वड़वानल - 44

वड़वानल - 44

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‘तलवार’  से निकलते ही रॉटरे ने ‘तलवार’  की बागडोर कैप्टेन जोन्स को थमा दी।

‘‘जोन्स, ‘तलवार’ की ज़िम्मेदारी अब तुम पर है। एक बात ध्यान में रखो, एक भी गोरे सैनिक अथवा अधिकारी का बाल भी बाँका नहीं होना चाहिए।’’ रॉटरे ने जोन्स को ताकीद दी।

जोन्स दो सशस्त्र गोरे सैनिकों के साथ ‘तलवार’ में आया, उस समय परेड ग्राउण्ड पर सैनिक इकट्ठा हुए थे और पहरेदार नियुक्त किये जा रहे थे। जोन्स के ध्यान में यह बात आए बिना नहीं रह सकी कि सुबह की अनुशासनहीनता समाप्त हो गई है। वह जानता था कि अनुशासित सैनिकों पर विजय प्राप्त करना कठिन होता है। जोन्स वहाँ से निकलकर सीधे ऑफिसर्स मेस में आया। सुबह से जबर्दस्त तनाव से ग्रस्त गोरे अधिकारियों ने जोन्स को देखा और राहत की साँस  ली।

‘‘हमारी जान को यहाँ खतरा है। हम नि:शस्त्र हैं। हमें ‘तलवार’ छोड़ने की इजाज़त दीजिए या फिर पर्याप्त शस्त्र दीजिए।’’  स. लेफ्टि. कोलिन्स ने कहा।

‘‘मैं यहाँ ‘तलवार’ के कमाण्डिंग ऑफिसर की हैसियत से आया हूँ। मुझ पर समूचे ‘तलवार’ की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है। तुम्हारी सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था मैं करूँगा, इसका यकीन रखो।’’ जोन्स ने गोरे अधिकारियों को आश्वस्त किया।

‘‘सर, मैं कैप्टेन जोन्स, ‘तलवार’ से’’। जोन्स ने अन्तिम निर्णय लेने से पूर्व रॉटरे से सम्पर्क स्थापित किया।

‘‘बोलो, परिस्थिति कैसी है ?’’ रॉटरे ने उत्सुकता से पूछा। ‘‘मैंने अभी–अभी ‘तलवार’ का राउण्ड लगाया। हालाँकि सैनिक शान्त दिखाई दे रहे हैं फिर भी उनके मन में लावा खदखदा रहा है। सुबह की अनुशासनहीनता तो इस समय नज़र नहीं आ रही है। बल्कि वे अनुशासित हो गए हैं। क्वार्टर मास्टर्स लॉबी में, मेन गेट पर पहरेदार तो नियुक्त किये ही हैं, और बेस में भी गश्त चल रही है। अभी तक तो वे गोरे सैनिक या अधिकारी की ओर मुड़े नहीं हैं। मगर यह भी नहीं कह सकते कि वे हमला करेंगे ही नहीं। हमें सावधानी बरतनी पड़ेगी।’’

जोन्स  ने  ‘तलवार’  की  परिस्थिति  का  वर्णन  किया।

‘‘अब इस समय भूदल सैनिकों का पहरा लगाकर अथवा उनके हाथों में ‘तलवार’ सौंपकर सैनिकों को गिरफ्तार करना सम्भव है। मगर यह भी मत भूलो कि बेस में गोरे अधिकारी और सैनिक भी हैं। पहले उन्हें बाहर निकालना होगा।’’ रॉटरे ने सुझाव दिया।

जोन्स ने गोरे सैनिकों को, अधिकारियों को और महिला सैनिकों को एक घण्टे में ‘तलवार’  छोड़ने का आदेश दिया।

‘‘बाहर निकलते समय यदि रुकावटें आएँ तो प्रतिकार करना! जो भी पास में हों उन हथियारों का इस्तेमाल करना! याद रखना, हिन्दुस्तानी सैनिकों के खून की नदियाँ भी बहें तो कोई बात नहीं, मगर एक भी गोरे के ख़ून की एक भी बूँद नहीं गिरनी चाहिए!’’  उसने  आदेश  के  साथ  यह  पुश्ती  भी  जोड़ी।

रात के नौ बजे बेस में एक भी गोरा सैनिक और अधिकारी नहीं बचा था। जाते समय वे महिला सैनिकों को भी ले गए।

रात के नौ बज चुके थे। ‘बेस’ के मास्ट पर इंग्लेंड़ का नौदल ध्वज गर्दन नीचे झुकाए दीनतापूर्वक लटक रहा था। सबकी नज़रों में वह कपड़े का एक टुकड़ा भर था। पहरे पर तैनात एक सैनिक का ध्यान उस ध्वज की ओर गया और उसने ‘तलवार’  से अंग्रेज़ी साम्राज्य का एक और निशान दूर  किया।

रेडियो पर रात का समाचार बुलेटिन आरम्भ हुआ। उद्घोषक समाचार दे रहा था।

‘‘मुम्बई के H.M.I.S ‘तलवार’ नौसेना तल पर हिन्दुस्तानी नौसैनिक उन्हें दिए जा रहे अपर्याप्त एवं निकृष्ट प्रति के भोजन को लेकर आज सुबह से हड़ताल पर गए हैं...।’’

''Bastards!'' दास ने गुस्से से कहा।

‘‘हम रोटी के दो ज़्यादा टुकड़ों के लिए, और उस पर मक्खन माँगने के लिए नहीं खड़े हैं। हमारा उद्देश्य इससे कहीं बड़ा है। हमारा यह विरोध हड़ताल नहीं, अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ विद्रोह है!’’ बेचैन दास हाथ–पैर पटकते हुए चीख रहा था।

''Take it easy दास। अरे, गोरों की यह पहली चाल है। अभी तो और भी बहुत कुछ होने वाला है।’’ दत्त ने शान्तिपूर्वक समझाया।

‘तलवार’ में घटित घटनाओं पर रिपोर्ट लिखने में दंग रॉटरे ने रेडियो द्वारा प्रसारित समाचार सुना और वह मन ही मन खुश हुआ। उसकी उम्मीद से भी कहीं जल्दी यह ख़बर प्रसारित हुई थी। उसे मन ही मन यह लग रहा था कि सैनिकों की हड़ताल का विकृत चित्र ही प्रस्तुत किया जाए; दिल्ली ने ठीक यही किया था।

 ‘‘मेरी और दिल्ली की सोचने की दिशा एक ही है।’’ प्रसन्नता से सीटी बजाते हुए उसने सिगार जलाई, शीघ्रता से गॉडफ्रे से सम्पर्क किया और ‘तलवार’ के हालात, उसके द्वारा किये गए समझौते के प्रयास, किंग के स्थान पर की गई नियुक्ति आदि सभी छोटी–बड़ी घटनाओं की जानकारी दी।

‘‘ठीक है, मगर परिस्थिति चाहे कितनी ही कठिन क्यों न हो परले सिरे की भूमिका लेकर कार्रवाई मत करना। भूदल के अधिकारियों को सतर्क करो।’’ गॉडफ्रे  ने  रॉटरे  को  सूचनाएँ  दीं। 

मुम्बई के विद्रोह की खबर जनरल हेडक्वार्टर में हवा की तरह फैल गई। सभी अस्वस्थ हो गए। चार ही दिन पहले हवाई दल के सैनिकों के विद्रोह की ख़बर... दिल्ली का वह विद्रोह अभी थमा भी नहीं था कि मुम्बई में विद्रोह...सैनिकों में व्याप्त असन्तोष से सम्बन्धित पिछले डेढ़ महीनों से लगातार आ रही रिपोर्ट्स...और आज के समाचार ने तो इस सबको मात दे दी थी।

‘तलवार’ के विद्रोह की सूचना गॉडफ्रे ने ज़रा भी समय न गँवाते हुए कमाण्डर इन चीफ सर एचिनलेक को दे दी और एचिनलेक ने दिल्ली के सभी वरिष्ठ सैनिक एवं प्रशासकीय अधिकारियों की इमर्जेन्सी मीटिंग बुला ली।

‘‘मीटिंग शुरू हुई तो नौ बज चुके थे। मीटिंग की वजह सभी को मालूम थी। एचिनलेक ने औपचारिक रूप से मीटिंग आयोजित करने का कारण बताया और गॉडफ्रे ने मुम्बई की घटनाओं की जानकारी दी।

‘‘अब तक ‘तलवार’ में जो कुछ भी हुआ है वह वाकई में चिन्ताजनक है। हमें कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए। यह सब समय रहते ही रोका न गया तो एक बार फिर 1857 का सामना करना पड़ेगा।’’ एक भूदल अधिकारी स्थिति की गम्भीरता स्पष्ट कर रहा था।

‘‘दोस्तो, परिस्थिति को मात देने के लिए हम क्या कर सकते हैं और जो कुछ भी सुझाव हम पारित करेंगे उन पर किस तरह अमल किया जाए यही तय करने के लिए हम यहाँ एकत्रित हुए हैं। कार्रवाई की दिशा निश्चित करते समय इस बात का ध्यान रखना होगा कि परिस्थिति बिगड़े नहीं और सत्ता पर हमारी पकड़ ढीली न हो पाये। इसलिए आपको आज यहाँ बुलाया गया है।’’ गॉडफ्रे ने चर्चा की दिशा स्पष्ट की।

 ‘‘एडमिरल गॉडफ्रे, क्या यह विद्रोह पूर्व नियोजित है ? क्या इस विद्रोह को राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं का समर्थन प्राप्त है ?’’  जनरल बीअर्ड ने पूछा।

‘‘ऐसी आशंका है कि यह विद्रोह पूर्व नियोजित है। राजनीतिक नेताओं द्वारा मध्यस्थता की जाए, यह माँग नेताओं के समर्थन की ओर इशारा करती है।’’  गॉडफ्रे ने जवाब दिया।

‘‘इस हालत में हमें राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं को विद्रोह से दूर रखना चाहिए।’’  मुम्बई के गवर्नर के सेक्रेटरी ब्रिस्टो ने कहा।

‘‘साथ ही सामान्य जनता को भी विद्रोह से दूर रखना चाहिए।’’ बीअर्ड ने सुझाव दिया।

‘‘ऐसा करना चाहिए यह तो एकदम स्वीकार है; मगर ये किया कैसे जाए ?’’ एडमिरल कोलिन्स ने पूछा।

‘‘यदि यह कहा जाए कि इस विद्रोह को समर्थन देने से स्वतन्त्रता के बारे में जो वार्ताएँ हो रही हैं उनमें विघ्न पड़ सकता है और स्वतन्त्रता स्थगित हो जाएगी तो कांग्रेस और कांग्रेसी नेता इस विद्रोह से दूर रहेंगे ऐसा मेरा ख़याल है।’’  गॉडफ्रे ने उपाय सुझाया।

‘‘हमने आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों के सम्बन्ध में जो गलती की थी वह इस बार न करें ऐसा मेरा विचार है।’’ जनरल स्टीवर्ट ने कहा।

‘‘मतलब ?’’  गॉडफ्रे सहित सभी के चेहरों पर प्रश्नचिह्न था।

‘‘जब सामान्य जनता आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों का स्वागत कर रही थी तब हमें इन सैनिकों के विरुद्ध ज़ोरदार प्रचार करना चाहिए था। अपनी जान बचाने के लिए ये सैनिक आज़ाद हिन्द सेना में शामिल हो गए हैं, वे स्वार्थी हैं, गद्दार हैं। इस बात को हमने उछाला ही नहीं। हिन्दुस्तानी युद्ध कैदियों पर जर्मनी और जापान द्वारा किये गए अत्याचारों का वर्णन हमने जनता तक पहुँचाया ही नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि ये सैनिक महान हो गए। उन्हें जनता की सहानुभूति प्राप्त हो गई और जनमत के दबाव के कारण कांग्रेस को उनका पक्ष लेना पड़ा। हम इस विद्रोह के सम्बन्ध में यह ग़लती न करें। यह विद्रोह स्वार्थप्रेरित है; देशप्रेम, स्वतन्त्रता आदि की आड़ में ये सैनिक वेतनवृद्धि, अच्छा खाना आदि माँगों के लिए ही अनुशासनहीन बर्ताव कर रहे हैं, ये बात लोगों के मन तक पहुँचानी चाहिए।’’ स्टीवर्ट ने सुझाव दिया।

‘‘जनरल स्टीवर्ट का कहना बिलकुल सही है।इसी के साथ मैं एक और सुझाव दूँगा: कांग्रेस और विशेषत: महात्माजी हिंसक मार्ग का विरोध करते हैं। इन आन्दोलनकारी सैनिकों ने हिंसक मार्ग का अनुसरण किया है यदि ऐसा प्रचार हमने किया तो कांग्रेस इस विद्रोह से दूर रहेगी। सैनिक यदि आज अहिंसक मार्ग पर चल भी रहे हैं, तो भी अन्तत: वे सैनिक हैं। उन्हें हिंसक मार्ग पर घसीटना मुश्किल नहीं है। हम उन्हें हिंसा करने के लिए उकसाएँगे। ‘’Let us call the dog mad and kill it.'' ब्रिस्टो का यह सुझाव सबको पसन्द आ गया।

‘‘मुझे ब्रिस्टो का सुझाव मंजूर है। सैनिकों को हिंसा के लिए प्रवृत्त करना कठिन नहीं है। उन्हें दी जा रही खाने और पानी की रसद बन्द करो। वे हिंसा पर उतर आएँगे!’’ कोलिन्स ने प्रस्ताव रखा।

‘‘क्या राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं को इस विद्रोह में दिलचस्पी है ?  मेरे विचार में तो नहीं है, क्योंकि ये नेता अब थक चुके हैं। अगर ऐसा न होता तो वे सन् ’42 के बाद और एकाध आन्दोलन छेड़ देते। दूसरी बात यह है कि स्वतन्त्रता का श्रेय वे लेना चाहते हैं और इसीलिए वे विभाजन स्वीकारने की मन:स्थिति में हैं। इस विद्रोह के कारण यदि आज़ादी मिलती है तो श्रेय कांग्रेस को नहीं मिलेगा, और इसीलिए वे इस विद्रोह को समर्थन नहीं देंगे। मेरा ख़याल है कि हमारा यह भय निराधार है।’’ जनरल सैंडहर्स्ट के विचार से कोई भी सहमत नहीं हुआ।

‘‘यदि ऐसा हुआ तो, समझिए सोने पे सुहागा!’’ गॉडफ्रे ने कहा, ‘‘मगर let us hope for the best and prepare for the worst. इन सैनिकों द्वारा राष्ट्रीय नेताओं की मध्यस्थता की माँग, नेता कौन होगा यह हम निश्चित करेंगे, ऐसा कहना - यही प्रदर्शित करता है कि सैनिक राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं की सलाह पर चल रहे हैं। मेरा अनुमान है कि कांग्रेस के नेताओं में से नेहरू और पटेल इन पर नज़र रखे हुए हैं क्योंकि कांग्रेस के ये दोनों नेता प्रभावशाली तो हैं ही, मगर किसी घटना का उपयोग अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिए किस तरह किया जाए,  इस कला में भी वे निपुण हैं; और पटेल आजकल मुम्बई में हैं।’’

‘‘हमें कम्युनिस्टों और कांग्रेस के अन्तर्गत समाजवादी गुट को कम नही समझना चाहिए।’’ जनरल स्टीवर्ट कह रहा था, ‘‘1942 के आन्दोलन में सहभागी न होने की ग़लती कम्युनिस्टों ने की। इस गलती को सुधारने के उद्देश्य से कम्युनिस्ट इस विद्रोह का साथ देंगे। समाजवादी गुट क्रान्तिकारी गुट है।  विद्रोह,  बम-विस्फोट इत्यादि हिंसक मार्गों में उन्हें कुछ भी अनुचित नज़र नहीं आता। यह गुट न केवल उनका मार्गदर्शन करेगा, बल्कि हो सकता है, उनका नेतृत्व भी स्वीकार कर ले। हमें इस गुट पर भी नज़र रखनी  चाहिए।’’

 ‘‘सभा में प्रस्तुत विभिन्न सुझावों को सर एचिनलेक ने नोट करवा दिया और विद्रोह को कुचलने के  लिए व्यूह रचना तैयार की।

‘‘प्रभावशाली प्रचार यन्त्रणा खड़ी करके सैनिकों के विद्रोह को बदनाम करना; सैनिकों का राशन–पानी बन्द करके उन्हें हिंसा के लिए उकसाना; महत्त्वपूर्ण बात यह कि सैनिकों को मदद करने वाले अथवा उनसे सम्पर्क साधने का प्रयत्न करने वाले सम्भावित नेताओं की गतिविधियों पर नजर रखना; उनसे सम्पर्क बनाकर अतिरंजित समाचार प्रसारित करना; जरूरत पड़े तो शस्त्रों की सहायता से इस विद्रोह को कुचलना।’’ एचिनलेक ने अपनी योजना सबके सम्मुख रखी और इस व्यूह रचना को सभी ने मान लिया। सेना के वरिष्ठ अधिकारी विद्रोह को कुचलने के निर्धार से ही वहाँ से उठे।


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