Anil Garg

Drama

4.3  

Anil Garg

Drama

जा बापू हो गईं तेरी सदगति !

जा बापू हो गईं तेरी सदगति !

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हरिया को जब ये पता चला की उसके बापू गुजर गए है तब वो फैक्ट्री में काम कर रहा था। ये दुखद खबर सुनते ही हरिया अपने हाथ धोकर फैक्ट्री के मैनेजर की तरफ भागा।

"देख हरिया हम 2-3 हजार से ज्यादा इस टाइम पर तेरी मदद नहीं कर सकते,फैक्ट्री का यही नियम कायदा है तो हम क्या कर सकते है"

"लेकिन साहब इतने पैसो में तो कुछ भी नहींं होगा,ये तो श्मशान में ही खर्चा हो जायेगा,फिर बापू की अस्थियों का गंगा जी में विसर्जन,फिर बापू के नाम का ब्रह्मभोज, इतने से पैसो में क्या क्या करेंगे बाबूजी,कम से कम 20,000 रुपये चाहिए"

"तू पागल है क्या हरिया,कौन देगा तुझे इतनी बड़ी रकम, अब मै कोई यहाँ का मालिक तो हूँ नहींं ! मै भी तेरी तरह नौकर ही हूँ,मै तो बस 3000 ही दे सकता हूँ तुझे! लेने है तो बोल!नहीं तो मुझे और भी बहुत काम है"

अब हरिया क्या करता 3 हजार रुपल्ली हाथ में लेकर अंटी में खोस लिए। "बापू भी ऐसे समय में गया है जब घर में रोटीओ का भी ठिकाना नहींं है" हरिया मन ही मन ही बड़बड़ाया।

अब बाकी रकम कहा से लाएगा,इन्ही सब की चिंता करते हुए वो बुझे मन से घर पहुंचा तो बापू को वहां आँगन में ही लिटा रखा था। हरिया की बीबी रामकली और पड़ोस की 5-7 औरतें वही बराबर में बैठी थी,हरिया को आया देख कर रोने की सिसकिया थोड़ी तेज हो गई। हरिया ने एक नजर अपने बापू पर डाली और घर के बाहर आकर बैठ गया जहाँ मोहल्ले के और भी शोकाकुल लोग बैठे हुए थे।तभी ननकू  आकर कान में फुसफुसाया।

"हरिया वो बापू के अंतिम संस्कार का सामान लाना है" बोलकर ननकू ने हरिया की ओर अर्थपूर्ण नजरो से देखा।

हरिया ने ननकू की बात का मतलब समझते हुए चुपचाप कुछ रुपल्ली ननकू के हाथ में रख दी। ननकू चुपचाप वहां से खिसक लिया।

तभी हरिया की बीबी रामकली ने दरवाजे पर आकर हरिया को इशारे से अंदर बुलाया।

"सुनो जी कोई बोल रहा था कि बापू पंचक में मरे है तो पंचक जरूर शांत करवा लेना श्मशान में पंडित जी से"

"ठीक है भाग्यवान !अभी तो हमारे पंचक लगे हुए है उन्हें तो शांत कर लूं" हरिया खिजियाते हुए बोला।

"क्यों जी क्या हुआ,कुछ परेशान लग रहे हो"

" परेशानी तो है ही इतना पैसा कहा से आएगा"

"जितना होगा उतने में कर लेंगे,तुम क्यों अपने मन को जला रहे हो"

"ठीक है तुम जाओ अंदर बैठो,ननकू गया है संस्कार का सामान लाने" ये बोलकर हरिया फिर वही आकर बैठ गया।

थोड़ी देर में ननकू अंतिम संस्कार का समान लेकर आ गया।

अंतिम संस्कार के समान में एक सफ़ेद रंग का कुर्ता पाजामा भी था,जिसे पहन कर हरिया को अंतिम संस्कार की सभी रस्म निभानी थी। हरिया मन ही मन मुस्काया,कितने दिनों से रामकली उसे एक जोड़ी कपडे लेने को बोल रही थी,वो इच्छा इस तरह से पूरी होगी हरिया ने सोचा नहींं था।"वाह बापू मरने के बाद भी मेरी ही इच्छा का ख्याल रहा तुझे"।

थोड़ी देर में बापू को श्मशान ले जाने की सारी तैयारी पूरी हो गयी।लोगो ने "राम नाम सत्य है " का स्मरण करते हुए बापू की अर्थी को उठाया और तेज तेज कदमो से श्मशान की और बढ़ने लगे।पता नहींं लोगो की चाल शव को उठाते ही इतनी तेज क्यों हो जाती है, जैसे आज ही कोई मैराथन जीतना है।

बापू का दाहसंस्कार करके घर वापस आते आते शाम हो गयी थी। अब परसों बापू की अस्थियां विसर्जन के लिए गंगा जी जाना था।जेब में पैसे गिने तो बस 800 रुपल्ली बची थी। गरीब जब जीते जी इतनी सस्ती जिंदगी जीता है तो उसकी मौत क्यों इतनी महंगी हो जाती है? अभी बापू की मौत के सारे कारज होने बाकी थे। अब पैसो के लिए किसके आगे हाथ फैलाऊँ ? यही सोचकर हरिया बार बार करवट बदल रहा था।

"सुनो जी मेरे पास थोड़ी सी चांदी है उन्हें कल बेच दो कुछ पैसे तो आ जॉएगे हाथ में ! उससे परसों का गंगा जी का काम तो निपटावो, फिर आगे की आगे देखेगे"

"रामकली तेरे पास पहले ही कुछ नहींं बचा अब ये थोड़ी सी चांदी है तू उनको भी क्यों ठिकाने लगवा रही है"

"जीते जी तो बापू को कोई सुख मिला नहींं जी अब मरकर तो सदगति मिल जाए,सोने चांदी का क्या है जी ये तो आनी जानी चीज़े है"

"ठीक है भाग्यवान,सुबह करता हूँ कुछ,अब सो जा ! कल से गाँव के रिश्तेदार भी आने शुरू हो जायेगे।

अगले दिन चांदी बेचकर 4 हजार रुपल्ली हाथ आई,सुनार ने भी मौके का खूब लाभ उठाया।मजबूरी का नाम महात्मा गांधी,यही सोचकर 4 हजार लेकर घर आ गया।

अगले दिन सुबह श्मशान से बापू की अस्थियां लेकर मै गंगा जी के लिए बस में बैठ गया। कोई साढ़े तीन घण्टे के सफर के बाद मै गंगा जी पहुंच गया। मेरे हाथ में अस्थिया देखकर 2-4 पंडे मेरे पीछे लग गए।मेरा ये गंगा जी पर अस्थिया विसर्जन का पहला मौका था तो बिलकुल अंजान था इन पंडो की करतूतों से। एक पंडे ने मेरे गाँव का नाम पूछा।जैसे ही मैंने गांव का नाम लिया तो उनमें से एक पंडे ने मेरा हाथ पकड़ लिया।

"सब हट जाओ ये तो हमारे यजमान है"ये सुनते ही बाकी पंडे वहां से हवा हो गए।

"आओ यजमान! हम आपके अस्थि विसर्जन के सारे कारज पूरे करवाएंगे। मृत आत्म से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है यजमान"

" जी मेरे बापू थे" मैंने उदास स्वर में कहा।

"ओह मृत्यु कब हुई यजमान"

"परसों हुई थी महाराज"

"ओह्ह बड़ी ही गलत बेला में आपके बापू की मृत्यु हुई है यजमान उस दिन से तो पंचक लग गए थे अगर पंचक की पूजा नहींं करवाई यजमान तो परिवार में एक के बाद एक लगातार पांच मौते होती है यजमान"

अब वो पंडा मुझे डराने लगा था।

"लेकिन महाराज पंचक की पूजा तो हमने उस दिन श्मशान में करवा ली थीं"

"अरे यजमान असली पूजा का महत्व गंगा माँ की गोद में बैठकर करवाने से होता है तभी पूजा का फल।मिलता है,यजमान चिंता मत करो सिर्फ 1100 रुपये में हम इतनी बड़ी पूजा करवा देंगे"

1100 रुपये सुनकर मेरी साँस नीचे की नीचे और ऊपर की ऊपर रह गई।मैंने हिसाब लगाया रामकली ने मुझे सुबह चलते हुए 2000 रुपये दिए थे।

"यजमान तुम्हारा गौत्र क्या है"

"कश्यप गौत्र है महाराज"

"ओह्ह तो कश्यप ऋषी के महान कुल से हो तुम यजमान"

"जी महाराज, पण्डे की बात सुनकर मेरा सीना चौड़ा हो गया था।

"तो यजमान बापू के 5 कपडे अंगोछा चप्पल इत्यादि लाये हो या नहींं"

"महाराज ये तो किसी ने बताया ही नहींं"

"यजमान अब बापू को क्या ऊपर बिना वस्त्र और चप्पल के घुमाओगे" पण्डे ने थोड़ा सा नाराज होकर कहा।

"चलो कोई बात नहींं अगर नहींं लाये हो तो इन सबके नाम का 501 रुपये का संकल्प छुड़वा देना,तुम्हारे बापू की सदगति हो जायेगी।

"और फिर साल भर का भोजन, गौग्रास मिलाकर 5100 रु होते है यजमान "

"अब मेरी आँखों के आगे अँधेरा सा छाने लगा था।बार बार अपनी जेब की कुल जमा पूंजी को छुकर देख रहा था कि वो भी जेब में है या नहीं या वो भी किसी ने गायब कर दी।

"चलो यजमान अब नौका को किराए पर ले लो फिर गंगा मैया के बिलकुल बीच में जाकर सभी संकल्प करवाएंगे और वही अस्थियो का विसर्जन करेगे,तभी तुम्हारे बापू की आत्मा की सदगति होगी"

"महाराज मेरी घरवाली भी साथ आई हुई है वो वहाँ पूल पर अकेली खड़ी है,जरा उसे भी साथ ले आऊ, ये बोलकर मै उलटे पाँव भागा।

"अरे यजमान क्या हुआ,रूको तो सही" वो पंडा अब मेरे पीछे दौड़ रहा था।

मै तेज तेज कदमो से पूल के ऊपर चढ़ रहा था,मैंने मुड़कर देखा वो पंडा काफी पीछे छूट गया था।मैंने राहत की सांस ली और पूल के बीच में आकर नीचे गंगा मैया की और देखा और फिर अस्थियो की थैली का मुंह गंगा जी की और खोल दिया

बापू की सभी अस्थिया गंगा जी में प्रवाहित हो गईं थी।

"जा बापू ! जब जीते जी तेरी कोई गति नहींं हुई तो अब मरकर भी क्या सदगति होनी है,जीते जी तुझे कभी कोई सुख नहींं मिला तो अब मरने के बाद तुझे खीर पूरी कहां से खिलाऊँ! जा बापू ! हो गई तेरी सदगति ! जय गंगा मैया अपनी गोद में मेरे बापू को स्थान देना और वापस लौट पड़ा।


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