वंश
वंश
नरेगा यानी कि मनरेगा ! भारत सरकार की वह योजना, जिससे गरीबों का भला होने वाला था, परन्तु भला हो गया मनरेगा से जुड़े अधिकारियों का। उन्हीं अधिकारियों में से एक हैं सम्पतराम, जो कभी टूटी-फूटी साईकिल पर चला करते थे, वे आजकल बुलेरो गाड़ी से मंत्री वाले ठाठवाठ में चलते हैं। उनकी मिट्टी वाली झोपड़ी कब राज महल में बदल गई किसी को पता भी नहीं चला।
रोड़पती से देखते ही देखते करोड़पती बने सम्पतराम आलीशान बरामदे में आराम कुर्सी पर बेचैन से आधे बैठे - आधे लेटे किसी बड़ी कम्पनी के पंखे की हवा खा रहे थे। कि तभी अन्दर से बाहर आई बूढ़ी काकी बोली, ‘एम्बुलेंस वालों को फोन करके मना कर दो, बिटिया आ चुकी है।’
‘बिटिया’ शब्द सुनते ही सम्पतराम का चेहरा एकदम पीला पड़ गया, पसीने से तरबतर धड़ाम से आराम कुर्सी पर गिर पड़े।
‘बेटा सम्पत ! संभालो अपने आप को, सब ईश्वर की देन है। ये छटवीं बेटी है, देखना सातवीं संतान पर नार पलट जायेगा (नार पलटना - एक ग्रामीण कहावत) और बेटा ही पैदा होगा। मेरा दिल कहता है तेरा वंश जरूर चलेगा।’ काकी सम्पतराम को धीरज बंधा कर चली गई।
और आलीशान घर से नवजात शिशु के रोने की आवाज आनी शुरू हो चुकी थी...।