बरसात में

बरसात में

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आसमान में घनघोर घटाओ को देखकर ननकू के माथे पर आज फिर चिंता की लकीरें खींच गयी थी।जब भी बारिस आती है ननकू को अपने घर के टपकते हुए छप्पर की याद आ जाती है। महरिया जोरू बच्चे पूरी पूरी रात बिस्तर को सुखी जमीन की तलाश में इधर उधर करते रहते थे।

"ई बरसात पीछा छोड़ेगी की का नहीं इस बरस" ननकू काले बादलों की चाल के साथ अपनी कदमताल मिलाते हुए चल रहा था।

ऐसा नहीं है कि ननकू अपने घर का छप्पर नया नहीं बांधना चाहता था पर क्या करे दो बखत के खाने में ही सारा रुप्पेया खर्च हो जाता था। फिर भी कई कई दिन सिर्फ दाल भात पर गुजारा करना पड़ता था।जोरू महरिया बापू बच्चो और खुद को मिलाकर पूरे 7 लोगो का परिवार था ऊपर से ननकू ठहरा दिहाड़ी मजदूर ।महीने में 10- 12 दिन तो ऐसे निकलते ही थे जब ननकू को कोई काम नहीं मिलता था।

हलकी हलकी बूंदाबांदी शुरू हो चुकी थी और ननकू की चाल में भी तेजी आ चुकी थी।पूरे सावन भादो के महीने में ननकू को चैन की नींद नसीब नही होती थी।

ई ससुर बरसात को भी गरीब की झोपीड़िया ही नजर आती है,अरे जाकर अमीरन के महल चौबारे पर बरस,हम गरीबन ने इसका का बिगाड़ा है" ननकू मन ही मन कुढ़ता हुआ सोचे जा रहा था।

तभी रास्ते में पड़ने वाली उस चाय की टपरिया से रेडियो चहक पड़ा"अल्लाह मेघ दे,अल्लाह मेघ दे" गाने के ये बोल सुनकर ननकू के मन की कुढ़न और बढ़ गयी।

"गाना तो अइसन सुन रहा है जइसन टपरी नही पक्की दूकान लेकर बैठे है, इक बार तेज बारिश हुई गवा तो ई टपरी ढुढत भी ना मिलेगी" ननकू मन ही मन उस चाय वाले का उपहास उड़ाते हुए मन ही मन कुनमुनाया।

अब बारिस अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी थी पर ननकू की रफ़्तार अब धीमी पड़ती जा रही थी।पिछली बरसात में तो बापू महरिया और जोरू सभी ने सारी सारी रात एक टांग पर खड़े होकर गुजारी थी। बस बच्चे सो पाये थे किसी तरह एक कोने में।

ननकू के घर पहुंचते पहुंचते बारिस अपना विकराल रूप धारण कर चुकी थी,बापू महरिया जोरू और बच्चे सभी कातर नजरो से आसमान की और निहार रहे थे,बेबसी का मारा ननकू भी उसी कतार में जाकर खड़ा हो गया। घर का छप्पर अपने पूरे आवेग में टपक रहा था और कही दूर से रेडियो गा रहा था।

             बरसात मे हमसे मिले तुम सजन

                   तुमसे मिले हम बरसात मे।।

                   

      


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