करोड़पति
करोड़पति
कहने को तो मैं करोड़पति हूँ, पर पूरी उम्र खुद को कंगाल ही मानता आया हूँ| मेरी पत्नी जीते-जी, हर वक़्त मुझसे यही कहती,"मेरे अकाउंट में और पैसे दाल दीजिए| इतने से मेरा क्या होगा"? मेरे तीनों बच्चें भी ऐसे ही हैं| बेटों ने सिर्फ मेरी कमाई पर ऐश की| बहुएँ तो छोड़िये, मेरी अपनी बेटी भी सिर्फ पैसों की लालच में इतने साल मुझसे रिश्ता बनाये हुए थी| मेरे पुराने वकील एवं मित्र ये सब बातें जानते थें| मुझे याद है जब मैं अपनी वसीयत बनवा रहा था; सब १० दिनों तक मेरे आगे-पीछे घुमते रहें| पर मैंने मेरी वसीयत बनवायी और सब से छुपा कर रखी| वकील ने भी मेरी मृत्यु तक इस राज़ को सुरक्षित रखने का वचन दिया था|
आज, उम्र के ८० वर्ष पूरे करने के बाद, मैं मर गया हूँ| मेरे ख़ास नौकरों ने मुझे अंतिम संस्कार के लिए तैयार किया| बढ़िया-सा शर्ट-पैंट, टाई और मेहेंगा सूट पहनाया मुझे मेरी अंतिम यात्रा पर| शहर भर से मेरे कई शुभचिंतक मुझे देखने आये, पर मेरे अपने बच्चे सिर्फ मेरे वकील को घेरे हुए थें| वे जानना चाहते थें की वसीयत कहाँ हैं और उन्हें कब मिलेगी| उनमें से एक भी, एक पल के लिए भी मेरे शव के पास नहीं आया, न मुझे छूआ, न गले लगाया| आते तो पता चलता; वसीयत तो वकील ने मेरी जेब में डाली हुई थी, जो उन लोगों ने मुझसे जल्दी-जल्दी छुटकारा पाने के चक्कर में मेरे साथ ही जला दी| १३ दिन ढूंढ़ने के बाद वकील ने उन्हें ये राज़ बताया, "अगर एक बार भी गौर से अपने पिता को देख लेते, या उनके पास चले जाते, तो वसीयत मिल जाती! अब बैठो हाथ मलते| कुछ नहीं आने वाला तुम सब के हिस्से में|
उस दिन मेरे सब बच्चें सही मायनों में मेरी मृत्य पर रोए !
