती है। बदकिस्मती से हुश्न के इस जलाल को एक बेहद ही कामुक बीमारी थी? जिसे डॉक्टरी भाषा मे निम्फोमेनियक कहा जाता है? इस बीमारी की शिकार महिला को हर वक़्त सहवास के लिए किसी न किसी मर्द की जरूरत पड़ती है? और इसी बीमारी की वजह से उसके पति राजीव गुप्ता ने उसकी जान लेने की कोशिश की थी! लेकिन वो मेरी वजह से पकड़ा गया था ! और इस वक़्त दिल्ली की तिहाड़ जेल में अपनी बची खुची जिंदगी के दिन काट रहा था।

उसी सौम्या की जान आज फिर से खतरे में थी? उस हसीना ने एक बार फिर से मुझे पुकारा था? और मैं उसकी एक पुकार पर इस वक़्त दिल्ली की सड़कों पर अपनी गाड़ी दौड़ाता हुआ उसके घर की और दौड़ा चला जा रहा था।

आखिर जाता क्यो नही? एक बीमारी तो मुझे भी थी कि आपका ये बन्दानवाज किसी भी हसीन बला को मुसीबत में नहीं देख सकता था?

                          

जब मैं गुप्ता निवास पर पहुंचा तो समय लगभग 3:30 हो चुके था। मैंने गुप्ता निवास के पास पहुंच कर अपनी गाड़ी को थोड़ा धीमा किया और दोनो और निगाह डालते हुए मैं गाड़ी को लेकर गुप्ता निवास से आगे ले गया। मैं देखना चाहता था कि सच मे कोई शख्स वहां इस वक़्त भी मंडरा रहा था या ये सौम्या का कोई वहम था?

लेकिन मुझे वहां ऐसा कोई शख्स मुझे वहां उस कोठी के आसपास कही नजर नहीं आया। मैंने कुछ दूर आगे जाकर सौम्या को फ़ोन मिलाया ! काफी देर तक फ़ोन पर बेल जाती रही, लेकिन सौम्या ने फ़ोन नहीं उठाया। फ़ोन की घन्टी अपनी मौत स्वयं ही मर गयी। मैंने एक बार फिर से फ़ोन मिलाया! लेकिन नतीजा ढाक के वही तान पात।

अब मेरी छठी इंद्री मुझे किसी खतरे का एहसास कराने लगी। मैंने मन ही मन सौम्या के सही सलामत होने की कामना की और गाड़ी को मोड़ कर फिर से मैंने गुप्ता निवास की ओर मोड़ दिया।

मैने गाड़ी की सौम्या के निवास स्थान से पहले ही रोक दी और गाड़ी को एक साइड में लगा कर मैं गाड़ी से बाहर आ गया। वैसे भी रात्रि के इस प्रहर में सभी लोग मुर्दों से शर्त लगा कर सोते है, और दिल्ली जैसे शहर में यही वक़्त होता है जब यहां की सड़कों के सीने को कोई दल नहीं रहा होता है। सड़क शान्त और सुनसान होती है, और वक़्त अगर सर्दियो की गुलाबी रात का हो तो ये सोने पर सुहागा होती है।

खैर मैं गुप्ता निवास के पिछवाड़े में उसी स्थान पर पहुँचा जहां से मैं पहले भी उस कोठी में छलांग लगा चुका था। मेरी ये देखकर बाँछे खिल गयी कि वो कार आज भी उसी हालत में इतने दिनों के बाद भी वही खड़ी थी। मैं तत्काल उस गाड़ी की छत पर बिना कोई शोर मचाये चढ़ गया। मैं अपनी पुरानी कलाकारी को दिखाते हुए दीवार पर चढ़ा! वो चार दीवारी लगभग 10 फ़ीट ऊची थी। मेरे पैर लटकाने के बाद अब वो ऊँचाई घट कर सिर्फ 4 फ़ीट रह गई थी...और 4 फ़ीट की ऊँचाई से कूदना अपने लिए इतना ही आसान था जितना अपने बच्चन साहब का कुतुब मीनार से कूदना। खैर मैने दीवार को अपनी हाथों की पकड़ से आज़ाद किया और मेरे कदम हल्की सी धप्प की आवाज से जमीन से टकरा गए।

मैं अब पीछे की और मुड़ा। राधा की कोठरी की सभी लाइट बन्द थी। मैं दबे पांव उसी पीछे वाले रास्ते से आगे बढ़ कर उसी गैलरी की तरफ बढ़ा...जिस गैलरी को राधा अपने आने जाने के लिए इस्तेमाल करती थी।

आप भी सोच रहे होंगे कि मैं भी कितना अहमक इंसान हूँ? जब खुद इस कोठी की मालकिन ने मुझे फ़ोन करके बुलाया था तो मुझे इस तरह चोरों की तरह कोठी में घुसने की क्या जरूरत थी।आप सौ प्रतिशत सही कह रहे हो? लेकिन इस वक़्त मेरा अंदेशा था कि जिस शख्स से परेशान होकर सौम्या ने मुझे फोन किया था...कही इस समय वो कोठी में तो नहीं घुसा हुआ है?

मैंने अब अपनी मास्टर चाबी से उस पीछे वाली गैलरी के दरवाजे का ताला खोला। मास्टर चाबी का फायदा ये होता है कि किसी भी ताले को खोलने के लिए खुल जा सिम सिम नहीं बोलना पड़ता।

मैं दरवाजे को खोलकर उस गैलरी में आगे बढ़ा, ये तीसरा मौका था जब मैं इस गैलरी में इस तरह आगे बढ़ रहा था। मैं अभी भी सौम्या की सलामती की दुआ मन ही मन कर रहा था। मैने सीढियो से पहली मंजिल पर कदम रखा। पता नहीं इतना पैसा होने के बाद भी ये लोग पूरे घर मे इतना अंधेरा करके क्यो रखते है?

जबकिं इस वक़्त जहां तक मेरी जानकारी है सौम्या और मेघना के अलावा इस कोठी में नौकर चाकरों को छोड़ कर कोई नहीं रहता था।

मैं सौम्या के कमरे की और बढ़ा। मैंने कमरे को हल्का सा धक्का दिया, दरवाजा अंगद के पैर की तरह अपनी जगह पर अडिग था। मैंने अपने दोनों तरफ निगाह डाली। उस घुप्प अंधेरे में मुझे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।

मैंने अब अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने का सोचा। मैंने अपनी जेब से फिर से मास्टर चाबी निकाली और उस दरवाजे को खुलने पर मजबूर कर दिया, जो अभी तक अपनी मजबूती पर इतरा रहा था।

कमरे में भी अंधेरा था। हाथ को हाथ नहीं सुझाई दे रहा था। मैं दबे कदमो से अंदर पड़ा। मैं आंखे फाड़ फाड़ कर अंधेरे का चीरहरण करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन अभी तक दुशासन की तरह कामयाब नहीं हो पाया था।

मैंने सौम्या के बेड पर नजर डाली। बेड पर वो नाजनीन हसीना मुझे कही नजर नहीं आई। सौम्या अपने कमरे में भी नहीं थी तो फिर कहा थी? क्या उस आदमी ने उसे अपने कब्जे में कर लिया था या उसका यहां से उसका किडनैप हो चुका था।

मैंने अब मेघना को टटोलने की सोची। मेघना सौम्या की बचपन की साथी। उसकी हमप्याला, हमनिवाला.. वो इस संकट की घड़ी में कहां थी? लेकिन मैं उस कमरे में अभी किसी भी किस्म की रोशनी करके किसी संकट में नहीं फसना चाहता था। मैंने अब पहले सौम्या के रूम को अच्छे से चेक करने की सोची। मेरी आँखें अब अंधेरे में थोड़ा थोड़ा देखने की अभ्यस्त हो चुकी थी।

मुझे वहां किसी भी किस्म के कोई संघर्ष के निशान नहीं नजर नहीं आये। सभी चीज़े अपनी जगह यथावत थी। अब हो सकता था कि डर की वजह से सौम्या कोठी में ही किसी ऐसी जगह छुप गई हो जो उसे अपने बेडरूम से ज्यादा सुरक्षित लग रही हो। अभी मैं अपने विचारों में खोया ही था कि बाहर किसी खटके की आवाज से मेरी विचारतंद्रा टूटी। मैं फ़ौरन बाहर की और लपका। लेकिन मेरे कदम रास्ते मे ही ठिठक गए। मैं फौरन दरवाजे के पीछे की तरफ खिसका। किसी ने दरवाजे को हल्की सी जुम्बिश दी! लेकिन कोई अंदर नहीं आया! तभी मुझेएक जोड़ी भागते हुए कदमो की आवाज सुनाई पड़ी।

अब मेरा सौम्या के कमरे में रुकने का कोई फायदा नहीं था। मैं भी उस रूम से निकल कर बाहर जिस तरफ से भागते हुए कदमो की आवाज आ रही थी...उसी तरफ को अपनी पूरी जान लगा कर दौड़ा। लेकिन अचानक से वो आवाज आनी बन्द हो गई।

धड़ाम....? किसी दरवाजे के जोर से बंद होने की आवाज आई.....आवाज ऊपर की मंजिल की ओर से आई थी।

अब ये आपका सेवक बिना कुछ सोचे समझे ऊपर की ओर दौड़ पड़ा। ऊपर भी गलियारे में अंधेरे का साम्राज्य था। एक पल को मुझे कुछ भी नजर नहीं आया।पता नहीं ये अमीर लोग अपनी कोठी बंगलो में इतने कमरों को बनवाते क्यो है? उस पूरे फ्लोर पर दोनो और मिलाकर आठ कमरे तो होंगे। क्योकि इस कोठी का जुग्राफिया आपका सेवक पहले भी कई बार देख चुका था। इसलिए मुझे इस फ्लोर के कमरों का अंदाजा था।

वो जो कोई भी था इस वक़्त शुरू के एक दो कमरों में ही होना चाहिए था? क्योंकि जितनी जल्दी उन भागते हुए कदमो की आवाज आनी बन्द हुई थी उस हिसाब से वो कोठी के अंतिम छोर तक बने कमरों तक नहीं पहुँच सकता था। मैंने अब अपने बाबूराव को बाहर निकाल कर हाथ मे ले लिया।

मैंने अब सबसे पहले वाले कमरे के दरवाजे को हल्की सी जुम्बिश दी। लेकिन वो हिमालय की तरह अडिग खड़ा था। मैन फिर उसके सामने वाले दरवाजे को हिलाया! लेकिन वो भी अपनी जगह से टस से मस ना हुआ। अब मैं दीवार से चिपका चिपका ही तीसरे कमरे की ओर बढ़ा...बाबूराव अभी भी मेरे हाथ मे ही था। मैने तीसरा दरवाजा धकेलना चाहा ही था कि मेरी उम्मीदों के विपरीत तेज आवाज करता हुआ वो दरवाजा खुला और एक साया मेरे ऊपर झपटा और मुझे धक्का देकर मुझे विपरीत दिशा में गिरा दिया।

मेरे गिरते ही वो साया सीढियो की और लपका...मेरे बाबूराव के मुंह से भी एक शोला उसकी ओर लपका...लेकिन वो जो भी था किस्मत का धनी इंसान था...बाबूराव के मुंह से निकले शोले को छकाते हुए वो शख्स सीढियो में उतरने में कामयाब हो गया। तब तक आपके सेवक के होश अपने ठिकाने पर आ चुके थे।

मैं भी पीछे पीछे सीढियो में उसके पीछे भागा। तब तक गोली की आवाज ने उस कोठी में सोए हुए सभी लोगो की नींद का इस ब्रह्म मुहूर्त में अंतिम संस्कार कर दिया था। कुछ कदम कोठी के अंदर की दिशा की और आते हुए सुनाई दिए। एक के बाद एक कोठी की लाइट अब जलती जा रही थी। मुझे नीचे गलियारे में कोई भी शख्स नजर नहीं आया

मैं वापस उसी मंजिल की और दौड़ा और जल्दी से उस तीसरें कमरे के बाहर पहुंचा। मैं बिना किसी रुकावट के अब अंदर कमरे में पहुंचा? अंदर कमरे के बिल्कुल बीचों बीच एक लड़की दूसरी तरफ की ओर मुंह करके पड़ी थी। तब तक उन दौड़ते हुए कदमो की आवाज ऊपर वाली मंजिल तक पहुंच चुकी थी। हालांकि मेरे लिए वहां डर की कोई गुंजाइश नहीं थी। लेकिन मैंने अपने बाबूराव को अपनी पेंट की जेब के हवाले किया और उस लड़की की ओर बढ़ा। वो सौम्या भी हो सकती थी ...वो मेघना भी हो सकती थी....?

मैंने तत्काल दूसरी और पहुँच कर उस लड़की के चेहरे पर नजर डाली। वो ना सौम्या थी और ना ही मेघना थी। फिर ये तीसरी लड़कीं कौन थी....?

तब तक वो दौड़ते हुए कदम उसी कमरे के दरवाजे के बाहर आकर रुक चुके थे। चार गार्ड मेरी और अपनी दोनाली को ताने खड़े हुए थे। मुझे इन गार्ड्स की कोई परवाह नहीं थी। सबसे बड़ी बात ये थी कि सौम्या और मेघना इस समय कहां थी ?और मुझ पर हमला करने वाला क्या अभी भी इसी कोठी में मौजूद था?

मैंने एक नजर उस लड़की पर डाली। मुझे किसी किस्म का खून इत्यादि वहां कुछ भी नजर नहीं आया। लेकिन अभी मुझे ये नहीं पता था कि वो लड़कीं जिंदा है या मुर्दा।

वो चारो गार्ड अब मेरी और बढ़ रहे थे।

" अरे अनुज साहब! आप यहां क्या कर रहे है इतनी सुबह सुबह" उस गार्ड ने शायद मुझे पहचान लिया था।

"मैं यहां कैसे हूँ? वो बाद में बताऊंगा?पहले इसे देखो ये लड़कीं जिंदा भी है या नहीं?और तुमने किसी को यहां से बाहर की तरफ भागते हुए देखा हैं क्या? मैने उसी गार्ड को बोला जो मुझे जानता था। अब उन गार्ड की बंदूकें नीचे झुक चुकी थी।

" साहब इसकी नब्ज तो बडी धीमी धीमी चल रही है" उस गार्ड ने किसी वैध की तरह से उसकी कलाई पकड़ी हुई थी।

"प्यारे लाल इसका मतलब ये अभी बेहोश है! इसे फ़ौरन होश में लाओ" मैंने उसी गार्ड को फिर से बोला।

"मैं पानी लेकर आता हूँ " उनमें से एक गार्ड ये बोलकर नीचे की ओर दौड़ गया।

कुछ ही पलों में वो गार्ड पानी का जग लेकर वहां आ चुका था। उसने पानी के छींटे उसके चेहरे पर मारे? कुछ ही पलों में उस लड़की के जिस्म में कुछ हरकत हुई। वो गार्ड जो अभी तक उसकी कलाई पकडे हुए था..उसकी आँखों की चमक भी अचानक से बढ़ गई। दूसरे गार्ड ने अब और ज्यादा पानी की बरसात उस लड़की के चेहरे पर कर दी। थोड़ी देर की मेहनत के बाद वो लड़कीं होश में आ ही गई। वो हैरानी से पलके झपकाते हुए अपने चारों ओर घूर घूर कर देख रही थी। अपने आप को इतने लोगो के बीच में घिरा देखकर वो लड़कीं अब खुद को असहज महसूस कर रही थी। वो कोई 20-22 साल की साँवले मगर आकर्षक चेहरे की लड़कीं थी।

" मैं कहाँ हूँ" कुछ देर बाद जब उस लड़की को वहां का माहौल समझ मे आया तो उसने बड़े ही फ़िल्मी स्टाइल में पूछा।

"आप जहां भी है अभी ठीक ठाक हो....आप कुछ समय रेस्ट कर लो ...अभी थोड़ी देर में बात करता हूँ तुमसे" मैंने उस लड़की को देखकर बोला। ये बोलकर मैंने सिर्फ एक गार्ड को वहां रुकने का इशारा किया! और बाकी गार्ड को अपनी ड्यूटी वाली जगह पर जाने के लिए बोल दिया।

अब मैंने कमरे से बाहर निकल कर मेघना के नंबर को डायल किया। मेघना के फ़ोन पर बेल जा रही थी। कुछ ही देर में मेघना ने फ़ोन को उठा लिया।

"और मेरी जान के पौने चौदहवे हिस्से..आज इस नाचीज़ को सुबह सुबह कैसे याद कर लिया? रात को मेरा सपना देख लिया क्या। मेघना ने मेरा डायलॉग मुझ पर ही मार दिया।

" हां रात को मैने ख्वाबो में देखा कि तुम मेरे सामने स्ट्रिप डांस कर रही हो मेरी मल्लिका ऐ हुश्न" मैं उस माहौल में भी अपनी कमीनगी से बाज नहीं आया।

" तुम्हारा कसूर नहीं है बिल्ली को ख्वाब में भी थिथड़े ही दिखाई देते है? काम बताओ?क्या हुआ? जो इतनी सुबह मुझे फ़ोन किया" मेघना ने अचानक से अपनी टोन बदल दी।

" तुम और सौम्या इस वक़्त कहां हो" मैंने मेघना से पूछा।

" मैं तो अपने घर आई हुई हूँ दो दिन से और सौम्या तो घर पर ही होगी" मेघना को किसी भी बात की कोई जानकारी ही नहीं थी।

" मैं इस वक़्त सौम्या के घर पर ही हूँ ! लेकिन वो इस वक़्त घर पर नहीं है" मैंने मेघना को बोला।

" फिर गई होगी अपने किसी शिकार के साथ? तुम तो जानते ही हो उसके बारे में" मेघना ने बेबाकी से कहा।

" नहीं बात वो नहीं है" फिर मैंने मेघना को आज रात का पूरा किस्सा कह सुनाया। मेरी बात सुनकर मेघना के मुंह से कुछ पल तो बोल ही नहीं फूटे! फिर उसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी।

" मैं अभी आधे घण्टे में पहुंच रही हूँ अनुज.. सौम्या को कुछ होना नहीं चाहिए" ये बोलकर मेघना ने फोन रख दिया। उसके स्वर से उसकी उदासी साफ झलक रही थी।

मैंने अब सौम्या के मोबाइल पर फोन मिलाया..लेकिन फोन अब स्विच ऑफ हो चुका था। मेरे चेहरे पर अब चिंता की लकीरें उभर आई थी। मेघना के आने के बाद ये भी डिसाइड करना था कि इस पूरे घटनाक्रम की सूचना पुलिस को दे या नही?

मेरे कदम अब कमरे में अंदर की ओर मुड़ चुके थे।


क्रमशः



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama