वेडिंग साड़ी

वेडिंग साड़ी

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आज शिखा बहुत खुश थी, आखिर क्यों न हो? उसकी शादी जो थी। हर लड़की अपने जवानी में कदम रखते ही ये ख्वाब देखती है की कब उसके सपनो का राजकुमार उसे घोड़ी पे उठाके ले जाएगा। ये सारा खेल इन परी कथाओं का है। बचपन से ही हमेंं राजकुमारियों की और राजकुमार की कहानी सुनाई  जाती है और हर लड़की को इस बात पर यकीन हो जाता है की कोई राजकुमार हमारे लिए भी आएगा एक दिन। ऐसा ही दिन और ऐसा ही सपना शिखा का पूरा होने जा रहा था। अपने राजकुमार जैसे प्रेमी अभिजीत से उसकी शादी जो होने वाली थी। वो फूली नहीं समां रही थी। हर किसी से जोश से बातें कर रही थी और खुल के मुस्कुरा रही थी। अपने दिन को हर तरह से परफेक्ट बनाने के लिए वो हर छोटी बड़ी चीज़ पर ध्यान दे रही थी, सजावट से ले कर अपने कपड़ो तक, यहाँ तक की खाने पीने और रहने के इंतज़ाम को लेकर भी। अपने माता-पिता की लाडली और सबकी चहेती थी वो। माँ पिता तो उसके होंठो से मुस्कान तक नहीं जाने देते थे आंसू तो बहुत दूर की बात थी।

आज वो अपने शादी की साड़ी खरीदने वाली थी, अभिजीत ने उसे कहा था की ११ बजे तैयार रहना हम शादी की शॉपिंग करने चलेंगे। ११ बजे अपने पसंदीदा नीली कुर्ती, सफ़ेद लेग्गिंग, सफ़ेद दुपट्टा, खुले बाल, कानो में लम्बे झुमके डाल के और ऊँची एड़ी की चप्पल डाल कर इंतज़ार कर रही थी। बार बार नज़र खिड़की के बहार या फिर मोबाइल पर जा रही थी, यह जानते हुए भी की कोई मेसज नहीं आया वो बार बार व्हट्स एप खोल कर देख रही थी। तभी उसने देखा काले रंग की होंडासिटी गाड़ी आकर गेट के आगे रुक गई। वो भाग कर बाहर आई और गाड़ी में बैठ गई। अभिजीत ने उसे गालो पर चूमा और गियर लगा दिया। रास्ते भर दोनों मस्ती करते रहे और आगे की प्लानिंग करते रहे।

'अभी हम सब तैयारी कर रहे हैं पर तुम्हारे मम्मी पापा कुछ डिस्कस क्यों नहीं करते?' शिखा ने चिंतित होते हुए पूछा।

'अरे! उन्हें तैयारियों के बीच टाइम नहीं मिल रहा इसलिए' अभी ने गाड़ी दुकान के आगे खड़ी करते हुए जवाब दिया।

'वो हमारी शादी से खुश तो है न? कहीं ऐसा तो नहीं की वो।'

'श्ह्ह्हह्ह्ह!' अभीजीत ने उसके होठों पर उँगली रखते हुए कहा। 'वो बस इतनी सारी तैयारी करनी है उसी में बिज़ी हैं इसलिए उन्हें समय नहीं मिल पा रहा

'पर उन्होंने मुझसे कभी ज़्यादा बात नहीं की, न वो इतने खुश नज़र आए मुझे देख कर, मुझे डर सा लग रहा है' शिखा ने घबराते हुए कहा।

'डोंट वारी डार्लिंग! मैं हूँ न! तुम्हे किसी और की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी ' कहते हुए अभिजीत ने शिखा के होठों को चूम लिया। शिखा मुस्कुराई और दोनों गाड़ी से बाहर उतरे। सामने बहुत बड़ी शादी के साड़ियों और लहंगों की दुकान थी। सामने डिस्प्ले पर लगी सभी साड़िया अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी।

'ये मॉडल पर तो सब कुछ ही अच्छा लगता है कुछ भी पहना दो' शिखा ने आधा चिढ़कर और आधे मज़ाक में कहा।

'बेबी! तुम पर भी सब अच्छा लगता है, इन मॉडल पर से भी ज़्यादा अच्छा' अभिजीत ने मुस्कुराते हुए कहा।

'ज़्यादा झूठी तारीफ करने की ज़रुरत नहीं! ये सब कहने से शादी के बाद तुम्हे ज़्यादा सेक्स नहीं मिलेगा' शिखा ने गुस्से से कहा पर उसके चेहरे की लाली और मुस्कान उसके गुस्से का साथ नहीं दे रही थी।

'अरे पगली हम तो प्यार के भूखे हैं ये सेक्स वगेरह तो मोह माया है' अभिजीत ने हवाई अंदाज़ में कहा। 'वैसे सच में ज़्यादा सेक्स नहीं मिलेगा क्या?'

'शट अप अभी!' शिखा ने मुस्कुराते हुए कहा।

दोनों दुकान में अन्दर गए और शादी के लिए साड़ी दिखाने को कहा।

'आपको किस रेंज में चाहिए मैडम?'

'भैया जो भी अच्छी डिज़ाइनर साड़ी है वो दिखाओ रेंज की कोई बात नहीं है, बस मैरून रंग में दिखाना और थोड़ी भारी काम वाली और नेट वाली' शिखा ने दुकान वाले से कहा। 'ऐसी ही लू न?'

'हाँ मैरून रंग तुम पर बहुत अच्छा लगता है' अभिजीत ने निहारते हुए कहा।

करीब १ घंटे बाद दोनों दुकान से बाहर आए और उनके हाथ में साड़ी वाला बैग था। 'तुम इस साड़ी में सच में बहुत सुन्दर लगोगी मैं चाहता हूँ तुम ये साड़ी हमारी शादी की पहली रात में पहनना' अभिजीत ने कहा।

'ठीक है बिलकुल तभी पहनूंगी' शिखा ने आश्वस्त करते हुए कहा।

'मैं नहीं चाहता की कोई भी तुम्हे इस साड़ी में मुझसे पहले देखे, इसे मैं अपने पास रखता हूँ, शादी के बाद तुम्हे दूंगा ताकि जब तुम पहन कर आओ तो सबसे पहले मैं ही देखूं।' अभिजीत ने पैकेट पीछे वाली सीट पर रखते हुए कहा।

'पर इस पर फॉल पिको कराना होगा'

'मैं सब करवा दूंगा' कहकर वो गाड़ी में बैठ गया और शिखा को वापस घर छोड़ने आया। शिखा के मम्मी पापा के पैर छुए और फिर वो सब शादी की बात करने लगे।

जैसे ही शिखा अपने कमरे में गई उसने देखा उसकी बचपन की बेस्ट फ्रेंड नेहा घर आई थी उससे मिलने। दोनों सहेलियां ख़ुशी से पागल हो गई। 'तू यहाँ कैसे?' शिखा ने उत्साहित होकर पूछा। 'यार बहुत दिन हो गए थे तुझसे मिले, मेरी शादी पक्की हो गई है सोचा तुझे आकर डबल सरप्राइज भी दूं और कामिनी तू शादी कर रही है तूने मुझे ही नहीं बताया, तूने मुझे ही सरप्राइज कर दिया।' नेहा ने आरोप लगते हुए कहा।

'यार सब जल्दी जल्दी में हुआ मैं अभी तक किसी को नहीं बताया, बस तुझे आज ही कॉल करने का सोच रही थी, वरना ऐसा हो सकता है की मेरी शादी में मैं तुझे न बुलाऊ, तेरे बिना तो मैं शादी ही न करूँ' शिखा ने कहा।

'चल झूठी! तू मुझे नहीं बुलाने वाली थी, वरना अब तक बताया क्यों नहीं? कब है शादी?' नेहा ने ताना मरते हुए पूछा।

'अगले महीने की १४ तारिख को' शिखा ने बताया। 'और तेरी?'

'मेरी ३ महीने बाद फरवरी १४ तारिख को वैलेंटाइन्स डे के दिन' नेहा ने उछलते हुए कहा। 'यार तुझे याद है हम जब छोटी थी तब हम कहते थे की हम एक दिन एक ही लड़के से शादी करेंगे, वो भी वैलेंटाइन्स डे के दिन, तूने धोखा दे दिया कामिनी ३ महीने पहले ही शादी कर रही है वो भी किसी और से'

'यार मैं तो भूल ही गई थी, चल ये बंदा कैंसिल करती हूँ, तेरे वाले से ही करती हूँ तीन महीने बाद, फिर रोना मत तेरा बंदा तुझसे ज़्यादा मुझसे प्यार करे तो' शिखा ने हस्ते हुए कहा।

'जा रे! वो मुझसे ज़्यादा और किसी से प्यार कर ही नहीं सकता' नेहा ने इतराते हुए कहा।

'भेज दे रात में देखती हूँ उसे देखती हूँ ऐसा क्या है तेरे पास जो मेरे पास नहीं' शिखा ने नेहा को उसके पेट के नीचे देखते हुए कहा।

'साली कमीनी' कह कर नेहा ने शिखा को तकिये से मारा। शिखा ने भी पलट कर उसपे तकिया फेका और दोनों हँसते-हँसते बिस्तर पर लेट गई।

'तू जीजू से कब मिला रही है?' नेहा ने छत की तरफ देखते हुए पूछा

'ओह वो नीचे ही हैं, मैं भूल कैसे गई, चल तुझे मिलाती हूँ' शिखा ने उठते हुए कहा। दोनो सहेलियाँ नीचे आई।

'पापा अभी कहाँ है?' शिखा ने आस पास देखते हुए पूछा।

'बेटा वो १० मिनट पहले ही निकल गया'

'ओह अच्छा! चल तुझे कल मिलवा दूँगी।' शिखा ने नेहा को कहा

'कल नहीं हो पायेगा मुझे थोड़ी शॉपिंग करने जाना है, और अब तो तेरी शादी के लिए भी कपड़े लेने होंगे, और फिर मैं वापस मुंबई चली जाउंगी वहां का प्रोजेक्ट कम्पलीट करना है, पर तेरी शादी पर पक्का आउंगी।' नेहा ने कहा।

'अच्छा ठीक है, शादी के १ हफ्ते पहले ही आ जाना ताकि साथ में सब तैयारी करें'  शिखा ने रूम की तरफ जाते हुए कहा। 'वैसे मेरे वाले को भी मैं प्यार से अभी बुलाती हूँ' नेहा ने कहा। 'बड़ा प्यार आ रहा है अभी से?' शिखा ने चालाकी से कहा और दोनों बचपन की यादों और जवानी की बातों के बारे में बातें करने लगीं।

धीरे धीरे शादी पास आने लगी, सबकी घबराहट और ख़ुशी बढ़ने लगी। पर वो कहते हैं न की किसी की खुशियाँ ज़्यादा नहीं रहती। शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। अभी शिखा नेहा से फ़ोन पर बात कर ही रही थी जिसमें शिखा उसे बता रही थी की वो अगले दिन आने वाली है की तभी नीचे से आवाज़ आई 'नहीं....'

'हम माफ़ी चाहते हैं पर कल रात मुंबई से वापस आते समय उनका एक्सीडेंट हो गया, और वो लोग नहीं रहे। जो लोग मदद करने के बहाने से आगे आए थे वो शादी का सारा सामान चुरा ले गए। उनके मुंबई वाले मामाजी ने बस हमेंं खबर पहुंचवाई' अभिजीत का पड़ोसी ये सब शिखा के पिताजी को बता रहा था।

शिखा के पिता ने फुसफुसा कर उसकी माँ से कहा 'ओह! हम ये बात शिखा को नहीं बता सकते वो टूट जाएगी, हमें उससे ये बात छुपानी होगी, हमें कुछ और बहाना मारना होगा जैसे उसके यहाँ किसी की मौत हो गई है इस वजह से १ साल तक शादी नहीं हो सकती और वो वहां उनके परिवार से मिलने गया है।'

तभी ऊपर किसी के गिरने की आवाज़ आई। पिताजी भाग कर गए और देखा की शिखा सीढ़ियों के ऊपर बेहोश पड़ी थी।

उसने सब सुन लिया था।

जब वो होश में आई उसने देखा उसकी माँ उसके सामने बैठ कर रो रही हैं और पिताजी कमरे में इधर से उधर टहल रहे हैं, तभी उसे याद आया आखरी बात क्या हुई थी, उसका अभी अब इस दुनिया में नहीं रहा, वो शादी के पहले ही विधवा हो गई, अब वो जी कर क्या करेगी? उसके ज़िन्दगी का पहला और आखरी प्यार, ऐसा इंसान जो उससे बेइन्तेहाँ मोहब्बत करता था वो अब नहीं रहा, अब कौन उसकी तारीफ करेगा? कौन कहेगा तुम मरून रंग में खूबसूरत दिखती हो? कौन कहेगा की ये साड़ी सिर्फ मेरे सामने पहन कर आना, वो साड़ी जो शादी की पहली रात पहननी थी, उसकी शादी अब वो बंदा ही नहीं रहा तो साड़ी का क्या?

'शिखा तुम सुन रही हो ना'

अब वो किसको सुनेगी किसको सुनाएगी जब वो बंदा ही नहीं रहा।

'बेटा होनी को कौन टाल सकता है?'

वो मेरी बातों को कभी नहीं टालता था।

'बेटा ज़िन्दगी किसी के साथ रुकती नहीं, हमेंं आगे बढ़ना पड़ता है '

मेरी तो ज़िन्दगी ही था, किसके साथ और किस में आगे बढूँ?

'बेटा २ दिन हो गए कुछ खा लो, कुछ बोलो तो'

'२ दिन हो गए मैंने उससे बात नहीं की वो कैसे जी रहा होगा मेरे बिना' शिखा ने सूनी आँखों से अपने पिता को देखते हुए कहा।

'बेटा वो नहीं रहा '

'मैं उसे फ़ोन लगाती हूँ '

'शिखा! होश में आओ वो मर चूका है'

'वो फ़ोन क्यों नहीं उठा रहा'

तभी नेहा उसे एक थप्पड़ लगाती हैं और कहती हैं 'वो मर चूका है समझी ये पागलपन बंद करो'

और जैसे ये सच्चाई उसके मन पर हावी हो गई, जैसे वो किसी समुन्दर में डूबने वाली हो, वो इंसान जो उससे इतना प्यार करता था अब कभी लौट कर नहीं आने वाला था कभी भी नहीं ये सोचते हुए उसके आँखों से आंसू बहने लगे और वो अपनी सहेली से लिपट गई। और नेहा भी उसके साथ खुद को रोक नहीं पाई और रो पड़ी।

शिखा अब भी अभिजीत के यादों से बहार नहीं आ पाई थी। २ महीने हो गए थे न वो ढंग से खा रही थी ना ही कहीं आती जाती थी। नेहा का फ़ोन आता तो उसे भी नहीं उठाती थी। बस दिन भर अपने कमरे में रहती थी। तभी एक रोज़ उसकी माँ उसके पास आई और कहा 'शिखा बेटा! देखो नेहा आई है तुमसे मिलने'

'मुझे किसी से नहीं मिलना मम्मी'

'तेरी इतनी हिम्मत तू मुझसे नहीं मिलेगी? और मैं अब ‘किसी’ हो गई तेरे लिए?' नेहा ने गुस्सा करते हुए कहा। 'बहुत हुआ तेरा! चल अब मेरे साथ शॉपिंग करने, तेरा मूड भी फ्रेश होगा इसी रूम में पड़ी रहती है।' ये कह कर नेहा ने जल्दी से शिखा को तैयार किया और बाहर ले गई। पर वो उसे शॉपिंग कराने नहीं ले गई थी बल्कि उसे अपने दोस्त से मिलवाने ले गई थी।

'इससे मिलो ये मेरा दोस्त रोहन है' नेहा ने कहा

'hi' रोहन ने कहा

शिखा ने भी hi कर दिया, 'क्या  तुम्हारी शादी इनसे होने वाली है? शिखा ने नेहा से पूछा। पर जवाब रोहन ने दिया, 'अजी हम तो इस पल का इंतज़ार करते-करते देखो कहाँ से कहाँ पहुँच गए पर ये मोहतरमा तो हमारे प्यार को पराया समझती हैं'

'रोहन तुम फिर शुरू हो गए? शिखा ये ऐसा ही है, कभी भी कहीं भी शुरू हो जाता है'

'काश की आपकी ये बात सच हो जाती और हम कहीं भी शुरू हो सकते'

'रोहन?'

बहुत दिनों बाद शिखा के होठों पर मुस्कान आई। 'चलो शुक्र है आपके चेहरे पर मुस्कान तो आई' नेहा ने कहा।

'मुस्कान से एक शेर याद आया, मुस्कान तुम यूँ ही मुस्कुराते रहना गम देने को तो बहुत हरामखोर बैठे हैं' रोहन ने शायराना अंदाज़ में कहा और आदाब अर्ज़ करने लगा।

शिखा को बहुत समय बाद अच्छा अच्छा सा लगा जैसे कोई भरी बोह उसके सीने से उतर गया हो। वो अब मुस्कुरा रही थी, रोहन की बातों पर खुल कर हंस भी रही थी, शायद इसी को आगे बढ़ना कहते हैं।

'तो शिखा ये बताओ क्या कल मेरे साथ कॉफ़ी पर चलोगी? जब ये बोरिंग नेहा बीच में नाक ना घुसाए।'

शिखा ने बहुत सोचा लेकिन फिर हाँ में सर हिला दिया।

अगले दिन बहुत समय बाद उसने हल्का मेकअप किया, अच्छा सा सूट डाला और बाल बनाये, ऊँची हील की सेंडल पहनी और कॉफ़ी शॉप पहुँची जहाँ उनने मिलने का फैसला किया था।

रोहन बहुत खुश मिजाज़ था। बहुत शेर सुनाता था और हँसता रहता था। शिखा को उसके साथ अच्छा लगने लगा।वो उसके साथ नेहा की शादी पर पहनने के लिए कपड़े भी खरीदने गई। इस बार मैरून ना लेकर उसने नीली साड़ी ली जिसपे रोहन ने कहा था की (यह कहना गलत होगा की तुम इसमें बहुत ज़्यादा सुन्दर लगोगी बल्कि ये साड़ी तुम पर बहुत ज़्यादा सुन्दर लगेगी)।

आज वो रोहन से अपने दिल की बात कह देगी। उसने ही उसे उस गम के समय में हँसाया था, उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी थी, वो उसके साथ हमेंशा रहना पसंद करेगी इसलिए नहीं क्यूंकि वो उससे या वो इससे प्यार करते हैं बल्कि इसलिए क्यूंकि वो कभी इसे दुःख नहीं देखा। कई बार ज़िन्दगी में प्यार से ऊपर दोस्ती हो जाती है जो की प्यार को भूलने में भी मदद करती है। आज नेहा की शादी के बाद जब वो उसे घर छोड़ने आएगा वो उसे बता देगी की वो उसे पसंद करने लगी है। प्यार नहीं है पर पसंद ही प्यार की पहली सीढ़ी है।

आज वो बहुत सुन्दर लगना चाहती थी, उसने वोही नीली साड़ी पहनी जो रोहन ने पसंद की थी, अपने लम्बे बालों को हल्का सा घुमाया, आँखों पर काजल और होंठो को लाल रंग के लिपस्टिक से पूरा किया। आज तो उसको कोई मना नहीं कर सकता था। तभी किसी ने हॉर्न बजाया। शिखा नीचे आई, उसके मम्मी पापा उसे  इस तरह देख कर बहुत खुश हुए। माँ के आँखों में आंसू छलक आए और उन्होंने अपनी बेटी की नज़र उतारी। शिखा ने कहा 'पापा वापस आकर आपको एक बात बतानी है बहुत ज़रूरी' उसने अभी इसलिए नहीं बताया क्यूंकि वो पहले रोहन के मुँह से हाँ सुनना चाहती थी।

वो बाहर गई। रोहन अपनी चमचमाती काली ऑडी से निकला, उसके लिए दरवाज़ा खोला और २ सेकंड (जो की जन्मो बराबर थे) के लिए उसको देखता रहा। 'तुम बहुत खूबसूरत हो ' उसने पहली बार बिना हास्य बोध या मसखरे अंदाज़ से कहा। शिखा ने मुस्कुरा के तारीफ स्वीकार की।

बात को साधारण तरीके से शुरू करने के लिए शिखा ने पूछा, 'तो! तुम नेहा को कब से जानते हो? '

'बचपन से '

'चल झूठे! मैं उसकी बचपन की दोस्त हूँ तो तुम कैसे हुए '

'ओह! अच्छा! गड़बड़ हो गई! दरअसल नेहा जिससे शादी कर रही है वो मेरा बेस्ट फ्रेंड है, हम मुंबई में एक ही फ्लैट में रहते थे, नेहा और उसे मिलवाने में भी मेरा ही हाथ था, मेरा दोस्त उसे पसंद करता था पर उसकी शादी घर वालो ने कहीं और तय कर दी थी, मैंने दिमाग लगा कर उन्हें आज़ाद किया और मैंने दोनों की सेटिंग करा दी'

'ओह! ये तो बहुत रुड हुआ, और उस बंदी का क्या हुआ?' शिखा ने सोचते हुए कहा।

'शायद उसने दूसरी शादी कर ली, हम पहुँच गए' रोहन ने गाड़ी रोकते हुए  कहा।

रोहन ने दरवाज़ा खोला और शिखा का हाथ थाम लिया, 'आज मैं अपने दोस्त को दिखाऊंगा की कितनी अच्छी बंदी मेरे साथ है, वो जल के खाख हो जाएगा देखना। उसकी बीवी से ज़्यादा सुन्दर बंदी है मेरे पास।'

दोनों शादी के स्टेज के पास पहुँच गए जहाँ जोड़ा खड़ा था, शिखा की नज़र अपनी खूबसूरत सहेली पर गई उसने बिलकुल वैसा ही मैरून साड़ी पहना था जैसा शिखा अपनी पहली रात को पहनने वाली थी और फिर उस बन्दे पर जिससे वो शादी कर रही थी। शिखा किसी मूर्ति की तरह कड़ी रह गई।

'शिखा क्या हुआ?' रोहन ने पूछा

शिखा स्टेज की तरफ इशारा कर रही थी और कुछ नहीं बोली सिवाए इसके – 'अभी...........!'


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