विकलांग ?
विकलांग ?
रिमझिम फुहारों के बीच सिंकते भुट्टों की गंध ने आकर्षित किया तो देखा - पैर फैलाए बैठी भुट्टे सेंकती उसके पैरों के तलवे काले पड़े हुए थे तवे की तरह, कुछ कालिख पिंडलियों पर भी थी - " ओह ! भुट्टे सेंकते हुए राख उड़ - उड़ कर जम गई है शायद।"
तभी एक कार वहाँ आ कर रुकी। साहब उतर कर बोले - " ऐ S S, मूंगफली कैसे दी ? "
" बीस रुपये किलो है साहब। " - वह उठते हुए बोली। पास ही ठेले पर मूंगफली का ढेर लगा था।
" अरे पन्द्रह रुपये तो हर कहीं मिल रही है।"
" चलो अठारह रुपये ले लो। " - खड़े हो कर तराजू उठती वह बोली।
तब उसके पैरों को गौर से देखा तो पाया कि - "अरे ! वे तो नकली पैर थे !! शायद लकड़ी के !!! लेकिन जिस आत्मविश्वास के साथ खड़ी वह मूंगफली तौल रही थी, वह देखने लायक था और दो रुपये बचाने पर साहब के चेहरे पर खिली मुस्कान भी।
उधर मेम साहब कार में बैठे - बैठे झुँझला रहीं थीं की कार के दरवाजे जल्दी बंद किए जाएं, ताकि ए सी चल सके। उमस की गर्मी से उनका बुरा हाल था। मेकअप बहा जा रहा था, जिस पर हवा भी उनकी हेयरस्टाइल बर्बाद कर सकती थी।