पड़ोस-धर्म
पड़ोस-धर्म
बालक सुरजीत का फेंका पत्थर मोहित की आँख के पास लगा। बेटे की चीख सुनकर मम्मी-पापा दौड़े-दौड़े आए। देखा, लहू टपक रहा था। तुरंत डॉक्टर के पास ले गए। मोहित की आँख के पास छोटे छोटे दो टाँके लगे।
पड़ोस में रहने वाले मुख्तयार सिंह व उनकी पत्नी गुरमेल कौर बहुत डर रहे थे। पत्थर मारने वाला सुरजीत उन्हीं का पोता था। सुरजीत भी सहमा हुआ था। दरवाजे पर थोड़ी सी भी आहट होती तो वे काँप जाते। लगता मोहित के मम्मी-पापा उलाहना देने और लड़ने आए हैं।
जब बहुत देर तक कोई नहीं आया तो मुख्तयार सिंह गुरमेल के साथ मोहित के घर पहुँचे। वे सहमे-से बोले "राजीव बेटा, मोहित का क्या हाल है ?"
"ठीक है अंकल जी, दो टाँके लगे हैं। जल्दी ही पूरी तरह ठीक हो जाएगा।"
"क्षमा चाहते हैं बेटे, हम तुरंत नहीं आ सके…असल में हम बहुत डर गए थे। पर तुम तो उलाहना तक देने भी नहीं आए।" गुरमेल कौर बोली।
"उलाहना किस बात का अंकल जी ! सुरजीत बच्चा है, बच्चों से अक्सर ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं।"
"आप मोहित का पता लेने आ गए, हमारे लिए यही काफ़ी है।" मोहित की माँ बोली।
"वह तो आना ही था, बेटे, मोहित भी तो हमारा ही बच्चा है…शुक्र है बेटे की आँख बच गई।"
"आप लोग खड़े क्यों हैं, बैठिए ना, थोड़ी-थोड़ी चाय पीते हैं, बहुत दिनों बाद आए हैं आप।" राजीव बोला तो वे मना नहीं कर सके।
मोहित की माँ चाय के लिए पहले ही रसोई में जा चुकी थी।
चाय की चुस्कियाँ लेते हुए मुख्तयार सिंह व गुरमेल कौर की आँखें नम हो गईं।