वह शाम
वह शाम
विद्यार्थी जीवन निश्चित रूप से अविस्मरणीय होता है, खट्टी-मीठी यादें जीवन भर याद रहती हैं। विद्यार्थी जीवन के संस्कार भी ताउम्र हमारे अंग-संग ही रहते हैं। बात उन दिनों की है जब मैं कक्षा छह का विद्यार्थी था। हम संगी-साथी अक्सर शाम को अपने स्कूल में खेलने जाया करते थे।
एक शाम स्कूल पहुँचे तो देखा, वहाँ कोई अजनबी व्यक्ति आये हुए थे तथा हमारे विज्ञान के शिक्षक श्री सुरेंद्र शर्मा जी उनके साथ बातचीत कर रहे थे। प्रणाम करने के पश्चात हम अपने खेल में व्यस्त हो गए। थोड़ी देर बाद हमारे शिक्षक ने हमें अपने पास बुलाया तथा उस अजनबी व्यक्ति से हमारा परिचय करवाया। पता चला कि उनका नाम अरुण है तथा वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगाने आए हैं।
उनसे परिचय उपरांत हम प्रत्येक सप्ताह शाखा लगाने लगे। वे शहर से आते थे। अरुण जी हमें विभिन्न खेल खिलाते और प्रतियोगिताएँ करवाते साथ ही नैतिकता पर चर्चा करते। उन्होंने हमें कहा कि आप अपने मित्रों के नाम के साथ 'जी' लगाया करो। हम दोस्तों के नाम के साथ 'जी' कहकर उनसे बात करने लगे।
एक शाम शाखा लगाने के बाद हम सब बैठे थे। हमारे साथ ही हमारे विज्ञान के शि
क्षक भी बैठे थे तभी अरुण जी ने प्रश्न किया- "अच्छा ये बताओ, तुम्हारे में से गाली कौन-कौन नहीं निकालता ?"
हमारे विज्ञान के शिक्षक सुरेंद्र शर्मा जी ने बारी-बारी से हम सबकी ओर देखा और मंद-मंद मुस्कराने लगे। जब उन्होंने मेरी ओर देखा तो मेरी नज़रें अपने आप झुक गईं क्योंकि बच्चों के साथ खेलते-खेलते उनकी देखा देखी मैं भी कभी कभार अपशब्दों का प्रयोग कर लेता था। उस दिन मुझे आत्मग्लानि हुई कि मैं अपने शिक्षक के सामने यह नहीं कह सका कि मैं गाली नहीं निकालता। ठीक उसी पल मैंने प्रतिज्ञा कर ली कि भविष्य में कभी भी अपशब्दों का प्रयोग नहीं करूँगा।
दो महीनों बाद शाखा लगनी बंद हो गयी। फिर कभी शाखा नहीं लगाई और न ही उन अरुण जी से कभी दोबारा मुलाकात हुई। वो दिन और आज का दिन। मैंने कभी किसी को अपशब्द नहीं कहे। इस घटना को आज 35 वर्ष हो गए हैं लेकिन 30 जनवरी,1984 की वह शाम मुझे कभी नहीं भूलती जिस दिन एक अच्छा संस्कार मैंने ग्रहण किया था।
एक शिक्षक होने के नाते मैं बेझिझक गर्व के साथ अपने विद्यार्थियों को कह सकता हूँ- "कदापि अपशब्दांन न वदत।" विद्यार्थी जीवन के ये संस्कार मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा।