STORYMIRROR

Prachi Raje

Drama Inspirational

4  

Prachi Raje

Drama Inspirational

त्यौहार का सार

त्यौहार का सार

6 mins
379

"तो क्या धनतेरस पर छुट्टी नहीं लोगी? अरे, इतना बड़ा त्यौहार और एक दिन की भी छुट्टी नहीं, इसका क्या मतलब?", आश्चर्यचकित स्वर में मेरी सासुजी ने पुछा।

"मम्मीजी, बस दो दिन की छुट्टी मिलती है, उससे ज्यादा नहीं। भाईदूज पर भी ऑफिस का काम रहेगा। कम से कम यही कर सकती थी की बॉस को घर से ही काम करुँगी ये कह कर आयी हूँ। काफी नहीं है क्या?", मैंने भी जरा स्पष्ट शब्दों में और ऊँची आवाज़ में बोला।

सासुजी का चेहरा उतर ही गया था, पर अब, शादी के तीसरे साल में, वो जानती थीं मेरे साथ तर्क-कुतर्क करके कुछ नहीं मिलेगा। थोड़ी नाराज सी शकल बना कर बैठी रहीं कुछ देर, फिर धनतेरस की तैयारियों में लग गयी। मैं भी एक कप चाय लेकर अपने लैपटॉप के सामने जा बैठी।

 कल धनतेरस है। बचपन से ही दिवाली मेरा सबसे प्रिय त्यौहार रहा है; बहुत धूम-धाम से मनाती थी अपने मायके में, अपने भाई-बहनों और माता-पिता के साथ। दस-बारह दिन पहले से ही हम सब जोरदार तैयारियों में जुट जाते। यहाँ मेरे ससुराल में भी कुछ ऐसा ही माहौल रहता है; पर अब मेरा बचपन कहाँ रहा जो मैं सबके साथ जी भर के त्यौहारों का आनंद लूँ ? ऑफिस, काम, रोज़ का ट्रैवेल, फिर घर आकर घर के छोटे-मोठे काम .... बस .... गुजर गया दिन ! मैं अपनी कंपनी में बहुत अच्छे औहदे पर कार्यरत हूँ और सच कहूँ तो मुझे मेरा काम और मेरी नौकरी बहुत पसंद है। दिन-रात , कभी-कभी १२-१३ घंटे, ऑफिस में काम करती रहती हूँ। यूँ ही नहीं बिज़नेस डेवेलपमेंट मैनेजर की पोस्ट मिली मुझे। कितना सम्मान होता है मेरा मेरी कंपनी में ! पर ये सब बातें मेरी सास की समझ में नहीं आती। हर वक़्त मुझसे बस ऐसे ही सवाल करती रहती हैं वो, "घर कब तक आओगी?", "खाने में क्या बनाना है?", "शनिवार को मेरे साथ मार्केट चलोगी?" ........ आज तक कभी ये नहीं पूछा की ऑफिस का काम कैसा चल रहा है; तुम्हे वहाँ कोई परेशानी होती है क्या? .....

खैर ! जो हमेशा ही सिर्फ एक गृहिणी रही हैं, वो क्या समझेंगी मेरी ऑफिस की परेशानियाँ ! मेरे पति और ससुर को इन सब बातों में दिलचस्पी होती है और मैं उन्ही दोनों से ये बातें कर लिया करती हूँ।

 धनतेरस का दिन आया। पूजा की सारी तैयारियाँ सासुजी ने ही की। हर साल हमारे घर में ढेर सारी मिठाइयाँ और नमकीन वो खुद बनाती हैं। पर इस साल उनकी तबियत थोड़ी ठीक नहीं, इसीलिए ये सब हमने बाहर से ही मंगवाना ठीक समझा। मैं बस पूजा के पहले ही घर पहुँची थी। पूजा पूरी होते ही बिल्डिंग की कुछ महिलाएँ "दिवाली की शुभकामनाएं" देने घर पर आयी। ये सब मेरी सासुजी की बहुत अच्छी सहेलियाँ हैं। मैं वही डाइनिंग टेबल पर अपना लैपटॉप लेकर बैठ गयी थी।

सुनीता आंटी ने सासुजी से पूछा, "इस बार नमकीन और मिठाइयाँ घर पर बनी नहीं लग रही !"

सासुजी ने अपनी तबियत के बारे में बताया। तुरंत ही मोहिनी आंटी बोली, "तो अपनी बहु से बनवा लेती ! अरे बहुएँ होती किस लिए हैं ?" , इस पर सब आंटियाँ हस पड़ी। मैंने सासुजी के चेहरे की ओर देखा, उनका वही भाव था जो एक दिन पहले मेरी छुट्टी पर चर्चा करते वक़्त था। मैं जानती थी अब ये सब मिलकर मेरी बहुत बुराई करने वाली हैं और मुझे सब सुनना होगा। मेरी सासुजी का स्वाभाव भी ऐसा नहीं हैं जो अपनी बहु के पक्ष में कुछ बोले। मैं बहुत हिम्मत करके वही बैठी रही। दिवाली की मिठाइयाँ खाते-खाते सब आंटियों ने अपनी कड़वी जबान से मुझ जैसी "आलसी" बहुओं के खूब तारीफों के पुल बांधे। "ये आजकल की लड़कियाँ" ... बात-बात पर ये कह कर मुझे संबोधित किया जा रहा था। बात को टालने के हेतु से बस एक बार मेरी सासुजी ने मुझे चाय बनाकर लाने का इशारा किया। मैं तुरंत उठ गयी क्योंकि मुझसे वहाँ बैठा नहीं जा रहा था। आंटियों की हसी-ठिठोली अभी भी चालू थी।

लगभग १५ मिनिट बाद मुझसे और सहन नहीं हो रहा था। गरमा-गरम चाय के साथ अब आंटियों को मैं गरमा-गरम बातें सुनाने के हेतु से किचन से बाहर आयी। तभी ....

मेरी सासुजी जी जोर से बोली, "बस कर दो अब तुम सब। दिवाली के दिन मेरे घर आकर, हमारी मिठाइयाँ खाकर, मेरी इतनी गुणवान बहु की बुराइयाँ करे जा रही हो ! तुम सब जानती हो, वो कितनी बड़ी कंपनी में कितने बड़े औहदे पर काम करती है ? ये पता है तुम्हे उसे कितनी ज्यादा तनख्वा मिलती है ? इतनी मेहनत करके अपने बल पर अपने पैरों पे खड़ी मेरे घर की लक्ष्मी का आज दिवाली के दिन अपमान नहीं होने दूंगी। तुम सब मेहमान हो इसलिए कुछ बोल नहीं रही थी। पर मेरी लक्ष्मी जैसी बहु को और ताने मारे तो त्यौहार के दिन ही मुझे तुम सब को घर से जाने को कहना पड़ जायगा।"

मोहिनी आंटी फिर बोली, "अरे हम तो बस मजाक कर रही थीं। तुम तो बहुत सीरियस हो गयी। और तुम्हे तो इस तरह जवाब देते हमने कभी नहीं सुना है, पद्मा। आज क्या हो गया है तुम्हे ?"

मेरे हाथ से चाय का ट्रे लेकर टेबल पर रखते हुए सासुजी फिर बोली, "कल मैं अपनी बहु से थोड़ी नाराज़ थी की दिवाली होकर भी ये छुट्टियाँ नहीं लेती, घर पर आकर भी लैपटॉप पर लगी रहती है। पर आज तुम सब की बातों ने मुझे ये एहसास दिलाया की दिवाली पर हम सिर्फ तस्वीर वाली लक्ष्मी की पूजा करते हैं और जो हमारी गृहलक्ष्मी है उसे ताने देते हैं, उससे नाराज़ हो जाते हैं, यही नहीं ... कई घरों में तो उसका कितना अपमान होता होगा। बहु काम में बिज़ी है तो क्या हुआ, कमा रही है, मेहनत कर रही है हमारे ही घर के लिए ना ? इसे ही तो सही अर्थ से घर की लक्ष्मी होना कहते हैं ! क्यों ?"

सब औरतें चुप हो गयी थी, पर मैं रो पड़ी। मेरी सासुजी ... नहीं, मेरी मम्मीजी ने मेरी पीठ पर हाथ फेरा। मैंने अपने आँसू रोके और मम्मीजी से कहा, "आज तक आपने मेरी नौकरी की, मेरे काम की कभी पूछताछ भी नहीं की। मुझे अक्सर ये बात बुरी लगती थी पर आज आपने ये दिखा दिया की आप मुझसे कितना प्यार करती हैं। शायद आपको थोड़ी घरेलु बहु की अपेक्षा थी और मैं वैसी नहीं हूँ पर आज आपने मेरे काम का जितना आदर किया है, मैं भी आपसे वादा करती हूँ, सही मायने में आपकी गृहलक्ष्मी बनकर दिखाऊँगी" हमारी सास-बहु की बातें सुनकर सारी आंटियाँ भी खुश हो गयी। किसी के मन में कोई बैर नहीं था और वो मेरी सास के विचारों की तारीफ करने लगी। इसी बात पर मैंने भी सब का मुँह मीठा कराया और सबको प्यार से चाय दी।

जब सारी महिलाएँ जाने लगी, तब मैंने कहा, "एक खुश-खबर थी जो मैं अपने पति को सबसे पहले बताने वाली थी, पर अब यही आप सबको बताती हूँ"। मैंने अपनी मम्मीजी का हाथ पकड़ा और कहा, "मुझे कंपनी की तरफ से दिवाली बोनस के तौर पर डेढ़ लाख रुपये मिले हैं"। सब की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। सब मुझे पार्टी देने के लिए कहने लगी। मैंने भी खुशी से कहा, "जरूर दूंगी, पर दिवाली के बाद मैं पहले मम्मीजी को कही विदेश घूमाने ले जाऊँगी"।

मेरी ये दिवाली सबसे खास साबित हुई और मुझे हमेशा याद रहेगी। पुराने रिश्तों को नयी परिभाषा मिल गयी। आखिर दिवाली के सही मायने और है ही क्या ? अपने परिवार के साथ प्यार भरे मीठें पल। यही तो होता है त्यौहार का सार !


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama