वो चली गयी

वो चली गयी

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मैं उसे जाने नहीं देना चाहता था, कभी भी नहीं। लेकिन उस वक़्त मैं उसे रोकने के लिए कुछ कर भी नहीं सकता था सिवाय आँख में आँसू भर कर उसके शांत चेहरे की तरफ़ देखने के। रिश्तों को यूँ तोड़ कर चले जाना इंसान की आदत रही है। लेकिन कोई ऐसा-वैसा रिश्ता नहीं था हमारा। वो पिछले पाँच साल से मेरी प्रेमिका और पिछले साढ़े तीन साल से मेरी पत्नी थी।

एक छोटा सा घरौंदा जिसकी नींव हमने पाँच साल पहले डाली थी और पिछले साढ़े तीन साल से उसे बनाने में जुटे थे। कुछ प्रेम कहानियाँ बहुत जल्दी बन कर तैयार हो जाती है जैसे एक-दूसरे के लिए ही बने हो। हमारी भी कुछ ऐसी ही थी। जब हम पहली बार मिले थे और जैसे उसी वक़्त हमने तय कर लिया था की इस प्रेम कहानी को शादी के एक ख़ूबसूरत अंजाम तक पहुँचायंगे। अंजाम जितना ख़ूबसूरत था, वहाँ तक पहुँचने के रास्ते में मुश्किलें भी उतनी ही थी और इस रास्ते को तय करने में जितनी दूरी मैंने तय की थी उतना उसने भी किया था।

और अब जब साढ़े तीन साल में कई दफ़ा लड़ाई-झगड़े कर के, कई रातें ग़ुस्से में भूखे सो कर लेकिन हर दिन, हर पल प्रेम में गुज़ार कर घरौंदा बन कर तैयार हुआ तो अचानक से उसका उस घरौंदा को छोर कर चले जाने का फ़ैसला मुझे फिर से अनाथ कर जाने जैसा लग रहा था। मैं उसके इस फ़ैसले पर उसे चिल्ला कर,रो कर, कैसे भी उसे रोकना चाहता था लेकिन दुनिया के सबसे बड़े दर्द में चीख़ नहीं निकलती, सबसे बड़े ग़म में आँसु नहीं टपकते है।

उसके शांत पड़े चेहरे पर उसका मुझे छोर कर चले जाने के निश्चयता को देख कर मैं अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था की ये वही लड़की है जिसने पिछले पाँच सालों में न जाने कई दफ़ा कहा है,

“ अज्जु, मुझे तुमसे बहुत प्यार है..”

शादी से पहले, वो अक्सर मुझ से पूछा करती थी,

“अज्जु, हमारी शादी तो हो जाएगी न”

और मेरे बार-बार हाँ कहने के बावजूद उसके बार-बार पूछने से तंग आकर मैं उसके चेहरे को हथेली में भर कर कहता

“ ऐशु, मैं तुम्हारे साथ अपनी सारी ज़िंदगी बर्बाद करने के बारे में बहुत ही ज़्यादा सिरीयस हुँ..”

ये सुनते ही उसकी आँखे बड़ी-बड़ी हो जाती और वो मेरे हाथों को झटक देती..

“मुझे पता है, तुम कैसे हो। शादी के बाद दूसरे मर्दों की तरह तुम्हारा प्यार भी कम हो जायेगा..क्योंकि फिर तो तुम्हें मेरे साथ अपनी ज़िंदगी बर्बाद लगने लगेगी ना..”

और शायद हुआ भी ऐसा ही। हम हर रोज़ प्यार में तो थे लेकिन घरौंदे बनाने के लिए और ज़िंदगी की गाड़ी दुरुस्त रखने के लिए सिर्फ़ प्यार ही काफ़ी नहीं होता, पैसे की अहमियत होती है। अक्सर देर रात लौटने के बाद मैं थका हुआ बिस्तर पर लेटते ही ऊँघ जाता था। अब हमारी बातें या कहूँ तो उसकी बातें अधूरी रहने लगी थी। किसी-किसी दिन तंग आकर वो मुझे झकझोर कर जगा देती और लड़ते हुए मुझसे कहती,

“अज्जु, सच में तुम्हारा प्यार कम हो गया है..”

और फिर उसे चुप कराने में और समझाने में मैं आधी-आधी रात तक अपने सारे मीठे बोल ख़र्च कर देता था।

धीरे-धीरे स्थिति थोड़ी और बिगड़ गयी। पहलें बातें अधूरी रह जाया करती थी अब बातें शुरू भी नहीं हो पाती थी।

और फिर एक-डेढ़ महीने पहलें मुझे पता चला की उसने मुझे छोर कर जाने का फ़ैसला कर लिया है। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन कुछ फ़ायदा नहीं हुआ। और आज वो मुझे हमेशा केलिए छोर कर जाने के लिए तैयार थी और मैं उसके चेहरे के शून्य में घूरता उसे रोकने की कोशिश तक नहीं कर रहा था।मेरे पास ही तो थी वो लेकिन मैं उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक नहीं सकता था। आज बिलकुल शांत भी थी वो लेकिन मैं उस से बहस कर के उसे रोक भी नहीं पा रहा था। और हर बीतते पल के साथ मुझे ये अहसास जकड़ रहा था की उसे छोरने भी मुझे ही जाना पड़ेगा।

बाहर के शोर से पता चाल रहा था कि उसके माता-पिता आ गये हैं और तभी मुझे अहसास हुआ की अब वो बस कुछ पल और ही मेरे साथ रहेगी। और इन आख़िरी पलों में मैं उसे बताना चाहता था कि वो हमेशा से ग़लत सोचती और बोलतीं आयी है,हमेशा से। जैसे हमारे शादी के शुरुआती सालों में वो मेरे सीने पर सर रख मेरे से बातें किया करती थी,

“अज्जु तुम्हें पता है एक बात..हम दोनो के प्यार में सबसे ज़्यादा प्यार मैं करती हूँ..”

“तुम्हें ऐसा क्यूँ लगता है..?”

“क्योंकि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं गुज़ार सकती..”

तब मैं उसके चेहरे को अपने सीने से ऊपर उठा कर उसके आँखो में देख कर बोला करता था

“अच्छा और जब हम बूढ़े हो जायेंगे और मैं पहले मर गया तो..”

उसके बाद हम दोनो में बहस शुरू हो जाती की बुढ़ापे में पहले कौन मरेगा और मेरे लॉजिक हमेशा रहते थे कि मर्द की उम्र औरत के अपेक्षा कम होती है, मैं शराब भी पीता हुँ और कोरपोरेट जॉब भी करता हुँ साथ ही साथ मैं अपने बीवी से बहस भी लड़ाता हुँ। अंत में हार मान कर वो मेरे सीने पे मुक्का मार कर कहती,

“देखना मैं बुढ़ापे से पहले ही मर जाऊँगी..”

मैं इन आख़िरी पलों में उसे ये भी बताना चाहता था कि..

“ऐशु तुम फिर जीत गयी और मैं हमेशा की तरह फिर हार गया..”

मैं उसे नहीं छोड़ना चाहता था, मैं उसे बिलकुल नहीं जाने देना चाहता था। लेकिन देर हो रही थी और श्मशान घाट हमारे घर से काफ़ी दूर था।


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