वड़वानल - 33

वड़वानल - 33

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खान  की  यह  व्यूह  रचना  अनेक  लोगों  को  पसन्द  आ  गई  और  पच्चीस–तीस लोग रिक्वेस्ट करने के लिए तैयार हो गए मगर पहले सिर्फ आठ लोग दरख्वास्त देंगे और उसके बाद हर चार दिन बाद आठ–आठ लोग दरख्वास्त देंगे यह तय किया   गया।   पहले   आठ   व्यक्तियों   के   नाम   भी   निश्चित   हो   गए।

‘‘आज गुरुवार है। आज रिक्वेस्ट फॉर्म लेकर डिवीजन ऑफिसर के पास जाना चाहिए।’’   मदन ने सुझाव दिया।

‘‘डिवीजन ऑफ़िसर और एक्जिक्यूटिव ऑफ़िसर इन दो रुकावटों को हमें पार करना होगा। शनिवार को एक्जिक्यूटिव आफ़िसर्स रिक्वेस्ट  होगी। आज यदि दरख्वास्त दी गई तो हमें डिवीजन ऑफ़िसर के सामने   खड़ा करके हमारी दरख्वास्त आगे,  एक्जिक्यूटिव ऑफ़िसर को,  भेजी जाएगी और वह उसे आगे,  किंग को, भेजेगा।’’   खान   ने   कार्रवाई   के   बारे   में   जानकारी   दी।

‘‘यदि डिवीजन ऑफ़िसर या एक्जिक्यूटिव ऑफ़िसर ने हमारी रिक्वेस्ट फ़ॉरवार्ड नहीं की तो ?’’ गुरु ने सन्देह व्यक्त   किया।

‘‘तो दूसरी रिक्वेस्ट किंग ही से मिलने के लिए। मगर एक बात ध्यान में रखो। डिवीजन ऑफ़िसर और एक्जिक्यूटिव ऑफ़िसर इस बारे में निर्णय नहीं ले सकते। उन्हें हमारी अर्जियाँ आगे भेजनी ही पड़ेंगी। हमारी रिक्वेस्ट किंग के बर्ताव  से  सम्बन्धित  है  और  उस  पर  किंग  के  मातहत  अधिकारी  निर्णय ले ही नहीं सकते।’’   खान   का   यह   तर्क   सबको   ठीक   लगा।

खान,  गुरु,  मदन,  दास,  जी. सिंह,  सुजान  सिंह,  सुमंगल  और  पाण्डे ने रिक्वेस्ट फॉर्म लाकर उन्हें भर   दिया।

‘‘सत् श्री अकाल, चीफ साब।’’ मदन ने डिवीजन चीफ चड्ढा से कहा।

‘‘सत् श्री अकाल, पाशाओं, बोल की गल ?’’   चीफ़ ने पूछा।

‘‘कुछ   नहीं   जी,   एक   रिक्वेस्ट   थी।’’   पाण्डे   ने   कहा।

‘‘ठीक   है,   बोलो   जी।’’

चीफ के हाथ में मदन ने तीन फॉर्म दिये। उसने उन्हें पढ़ा और तड़ाक् से उठ गया। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था।

‘‘अरे,  आज तक नौसेना में ऐसी अर्जियाँ किसी ने दी नहीं,  यह तो मैं पहली बार देख रहा हूँ। क्या, कर क्या रहे हो ? कमाण्डिंग ऑफिसर के खिलाफ शिकायत ?   इसके नतीजे के बारे में सोचा है ?’’   चीफ चिल्ला ही   पड़ा।

‘‘चीफ साब, नतीजे की बात छोड़ो,  उसके मुकाबले आज जो कुछ भी बर्दाश्त कर रहे हैं, वह असहनीय है!’’    मदन के शब्दों में गुस्सा था। ‘‘माँ–बहन की गालियाँ, दूसरे दर्जे का बर्ताव,  कदम–कदम पर अपमान, यह सब कितने दिन   बर्दाश्त करेंगे ? यह सब रुकना चाहिए,  हम गुलाम नहीं हैं,  इस बात को गोरे समझ लें! उन्हें ठोंक–पीटकर   कहना पड़ेगा। ये अपमान आगे से हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।’’

 ‘‘तुम क्या समझते हो, तुम्हारी अर्जियों से यह सब रुक जाएगा ?’’ चीफ के शब्दों से निराशा झाँक रही थी।

‘‘चीफ साब, आपकी बात बिलकुल सही है। हमारी रिक्वेस्ट से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। जब अंग्रेज़ यह देश छोड़कर चले जाएँगे,  हिन्दुस्तान को आज़ादी मिल जाएगी, तभी परिस्थिति बदलेगी। हमारी रिक्वेस्ट उन्हें दी जा रही सूचना है कि आज तक जिनके बल पर तुम राज कर रहे थे, वे सैनिक अब यह सब बर्दाश्त नहीं करेंगे।’’ गुरु भड़क उठा था। उसके शब्दों में आवेश था, चिढ़ थी।

‘‘धीरे बोल, आवाज नीची कर।’’ चड्ढा ने कहा। ‘‘तुम क्या समझते हो, मैंने यह अपमानभरी जिन्दगी नहीं जी है ? इस बर्ताव का मुझे कितनी ही बार गुस्सा आया। सोचा,  बग़ावत कर डालूँ। मगर डरपोक  मन  ने  साथ  ही  नहीं  दिया। सच कहूँ, आर.के. ने जब बहिष्कार किया, दत्त को जब पकड़ा गया, तब मुझे उन पर फख़्र हुआ और अपनी कायरता पर शर्म आई।’’ चीफ पलभर को रुका। “तुम सोचते होंगे कि मेरे चीफ बन जाने पर यह सब रुक गया होगा, मगर ऐसी बात नहीं है। आज भी मेरे  किसी निर्णय पर जब ताने दिये जाते हैं कि ‘ऐसे निर्णय बेवकूफों को ही शोभा देते हैं’, ‘किस बेवकूफ ने तुम्हें चीफ बना दिया ?’ तो दिल में आग लग जाती है। ऐसा लगता है कि कर दूँ विरोध, मगर हिम्मत नहीं  होती  और  इसीलिए  तुम्हें  बधाई  देने  से  अपने  आप  को  रोक  नहीं  सकता, यदि मौका आ ही जाए तो मैं भी तुम लोगों के साथ ही हूँ। आल दि बेस्ट।’’

वे   तीन   अर्जियाँ   लेकर   चीफ   डिवीजन   ऑफिसर   के   दफ्तर   में   गया।

''Yes, chief?'' चीफ़ की ओर देखते हुए स. लेफ्ट.  जेम्स ने पूछा।

‘‘तीन   रिक्वेस्ट्स   हैं,’’   चीफ   ने   रिक्वेस्ट   फॉर्म्स   जेम्स   के   हाथ   में   दिए।

जेम्स  ने  जैसे  ही  रिक्वेस्ट  फॉर्म्स  पर  नजर  डाली  वह  आश्चर्य  से  उठकर खड़ा  हो गया।

''My God! कमांडिंग ऑफिसर के खिलाफ़ शिकायत! Horrible!'' वह एक मिनट तक विचार करता रहा,   मगर उसे   कुछ   भी   सूझ   नहीं   रहा   था।

चीफ की ओर देखकर उसने पूछा, ‘‘इनका क्या करें ?’’ 

‘‘मेरा ख़याल है कि आप ये रिक्वेस्ट्स सीधे–सीधे फॉरवर्ड कर दें। एक्जिक्यूटिव ऑफिसर को ही फैसला करने दो ना!’’  चीफ  ने  कहा।

‘‘अगर  मैं  इन  रिक्वेस्ट्स  को  रिजेक्ट  कर  दूँ  या  इन्हें  पेंडिंग  में  रख  दूँ  तो ?’’

जेम्स   ने   एक   पर्याय   सुझाया।

‘‘तो वे आपके खिलाफ कमांडिंग ऑफिसर से मिलने की इजाज़त माँगेंगे और फिर शायद कमांडिग ऑफिसर आपसे कारण पूछेंगे कि रिक्वेस्ट्स फॉरवर्ड क्यों  नहीं  की  गई ?’’  चीफ  ने  परिणामों  की  कल्पना  दी।  ‘‘मेरा  ख़याल  है  कि  आप यह  ख़तरा  न  मोल  लें।’’  चीफ  ने  समझाया।

''All right, I shall forward the requests.'' पलभर सोचकर जेम्स ने अपना निर्णय सुनाया। उन तीनों को अन्दर   बुलाओ।

मदन,   गुरु   और   पाण्डे   भीतर   आए।

‘‘तुम   फ्लैग   ऑफिसर   से   क्यों   मिलना   चाहते   हो ?’’   जेम्स   ने   पूछा।

‘‘रिक्वेस्ट   में   कारण   बताया   है।’’   मदन   ने   जवाब   दिया।

‘‘किंग  ने  बुरी  जुबान  का  इस्तेमाल  किया,  मतलब  उन्होंने  कहा  क्या ?’’

जेम्स   ने   जानकारी   हासिल   करने   के   इरादे   से   पूछा।

‘सॉरी सर,  वह हम एडमिरल रॉटरे को ही बताएँगे।’’ मदन ने ज़्यादा जानकारी देने से इनकार कर दिया। ‘’आपसे प्रार्थना है कि हमारी रिक्वेस्ट्स आगे भेजें।’’

जेम्स ने चीफ की ओर देखा, चीफ ने नज़र से इशारा किया और जेम्स ने रिक्वेस्ट फॉर्म पर लिखा,                     ''Forworded to Ex,-o.''

तीनों  बैरेक  में  गए  तो  उनके  चेहरे  पर  समाधान  था।  दोपहर  तक  कुल  आठ अर्जियाँ एक्स. ओ.  की ओर भेजी गई थीं।

यूँ ही चली गई यह चाल वड़वानल का रूप धारण कर लेगी, ऐसा किसी ने भी नहीं सोचा था।

एँटेरूम के भीतर का वातावरण हमेशा की तरह मदहोश था। अलग–अलग तरह की ऊँची शराबों की गन्ध की एक अलग ही तरह की मदहोशी बढ़ाने वाली सम्मिश्र खुशबू फैल रही थी। युद्ध के पश्चात् सैन्य अधिकारियों को फिर से सस्ती शराब मिलने लगी थी; और गोरे अधिकारी इसका पूरा पूरा फ़ायदा उठा रहे थे.

‘तलवार’ का एक्जिक्यूटिव ऑफिसर लेफ्ट.कमाण्डर स्नो शराब के पेग पर पेग पिये जा रहा था। स्नो की यह आदत ही थी। दिनभर के काम निपटाने के बाद वह  ठण्डे  पानी  से  बढ़िया  नहाता  और  प्रसन्न  चित्त  से,  चेहरे  पर  खुशी  लिये  एँटेरूम में बैठता, रात के साढ़े दस बजे तक। इस समय भी वह तीन पेग पी चुका था और पेट में पहुँची शराब का सुरूर धीरे–धीरे आँखों में छा रहा था। उसने जैसे ही    स. लेफ्ट. जेम्स को आते देखा, वह फौरन चिल्लाया, ''Oh, come on Jimmy! How is the life?"

''Oh, fine! Thank you, sir.'' उसने दोपहर वाली रिक्वेस्ट्स के सिलसिले में स्नो से मिलने का निश्चय किया ही था। अचानक प्राप्त हुए इस मौके का फायदा उठाते हुए उसने खुलेपन से बात   करने   की   ठान   ली।

''Oh, come on sit down. Be informal James,'' जेम्स  को  बैठाते  हुए स्नो  ने  कहा।

''One large whisky.'' उसने चीफ़ स्टीवर्ड को आदेश दिया।

‘‘बोल,    क्या हाल है ?’’ उसने जेम्स से पूछा। स्नो अपने मातहत अधिकारियों को यथोचित सम्मान देता था। उसका यह मत था कि सेना को सिर्फ अनुशासन से नहीं चलाया जा सकता; बल्कि ‘टीम वर्क’ बड़ा जरूरी होता है और यह ‘टीम वर्क’   तभी सम्भव है जब अपनापन हो,   प्यार   हो।

‘‘सर, मैं आज आपसे मिलने ही वाला था,’’ जेम्स ने बात शुरू करते हुए मदन,   गुरु,   पाण्डे   आदि   की   रिक्वेस्ट्स   के   बारे   में   बताया।

‘‘तुमने सारी रिक्वेस्ट्स मेरे पास भेज दी हैं ना ? ठीक है। मैं देख लूँगा,’’स्नो   ने   कहा।   अब   उस   पर   नशा   चढ़   रहा   था।

‘‘जेम्स, बेस का वातावरण बदल रहा है। हिन्दुस्तानी सैनिक जाग उठे हैं, उनका आत्मसम्मान हिलोरें ले रहा है। उनसे संयमपूर्वक पेश आना होगा, वरना दुबारा 1857 की पुनरावृत्ति हो जाएगी। यदि वैसा हुआ तो हमें यहाँ से भागने में भी मुश्किल हो जाएगी। हमें सतर्क रहना होगा।’’ स्नो जेम्स को परिस्थिति से अवगत करा रहा था।

रात के दस बज चुके थे। बैरेक के सैनिक झुण्ड बना–बनाकर मदन, गुरु, पाण्डे की रिक्वेस्ट के बारे में चर्चा कर रहे थे। हरेक की राय अलग–अलग थी,  परिणामों के बारे में आशंकाएँ भी अलग–अलग थीं।

‘‘तुम  दोनों  रात  को  बारह  से  चार  वाली  सेल–सेन्ट्री  ड्यूटी  पर  जाने  की तैयारी करो,’’ मदन ने खान और जी. सिंह को एक ओर ले जाकर कहा।

‘‘हम  किसके  बदले  में  ड्यूटी  पर  जा  रहे  हैं  और  क्या  वे  विश्वास  योग्य व्यक्ति हैं ?’’  खान  ने  पूछा।

‘‘अरे, बारह से चार की ड्यूटी किसी को भी अच्छी नहीं लगती। वैसे ही त्यागी और सुमंगल को भी नहीं भाती। दोनों  भरोसे  लायक  हैं।  उनके पेट में दर्द है इसलिए वे ड्यूटी पर नहीं जाएँगे।’’   मदन ने जवाब दिया। 

दत्त  ने  खान  और  जी.  सिंह  को  ड्यूटी  पर  देखा  तो  उसे  बड़ा  आश्चर्य  हुआ। सुबह से बैरेक में जो कुछ भी हुआ था उसकी भनक उस तक पहुँच गई थी।

‘‘फ्लैग ऑफिसर से मुलाकात करने के बारे में जो प्रार्थना–पत्र दिये हैं वो ठीक किया। स्नो तुम्हारी रिक्वेस्ट पर कोई निर्णय नहीं ले सकेगा। या तो वह तुम्हारी अर्ज़ियाँ आगे बढ़ा देगा या उन्हें खारिज कर देगा।    यदि    वह    अर्जियाँ    खारिज कर  दे  तो  क्या  करना  होगा  इस  पर  विचार  करें।  यदि  वह  अर्जियाँ  किंग  तक पहुँचाता है तो हमें इससे फायदा ही होगा। नौसेना के सारे सैनिकों की समझ में यह बात आ जाएगी कि हम गुलाम नहीं हैं। बिल्कुल कैप्टेन द्वारा भी किये गए अन्याय के विरुद्ध हम न्याय माँग सकते हैं; और इससे उनका आत्मसम्मान जागेगा।’’   दत्त   ने   रिक्वेस्ट्स   के   फ़ायदे बताए।

‘‘तुम्हें शायद पता नहीं है, मगर तुम्हारी गिरफ़्तारी से भी सैनिक चिढ़ गए हैं। अंग्रेज़ों के खिलाफ गुस्सा  उफन  रहा  है  तुम्हें  जिस  दिन  पकड़ा  गया  उसके दूसरे  या  तीसरे  दिन  कराची  के  नौसैनिकों  का  सन्देश  आया  है  कि  कराची  के सारे नौसैनिक अपना धर्म भूलकर स्वतन्त्रता के लिए अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ खड़े होने को तैयार हैं। उन्होंने साफ–साफ कह दिया है, कि मुसलमानों के लिए आज़ाद मुल्क की माँग हमारा आपस का प्रश्न है। उसे हम खुद सुलझाएँगे। इसके लिए  तराजू  लेकर  बन्दर–बाँट  करने  वाले  बन्दरों  की  हमें  कोई  जरूरत  नहीं  है।

वे  हमारा  देश  हमें  सौंपकर  यहाँ  से  दफा  हो जाएँ।’’  खान पलभर को रुका। ‘‘तुम शायद नहीं जानते कि कराची के नौसैनिक कांग्रेस–अध्यक्ष अबुल कलाम आज़ाद से भी मिल चुके हैं। उन्हें पूरी परिस्थिति समझाकर सैनिकों की मन:स्थिति की कल्पना दे दी है और यह भी बता दिया है कि यदि उन पर हो रहे अन्याय नहीं रुके तो नौसैनिक बग़ावत कर देंगे।’’

‘‘फिर,  आज़ाद ने क्या कहा ?’’  दत्त  ने  पूछा।

‘‘अरे  वे  क्या  सलाह  देंगे ?!  सब्र  से  काम  लो - बस यही। कांग्रेस के नेता अब थक गए हैं।’’ जी. सिंह ने कहा, ‘‘ठीक कहते हो। वरना वे 1942 के बाद किसी और आन्दोलन का आयोजन कर डालते।’’   खान   ने   कहा।

‘‘हम जाति और धर्म के आधार पर बँटे हुए नहीं हैं। आज हमारे बीच का मुसलमान कह रहा है कि वह पहले हिन्दुस्तानी है और बाद में मुसलमान है। यह सचमुच में अच्छी बात है। मगर हमारे बीच ऊँच–नीच का भेद है, यह नहीं भूलना चाहिए। हम ब्रैंच के अनुसार विभाजित हो गए हैं; हम यह भूल गए हैं कि यह विभाजन काम को सुचारु रूप से चलाने के लिए किया गया है। हमें इस अन्तर को कम करना होगा। यदि हमने यह अन्तर कम कर दिया तो अन्य सैनिक दलों को एकत्रित करने का नैतिक अधिकार हमें प्राप्त होगा। अन्य ब्रैंचों के सैनिक भी हमारे ही हैं। जैसे–जैसे हम निचली रैंक्स के सैनिकों तक पहुँचेंगे, वैसे–वैसे हमें समझ में आएगा कि उनकी हालत हमसे ज़्यादा दयनीय है। हमें उन तक पहुँचना ही होगा तभी हमें सफलता मिलेगी।’’ दत्त ने एकता पर ज़ोर दिया।

‘‘उस दिशा में हमारी कोशिशें जारी हैं। हम फोर्ट बैरेक्स के, डॉकयार्ड के, ‘तलवार’  के और अन्य जहाजों के सीमेन,  इलेक्ट्रिशियन,  इंजीनियरिंग,  स्टीवर्ड से; बल्कि मेहतरों का काम करने वाले टोप्स से भी मिले हैं।  उनकी  समस्याएँ समझ ली हैं। हम  संघर्ष  करेंगे  इन  सबकी  समस्याएँ  दूर  करने  के  लिए,  अपने स्वाभिमान को बरकरार रखने के लिए। हमें मालूम है कि हमारा स्वाभिमान तभी कायम रहेगा जब अंग्रेज़ इस देश से चले जाएँगे, हमारी समस्याएँ सुलझ जाएँगी और  सही  अर्थ  में  ‘सारे  जहाँ  से  अच्छा  हिन्दोस्ताँ  हमारा’  बनेगा।  खान  सुलग  उठा था। उस अपर्याप्त रोशनी में भी उसकी आँखों के   अंगारे   झुलसा   रहे   थे।


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