तुम सहज क्यों नहीं
तुम सहज क्यों नहीं


कोरोना महामारी में लोगों के तरह तरह के व्यवहार सामने आने लगे lहर कोई इस युद्ध को अपने अपने डर के हथियार से लड़ रहा है जिसे जितना अधिक जिसे डर है उसका कोरोना से लड़ने का हथियार भी उतना ही धारदार है। जैसे हमारे पड़ोस के शर्मा जी। शर्मा जी शुरू से ही अपनी पत्नी का कहना मानते थे लेकिन इन दिनों श्रीमती शर्मा अपने परिवार की सेनापति है और शर्मा जी व बच्चे उनकीसेना ।
जब से कोरोना महामारी शुरू हुई उस दिन से श्रीमती शर्मा ने दूध के पैकेट नहीं मंगाए पैकेट में कोरोना वायरस जो आ सकता है ।बच्चों और पति के छत पर जाने पर भी रोक लगा दी गई ,छत पर कपड़े सुखाने बंद कर दिए गए क्योंकि हवा में वायरस है और वह कपड़ों पर चिपक सकता है ।सब्जी खरीदनी बंद कर दी गई मजबूरी में कुछ खरीदना भी पडे तो पैसे दरवाजे से 2 मीटर दूर रख दिये जाते और बचे पैसे भी वापस लेना बंद कर दिया। घर के सामानों को ऑनलाइन मंगा कर 4 दिन तक बाहर धूप में रखा जाता क्योंकि उन्होंने टीवी पर देखा था कि वायरस 72 घंटे तक जीवित रहता है अखबार लेना बंद कर दिया गया अखबार में भी वायरस आ सकता है, कपड़े ईसत्री के लिये देनेबंद कर दिए गए । गाड़ी साफ करने वाले भैया की छुट्टी कर दी गई ।कामवाली बाई को भी छुट्टी दे दी गई। इसी तरह के चमक भरे काम करते हुए 2 महीने बीत गए ,तीसरे महीने में श्रीमती शर्मा में डिप्रेशन के लक्षण दिखाई देने लगे चौथे महीने में शर्मा जी और बच्चे जैसे आजाद हो गए और निशा शर्मा की आज्ञा का उल्लंघन करने लगे ।5 वे महीने में कोरोना की महामारी खत्म हो गई मिसेज़ शर्मा का डिप्रेशन का इलाज अभी भी चल रहा है और शायद उम्र भर चलता रहे ।काश !तुम सहज रह पाती।