ख़ामोशियाँ
ख़ामोशियाँ


प्रिय डायरी
एक बात कहूँ कभी कभी एक चुप्पी भी हज़ार बातें कह जाती हैं,और न जाने कितने ही हज़ार हज़ार शब्दों वाले बहस को भी खत्म करने का मादा रखती है, आखिर क्यों न हो कोई एक चुप्पी को बड़ी ख़ामोशी से समझ जाता है, तो कोई हज़ार शब्दों का एक मतलब भी नहीं समझ पाता। हाँ मैं इन कुछ सालों में हँसना भूल गई हूं पर मैंने भी चुप रहने की आदत डाल ली हैं या यूं कहूं तो आदत डालनी पड़ती है।
मन मारकर चुप रहना शांत रहने या ख़ामोश रहने सा नहीं है। जिस चुप्पी में थोड़ा सा संयम हो वह एहम हैं।खुद के लिये और दूसरों के लिए।
कभी कभी हम जैसे लोग जिन्हें शब्दों से खेलना अच्छा लगता है, वो अपने जिंदगी के मायने खुद ही तय करते हैं ,अपने हिसाब से और जितना हो सके जीवन के नए सिरे से जीने की उम्मीद भी देते है। ऐसा भला क्यों न हो जिंदगी से खूबसूरत और कोई चीज़ हो ही नहीं सकती। जिंदगी के हज़ारों ख़ुशनुमा रंग में से एक खूबसूरत रंग है "उम्मीद" जिसे हम उजास भी तो कहते है।
सचमुच जिंदगी की पहेली में कौन सी पहेली ऐसी है जिसका जवाब ही नहीं... ऐसी भी चीज़ नहीं जिसे पाया न जा सके या जिसे पाने का प्रयास न किया जा सके .....अरे भई यही प्रयास तो हमे और हमारे जिंदगी में एक उम्मीद एक नया किरण ले के आता है जो जीवन को और खूबसूरत बनाता है और उसे खूबसूरत बनाने में भी हमारी मदद करता है ।
और क्या कहूँ यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है
गुड नाईट
प्रिय सखी