वो आखिरी ....प्रतियोगिता
वो आखिरी ....प्रतियोगिता


बहुत सीधा सादा लड़का था निखिल।दिखने में उतना भी खास नहीं था ,लेकिन जब बात करता तो लगता कि कानों में मिठास घुल रही हो।उसकी आवाज़ में एक अलग ही जादू था।कभी अपने में खोया सा रहता ।तो कभी सबको इतना हँसाता अपनी बातों से कि पूछो ही मत।
और एक थी प्रकृति,हाँ जैसा नाम वैसी ही थी वो।मानों स्वयं प्रकृति ने तराशकर उसे पृथ्वी को भेंट की हो।सुन्दर.कोयल सी मीठी आवाज़ ।
दीक्षा,उम्र में थोड़ी सी छोटी थी दोनों से करीबन एक ही साल लेकिन थी बड़ी हंसमुख अपनी बातों से सबको दीवाना बना लेती थी।रंग रूप में उतना निखार न था लेकिन अपनी बातों से किसी का भी दिल चुरा लेने का जज़्बा रखती थी।लेकिन कुछ तो था जो वो अपने दिल में छिपाकर चल रही थी।
तीनों एक प्रतियोगिता में मिलते हैं ।एक भाषण प्रतियोगिता।उनकी पहचान तब एक दूसरे से होती है जब स्टेज से आवाज़ आती है
प्रथम स्थान प्राप्त किया है भारती कॉलेज से मिस दीक्षा ने।
साथ ही दुसरे स्थान पर रहें रूंगटा कॉलेज के निखिल।
और तीसरे स्थान पर कब्जा किया है प्रकृति जी ने।
और तालियों की गड़गड़ाहट से ऑडिटोरियम गूंज उठता है।
इस प्रतियोगिता की अगली कड़ी के लिये और बाकी प्रतियोगी के साथ इन्हें आगे भोपाल रवानगी का ऑफ़र आता है।
सब अपने अपने कॉलेज लौट तो आते हैं,लेकिन निखिल का दिल तो वहीं ऑडिटोरियम की गलियों में भटक चुका था।
विकास-"ओये हेल्लो निखिल साहब आजकल हमारा निखिल,निखिल नहीं रह गया है।लगता है किसी के लिये दिल में कुछ खिलने लगा है।(चुटकी बजाते हुए निखिल को छेड़ता है)
निखिल-"अरे भाई तू भी न कुछ भी बोलता है।वो तो मैं बस अगले प्रतियोगिता की तैयारी में खो गया था।और कुछ भी नहीं हैं समझा।"(निखिल नज़रें चराते हुए)
विकास को लगता है कि हो न प्रकृति ही इसका दिल चुरा ले गयी है।लेकिन क्या सच में प्रकृति ने निखिल का दिल चुराया था.......?
वो वक़्त भी आता है जब सारे प्रतियोगियों को रेल के माध्यम से भोपाल जाना होता है।लेकिन क़िस्मत कैसा खेल खेलती है कि तीनों को एक ही डिब्बे में सीट मिलती है।और साथ में कुछ और लोग भी मिलते हैं।लेकिन इन सब बातों से अंजान ईयरफ़ोन लगाये आँखें बन्द किये अपने में मस्त निखिल ऊपर वाली बोगी पर लेटा रहता है।तभी वो अपना बैग खोलता है और चार्जर नीचे गिरता है।
तभी किसी दूध से उज़ले हाथो ने उस चार्जर को नीचे से वापस किया।
निखिल-"थैंक्स "।
ये प्रकृति ही थी ,तभी निखिल की आँखें मन ही मन उसे खोजने लगीं, जिसने उसका दिल चुरा के अपने पास रख लिया था।तभी उसकी नज़रें कोने में आँखें बन्द की हुई दीक्षा पर पड़ी और उसने राहत की साँस ली।
अब वो अपनी मंज़िल पर पहुंच चुके थे।लड़के और लड़कियों की अलग-अलग रहने की व्यवस्था की गयी थी।शाम को सब एक जगह पर मिलते हैं।
तभी सब अपना कप लेकर चाय लेने जाते हैं।प्रकृति चाय लेकर लौटते रहती है लेकिन उसकी नज़र निखिल को ढूंढते रहती है।इसी कश्मकश में वो दीक्षा से टकरा जाती है और गरम चाय दीक्षा के हाथ में गिर जाती है।तभी पीछे से निखिल आता है और दीक्षा का हाथ पकड़कर उसमें ठण्डा पानी डाल देता है और कहता है-"तुम लड़कियां पापा की परी घर में हो लेकिन मैडम घर के बाहर तो आपको पैरों से ही चलना होगा।"
इस बात से प्रकृति चिढ़ सी जाती है और टूटे हुए कप की तरह खुद को बिखरता हुआ पाती है।
सब खूब मस्ती करते रहते हैं....तभी विकास केले का छिलका फेंकता है।
विकास-"देखना भाई लड़कियां मेरे प्यार में फिसल नहीं सकती तो क्या हुआ।इस छिलके को दिल मान के किसी न किसी को तो फिसला ही दूंगा।"(और निखिल की ओर देख के खूब हंसता है।
निखिल-
'बेटा कोई लड़की हील्स पहन कर गिर गयी न ...तो उसका निशान तेरे चेहरे पर जरुर पड़ जायेगा।"(ये बोलकर निखिल जाता ही है छिलके को उठाने ही कि पैर पटकती हुई आती प्रकृति का पैर उस पर पड़ता है ।वो आवाज़ देता है प्रकृति को लेकिन जब तक निखिल की आवाज़ प्रकृति के कानों तक पहुंचती तब तक उसका पैर केले के छिलके के ऊपर और..........वो निखिल के साथ गिर जाती है।
विकास(मन में सोचता है)-ये तो तेरी ही है।भाभी पर थोड़ी नज़र डालूंगा।
निखिल उठता है, प्रकृति को भी उठाता है।कहीं न कहीं प्रकृति को ये लगता है की निखिल उसकी परवाह करता है।
और इस तरह प्रकृति के मन में पहले से थोड़ा अधिक प्रेम जागृत हो जाता है।जिस प्यार की कमी उसे ज़िंदगी भर थी कहीं न कहीं निखिल को देखकर ही वो खुश रहने लगी।
और इधर निखिल तो बस दीक्षा की यादों में खोने लगा।उसकी परवाह करता था।सबकी नज़रों से छिपकर उसे निहारता था।उसके पास रहने का बहाना ढूँढ़ता था।
इन सब के बीच वो दिन भी आ गया जब सबको भाषण देना था।उसके ठीक पहले दिन ही दीक्षा आती है और अपनी भाषण वाली पेज विकास को थमा देती है और कहती है-'सुनो !तुम निखिल के दोस्त हो न ।हो सके तो ये निखिल को दे देना शायद उसके काम आ जाये।"
ये सब प्रकृति देखती है और उसे लगता है कि निखिल खामखाँ मुझे छोड़ इस लड़की को देखता है ।है ही क्या इसमें ना सुन्दर है, न ही ढंग के बाल हैं और ना ही क्लास है।और देखो तो इस विकास के साथ भी चक्कर है इसका।"
विकास उस पेज को लाकर टेबल पर रख देता है और निखिल को लगता है कि विकास ने उसके लिये भाषण तैयार किया है।
प्रतियोगिता के दिन दीक्षा कहीं दिखाई नहीं देती।और उसमें प्रथम भी निखिल ही आता है ,लेकिन उसे ज्यादा खुशी नहीं होती।वो विकास से पूछता है- "दीक्षा कैसे भाषण नहींं दी अपना।वर्ना पक्का उसी का नाम पहले आता मेरी जगह।"
विकास-"वो तो कल शाम ही लौट गयी है और वो टेबल पर भाषण मिला होगा वो भी उसी का था।उसने कहा था की वो शायद तेरे काम आ जाये। भाई मैं तुझे कल ही बता देता लेकिन वो मना की थी।"
इतने में प्रकृति आती है-"निखिल बधाई हो!पता है मैं तुम्हारे लिये बहुत खुश हूँ ।तुम्हीं इस प्राइज़ के हक़दार हो।और वो दीक्षा का पता है,नहीं पता तो पुछ लो तुम्हारे उसके प्रियतम,प्रेमी से(यह बोल कर वो विकास की ओर देखती है।)
विकास-"तुम कितनी अजीब लड़की हो।पूरी बात तो जान लिया करो। और तुम ये बकवास करके जताना क्या चाहती हो?खैर निखिल दीक्षा घर लौट गयी है उसके पिताजी नहीं चाहते थे की वो प्रतियोगिता में और आगे जाये।दीक्षा नहीं चाहती थी कि वो भाषण भी दें अगर आगे ही न जाना है तो क्यूँ किसी और का नुकसान करे।"
साथ ही एक खत देता है विकास उसे जिसमे दीक्षा ने अपनी मोहब्बत का इज़हार किया होता है।और लिखती है "क़िस्मत ने चाहा तो अगली मुलाक़ात जरुर होगी।मुझे नहीं पता कि तुम हमसे प्यार करते भी हो कि नहीं लेकिन मेरे दिल में जो था, मैं छिपा न सकी।मुझे पता है तुम पक्का नेक्स्ट लैवल के लिये सलेक्ट हो जाओगे और पेपर में तुम्हारा नाम पढ़कर मैं बहुत खुश होउंगी।"
सब सुनकर निखिल की आँखें नम हो गयी थी।तभी वो समाचार पत्र खोलता है और एक दुखद खबर उसे झकझोर देती है ।जिस ट्रेन से दीक्षा घर जा रही थी उसमें आग लग गयी है।
और ये खबर देखकर निखिल बेहोश हो जाता है।उसे होश तो आता है लेकिन तब तक दीक्षा उसकी ज़िंदगी में आने से पहले ही बहुत दूर जा चुकी होती है।
और इस तरह प्यार की कहानी शुरु होते ही खतम हो जाती है।ज़िंदगी कभी ऐसे खुशी देकर छीन लेती है, ये सुना तो था लेकिन आज निखिल की हालत ये बयां भी कर रही थी।