अजय गुप्ता

Inspirational

4.7  

अजय गुप्ता

Inspirational

वायरस

वायरस

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काफी देर से करवटें बदल रहा था। नींद कुछ जल्दी टूट गई थी। पक्षियों का कलरव सुनाई पड़ रहा था। कोई पक्षी बहुत सुरीला गा रहा था। बाहर, लॉन में आकर बैठा तो देखा बुलबुल और गौरैया अपनी धुन में मस्त थी, साथ में मैगपाई का नया जोड़ा भी गा रहा था। मैगपाई का जोड़ा पहली बार दिखा था पर कंठ सुरीला था। गुलमोहर की स्वस्थ कालिया चटकने को बेताब थी, आसमान की लालिमा उसके रंग में रंगी हुई थी। एक काली बिल्ली गमले के पीछे बैठी सुबह की ताजी हवा का आनंद ले रही थी और एक चील काफी नीची उड़ान भर रही थी। थोड़ी देर प्राणायाम कर ऑफिस की तैयारी में जुट गया। आज का दिन काफी व्यस्त दिन होने वाला था।


समय से ऑफिस पहुंच गया, कोरोना के पूरे प्रोटोकाल के साथ। चैंबर में बैठने से पहले सेनेटाइज्ड हुआ और फिर काम में व्यस्त हो गया। अभी घंटे भर का समय भी नहीं बीता था कि एक साहब, जो पिछले कुछ दिनों में दो बार मिले थे, उनका फोन आ गया। खबर अच्छी नहीं थी उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। मैंने सारी मीटिंग कैंसिल कर अपने रूम को अंदर से बंद कर लिया। पत्रों पर हस्ताक्षर कर, जरूरी दिशा निर्देश अपने स्टाफ को दिए। मेरा तापमान सामान्य था, पर मैं बाहर आ कर अपनी सांस की लय को चेक करना चाहता था। तीन किलोमीटर की चहल कदमी, मैंने तय समय में पूरी कर ली और बहुत निश्चिंत था कि सब ठीक है। एहतियातन ऑफिस तीन दिनों के लिए बंद करवा दिया। घर पर फोन कर के अपने लिए अलग कमरे की व्यवस्था करने को कहा, तो पत्नी हतप्रभ रह गई। पिछले दो दिनों से सारा परिवार साथ था। अब आगे क्या होना है वो भविष्य के गर्भ में था।


घर वापस आया तो मन में तमाम सवाल थे और मैं चिंतित था। पत्नी ने मेरा कमरा अलग तैयार कर दिया था। कमरे में मेडिकल किट, थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर, सेनेटाइजर, गर्म पानी की बोतल यथा स्थान रखी थी। पढ़ने के लिए कुछ हल्की फुल्की पुस्तके भी थीं। खाना देने के लिए दो टेबल लगाई गई थी एक अंदर और एक बाहर। कोशिश थी की बाकी सब वायरस से बच जाएं। एक कोने पर भगवान की फोटो और लैपटॉप रखा था, दोनो ही आवश्यक थे। कमरे के अंदर आ कर मैंने सबसे पहले ऑक्सीजन लेवल और तापमान पुनः देखा, सब सामान्य था। मै खुश था कुछ नही होगा बस सावधानी के लिए इतना करना जरूरी है। बिना किसी लक्षण के आए मैंने भाप और गरारा शुरू कर दिया। मन के किसी कोने में भय अपनी जगह बना रहा था। शरीर की हर प्रतिक्रिया पर मेरी नजर थी। एसी नहीं चलाना था अतः मैंने कमरे की खिड़की खोल दी। 


शाम को गले में कुछ खराश सी महसूस हुई तो तापमान फिर लिया अब रीडिंग 100 डिग्री थी और संशय विश्वास में बदल गया। डॉक्टर से बात की तो उसने दवाई तुरंत शुरू करने का निर्देश दिया। एंटीबायोटिक, पेरासिटामोल, विटामिन सी, जिंक, और एक सिरप। भाप और गरारे तो मैं पहले से ही कर रहा था। इस लहर में वायरस संक्रामकता इतनी तेज थी कि लगभग सारे घरों में लोग बीमार पड़ गए थे। कोरोना टेस्ट घर पर होना असम्भव था, और सेंटर्स पर इतनी भीड़ थी की अपना नंबर एक दिन में आना मुश्किल था। बुखार से बहुत परेशानी नहीं थी तो लगा कुछ दिन के इलाज में ठीक हो जाऊंगा। पहला दिन ठीक बीता परंतु दूसरे दिन सारा घर महामारी की चपेट में आ गया। अब  समस्या बढ़ रही थी। खाने और समान लाने की व्यवस्था कैसे हो? पत्नी ने घर में काम करने वाले स्टाफ को भी छुट्टी दे दी थी और साफ सफाई एक मुश्किल काम बन गया। खैर, जो सामने था उसका सामना तो करना ही था।


  अब हम सभी पीड़ित थे, बच्चों का जज्बा, हम दोनों को शक्ति दे रहा था। इस तापमान में भी दोनो बच्चे, लोगों के लिए अस्पताल, ऑक्सीजन और दवाओं की व्यवस्था करने की कोशिश कर रहे थे। म्यूजिक घर का माहौल बढ़िया रख रहा था। वेब सीरीज हम साथ बैठ कर देख सकते थे क्यों कि शायद अब आइसोलेशन की आवश्यकता नहीं थी। इष्ट मित्रों और रिश्तेदारों को खबर मिली तो सभी बहुत चिंतित उठे और फोन कॉल्स की झड़ी लग गई। मुश्किल यह थी कि ज्यादा बोलने में गला सूख रहा था और गले में खराश बढ़ जा रही थी। आशीष और शुभकामनाएं भी जरूरी होती है अतः मैं बात करने की कोशिश करता परंतु कष्ट होने पर फोन पत्नी को दे देता।


 एक मित्र का फोन आया तो उन्होंने किसी टिफिन सर्विस का मोबाइल नंबर दिया जिससे भोजन की समस्या हल हो गई।

कोई कहता " भाई घर पर ही ठीक हो जाना अस्पताल में बेड नहीं मिल पाएगा।" 

कोई आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवाओं की लिस्ट भेज रहा था। भाप और गरारे ज्यादा करने की भी हिदायत थी। यहां जो दवाएं ले रहे थे वही पच नहीं रही थी। पहले दिन से लूज मोशन शुरू हो गए थे। अब रात में उठ कर टॉयलेट का दरवाजा खोलने से पहले चुटकी काट कर, निश्चिंत होना पड़ता था कि वाकई जागते हुए दरवाजा खोल रहा हूं। 


अभी भी आरटी पीसीआर टेस्ट कराना मुश्किल था। बहुत कोशिश करने पर भी व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। खुद कार चलाने की शक्ति नहीं बची थी। डॉक्टर का कहना था कि दोनों केस में इलाज एक ही है, कुछ समय में व्यवस्था ठीक हो जाएगी तो टेस्ट करा लेना। बहुत परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। पर मुझे खुद से ज्यादा परिवार की चिंता हो रही थी और चाह कर भी इस व्यूह से निकल नही पा रहा था।


चौथे दिन मुझे तेज बुखार था, पेरासिटामोल से भी राहत नहीं मिल रही थी। मन में कुछ घबराहट सी थी पर ऑक्सीजन लेवल ठीक था। डॉक्टर ने कुछ दवाएं बढ़ा दी थी पर मुश्किल बढ़ रही थी। शरीर के अंदर कुछ हो रहा था जिसे मैं अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा था। अब सोशल मीडिया और शुभ चिंतकों के फोन में मृत्यु की खबरें ज्यादा थी। अपने जानने वालों के बारे में जान कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था। सारी परिस्थितियां एक अजीब सा मानसिक दबाव बना रहीं थी। कोई फोन आता तो पहली प्रार्थना अच्छे समाचार के लिए होती।

सातवें दिन, रात में भोजन के बाद दवाएं खा कर, मैं अपने रूम आ कर लेट गया। किताब पढ़ने की कोशिश की पर मन नहीं लगा। ऑक्सीजन लेवल कुछ कम था, पर खतरे का कोई संकेत नहीं था। पता नहीं कब सो गया और नींद बहुत गहरी थी। न जाने क्या क्या स्वप्न में देख रहा था, जो कभी सोचा भी नहीं था ..….

.........मैं एक नदी के तट पर बैठा था, अचानक लहरें उठने लगी और जलस्तर बहुत बढ गया। पता नही कब मैं मझधार में आ गया। डूब रहा था क्योंकि मुझे तैरना नहीं आता था। तभी दो सुनहरी डॉल्फिन आ गई और मुझे डूबने से बचा लिया। मैं उनको पकड़ कर तैर रहा था... नदी के उद्गम की ओर। बहुत सुंदर तट थे और उनसे सुंदर मंजर। हर तरफ शांति थी अचानक डॉल्फिन मुझे पानी के नीचे ले जाने लगीं । वहां दृश्य अलौकिक थे पर मेरी सांस टूट रही थी। बहुत से लोग सुंदर पात्रों में उपहार दे रहे थे, कोई मोती दे रहा था कोई हीरे। मुझे कुछ भी नही चाहिए था….

फिर मेरी नींद खुल गई, बहुत भारीपन था। नाक और मुंह से सांस नहीं आ रही थी। पसीने से पूरी तरह लथपथ था और घबराहट भी थी। गले को साफ करने की कोशिश की, थोड़ा जोर से खांसा पर राहत नहीं थी। अचानक नजर खिड़की पर पड़ी तो वहां, वही काली बिल्ली बैठी थी जो मुझे बहुत सुंदर लगती थी । रात में, उसकी आंखें बहुत डरावनी लग रही थी। पत्नी को फोन कर, अपने पास बुलाया उन्होंने गर्म पानी, पीने को दिया तो कुछ आराम आया। फिर गरारा किया तो गला साफ हुआ। रात दो बजे अनुलोम विलोम करने की कोशिश करता रहा। बहुत पसीना निकलने से ठंड लग रही थी। इस घटनाक्रम ने मुझे झकझोर कर रख दिया था। मैंने उन लोगों को याद करना शुरू किया जो मेरी उम्र से बड़े और जिन्होंने ने कोरोना को हराया था। अमिताभ बच्चन, गृह मंत्री, मुख्यमंत्री फिर सोचा इनकी जैसी सुविधा मेरे पास कहां। लेकिन आसपास के लोगों में और मित्रों के बहुत से नाम याद आ गए, इससे मुझे बड़ी राहत मिली। अगर ये जीत सकते हैं तो मैं भी जीतूंगा। 


शायद इस बीमारी में छठे, सातवें और आठवें दिन कुछ परिवर्तन होते हैं, जिससे मनोदशा तेजी से बदलती है। इन दिनों में मुझे परिवार का बड़ा सहारा मिला। सारे मिलकर हंसते और हंसाने की कोशिश करते तो माहौल हल्का हो जाता।


मित्रों का अंदाज अलग होता है, एक मित्र ने फोन किया बोला " और बे, क्या हाल?" फिर वो हंसता रहा पुरानी बातें और यात्राएं याद दिलाता रहा। उसकी हंसी मुझे न जाने कहां कहां घुमाती रही और मैं सब भूलकर हंसता रहा।


एक परम मित्र अमेरिका से फोन करता और भावों से भर देता। वो बताता बुखार कुछ नही होता, बस लक्षण होता है। तुम्हारे शरीर के अंदर युद्ध चल रहा है वायरस और श्वेत रक्त कणिकाओं के मध्य। जब जीतोगे ये बुखार चला जायेगा। वो, हर बात को सकारात्मक बना देता।


एक और मित्र ने कहा भाई बस सोचो " मैं ही ब्रह्म हूं, इस ब्रह्मांड का अभिन्न अंश हूं और मैं ब्रह्मांड को प्रेम करता हूं।"


उस मित्र को कैसे भूल सकता हूं, जिसने अटूट सेवा के बाद अपनी ममतामई मां को खो दिया था। अंतिम संस्कार के लिए घाट पर प्रतीक्षारत था,  मैंने सांत्वना देने के लिए फोन किया तो वो मुझे अपना और परिवार का अत्यंत ख्याल रखने को कह रहा था। 


आठवें दिन मैं काफी राहत महसूस कर रहा था। ब्लड टेस्ट रिपोर्ट में कुछ गड़बड़ थी डॉक्टर ने दवा लिख दी। आरटी पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव थी पर पॉजिटिव होने की कोई रिपोर्ट कभी थी ही नहीं। बुखार लंबा चला लगभग बीस दिन। एक दिन मेरे शरीर के अंदर का युद्ध खत्म हो गया। मेरी सेना जीत गई और वायरस हार गया था। स्वास्थ्य विभाग के प्रयास और चिकित्सकों के कड़ी मेहनत के परिणाम भी अब दिख रहे थे। लोग स्वस्थ हो कर घर वापस आ रहे थे। अच्छी खबरें मन की टॉनिक होती हैं। अपने पड़ोसियों और शुभचिंतकों के लिए मन में बहुत आदर उपजा, जिन्होंने हमेशा साहस बढ़ाया और सहायता की। ऐसे भी परिवार थे जो स्वयं वायरस से लड़ रहे थे पर समाज सेवा भी कर रहे थे। 

 

आज मैं फिर अपने लॉन में बैठा हूं, सुहावना मौसम है। गौरैया, मैना, बुलबुल सब गा रही हैं। काली बिल्ली भी कोने में बैठी है और चील बहुत नीचे उड़ रही है। मैगपाई का जोड़ा अपनी धुन में गा रहा है। उसके साथ नन्हा शिशु भी है जिसे वो उड़ना सिखा रहें है। इन सबके बीच उसकी नजर आसमान और जमीन दोनों पर है। वो खतरे को समझते हुए, प्रसन्नता के साथ अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।


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