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Prachi Raje

Children Stories Inspirational

3  

Prachi Raje

Children Stories Inspirational

घोड़ा और हाथी

घोड़ा और हाथी

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एक राज्य में एक घोड़ा और एक हाथी रहते थे। दोनों ही उस राज्य के महाराजा की सेवा में थे |  घोड़े का अस्तबल और हाथी का विश्राम-स्थान बिलकुल आमने-सामने था। जब सारे सिपाही और अन्य राज-सेवक रात को सोने चले जाते, तब घोड़ा और हाथी जी भर के एक-दूसरे से बातें करते, एक-दूसरे को अपना हाल-चाल बताते। धीरे-धीरे उन दोनों में थोड़ी बहुत दोस्ती भी हो गयी थी। पर साथ ही साथ, एक समस्या भी उत्पन्न हो रही थी।

घोड़ा महाराज का बहुत ही प्रिय था। महाराज हर रोज उस घोड़े पर बैठकर शिकार करने जाते थे। शिकार पर जाने से पहले घोड़े को अच्छी तरह से खिलाया-पिलाया जाता था ताकि उसे पूरा दिन भागने के लिए शक्ति मिले। उसके मनपसंद चने और हरी-भरी पत्तियाँ रोज उसे बड़े प्यार से खिलाई जाती थीं। रात को जब घोड़ा शिकार से लौटता, तब हाथी को बढ़ा-चढ़ाकर पूरे दिन के समाचार सुनाता। कहता था , "आज तो महाराज मुझसे बहुत खुश हुए। मेरी तेज रफ़्तार के कारण ही वे आज एक सुन्दर से हिरण का शिकार कर पाए।" कभी कहता, "आज तो महाराज को मैंने बहुत तेज भगाया, उन्होंने खुश होकर मुझे 'शाबाश' कहा और मेरी बहुत प्रशंसा की।" इस प्रकार की बातें सुनने की अब तो हाथी को आदत हो गयी थी। उसे तो महाराज पूछते भी नहीं थे; न उसकी कभी खबर लेते, और न ही उसकी रोज-रोज प्रशंसा करते थे। हाथी मन ही मन उदास तो होता था, पर कभी उसने घोड़े से किसी प्रकार की ईर्ष्या नहीं की। उलटा घोड़े की ख़ुशी में वो भी खुश हो जाता था। कई महीने हो गए थे, हाथी को तो कभी कोई सेवक घुमाने भी नहीं ले गया, पर घोड़े की सैर के किस्से सुन कर हाथी भी अपना मन संतुष्ट कर लेता।

पर इन्हीं सब बातों का अब एक दुष्परिणाम भी होने लगा था !

घोड़े को अब बहुत घमंड हो गया था। वह अब हाथी का मजाक उड़ाने लगा। कहने लगा, "तुम्हारा यहाँ काम ही क्या है, महाराज को तुमसे कोई मतलब नहीं। वे सिर्फ मेरी परवाह करते है।" इतना ही नहीं, अपनी तेज रफ़्तार पर घोड़े को बहुत गुरूर होने लगा। वो हाथी को कहता, "मोटे हाथी, तू तो हिल भी नहीं सकता, मेरे जैसी रफ़्तार तेरी कहा, मैं जितने काम आता हूँ उतना तू कभी नहीं आ सकता। मुझे देखो ! मेरी सुनहरी पूँछ, सोने जैसी खाल, तेज, पतले-पतले पैर ..... और खुद को देखो। मुझे खाने में ढेर सारे चने मिलते है और तुम्हें गले हुए २-४ केले ...... हाहाहाहा।"

बहुत हँसता था घोड़ा हाथी पर।

पर हाथी ने कभी अपना धैर्य नहीं खोया। हाथी को अपने आप पर विश्वास था और वो अपनी उपयोगिताओं को जानता था। उसे इंतजार था तो बस... सही समय का !

और फिर, दशहरे का पवित्र दिन आया।

उस दिन भी, घोड़ा शिकार पर जाने के लिए सुबह से ही तैयार था, पर कोई सेवक उसकी तरफ आया ही नहीं। सारे सेवक सुबह-सुबह हाथी को नहला-धुलाकर साफ़ करने में जुट गए। उसके बाद उसपर रेशमी वस्त्र डाले गए और देखते ही देखते उसे बहुत आकर्षक तरीके से सजाया गया। उस पर महाराज के बैठने के लिए एक मुलायम मखमली कपड़े की राजगद्दी सजाई थी और एक सुन्दर-सी छतरी भी लगायी गयी। कुछ सेवक आ कर हाथी पर रंगों से आकर्षक चित्र बनाने लगे। उसे छन-छन बजने वाले घुंघरू पहनाये गए। हाथी मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ।

तभी घोड़े ने हाथी से पूछा, "हाथी भाई, ये सब क्या हो रहा है ? तुम्हें इतनी सुंदरता से क्यों सजाया जा रहा है ?"

उस पर हाथी ने बड़े प्यार से जवाब दिया, "हर वर्ष, दशहरे के त्यौहार के दिन महाराज मुझपर बैठ कर पूरे राज्य की सैर करते है। इतना ही नहीं, उन्हें अपनी पीठ पर बैठाकर मैं जहाँ भी जाता हूँ वहाँ लोग मेरी पूजा करते हैं, मुझे खाने-पीने के लिए अनेक पकवान चढ़ाते हैं और मुझे सहलाकर बहुत प्यार भी करते हैं।"

घोड़े ने उदास स्वर में पूछा, "तो क्या आज महाराज मुझपर बैठकर शिकार करने नहीं जायेंगे ?"

हाथी ने कहा, "नहीं भाई, आज का दिन वो सिर्फ मुझपर सवारी करेंगे, मुझे बहुत प्यार करेंगे।"

इतने में हाथी की सवारी निकल गयी. घोड़े ने दूर से सब कुछ देखा, कैसे महाराज ने हाथी को पुचकार कर प्यार किया, इतना ही नहीं उसे प्रणाम भी किया. फिर वे उसपर लगी गद्दी पर बैठकर राज्य की सैर करने निकल गए। उस दिन घोड़े को किसी ने नहीं पूछा।

शाम होने को आयी। सुन्दर, सुशोभित हाथी सेवकों के साथ अपने विश्राम-स्थान लौटा। उसके साथ-साथ भेट में चढ़ी हुई खाने की चीज़ें भी वही लायी गयी। घोड़ा सब कुछ देख रहा था। एक सेवक ने कहा, "चलो भाई, गजराज जी को आराम करने दो", इतना कहते ही सब हाथी को सुलाने के लिए तैयार करने लगे और अपना काम पूरा करके वहाँ से चले गए।

घोड़ा बहुत उदास लग रहा था। उसे देखकर हाथी बोला, "अरे भाई, उदास क्यों होते हो ? तुम्हें तो हर रोज ही इतना महत्व दिया जाता है, फिर एक दिन अगर मुझे मिल गया तो इसमें क्या मुसीबत आ गयी ?"

घोड़ा धीमी-सी आवाज़ में बोला, "पर मुझे इस तरह पूरे राज्य के सामने महत्व नहीं मिलता, मेरी तो तुम्हारी तरह कभी जयजयकार नहीं होती। तुम्हें कितना सुन्दर सजाया गया, इतना कुछ खाने को मिला, महाराज ने तो तुम्हें प्रणाम भी किया .... मेरे साथ तो ऐसा कभी नहीं हुआ, और शायद न ही कभी होगा।"

घोड़े के उदास स्वर से हाथी के मन में करुणा जागी। वह घोड़े की बोली हुई सारी कड़वी बातें भूल गया और उसे समझाने लगा, "देखो भाई, सबकी अपनी अपनी विशिष्टता होती है। तुम तेज हो - मैं मोटा हूँ। पर जो काम तुम कर सकते हो वो मैं नहीं कर सकता, वैसे ही मेरे इस राज्य में जो कार्य हैं उन्हें तुम कभी नहीं कर पाओगे। महाराज तुमसे ज्यादा प्यार करते है या मुझसे, इस राज्य में तुम्हारी ज्यादा जरूरत है या मेरी ....... ये सब बातें महत्वपूर्ण नहीं है। जरूरी तो बस ये है की हम अपने गुण, अपनी उपयोगिता को पहचाने और उसके दम पर किसी और को कम न समझे। किसी और की विशेषताओं का मजाक न उड़ाए। हर एक व्यक्ति, हर एक प्राणी इस सृष्टि के लिए किसी न किसी तरह महत्त्वपूर्ण है। बस यही बात अब तुम भी समझ लो, और कल से जब महाराज तुमपर बैठकर शिकार करने जाये, तब वापस आकर मेरा मजाक मत उड़ाना, मेरे भाई !"

घोड़े को अपने व्यवहार पर बहुत शर्म आयी, उसने हाथी से माफ़ी मांगी और दोनों में फिर से पक्की दोस्ती हो गयी।



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