वारंट
वारंट
उस दिन मैं दफ्तर से घर लौटा था । सामान्य तौर पर जब मैं घर आता हूँ और मेरे पास पर्याप्त समय होता है तो मैं स्नान कर लेता हूँ । यदि मेरे पास पर्याप्त समय नही होता है तो केवल हाथ-पांव धो डालता हूँ । मैं हाथ-पांव धो कर जैसे ही कमरे में आया ; मेरा ध्यान घर के पिछले हिस्से की ओर गया। मेरे घर के पिछले हिस्से में बडी खुली जगह है। यहाँ एक परिवार रहेता है। इस परिवार में चार सदस्य है। डेविडभाइ, मीनाबहन और उनके दो बच्चे । लडके का नाम संजय और लडकी का नाम हेतल।
मेरा ध्यान घर के पिछले हिस्से की ओर क्यूँ गया? क्योंकि मैंने देखा की उस ओर एक हट्टा कट्टा आदमी मोटरसाइकिल पर बैठे बैठे डेविडभाइ और मीनाबहन को कुछ कह रहा था। मैं बाहर निकला और बाद में वो लोग क्या बात कर रहे थे वो सुनने की कोशिश करने लगा। आदमीने व्हाइट शर्ट और खाकी पेन्ट पहना हुआ था। उनकी मोटरसाइकिल पर "पुलिस" लिखा हुआ था। बाद में मैं अपने घर के कमरे में दाखिल हुआ । मैने मेरी मम्मी की ओर देखते हुए कहा, " मीनाबहन के घर पर पुलिस आइ हुइ है, तुम्हें पता है ? "
मम्मी बोली, " नही। मुझे नही पता है। अभी ही आइ हुइ है ? "
मैंने कहा, " हाँ "
कुछ दिन पूर्व डेविडभाइ के घर पर चार-पांच लेनदार आ चढे थे। उन्होंने बताया था की जल्द ही जल्द पैसे नहीं लौटाये गये तो वो पुलिस को इस मामले के बारे में बता देंगे । हुआ भी एसा।
सामान्य तौर पर हमारे यहाँ जब पुलिस आती है तो बहुत कुछ लोगो के दिलोदिमाग पर एक तरह का भय सवार हो जाता है। ठीक उसी तरह डेविडभाइ और मीनाबहन की हालत भी वैसी ही थी। पुलिस उनके आँगन में आइ तो वो गभरा गयें ।
"मीनाबहन कौन है? " पुलिस अधिकारीने सवाल किया।
" मैं हूँ " मीनाबहनने हिचहिचाते हुए जवाब दिया ।
पुलिस अधिकारी के पास मीनाबहन के नाम का वारंट था। दरअसल मामला यह था की मीनाबहनने अलग अलग जगह से लोन ली थी। लोन के हप्ते के भुगतान में याने की रुपये लौटाने में उन्होंने बहोत देर लगा दी थी। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो जब लेनदार रूपये लेने आते थे तो कोइना कोइ बहाना बनाकर वो उन्हें चले जाने को बोलते थे। लेनदार को भी रुपये के लिए मीनाबहन के घर बार बार जाना अच्छा नहीं लगता था। इस झंझट से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने मीनाबहन के खिलाफ पुलिस स्टेशन में एफ आइ आर दर्ज करवाइ थी। मीनाबहनने विभिन्न बैंको से लोन ली थी। इसके अलावा अन्य कुछ व्यक्तियों से भी पैसे उधार लिए थे। वो लोग भी उनके घर बार भार आते जाते रहते थे। मुझे और मेरी मम्मी को पुलिस क्यों आइ थी उसकी वजह पता चल गई ।
उनके घर के बारे में बात करुँ तो ; वो पहले कच्चा था। केवल मिट्टी से बना हुआ था। मीनाबहन के पति का नाम डेविडभाइ । वो ज्यादा पढे लिखे नहीं थे। परिवार की जिम्मेदारी के चलते उन्होंने सातवी कक्षा तक पढाइ करने के बाद स्कूल को अलविदा कह दिया था। उन्होंने गाँव के नजदीक में हीं; उद्योगनगर में नौकरी ढूंढ ली । यहाँ पर वो चपरासी का काम करने लगे। मीनाबहनने भी खेत में मजदूरी करना शुरू कर दिया था। हालांकि मजदूरी का काम हर रोज नहीं मिलता था। किन्तु जब भी मिलता था तब वो जाते थे। इस तरह उनका गुजारा होता था।
मोहल्ले में रहते अन्य लोगों के घरों में कीमती चीजें रहती थी। यह देखकर मीनाबहन को भी इच्छा होती थी की उनके पास भी ऐसी चीज़ें हो। " किसी का बंगला देखकर अपनी झोपड़ी नहीं तोडते " - यह कहावत शायद उनको पता नहीं होगी। और इसलिए वो एसी चीजों की कामना करते थे । उनकी लालच या लालसा बढती ही जा रही थी। इसी दौरान उन्होंने अपने घर से विभिन्न चीजों को बसाने का ठान लिया। पहले तो उन्होंने अपना मकान तोड डाला की जो मिट्टी से बना हुआ था। बाद में पक्का मकान बनवाया ।
यह परिवर्तन देखकर मोहल्ले में रहनेवाले लोगो को पता चलने लगा की डेविडभाइ और मीनाबहन की आर्थिक हालत सुधार पर है। नया मकान बनाने के बाद उसमे टी.वी., रेफ्रीजरेटर, सोफा आदि बसाने का कार्य आरंभ हो गया। हालांकि जब लोनवाला बम फटा तब लोगो को पता चला की सही मायने में बात क्या हैं
पुलिस अधिकारी जब उनके घर पे आए थे तब डेविडभाइ की सास भी कुछ दिनो के लिए उनके घर पर रहने के लिए आइ हुइ थी। उनको जलते हुए ह्रदय के साथ यह तमाशा देखने की नोबत आइ। अपनी लडकी के ऐसे कृत्य का उन्हें पता चल गया । लोभ एवं लालच की वजह से इन्सान के जीवन में कितनी बडी आपत्ति आ जाती है उसका उन्हें अनुभव हुआ ।
हालांकि उनको कहा पता धा की लडकी के घर पे जाने के बाद ऐसा तमाशा देखना पडेगा। जब उनके घर पर पुलिस अधिकारी आयें तो वो मकान के अंदर के कमरे में नही गयें बल्कि आँगन में ही बैठे । मीनाबहन को वारंट के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, " यदि आप मीनाबहन हो तो जान लो की आप के नाम का वारंट निकला हुआ है। जल्द से जल्द कोइ जामीन ले के आओ वरना हमें आप को पुलिस स्टेशन ले जाना पडेगा । "
इसके बाद मोहल्ले में थोडी देर के लिए चहल-पहल सी हो गई । " जामीन के लिए कीस को बुलाया जाये " मीनाबहनने मन ही मन सोचा। इसी दौरान डेविडभाइ घर से निकलकर मीनाबहन की देरानी के घर पहोचे । बाद में देरानी को साथ में लेकर आयें । देरानी को पुलिस अधिकारी के सामने रुबरु किया गया। पुलिस अधिकारीने एक डाकुमेन्ट बाहर निकाला। बाद में उन्होंने देरानी को बोला की उन पर अपने हस्ताक्षर करें । यहाँ पर मामला खत्म हो गया। किन्तु कुछ दिनों के बाद मैने और मेरी मम्मीने ऑब्जर्व किया की डेविडभाइ के परिवार के सभी सदस्य गुमसुम रहने लगे। मीनाबहन की लडकी हेतल भी अब बडी हो गई थी। वो भी छोटी छोटी बातों को लेकर अपना दिमाग खो बैठती थी। केवल खेत मजदूरी पर डिपेन्ड रहने का अब कोई मतलब नहीं था।
इसलिए एक दिन डेविडभाइ के साथ मीनाबहन भी उद्योगनगर में गये। डेविडभाइ जहां काम करते थे वो जगह आते ही वो मीनाबहन को "जाता हूँ " कहते हुए अद्रश्य हो गये। अब मीनाबहन इधर उधर चक्कर काटने लगे। उनको काम की सख्त जरूरत थी। इसी दौरान उनकी नजर एक बोर्ड पर टिकी। उस पर लिखा था: आवश्यकता है । एक हैल्पर की। उनके चहरे पे मुस्कुराहट सी छा गई । वो जहां पर बोर्ड लगाया हुआ था उस कारखाने के अंदर चले गये। वहां पहुंचते ही उनको मालूम हुआ की यह कारखाना तो एक गृह उद्योग है। उनकी नजर में कुछ महिलाएं आइ। मीनाबहनको मालिक की कैबीन में बुलाया गया। उनकी नौकरी पक्की हो गई ।
बाद में तो उन्होंने नौकरी पर जाना शुरू कर दिया। इन दिनों उनके दिमाग में कर्ज का प्रोब्लेम कैसे हल किया जाये उसके बारे में ही विचार घुम रहे थे। लडका संजय भी परिवार को आर्थिक रूप से सहाय करने हेतु झेरोक्श की शोप में नौकरी लग गया। कर्ज का दुःख कैसा होता है वो तो जिस के सर पे ये होता है ; उसको ही पता होता है। मीनाबहन समेत सभी के मन में एक तरह का संकोच पैदा हुआ था। इसके कारन उन्होंने हमारे घर पे आने-जाने का भी बंध कर दिया था।
एक दिन की बात। डेविडभाइ हमारे घर पे आए । मुझे आश्चर्य हुआ। "संकोच" कहाँ उड गया। मैने मन ही मन पूछा। बाद में मीनाबहन भी चले आये । डेविडभाइने अपना मोबाइल मेरे हाथ में थमाया और बोले, " देखना। इसमें एक एस एम एस (SMS) आया हुआ है। " इसमें क्या लिखा हुआ है ये मुझे पता नही चलता। तुम्हारी अंगरेजी काफी अच्छी है इसलिए सोचा की तुमको ही दिखाऊँ ।"
पति-पत्नी दोनो जानते थे की मेरी अंग्रेजी काफी हद तक अच्छी है। मैने इनबोक्स में जा कर संदेश पढा तो पता चला की यह संदेश तो प्रोविडन्ट फंड के संदर्भ में था। ईस मामले में मैने डेविडभाइ से कुछ सवाल किये तो पता चला की उन्होंने थोडे दिन पूर्व ही पी.एफ. के लिए आवेदन किया था। उनके द्वारा किया गया आवेदन स्वीकृत हो गया था। मैने यह बात डेविडभाइ और मीनाबहन को बताइ। उन्होंने औपचारिक बातें की। बाद में चले गये। करीब एक हप्ते के बाद हमें जानने को मिला की उनको पी.एफ. के रूपये प्राप्त हो गये है। कर्ज का भुगतान कर दिया गया। परंतु संपूर्ण कर्ज नहीं दे पाये। क्योंकि कर्ज के रूपये ज्यादा थे। कर्ज के कारन पैदा हुइ चिंता से उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर हुआ था। परिवार के उपर चिंता के बादल छाये हुए थे। अपने दुःख की बात बताये भी तो किसे बतायें । उनके ऐसे हालात देखते ही मुझे ऐसा लगा की अब आगे क्या होगा!
एक दिन की बात। मोहल्ले में फाधर प्रार्थना करने आये। फाधर महिने मे एक बार प्रार्थना करने आते है। डेविडभाइ के परिवारने प्रार्थना में हिस्सा लिया। प्रार्थना के समय फाधर ने जो बात बताइ वो बात अत्यंत महत्त्वपूर्ण थी। प्रार्थना में भाग लेनेवाले सभी लोगो को फाधरने बताया की मनुष्य को कभी भी कीसी चीज का लालच रखना नहीं चाहिए । अनिती से प्राप्त किया गया धन मुसीबत को आमंत्रित करता है। उन्होंने यह भी समझाया की भौतिक संपत्ति कभी भी सुख का एहसास कराती नही है। प्रार्थना पूर्ण होने के बाद फाधर प्रत्येक परिवार से रुबरु हुए ।
जैसे ही फाधर मीनाबहन के घर में दाखिल होते है की ; परिवार के सदस्य उनका सत्कार करते है। फाधर को बैठने के लिए कुर्सी दी जाती है। इसके बाद औपचारिक बातें चलती रही। फाधरने मीनाबहन के चहेरे को पढने की कोशिश की।
" मीनाबहन, कोइ समस्या पैदा हुइ है आप के परिवार में? " फाधरने पूछा।
मीनाबहन हिचहिचाये। बाद में बोले, " फाधर, केवल एक गलती के कारन पूरे परिवार पर दुःख के बादल छाये हुए है।
" कैसी गलती और किस से हुई? " फाधरने पूछा। मीनाबहनने सारी दास्तान बता दी। फाधर के सामने उन्होंने अपने मन के अंदर जो बातें भर रखी थी उसे बयान की। बाद में "फाधर , एक कप चाय हो जाये" कहते हुए वो किचन में चले गयें ।
फाधरने उनको रोका। लेकिन रुके वो मीनाबहन नही। फाधरने चाय पी। उसके बाद वो कहने लगे, " मीनाबहन, मेरी एक बात ध्यान से सुनना। जिंदगी में कभी भी लालच करना नहीं । तुम्हें अनुभव हो गया है की तुम्हारी एक गलती के कारन पूरे परिवार को कितना भूगतना पड रहा है। "
इस अवसर पर फाधरने मीनाबहन और डेविडभाइ के सामने आसमान में उडते पंछी का दृष्टान्त रखा और बताया की इन पंछी की तरह हमें भी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह सुनने के बाद मीनाबहन देवस्थान के सामने दो हाथ जोडकर खडे हो गये। उन्होंने फाधर की ओर नजर डालते हुए कहा, " फाधर, आपके अच्छे सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद । मैं इसी क्षण संकल्प लेती हूँ की बाकी रही जिन्दगी में कभी भी गलत कार्य नहीं करुँगी "
"मीनाबहन और डेविडभाइ, आपके धर पर आ कर मुझे बहुत खुशी हुई है। मैं आपके लिए प्रार्थना करुँगा। " कहकर फाधर चले गये। इसके बाद मीनाबहन और डेविडभाइने एक नई जिन्दगी जीना शुरु किया। वो अपने परिवार में नियमित रूप से प्रार्थना करने लगे। पति पत्नी और लडके संजय की नौकरी ठीक तरह से चल रही थी। अच्छी आय हो रही थी। उन्होंने कुछ महीनों तक रूपये इकठ्ठे किये। बाद में बाकी रहे कर्ज का भुगतान करने के बाद वो हंमेशा के लिए कर्ज की खाइ से बाहर निकल गयें । उनके परिवार में शांति का साम्राज्य फैलने लगा। सदस्यों के विचारों में भी परिवर्तन देखने को मिला। प्रार्थना के कारन परिवार के प्रत्येक सदस्य के मन एवं शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पडने लगा। संजय ने अपनी पढाई फिर से आरंभ की।
