उज्ज्वला
उज्ज्वला


आज की सुबह हर सुबह की तरह तो नही थीं पर आज की खिली धूप न जाने किसको नया जीवन देने वाली थी।
आज सुबह घर से कुछ दूर मैदान में कुछ लोगों का हजूम इक्कठा हुआ दिख रहा था।
औऱ हो भी क्यों न एक बच्ची की रोने की आवाज़ जो आ रही थी उस मैदान के किसी कोने में।
हाँ एक बच्ची थी वो भी शायद दो दिन की रही होगी उसके कोमल से हाथ पैर आँखें तो उसकी शायद खुली भी नहीं थी रोते बिलखते हर शख्स के जुबाँ पे एक ही बात, हाय कितनी निर्दयी माँ होगी जो उसे इस तरह से छोड़ गई ।
क्या उसके आँसू भी सुख गए हैं जो उस बच्ची का रोना देख के भी इतनी निर्ममता के साथ उसे इस तरह छोड़ गई ।
क्या सचमुच वो इतनी निर्मम थी कि अपने ही कलेजे के टुकड़े को छोड़ कर चली गई।
थोड़ी देर बाद वहाँ तहसीलदार मैडम औऱ कुछ पुलिस वाले आते हैं और उस बच्ची को उठा कर अस्पताल पहुँचाया फिर पुलिस आसपास के लोगो से पुछ ताछ करती हुई अपनी कार्यवाही कर ही रही थी कि अस्पताल से फ़ोन आया कि बच्ची एक दम ठीक है औऱ स्वस्थ्य भी। सबने थोड़ी राहत की सांस ली पर सबके ज़ुबा पे एक ही सवाल कौन है ये बच्ची? कौन है इसके माता पिता ? किसी को ख़बर नहीं औऱ किसी को ख़बर होती भी तो को बताता के ये बची अमुक अमुक व्यक्ति की है। खैर जो भी हो जिसकी भी बच्ची हो आज का सवेरा उसके जिंदगी का एक नया सवेरा था आज उसे एक नई ज़िन्दगी मिली और एक नया नाम " उज्जवला "हां यही नाम दिया अस्पताल वालों ने उसे, और ईश्वर करे कि वो और उसकी ज़िन्दगी हमेशा उज्वल रहे औऱ वो बच्ची हमेशा सूरज की रोशनी सी चमकती रहें।