सब्जियों का युद्ध

सब्जियों का युद्ध

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अचानक से रात के 2 बजे किसी खुसर पुसर से हमारी नींद खुल गई, जैसे ही बिस्तर से उठने को हुए, धर्मपत्नी जी कुनमुनाने लगी, " क्या आधी रात को भी निशाचरों की तरह डोलते रहते हो, सो काहे नही जाते चैन से"।

हमने एक उचटती हुई नजर अपनी भाग्यवान पर डाली, वो कुनमुना कर फिर से नींद के सागर में गोते लगाने लगी थी। हम दबे पांव उठे और कमरे से बाहर की ओर चल दिये। जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे खुसर पुसर तेज होती जा रही थी। मैं आशंकित सा आगे बढ़ रहा था, कही कोई चोर लुटेरा तो घर मे नही घुस गया, फिर सोचा घुस भी जाएगा तो अपना क्या ले जाएगा, घर की हालत देखकर अपनी जेब के पैसे ही तरस खाकर रख कर जाएगा।

मैं सधे कदमो से बढ़ते बढ़ते रसोई के पास तक आ पहुंचा था। आवाज तो रसोई में से ही आ रही थी। ये चोर रसोई में क्या कर रहे होंगे? मॉल चुराने आये है कि रोटी चुराने आये है। लेकिन रसोई में चोरों की मौजूदगी की कोई हलचल सुनाई नही दे रही थी।

" आजकल तो खूब आग लगाई हुई है बाजार में, बड़े भाव बढ़ रहे है तेरे" मैंने कान लगाकर सुना आवाज तो अंदर से ही आ रही थी।

" तू कौन सा कम है तू भी आजकल खूब लाल हो रहा है"

" अरे प्याज महाराज तुम तो भाव भी दिखाते हो और लोगो को रुलाते भी हो। यार ये दो तरफा मार तो मत मारो इन बेचारे इंसानों पर" शायद ये टमाटर था जो प्याज को उलाहना दे रहा था।

" टमाटर महाराज तो तुम कौन सा कम हो मैं तो आंखों से पानी ही निकालती हूँ तुम तो लोगो के दांत ही खट्टे कर देती हो" प्याज ने उसका उलाहना उसे उसी की स्टाइल में वापस किया।

" अबे यार अब सोने दो ना, एक तो वैसे ही नींद नही आ रही है, इस घर की मालकिन बोल रही थी कि सुबह कद्दू बनाएगी नास्ते में। तो अपुन की तो ये आखिरी रात ही है, कम से कम आज तो सोने दो" कद्दू अपनी आने वाली मौत से खौफजदा था।

" जब तू कल वैसे ही हमेशा के लिए सो जाएगा तो फिर आज क्यो सोने की जिद कर रहा है। आज तो हमसे जी भर के बतिया ले" अब तक खामोश पड़ी घीया भी बोल पड़ी।

" उदास क्यो होता है कद्दू बेटा। इस नश्वर संसार से जाना तो सभी को है, कोई नाश्ते के वक़्त शहीद होगा कोई लंच में और कोई डिनर में, इस लिए गम न कर बेटा उस लोक में हम भी तेरे पीछे पीछे आ रहे है" अब करेले ने अपनी कसैली जुबान से अपने उदगार प्रकट किए।

" रहने दो चच्चा। तुम तो बच जाते हो हर बार। तुम्हारा नाम सुनते ही बच्चे तो बच्चे बड़े भी भाग खड़े होते है, तुम तो लंबी उम्र का वरदान लेकर आये हो" अब तक सब्जियो का राजा आलू जो चुपचाप सब कुछ सुन रहा था। उसने करेले की बात की हवा निकाल दी।

" तेरा दर्द समझ सकती हूँ आलू भैया, तुम तो किसी के भी साथ मार दिए जाते हो काट दिए जाते हो, तुम्हारे साथ तो बहुत नाइंसाफी होती है" इस बार तोरी ने भी चर्चा में भाग लिया।

"तोरी बहन जब कुछ न पता हो तो मुंह मे मत खोला करो, सबसे ज्यादा अत्याचार तो मेरे साथ होता है । मेरे बिना किसी को कुछ भी खाने का मजा ही नही आता" टमाटर ने तोरी से नाराजगी जताई।

" तेरे जैसा ही मेरा भी हाल है । ,कितना भी महंगा हो जाऊं। पर कमीने मुझे खाना नही छोड़ते" प्याज ने टमाटर को अपनी बाहों में भरते हुए कहा।

" अबे चुप करो सालों, तुम्हारे चक्कर मे पिछवाड़ा तो मुझ गरीब का जलता है" अचानक से ऊपर रखा प्रेशर कुकर फट पड़ा।

" और क्या और मुझे खामख्वाह उस गर्म तेल में झोंक दिया जाता है" प्रेशर कुकर का साथ कड़छी ने दिया।

" इंसान का इंसान से हो भाई चारा, यही विश्वास हमारा" अचानक से अब तक कौने में पड़ी भिंडी केजरीवाल की स्टाइल में गाने लगी।

" तू तो अपना भाषण अपने पास ही रख, . इतनी गंदी लार छोड़ती है तू की तुझे तो कोई खाना भी पसन्द नही करता" प्याज को पता नही क्या हुआ कि वो भिंडी पर पिल पड़ा।

" चुप कर बदबू मारती डकार, तुझे खाने के बाद तो गर्लफ्रैंड भी बॉयफ्रेंड को चूमने से मना कर देती है" भिंडी को प्याज का इस तरह से उस पर भड़कना रास नही आया था।

" भिंडी तू अपनी जवांनी पर इतना न इतरा, जब किसी लड़कीं के गालो की खूबसूरती की मिसाल दी जाती है , तो सब कहते है , क्या लाल लाल टमाटर जैसे गाल है" टमाटर भी अपनी खूबसूरती पर इतरा रहा था।

"मैं हूँ ही ऐसी की अंग्रेज तक अपनी गौरी मैडम की उंगलियो की तुलना मुझ से करके मुझे लेडी फिंगर कहते है, तुम में से किसी की खूबसूरती को मिला है क्या ऐसा कॉम्पलिमेंट"भिंडी ने इतरा कर बोला।

" भिंडी तेरा तो नाम ही एक कलंक है। बेचारी लडकीयो को तेरा नाम ले लेकर चिढ़ाया जाता है" इस बार बैंगन भी इस झगड़े में कूद ही गया।

"एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा", तेरे तो नाम से ही तुझे कोई ख़ाना पसंद नही करता कलवे" भिंडी भी बैंगन के कपडे उतारने से पीछे नही रही।

" अपने झगड़े में मुझे मत घसीटो भिंडी। नही तो मेरे से बुरा कोई नही होगा" करेला अपने ऊपर कहावत को बोलते देख चिल्ला पड़ा।

" तू तो वैसे ही बहुत बुरा है कड़वे करेले, तेरे साथ जब भी तलता हूँ तेरी कड़वाहट से जीना हराम हो जाता है" इस बार प्याज ने करेले को उसकी औकात याद दिला दी।

" अरे कमीनो चुप हो जाओ, क्यो हमारी नींद का सत्यानाश करने पर तुले हो, तुम सब तो एक दो दिन के मेहमान हो, यहां तो अभी कई साल जलना है" इस बार कड़ाही ने सभी को डांट लगाई।

" लो अब उस कलवे बैंगन के साथ साथ ये कल्लो कढ़ाई भी बोली" भिंडी ने लगे हाथ कड़ाही पर भी तंज दे मारा।

" ये सब ऐसे नही मानेगे, लगता है इनका वक़्त से पहले ही अंतिम संस्कार करना होगा" इस बार चाकू महाराज ने अपना रौद्र रूप दिखाया।

" ओये चाकू, ज्यादा चक चक मत कर। तू डरा किसे रहा है। हम शहीदो की कौम से है, रोज़ अपना बलिदान देते है।

"हे वीरों तुम हो महाकाल। फिर काल भी आये तो डरनाक्या"

जब चला सिपाही लड़ने को, फिर जीना क्या और मरना क्या"

मर मिट भी गए इतिहासों में तब नाम अमर हो जाएगा

हमारी स्वादिष्ट सब्जी खाकर श्रद्धा से शीश झुकायेगा"

चाकू की धमकी से आहत होकर कद्दू महाराज ने वीर रस की ये कविता सुनाकर अपने साथियो का हौसला बढ़ाया।

कद्दू की इस वीर रस की कविता से उसके साथियो में भले ही किसी उत्साह का संचार न हुआ हो लेकिन चाकू छुरी कांटो को जरूर जोश से भर दिया।

" अबे क्या पिद्दी क्या पिद्दी का शोरबा. रोज़ हमारी धार से कटकर बेमौत मरता है और हमे ही हूल दे रहा है, ठहर अभी बताता हूँ तुझे। ये बोलकर वो 21 इंची चाकू कद्दू की और बढ़ा, चाकू के इस रौद्र रूप को देखकर अब सभी सब्जियां अपने दड़बों की और दौड़ी, .लेकिन तब तक चाकू और उसके गिरोह के साथियो ने उनको चारों तरफ से घेर लिया था।

" साथियो जब मरना ही है तो लड़कर मरो, सबसे पहले हमारे वीर योद्धा कटहल को आगे करो, शत्रु के सभी वार हमारे कटहल पर बेअसर साबित होंगे, कटहल ने कद्दू की बात सुनकर उसकी और अपनी आंखें तरेरी, "साले तेरे जैसे कवि ही बिना वजह रोज़ टीवी चैनलो पर भारत पाक का युद्ध करवाते है । तू आज मरवाएगा सभी को" कटहल को अब अपनी आकस्मिक मौत नजर आनी लगी थी।

तब तक चारो और से चाकू और उसके संगी साथियो ने कद्दू की पलटन पर हमला कर दिया था। चारो ओर भयंकर मारकाट मच चुकी थी। कद्दू पलटन लगातार धरासाई हो रही थी। उनकी किस्मत में लिखा ही मरना था आज नही तो कल इन्होंने इन्हीं छुरी कांटो से कटना था।

" सालों इन को काट काट कर मुझ में डालते रहो नही तो इस घर की मालकिन चाची ताड़का से कम नही है, सुबह उठते ही तुम्हे कच्चा खा जाएगी वो डायन, . कमीनी रोज मेरे पिछवाडे में आग लगाती है" ऊपर से प्रेशर कुकर ने नीचे छलांग लगाई, एक तेज धमाका हुआ। मैं फोरन सम्मोहन की मुद्रा से जागा।

मैंने रसोई की लाइट जलाई, रसोई का हाल बेहाल था। कुकर एक कौने में अब खामोश पड़ा था। सभी चाकू छुरीयो के मुंह पर खको बैंगन की कालिमा डस चुकी थी। प्याज तो अब न रोने की हालत में था न रुलाने की, तोरी घीया करेला और अपनी खूबसूरती पर इतराने वाली भिंडी वीरगति को प्राप्त हो चुकी थी। इन सभी की लाशों के बीच मे इस दंगे को भड़काने वाला कद्दू अभी भी सांसें ले रहा था। मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मैं इस वक़्त पर कौन सा गाना गाऊँ, केजरीवाल वाला" इंसान का इंसान से हो भाईचारा, या फिर " कर चले हम फिदा जानो तन साथियो। अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो"


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