वड़वानल - 30
वड़वानल - 30
औरों की सम्मति की राह न देखते हुए उसने रियर एडमिरल रॉटरे से फोन पर सम्पर्क स्थापित किया और उसके सामने सारी परिस्थिति का वर्णन किया।
‘‘तुम्हारा निर्णय उचित है। मैं दिल्ली में एडमिरल गॉडफ्रे से सम्पर्क करता हूँ और उनकी राय लेता हूँ। क्योंकि हमारी तुलना में गॉडफ्रे को परिस्थिति का बेहतर अनुमान होगा। फिर दो के बदले तीन व्यक्तियों द्वारा विचार–विनिमय के पश्चात् निर्णय लेना बेहतर है।’’ रॉटरे ने जवाब दिया और उसने हॉट लाइन पर गॉडफ्रे से बात की।
‘‘कोलिन्स, मैंने गॉडफ्रे से विचार–विनिमय किया,’’ रॉटरे फोन पर था। हिन्दुस्तान की वर्तमान परिस्थिति अत्यन्त विस्फोटक है इस बात को ध्यान में रखकर ही योग्य कदम उठाने की सलाह गॉडफ्रे ने दी है। सेना की इस अस्वस्थता के पीछे कुछ राजनीतिक दल एवं नेता होंगे ऐसा खुफिया विभाग का अनुमान है। सैन्य दलों की विस्फोटक परिस्थिति का फ़ायदा राजनीतिक नेता उठाएँगे।और हमें बस यही टालना है। इसलिए हर कदम फूँक–फूँककर ही रखना होगा।‘’
‘‘मगर वर्तमान परिस्थिति में मैं क्या निर्णय लूँ ? दत्त को कौन–सी सुविधाएँ दूँ ?’’ कोलिन्स ने पूछा।
‘‘दत्त को आसानी से सुविधाएँ मत देना। सहयोग देने की शर्त पर ही सुविधाएँ दो। राजनीतिक कैदी का दर्जा मत देना और यदि उसकी खुशी के लिए देना पड़े तो भी उसको कहीं ‘नोट’ न करना। यदि सुविधाएँ मामूली हों तो देने में कोई नुकसान नहीं’’, रॉटरे ने सलाह दी।
कोलिन्स इन्क्वायरी रूम में वापस लौटा। दत्त का चिल्लाना बन्द हो गया है यह देखकर उसने राहत की साँस ली।
‘‘मैंने रॉटरे से सम्पर्क स्थापित किया था और अब हम रॉटरे और एडमिरल गॉडफ्रे की सूचनाओं के अनुसार ही कार्रवाई करेंगे।’’ कोलिन्स अपनी चाल समझा रहा था, ‘‘हम इतनी आसानी से उसे सुविधाएँ नहीं दे रहे हैं। यदि वह हमें सहकार्य देने के लिए तैयार हो तो छोटी–मोटी सुविधाएँ दी जाएँगी, मगर उनके बारे में कहीं भी ‘नोट’ नहीं करेंगे। मेरा ख़याल है, पार्कर, कि पहले तुम उससे बात करो।’’
पार्कर ने इस जिम्मेदारी को स्वीकार किया और वह बाहर आया।
‘‘देखो, तुम एक सैनिक हो और नौसेना के कानून के मुताबिक तुम्हें राजनीतिक कैदी का दर्जा दिया नहीं जा सकता। मगर यदि तुम जाँच के काम में पूरी तरह सहयोग देने के लिए तैयार हो तो कमेटी तुम्हारी माँगों के बारे में सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी।‘’ ‘‘तुम्हारी दया की भीख नहीं चाहिए मुझे। मुझे मेरा अधिकार चाहिए। मैं राजनीतिक कैदी हूँ, जब तक मुझे मेरा हक प्राप्त नहीं होता, मैं सहयोग नहीं दूँगा।’’ और वह बेंच पर लेट गया, ‘‘मैं यहाँ से हिलूँगा नहीं। मैं अपना सत्याग्रह शुरू कर रहा हूँ।’’ दत्त ने अपना निर्णय सुनाया।
पार्कर को दत्त की इस बदतमीज़ी पर बड़ा क्रोध आया। वह उस पर चिल्लाते हुए बोला, ‘‘तू समझता क्या है अपने आप को ? तू इस तरह से रास्ते पर नहीं आएगा।’’ पहरेदार की ओर देखते हुए उसने कहा, ‘‘इसे उठाकर ‘सेल’ में पटक दो, बिलकुल बेंच समेत।’’
पहरेदार ने पार्कर को सैल्यूट मारा और जवाब दिया, ‘‘यस सर।’’ मगर बेंच उठाने के लिए कोई भी आगे नहीं आया। सुबह से रौद्र रूप धारण किए हुए दत्त से वे डर गए थे। और उनके मन में दत्त के प्रति आदर भी पैदा हो गया था।
पहरेदारों को खड़े देखकर पार्कर को एक अजीब सन्देह हुआ और वह फिर से चिल्लाया, ‘‘मैंने क्या कहा वो सुना नहीं क्या तुमने ? चलो, उठाओ उसे।’’
जैसे ही पहरेदार आगे बढ़े, दत्त ने नारे लगाना शुरू कर दिया। पहरेदारों ने उसे उठाने की कोशिश की तो वह बेंच से उतरकर नीचे जमीन पर लेट गया।
पहरेदारों को वह चुनौती देने लगा, ‘‘हिम्मत हो तो उठाकर ले जाओ मुझे!’’ और उसने नारे लगाना शुरू कर दिया।
बाहर की गड़बड़ी बढ़ती गई, बेचैन कोलिन्स बाहर आया और चीखा, ‘‘बन्द करो ये गड़बड़!’’
कोलिन्स का क्रोध चरम सीमा तक पहुँच चुका था। अधिकार होते हुए भी वह कुछ भी नहीं कर सकता था। अपने गुस्से को पीते हुए वह दत्त पर चिल्लाया, ‘‘तुम भी चुप बैठो, मुझे तमाशा नहीं चाहिए।’’
‘‘मैं चुप रहूँ, यह चाहते हो ना ?’’ दत्त के चेहरे पर सन्तोष झलक रहा था, ‘‘तो फिर मुझे राजनीतिक कैदी के रूप में मान्यता दो और उस तरह का बर्ताव करो मेरे साथ!’’ दत्त ने कहा।
‘‘ठीक है। हम तुम्हें राजनीतिक कैदी का दर्जा देते हैं; मगर तुम्हें जाँच कार्य में पूरी तरह सहयोग देना होगा,’’ कोलिन्स ने दत्त की माँग मान ली।
पहली लड़ाई जीतने का सन्तोष दत्त के चेहरे पर था।
‘धूर्त अंग्रेज़ों से पाला पड़ा है, सावधान रहना होगा,’ उसने खुद को हिदायत दी।
‘‘मुझे खाली वचन नहीं चाहिए, उस पर अमल भी होना चाहिए।’’ उसने कोलिन्स को चेतावनी दी।
‘‘अमल करने से क्या मतलब है ? क्या चाहते हो ? तुम्हें ठीक–ठीक कौन–कौन–सी सुविधाएँ चाहिए ?’’ ड्रामेबाज कोलिन्स ने इस बात की टोह लेने की कोशिश की कि दत्त की छलाँग कहाँ तक जाती है।
‘‘शौचालय एवं स्नानगृहयुक्त सेल में मुझे रखा जाए; सोने के लिए पर्याप्त बिछाने–ओढ़ने का सामान मिलना चाहिए; रोज कम से कम एक घण्टा खुली हवा में घुमाने ले जाया जाए; जाँच के समय मुझे भी बीच–बीच में विश्राम मिलना चाहिए। इस विश्राम–काल के दौरान चाय मिलनी चाहिए; जाँच–कक्ष में और सेल में मुझे सिगरेट पीने की इजाजत मिलनी चाहिए और जाँच के दौरान मुझे बैठने के लिए कुर्सी मिलनी चाहिए।’’ दत्त ने अपनी माँगें स्पष्ट कीं।
‘‘अरे, ये तो उचित माँगें हैं, ‘‘कोलिन्स ने हँसते हुए कहा,‘‘तुम्हारी ये माँग हम मानवतावादी दृष्टिकोण से...’’
‘‘तुम अंग्रेज़ लोग कितने मानवतावादी हो, यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। ये सुविधाएँ मुझे राजनीतिक कैदी की हैसियत से ही मिलनी चाहिए। आपकी मेहरबानी नहीं चाहिए।’’ दत्त ने दृढ़ता से कहा।
‘दत्त जिस दृढ़ता और जिद से माँग कर रहा है, उससे यही प्रतीत होता है कि वह अकेला नहीं है।’ कोलिन्स अनुमान लगा रहा था। ‘सेना में सरकार विरोधी कार्रवाई के कारण यदि किसी को सज़ा दी जाए तो उसका फायदा उठाकर बगावत करने का, या इसी तरह का कोई षड्यन्त्र रचा गया होगा।’’ उसने सुबह से घटित घटनाओं का मन ही मन जायजा लिया और हर कदम फूँक–फूँककर रखने का निश्चय किया। हर निर्णय वरिष्ठ अधिकारियों से समुचित चर्चा करने के बाद ही लेने का निश्चय किया।
''Enquiry is adjourned till fifth february at three zero hours.'' कोलिन्स ने घोषणा की और वह रॉटरे से मिलने चल पड़ा।
‘तलवार’ पर हमेशा की तरह रूटीन चल रहा था, मगर फिर भी दत्त के साहस और उसकी निडरता से पूरा वातावरण खौल गया था। हरेक के मुँह में दत्त का ही विषय था। उसकी हिम्मत एवं निडरता की चर्चा हो रही थी। मदन, गुरु, दास तथा अन्य आजाद हिन्दुस्तानियों को दत्त के पकड़े जाने का दुख नहीं था। उल्टे उन्हें ऐसा लग रहा था कि जो हुआ वह अच्छा ही हुआ। दत्त की निडरता एवं उसके साहस की कथाएँ मुम्बई में उपस्थित जहाजों पर पहुँच गई थीं। दत्त की गिरफ्तारी से उत्पन्न चैतन्यहीनता अब दूर हो गई थी। गुरु, मदन, दास, खान में एक नये चैतन्य का संचार हो रहा था।
‘‘शेरसिंह से मिलकर यहाँ की घटनाओं की सूचना उन्हें देनी चाहिए। बदली हुई परिस्थिति में उनका मार्गदर्शन भी लेना चाहिए।’’ गुरु ने सुझाव दिया।
‘‘पिछली बार की ही तरह दो लोग बाहर निकलेंगे और दो बोस पर नज़र रखेंगे।’’ मदन ने कहा, ‘‘मैं और खान मिलने जाएँगे और दास तथा गुरु बोस पर नजर रखेंगे।’’ मदन की सूचना को तीनों ने मान लिया।
बोस ने मदन और खान को बाहर जाने की तैयारी करते हुए देखा और वह बैरेक से बाहर आया। गुरु और दास उसके पीछे–पीछे यह देखने के लिए बाहर निकले कि वह कहाँ जा रहा है।
''May I come in, Sir?'' बोस सीधे सब-लेफ्टिनेंट रावत के निवास पर पहुँचा।
''Yes, come in,'' रावत ने बोस का स्वागत किया।
‘‘बोलो, क्या काम है ?’’ रावत ने पूछा।
गुरु और दास ने बोस को रावत के क्वार्टर में जाते देखा और वे एक पेड़ के पीछे खड़े हो गए।
‘‘सर, आज वे दोनों मदन और खान, बाहर निकले हैं वे आज शायद फिर से उनके भूमिगत क्रान्तिकारी नेता से मिलने के लिए जा रहे हैं। पिछली बार उन्होंने मुझे कैसे धोखा दिया इसके बारे में मैं आपको बता ही चुका हूँ।’’ बोस रावत से कह रहा था, ‘‘जब से हमने दत्त को गिरफ्तार किया है, मदन, खान, गुरु और दास बेचैन हो गए हैं। उन्हें मुझ पर शक है। वे मुझ पर नज़र रखे हुए हैं। अभी भी गुरु और दास मेरी निगरानी कर ही रहे थे।’’
‘‘कहाँ हैं वे ? उन्हें मैं अभी पकड़वाता हूँ।’’ रावत ने सुझाव दिया।
‘‘नहीं, सर! इससे कुछ भी हाथ नहीं आएगा।’’ बोस ने समझाया।
‘‘तो फिर तुम उनका पीछा करो। मैं तुम्हारे साथ और तीन–चार लोगों को देता हूँ। फिर तो तुम्हें कोई ख़तरा नहीं है ?’’ रावत ने पूछा।
‘‘अपने भरोसे के दो आदमियों को मदन और खान की निगरानी पर लगाइये। मैं यहाँ गुरु और दास को उलझाए रखता हूँ,’’ बोस ने सुझाव दिया।
बोस और उसके पीछे–पीछे दास तथा गुरु बैरेक में आए। गुरु, मदन और खान को सावधान रहने की चेतावनी देता, इससे पहले ही वे दोनों जा चुके थे।
मदन और खान को इस बात का आभास भी नहीं था कि उनका पीछा किया जा रहा है। बोस मन ही मन खुश हो रहा था।
2 फरवरी से बेस में जो कुछ भी घटित हुआ था उसके बारे में खान ने विस्तार से शेरसिंह को सूचना दी। दत्त के स्वाभिमानी और निडर कारनामे के बारे में बताते हुए खान का दिल गर्व से भर गया था।
‘‘मुझे एक बात का अचरज हो रहा है, पूछताछ करने वाले अधिकारी दत्त के सम्मुख झुक कैसे गए, उन्होंने दत्त को राजनीतिक कैदी का दर्जा और सुविधाएँ देने की बात क्यों मान ली ?’’ मदन ने अपना सन्देह व्यक्त किया।
‘‘सरकार बेहद सावधान है। सैन्यदलों के प्रमुखों ने अधिकारियों को सूचित किया है कि असन्तुष्ट सैनिकों से अत्यन्त सावधानीपूर्वक पेश आएँ। ऐसी कोई भी कार्रवाई न की जाए जिससे असन्तोष बढ़ जाए।’’ शेरसिंह ने स्पष्ट किया।
‘‘मगर यह सावधानी किसलिए ?’’ मदन ने पूछा।
‘‘अंग्रेज़ों का गुप्तचर विभाग सर्वश्रेष्ठ है। देश में हो रही प्रत्येक घटना एवँ उसके सम्भावित परिणामों की सूचना वह अंग्रेज़ों को देता है। साथ ही अंग्रेज़ भी अत्यन्त सतर्कता से परिस्थिति पर नज़र रखे हुए हैं। उनकी इसी सतर्कता की बदौलत वे इस उपमहाद्वीप पर करीब डेढ़ सौ वर्षों से राज कर रहे हैं। अंग्रेज़ों को इस बात की पूरी–पूरी कल्पना है कि महायुद्ध समाप्त होने के बाद से और विशेषकर आज़ाद हिन्द सेना के सैनिकों पर मुकदमे चलाने के कारण हिन्दुस्तानी सैनिकों के बीच असन्तोष व्याप्त हो गया है, और इस असन्तोष की परिणिति विद्रोह में होने की सम्भावना है। जनरल एचिनलेक ने तो एक पत्र लिखकर चीफ ऑफ स्टाफ को सूचित किया है कि रॉयल इंडियन नेवी और रॉयल इंडियन एअरफोर्स के सैनिकों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, क्योंकि ये सैनिक सुशिक्षित हैं। वे सैनिक–परम्परा वाले नहीं हैं, और राजनीतिक प्रचार से उनके प्रभावित होने की काफी अधिक सम्भावना है। गोरखा रेजिमेंट को छोड़कर सरकार का अन्य किसी भी रेजिमेंट पर विश्वास नहीं है। लोगों में व्याप्त असन्तोष यदि भड़क उठा या सैनिकों ने विद्रोह कर दिया तो हिन्दुस्तानी सैनिक अपने भाई–बन्धुओं पर गोलियाँ नहीं चलाएँगे। इस बात का उन्हें पूरा यकीन है, इसलिए एचिनलेक ने सूचना दी है कि इंफेन्ट्री की तीन ब्रिगेड्स तथा आर्टेलरी की तीन रेजिमेंट्स की ज़रूरत पड़ेगी; साथ ही यदि आन्तरिक परिवहन टूट जाए तो जलमार्ग से सैनिकों और सामग्री को ले जाने के लिए कुछ लैंडिग क्राफ्ट्स और अतिरिक्त परिवहन विभागों की भी व्यवस्था की जाए। अंग्रेज़ इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि सेना में - ख़ासकर, नौसेना एवं वायुसेना में - जो अस्वस्थता व्याप्त है, जिस तरह से सैनिकों का आत्मसम्मान जागृत हो चुका है उसके पीछे प्रमुख कारण है – राजनीतिक परिस्थिति। सरकार सैनिकों को देश में व्याप्त राजनीतिक आन्दोलनों से दूर नहीं रख सकी।’’ शेरसिंह ने परिस्थिति का विश्लेषण करते हुए कहा।
‘‘हिन्दुस्तानी सैनिकों के आत्मसम्मान के जागृत होने के पीछे एक और कारण भी है – आज़ाद हिन्द फौज और नेताजी। पिछले कुछ महीनों में राष्ट्रीय समाचार–पत्रों ने आज़ाद हिन्द फौज से सम्बन्धित समाचारों को प्रथम पृष्ठ पर स्थान दिया और कांग्रेस के सभी नेता लगातार आज़ाद हिन्द फ़ौज के बारे में चर्चा कर रहे हैं।’’ मदन ने दूसरा कारण स्पष्ट किया।
‘‘क्या आप ऐसा नहीं सोचते कि कांग्रेस की विचारधारा में परिवर्तन हुआ है ?’’ खान ने पूछा।
‘‘मेरे विचार में यह परिवर्तन सिर्फ आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों के प्रति उनके रवैये में हुआ है’’, मदन ने अन्दाज़ा लगाया।
‘‘नहीं, यह बात नहीं है। कुछ दिन पहले आज़ाद ने इस बात पर दुख प्रकट किया था कि हिन्दुस्तानी सैनिक बन्धनमुक्त नहीं हैं। इस बात से यही तो स्पष्ट होता है ना कि सैनिकों के बारे में उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन हो रहा है ?’’ खान ने पूछा।
‘‘कांग्रेस के नेता आज़ाद हिन्द फौज से निकटता स्थापित कर रहे हैं। इन सैनिकों के प्रति उनका दृष्टिकोण एकदम भिन्न है। फील्डमार्शल वेवेल से बात करते हुए आज़ाद ने कहा था कि पार्टी यह चाहती है कि आज़ाद हिन्द फौज एक ऐसा संगठन बने जो सभी लोगों तथा राजनीतिक नेताओं के लिए उपयोगी हो। वेवल का यह विचार है कि कांग्रेस युद्ध करने वाले लोगों पर दबाव डालना चाहती है।’’ शेरसिंह ने आज़ाद हिन्द फौज के प्रति कांग्रेस के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया।
‘‘मुझे यही तो कहना है। कांग्रेस आज़ाद हिन्द फौज के पक्ष में अदालत में खड़ी है। आज तक हिंसक आन्दोलन का विरोध करने वाले कांग्रेसी नेता अब इन सैनिकों के त्याग की, स्वतन्त्रता–प्रेम की स्तुति कर रहे हैं, उनके लिए धनराशि इकट्ठा कर रहे हैं। इस निधि में हिन्दुस्तानी सैनिकों द्वारा दी गई सहायता स्वीकार कर रहे हैं। आज़ाद, कांग्रेस के अध्यक्ष, कराची में नौसैनिकों से मुलाकात कर रहे हैं। इससे मुझे यह लगता है कि यदि हिन्दुस्तानी सेना में सशस्त्र क्रान्ति हो गई तो कांग्रेस इसका समर्थन करेगी।’’ खान ने अपना तर्क प्रस्तुत किया।
शेरसिंह इस तर्क को सुनकर हँस पड़े, ‘‘बड़े भोले हो। जनमत का दबाव है; लोगों की सहानुभूति आज़ाद हिन्द फौज के सैनिकों को और सुभाषचन्द्र को प्राप्त हो रही है यह देखकर वे इन सैनिकों के पीछे खड़े हैं। एक बात ध्यान में रखो: कांग्रेस के नेता धूर्त हैं। परिस्थिति का फ़ायदा उठाना उन्हें ख़ूब आता है। नेताजी के स्वतन्त्रताप्राप्ति के लिए किये गए प्रयत्नों का कांग्रेस ने समर्थन नहीं किया था। उनकी राय में आज़ाद हिन्द फौज के सैनिक अपने मार्ग से भटक गए हैं। परन्तु आज परिस्थिति में परिवर्तन होते ही नेहरू उन्हें स्वतन्त्रता सैनिक कहते हैं, आज़ाद उनका उपयोग करने की योजनाएँ बनाते हैं, उत्तर भारत में एक सभा की स्थापना करके इन सैनिकों और अधिकारियों को कांग्रेस का सदस्य बनाया जा रहा है। मगर यह सब तब, जब परिस्थिति बदल चुकी है। तुम्हारी बगावत को कांग्रेस और कांग्रेसी नेताओं का समर्थन मिलने वाला नहीं - यह बात पूरी तरह समझ लो और उसे याद रखो, क्योंकि कांग्रेसी नेता आन्दोलन करने की मन:स्थिति में नहीं हैं।’’ शेरसिंह ने खान और मदन को सावधान किया।
‘‘कलकत्ता में पिछले वर्ष के अन्त में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में कांग्रेस हाई कमाण्ड की भूमिका में हुए परिवर्तन पर गौर करो। नेताओं के भाषण काफी सौम्य तथा कम उकसाने वाले थे। अंग्रेज़ी अधिकारियों के मतानुसार अब कांग्रेसी नेता इस बात का अनुभव करने लगे हैं कि सेना में अनुशासनहीनता तथा अवज्ञा ये दोनों बातें स्वतन्त्रताप्राप्ति के पश्चात् कांग्रेस के हाथ में सत्ता आने पर उसी के लिए घातक सिद्ध होंगी और इसीलिए कांग्रेस वैधानिक मार्ग से ही स्वतन्त्रता प्राप्त करने का प्रयत्न करेगी। वर्तमान परिस्थिति में, आज के नेतृत्व में कोई भी नेता जून ’46 से पूर्व व्यापक दंगे नहीं होने देगा।’’
‘‘फिर हमें क्या करना चाहिए ?’’ खान ने पूछा।
‘‘तुम्हारा विद्रोह होना ही चाहिए। तुम्हारी ताकत कम नहीं है। तुम्हारे साथ अन्य दलों के सैनिक भी खड़े होंगे। और, तुमने विद्रोह कर दिया है यह कहते ही सामान्य जनता तुम्हारा साथ देगी। जनता का समर्थन किसी भी राजनीतिक दल के अथवा उनके नेताओं के समर्थन की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।’’ शेरसिंह ने मदन और खान को प्रोत्साहन दिया - ‘‘दिल्ली से आने वाले समाचार काफी उत्साहजनक हैं। इस महीने के मध्य में दिल्ली के एअरफोर्स की दो यूनिट्स विद्रोह कर देंगी। हिन्दुस्तानी सैनिकों के लिए यह एक इशारा होगा। इस विद्रोह के साथ–साथ तुम भी बग़ावत कर दो। तुम्हारे पीछे मुम्बई की एअरफोर्स की यूनिट्स विद्रोह कर देंगी और इस क्रम में एक–एक कड़ी जुड़ती जाएगी। धीरे–धीरे यह दावानल सेना के तीनों दलों में फैल जाएगा और उसमें अंग्रेज़ बुरी तरह झुलस जाएँगे।’’ शेरसिंह ने लाइन ऑफ एक्शन समझाई।
‘‘यदि तीनों दलों के सैनिक विद्रोह कर दें तो उसका परिणाम अच्छा होगा। अंग्रेज़ देश छोड़कर चले जाएँगे; परन्तु क्या ऐसा नहीं लगता कि बड़े पैमाने पर रक्तपात होगा ?’’ मदन ने पूछा।
‘‘रक्तपात होने ही नहीं देना है। यदि जनता का समर्थन प्राप्त करना है तो शान्ति के रास्ते पर ही चलना होगा। जनता के दिलो–दिमाग पर महात्माजी के विचारों ने कब्जा कर लिया है – यह मत भूलो। मगर यह बात भी सही है कि यदि अंग्रेज़ आक्रमण करें तो खामोश नहीं बैठना है, उसका मुँहतोड़ जवाब देना है। यह सरकार अहिंसात्मक आन्दोलन को घास नहीं डालने वाली - इस बात को ध्यान में रखो और आक्रमण होने पर मुँहतोड़ जवाब दो। दिल्ली के हवाईदल के सैनिकों के विद्रोह करने से पहले अपना संगठन बनाओ। सभी जहाज़ों के और सभी बेसेस के सैनिकों को विद्रोह के लिए प्रवृत्त करो। दत्त को गिरफ्तार करने के बाद शायद किंग यह समझ रहा होगा कि उसने विद्रोहियों को सबक सिखा दिया है, उसकी इस सोच को झूठी साबित करो। अब तुम मुझसे 17 तारीख, शनिवार को शाम को मिलो। तब तक दिल्ली से कोई विश्वसनीय, पक्की खबर मिल जाएगी।’’ शेरसिंह ने संक्षेप में व्यूह रचना स्पष्ट की।
खान और मदन बाहर निकले। रात के आठ बज चुके थे।