Anjali Govil

Thriller

2.1  

Anjali Govil

Thriller

ऑटो ड्राईवर

ऑटो ड्राईवर

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आज रेलवे स्टेशन पर रोज़ से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी। यूँ तो शिवपुर एक छोटा सा गाँव था, यहाँ से रेल गाड़ियाँ जाती तो थी ,पर दिन भर में मुश्किल से २-३ गाड़िया ही रूकती थी ,वो भी १-२ मिनट के लिए। यहाँ दो ही किस्म के लोग आते थे ,या तो वो जिनका परिवार यहाँ होता था ,या वो जिनको यहाँ खेती के सिलसिले में आना होता था। गाँव छोटा था पर छोटी-छोटी सुख सुविधाएँ सरकार ने दी थी जैसे रोड ,ऑटो रिक्शा, रेलवे लाइन ,छोटे होटल, बच्चों का स्कूल और एक सिनेमा घर भी। शाम के ७ बज गए थे ,आज की आखरी रेल गाड़ी के आने का समय हो गया था जो ठीक ७:०८ बजे आती थी।आज भी वो बिलकुल समय से आई और इकलौते प्लेटफार्म पर १ मिनट के लिए रुकी और फिर चू की आवाज़ के साथ निकल गई। 

सीधे हांथ की बीच वाली ऊँगली में हरी रंग की अंगूठी पहने और उलटे हांथ में ब्रीफ़केस लिए एक व्यक्ति ट्रेन से उतरा और उम्मीद से इधर उधर देखने लगा। 

“साहब आइये आपको किधर जाना है मैं ले चलू” एक ऑटो ड्राईवर ने पूछा,

“यहाँ ऑटो रिक्शा चलती है?” उस आदमी ने आश्चर्य से पूछा ,

“ जी, बस ३-४ , दूर का रास्ता तय करने के लिए , आपको किधर जाना है?” रिक्शा वाले ने पूछा

तभी एक फटेहाल बूढ़ा आदमी आया और बोला “ बेटा २ दिन से कुछ खाया नहीं है , कोई ऑटो में बैठता नहीं मेरे ऑटो में चलो आपको आपकी मंजिल पर छोड़ दूंगा”

उस आदमी की हालत देखते हुए उस व्यक्ति ने सोचा की क्यों न इसी के ऑटो में जाए। 

“काका मुझे कोई होटल मिल सकता है आस पास ? “ उस आदमी ने पूछा

“हाँ बेटा एक बहुत अच्छा होटल है यहाँ थोड़ी दूर पर, शहर के बाबू लोग वहां ही रुकते हैं ,आपको ले चलूँ ?”

“जी ले चलिए “ उस व्यक्ति ने कहा और औटोवाला अपना ऑटो मोड़ कर लाने लगा ५-६ बार कोशिश करने के बाद उसका ऑटो चालू हो गया और वो व्यक्ति अपना सूटकेस सीट पर ही अपने बगल में रख कर बैठ गया। 

“कितनी दूर है होटल?”

“बस पास में ही है मंजिल साहब ! ज्यादा दूर नहीं “

तभी मोबाइल पर किसी का कॉल आया। 

“हाय बेबी ! हाँ मैं गाँव पहुँच गया , हाँ ट्रेन राईट टाइम पर थी, अरे जान तुम चिंता मत करो मैं कुछ खा लूँगा , हाँ बाबा मैं होटल पहुँच कर बात करता हूँ, इतना लम्बा सफ़र था बहुत थकान सी हो रही है ,ओके बेबी डोंट वरी ! लव यू ! बाय”

उस व्यक्ति ने एक लम्बी जम्हाई ली बाहर की तरफ देखा, अब अँधेरा हो चला था। 

 ऑटोवाले ने झटके से ऑटो रोक दी। एक दम से नींद टूटी , कब आँख लग गई थी पता ही नहीं चला ,घड़ी की तरफ देखा तो पौने आठ हो रहे थे। 

“साहब ये लो यहाँ का सबसे अच्छा  होटल”

होटल सच में अच्छा था , इस गाँव के हिसाब से बड़ा, खूबसूरत और मेन्टेनड था। इससे जादा की तो उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी। 

“कितने हुए?”

“४० रुपये “

“इतनी दूर आने के सिर्फ ४० रूपए “ सोचते हुए उस व्यक्ति ने उस बूढ़े आदमी को ५० का नोट दिया.

“साहब मेरे पास खुल्ले नहीं है। ”

“कोई बात नहीं काका आप रख लो “

“धन्यवाद्” कह कर उसने ऑटो स्टार्ट किया और चला गया। 

मेन गेट का दरवाज़ा खोल के रिसेप्शन पर खड़े ६०-६५ साल के आदमी से कहा “भाई साहब एक रूम चाहिए ,एक रात रुकना है”

“बिलकुल मिलेगा ,एक ही रात रुकोगे?जो हमारे होटल में रुकता है वो फिर यहाँ का ही हो कर रह जाता है ! मेरा मतलब है फिर वो हमेशा हमारे होटल में ही रुकता है , ये लीजिये आपका रूम नंबर है १३, (एक मोटा रजिस्टर आगे बढ़ाते हुए ) यहाँ साइन कर दीजिये“ और एक दम से चिल्लाते हुए कहा  “ छोटू ! ज़रा साहब को उनका कमरा दिखा देना। 

एक २०-२२ साल का लड़का हिलता हुआ सा आया ,गमछा अपने कंधे पर डालते हुए बोला “जी साहब और उस व्यक्ति का ब्रीफ़केस उठा कर रूम तक ले गया। 

उसने मोटे रजिस्टर पर सर सरी निगाह डाली बड़े अजीब नाम थे और तारीख भी, पहले पेज पर तो १९२४ की एंट्री थी।  “काफी पुराना होटल है आपका ?“

“जी हाँ काफी साल हो गए “, जाईये साहब छोटू आपको कमरे तक ले जायेगा 

रूम बहुत अच्छा था , मानो किसी राजा का शयन कक्ष हो !

“ए छोटू !” उस आदमी ने २० का नोट देते हुए कहा , “ज़रा पानी और कुछ खाने का इन्तेजाम भी कर देना “

नोट लेते हुए छोटू ने कहा “ जी”

 उसने ब्रीफ़केस से रात में पहनने के लिए एक कुरता और पजामा निकला और तौलिये को बाथरूम के खूंटे से लटकाया। 

तभी दरवाज़े पर दस्तख हुई “ साहब आपके लिए पानी लाया हूँ”

“अन्दर आ जाओ “

 एक बड़ी सी पीतल की नक्काशीदार सुराही से वो पानी निकाल कर पीतल के ही गिलास में डालने लगा। 

“ये सुराही तो बहुत ही सुन्दर है ! आज कल ऐसे सुराही देखने को मिलती कहाँ है? “

“ जी साहब ! ये १०० साल से भी जयादा पुरानी है” “साहब आप खाने में क्या लोगे ? वैसे आज तो बस मटन है , ला दूं?”

“हाँ ! जल्दी ला दो बहुत भूख लगी है। ”

इतना कह कर छोटू खाना लेने चला गया और वो व्यक्ति नहाने चला गया। 

नहा कर बाहर आते ही छोटू खाना ले आया ,

खाना ख़त्म होते ही छोटू प्लेट लेने आ गया ,“अरे वाह छोटू खाना तो बहुत अच्छा था “  

बत्ती बुझा के लेटते ही वो व्यक्ति सो गया। 

सुबह नींद खुली, प्यारी सूरज की किरण आँखों पर जा रही थी और सन सन हवा चल रही थी। उड़ते हुए पत्ते चेहरे को छू कर जा रहे थे , तभी अचानक उस व्यक्ति की नींद खुली , उसने देखा वो जंगल के बीच खंडहर के ज़मीन पर लेटा हुआ है , उसके पैरो से तो जैसे ज़मीन ही खिसक गई ,उसने आव देखा न तांव सर पर पैर रख कर भागा, भागता गया भागता गया, बहुत दूर उसे एक आदमी खड़ा दिखा , जो खड़े होकर बीड़ी जला रहा था ,भागते भागते उसके पास पहुँच कर इस व्यक्ति ने कहा मुझे ...मैं यहाँ....होटल....खंडहर ...सुराही... स्टेशन , उस व्यक्ति ने इसको ऊपर से नीचे देखा और कहा माचिस मिलेगा?

आदमी फिर भागने लगा रोड दिखा उसे, रोड पर भागा , सामने से एक गाड़ी आती दिखी उसे रोकने की कोशिश की पर नहीं रुकी , रोड पर भागता गया सुनसान रस्ते पर कोई नहीं दिखा तभी दूर उसे स्टेशन की होअर्डिंग दिखी। वो उस तरफ भागा , वो भाग रहा था पर कोई उसकी तरफ ध्यान क्यों नहीं दे रहा था ? तभी उसे वो औटो वाला दिखा “काका  याद है कल आपकी ऑटो ,वहां होटल अब नहीं “

ऑटोवाले ने कहा “बहुत दिनों बाद आज खाने को मिला आपके कारण ,आप भी खाओगे कह कर उसने थाली उसकी तरफ बढ़ाई , जिससे वो खा रहा था। उस थाली में इसी व्यक्ति का हाथ रखा था और बीच वाली ऊँगली में हरी रंग की अंगूठी चमक रही थी। 

“हमारी दुनिया में आपका स्वागत है साहब कह कर ऑटो वाला हंसने लगा “

तभी रेलगाड़ी स्टेशन पर आकर रुकी, ऑटो वाले ने कहा चलो काम पर लग जाओ

ट्रेन से उतरे एक व्यक्ति के पास जाकर औटोवाला “बेटा २ दिन से कुछ खाया नहीं है , कोई ऑटो में बैठता नहीं मेरे ऑटो में चलो आपको आपकी मंजिल पर छोड़ दूंगा"

 

 


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