Santosh Takar

Romance

4.5  

Santosh Takar

Romance

विश्वास की डोर

विश्वास की डोर

6 mins
271


मेरे कमरे के बाहर खिड़की की तरफ बालकोनी खुलती है, जहां तरह-तरह के पौधे लगे हुए हैं। कुछ खुशबू से महका दे,कुछ औषधिय,कुछ चमकते चमकीले पत्तों वाले, व रंग बिरंगे फूलों वाले।

 मैं निधि उम्र 25, मेरा वक्त अक्सर बालकोनी में लगी जूट की कुर्सी , व एक छोटी सी कांच की टेबल व टेबल पर रखी कुछ किताबें वह मैगजींस के साथ ही बीतता था ,अक्सर राह गुजरते लोगों को देखा जा सकता था वही मेरी बालकोनी से। एक सुबह मैंने देखा एक व्यक्ति जिसकी उम्र लगभग 30 से 32 रही होगी मुझे दूर पेड़ के पास खड़ा होकर देख रहा था, मैं काफी देर बालकोनी में ही थीी, थोड़े समय बाद फिर मुझे वह वहीं खड़ा दिखा, दिखने में किसी अच्छे घराने का लग रहा था। लायंस का शर्ट, एक अच्छी नीले रंग की पेंट पहने और पैरों में काले रंग के लेदर के जूते दिख रहे थे। मैं कुछ समय बाद अंदर चली गई और कार्य में व्यवस्था की वजह से इस घटना को भूल गई और दिन पर दिन निकलते गए तकरीबन 2 सप्ताह बाद मैंने फिर से बालकोनी में बैठे हुए सड़क की ओर देखा तो वही आदमी वही खड़ा रहकर मुझे ही देख रहा था मैं थोड़ा अचंभित हुई और थोड़े समय वहीं रह कर देखना चाहा कि वह कितनी देर यहां रुकता है तकरीबन 10 मिनट बाद वह जमीन पर बैठा और इस तरह झुककर प्रणाम किया जैसे किसी से सजदा किया हो और वहां से चला गया। अब मुझे यह थोड़ा आकर्षित कर गया और मैं इसी समय रोज उसे देखती थी और वह रोज सामने खड़ा होकर वही दोहराता थाा, बिल्कुल शालीनता भरा इस तरह वह सजदा करता रहा मेरे सामने खड़ा रहकर।

अब यह मेरे लिए मेरे विचारों में बहने लगा। 1 दिन में बाहर नहीं आई और अंदर से ही खिड़की से उसे इस तरह देखा कि मैं उसे ना दिख सकूं, वह उसी समय आया था और वहीं खड़ा रहा काफी देर तक, आखिर मेरे दिल ने मुझे बाहर आने को मजबूर किया वह मुझे देखते ही घुटनों के बल जमीन पर बैठा दोनों हाथ जोड़े और सिर झुका कर प्रणाम किया अब दिन मेरा बस इसी ख्याल में लगने लगा कि आखिर यह माजरा क्या है वह व्यक्ति कौन है और वह ऐसा करता क्यों है मुझे उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। 1 दिन उसके जाने रुकने और मेरे घर से चले जाने बाद मैंने पीछा किया कि आखिर जाता कहां है वह कार लेकर आता था और मैंने उसका पीछा मेरी स्कूटी से किया थोड़ी दूर जाने बाद वह एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग के सामने रुका और व्यक्ति कार से उतर कर उसने गले में टाई लगाई, ऊपर कोट डाला। तभी एक आदमी दौड़ा आया अंदर से जिसे वह अपनी कार की चाबी दे देता है आने वाला व्यक्ति एक ड्राइवर या उसके नौकर होने का आभास दिला रहा था उसने उसकी कार को पार्किंग में लगाया और वह व्यक्ति लिफ्ट से ऊपर चला जाता है। मुझे ऊपर जाना मुनासिब ना लगा और मैं वापस चली आई अब मुझे इन सब बातों ने बहुत ज्यादा उलझा दिया था, आज सुबह से विचार बना लिया था कि उससे खुद बात कर लेती हूं और पूछ लेती हूं कि आखिर वह कौन है और यह सब क्या चल रहा है फिर लगा की छोड़ देती हूं ,मुझे क्या पड़ा इन सब से और मैं बेफिक्र रहने की कोशिश करने लगी और काम करने लगी।

 मैं एक फैशन डिज़ाइनर हूं और मैं अलग-अलग परिवेश अनुसार अलग-अलग पेपर डिजाइन बनाकर कंपनी में भेजती हूं इसी से मेरा गुजारा होता था मेरी खूब कोशिश बाद मै उस व्यक्ति को दिमाग से दिन भर में ना भुला पाई, अगली सुबह मैंने फिर पीछा किया और अब की बार मैं ऊपर उसके ऑफिस तक पीछे पीछे गई ऑफिस बहुत बड़ा नहीं था फिर भी बहुत सुकून भरा सुव्यवस्थित और शांति से लीन लग रहा था। 10 से 15 लोग अपने अपने काम में व्यस्त थे और भीतर जाकर एक छोटा सा केबिन बना हुआ था जिसके बाहर "सिद्धार्थ " नाम की एक नेम प्लेट लगी थी , जिसमें एक सुंदर ऊंचे गद्दे वाली कुर्सी लगी हुई थी सामने लकड़ी की दो टेबल थी, एक पर कांच का टॉप लगा हुआ था और डेकोरेटेड की हुईं, एक कैलेंडर था ,एक पानी का गिलास, दो कांच के गोले थे , गेंद जैसे बहुत सुंदर दिख रहे थे शायद कुछ पेपर्स को बिखेरने से रोकने के लिए रखे थेे, एक गुलदस्ता था जिसमें रंग-बिरंगे फूल थे। पास रखी टेबल पर कंप्यूटर था , ऑफिस से जुड़ा हुआ ही एक टॉयलेट था। गनीमत यही रही कि जब वह व्यक्ति टॉयलेट गया तभी मैंने 1 मिनट के लिए ऑफिस को देखा था अचानक से एक तस्वीर पर नजर पड़ी मेरी जो कुछ जानी पहचानी लग रही थी ध्यान से देखा तो ओ तेरी ! मेरे दिल से आवाज निकली, यह तो मेरे घर की फोटो थी जिसमें मैं खड़ी हूं मुझे ध्यान आया कि यह तब की फोटो थी जब दादी मेरे साथ थी लगभग 3 साल पुरानी, मैं इसे देखकर वापस आ गई बाहर। बाहर आते हुए मुझे अधेड़ उम्र की औरत दिखी जो अंदर शायद चाय या कॉफी लेकर जा रही थीी। मैं थोड़ा बाहर आई और उस औरत के बाहर निकलने तक का इंतजार किया थोड़ी ही देर में वह बाहर निकली, जाते हुए मैंने रोककर पूछना चाहा उस व्यक्ति के बारे में जितना भी वह जानती थी। मेरे पूछने पर उसने बताया कि वह उसके यहां ऑफिस व घर दोनों जगह नौकरानी लगी है ,सिद्धार्थ के बारे में कहा कि बहुत नेक दिल और कर्मठ व्यक्ति है, 5 साल पहले उसके मां-बाप गुजर गए थे जिसके बाद वह सड़कों पर पागल होकर घूमा करता था 1 दिन सड़क पर गुजरते हुए उसे गली में एक घर दिखा जिसमें एक देवी स्वरूपा लड़की के दर्शन हुए उसे देखकर वह बहुत देर तक वहीं बैठा रहा अब उसे वहां जाना ठीक लगने लगा तकरीबन महीने भर में वह बिल्कुल ठीक हो गया और काम करने लगा किसी भी काम की शुरुआत के पहले वहां जाता उसे लड़की दिख जाती तो ही वह उसे करता नहीं तो उस दिन उसको लगने लगा कि आज सफलता नहीं मिलेगी। रोज सुबह उसने इसे देखने की आदत बना ली और जी जान लगाकर काम करके कई सीढ़ियां पार कर ली है।

धीरे धीरे सिद्धार्थ जीवन की सफलता का श्रेय उसी को मानने लगा है।

मैं यह सब सुनकर वहां से चली आई मैंने उस औरत से और कुछ नहीं पूछा मैं घर आ गई दूसरे दिन सुबह मैं बालकनी में नहीं खड़ी होकर उसी पेड़ के पीछे खड़ी हो गई, जहां वह रोज आता है। वह आया और वही खड़ा हो गया मैं पीछे से आकर, हैलो की ! सिद्धार्थ ने मुझे करीब से देखा नहीं था तो शायद एक बार के लिए सकपकाया कि मैं कौन हूं , मैंने ई सारा किया घर की तरफ कि वह मेरा घर है ,वह मुझे बिल्कुल खामोश, चेहरे पर कोई भी भाव लिए बगैर देख रहा था अपना सिर नीचे झुकाया और हाथ जोड़ने के लिए हाथ उठाया कि मैंने बीच में ही उसके हाथ को थाम लिया और उससे बातें कि, घर लेकर गई ,पूरा दिन उसी के साथ बिताया ,वह वाकई नेक इंसान है। यह बताया मैंने उसे कि मैंने कैसे उसका पीछा किया और उसकी "आया"(नौकरानी) से कुछ जाना उसके बारे में, सिद्धार्थ को हर दिन लगता आया है कि उसकी जिंदगी रूपी पतंग की मैं वो डोर हू जिसकी उड़ान मुझ बिन मुमकिन नहीं होगी। धीरे-धीरे उसके साथ वक्त बिताया ,जाना पहचाना और एक दिन हम ने शादी कर ली। यह मेरे भी जीवन का खुशनुमा लम्हा बन गया।आज भी सिद्धार्थ "सिड"(मेरा प्यार) को लगता है कि मुझे देखे बिना उसकी जिंदगी कहीं थम सी जाती है। "सिड" मुझसे बहुत प्यार करता है और मैं "सिड" से।

यह मेरे प्यार का सफर रहा और ऐसे मुझे मिला मेरा 'हमसफ़र'......


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