तुम नहीं समझोगे
तुम नहीं समझोगे
तब मेरी उम्र यही कोई 8 या 9 साल रही होगी। एक शाम की बात है, मैं अपने घर के अंदर वाले कमरे में गया। कमरे में अंधेरा था। मैंने देखा कि दादा मसहरी पर बहुत खामोशी से लेटे हुए छत की ओर एकटक देख रहे थे। शायद उन्हें मेरे आने का एहसास भी नहीं हुआ था।मैंने अचानक कमरे में जलती लालटेन की लौ तेज कर दी। उन्होंने चौंकते हुए मेरी ओर देखा और अपने हाथों से अपनी आंखों से निकलने वाले पानी को पोंछने लगे। शायद वह रो रहे थे।
मैं आहिस्ता-आहिस्ता उनके पास गया और उनसे पूछा, "क्या आप रो रहे हैं?"
उन्होंने हां में सिर हिलाया।
मैंने पूछा, "आप क्यों रो रहे हैं?"
उन्होंने अपना प्यार भरा हाथ मेरे सर पर फेरा और कहा- "अभी तुम नहीं समझोगे।"
आज इस बात को तकरीबन 60 साल गुजर चुके हैं। मैं अंधेरे कमरे में लेटा छत को एकटक निहार रहा हूं। मेरी आंखों से आंसू जारी हैं। मेरा दस साल का पोता कमरे में आता है। अचानक वह कमरे की लाइट खोल देता है।
मेरे पास आकर पूछता है, "दादा जी, क्या आप रो रहे हैं?"
मैं हां में सिर हिलाता हूं।
वह फिर पूछता है, "आप क्यों रो रहे हैं?"
मैं उससे कहता हूं, "बेटा, तुम नहीं समझोगे।"