टी-20 में कोरोना
टी-20 में कोरोना
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इस कहानी का नाम पढ़कर तो आप शायद क्रिकेट के टी-20 मैच के बारे में सोचने लगे होंगे जहाँ खूब चौके-छक्के लगते हैं और हम लोग उस मैच का भरपूर आनंद लेते हैं लेकिन आप गलत सोच रहे हैं क्योंकि मैं यहाँ क्रिकेट मैच की नहीं बल्कि सन् "2020 की दुनिया" की बात कर रहा हूँ। कुछ दिन पहले मैंने अपने द्वारा लिखी हुई एक कविता आप सभी के साथ साझा की थी शायद आपने पढ़ी भी हो जिसका नाम था "आखिर क्या चाहते हैं हम"। इस कविता की कुछ पंक्तियाँ जिनको हमें बहुत गहराई से समझने की जरुरत है आज फिर आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूँ, ये विशेष पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं।
असल में प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया है,
पर उसका भी दुरुपयोग कर बैठे हैं हम,
सजीवों और निर्जीवों से भरी इस रंगीन दुनिया में,
खुद को बादशाह समझ बैठे हैं हम,
आखिर क्या चाहते हैं हम ?
एक घर-परिवार में माता-पिता की सभी सम्पत्तियों में उनके सभी बच्चों का बराबर का अधिकार होता है चाहे उनमें कोई ज्यादा समझदार हो या कम समझदार हो या छोटा हो या बड़ा हो, लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो माता-पिता अपने सबसे बड़े बच्चे को या सबसे समझदार बच्चे को कुछ जिम्मेदारियां दे देते हैं और कुछ थोड़ी-बहुत छोटी-छोटी जिम्मेदारियां दूसरे बच्चों को भी दे देते हैं पर जिसको ज्यादा जिम्मेदारियां दी जाती हैं उसे शक्तियां भी उसी तरह ज्यादा ही दी जाती हैं तो इसका मतलब ये तो बिल्कुल नहीं है कि वह शक्तिशाली बच्चा अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर दूसरे बच्चों के अधिकारों का हनन करे, सारी संपत्ति पर खुद का कब्ज़ा करने की कोशिश करे, उन नासमझों को पीटे। कभी-कभी जब वो बच्चा छोटे बच्चों को ज्यादा परेशान करता है तो उन छोटे बच्चो में से ही कोई एक बच्चा उठकर उस बड़े वाले बच्चे को "नाक तले चने बिनवा” देता है और अगर तब भी वो लगातार ऐसा करता रहता है और माता-पिता को जब ये बात पता चलती है तो वे उस शक्तिशाली बच्चे को दण्डित कर देते हैं या उसे घर से बाहर निकाल देते हैं और उसकी शक्तियों को छीनकर दूसरे बच्चे को दे देते हैं जिससे वो शक्तिशाली बच्चा शक्तिहीन तो होता ही है साथ में उसे कुछ प्राप्त भी नहीं होता।
“वसुधैव कुटुंबकम” केवल किताब में लिखे हुए दो शब्द मात्र ही नहीं हैं बल्कि यह एक वास्तविकता है और इन्हें महसूस भी किया जा सकता है जरा इन्हें महसूस करके भी तो देखो। इन दो शब्दों का अर्थ बहुत गहरा है। वास्तव में ये संसार एक परिवार ही तो है जहाँ धरती एक माँ की तरह अपने बच्चों को गोद में लिए रहती है और सूर्य एक पिता कि तरह ऊर्जा के भंडार लगाता रहता है और अपने सभी बच्चों को प्रकाशित करता रहता है। इतने बड़े इस परिवार में प्रकृति के विविध प्रकार के बच्चे हैं जैसे मानव, जीव-जंतु, कीड़े-मकोड़े, पेड़-पौधे इत्यादि। इन सभी बच्चों में मानव जिसे हम मनुष्य भी कहते हैं सबसे बुद्धिमान है और समझदार भी है। प्रकृति ने मनुष्य को अपने सभी बच्चों में सबसे ज्यादा शक्तियां दी हैं क्योंकि मनुष्य प्रकृति का सबसे समझदार बच्चा जो है। प्रकृति ने कुछ विशेष प्रकार की थोड़ी-थोड़ी शक्तियां अपने अन्य बच्चों को भी दी हैं। मानव अपनी शक्तियों का गलत प्रयोग करके प्रकृति के दूसरे बच्चों के अधिकारों का लगातार हनन कर रहा है जबकि दूसरे बच्चे अपनी शक्तियों का सीमित प्रयोग कर रहे हैं। आज मनुष्य जीव-जंतुओं को तो रहने के लिए स्थान तक नहीं दे रहा बल्कि उनके घरों को ख़त्म करता जा रहा है और जंगलों को भी काटे जा रहा है, उनके लिए भोजन की व्यवस्था करने के बजाय उनके भोजन को भी खुद ही लगातार खाये जा रहा है। प्रकृति मनुष्य के गलत कृत्यों के लिए और मनुष्य द्वारा अपने दूसरे बच्चों को परेशान करने की वजह से मनुष्य को समय-समय पर दण्डित भी करती है। इस समय भी प्रकृति का एक बहुत ही छोटा सा बच्चा कोरोना वायरस जिसका असली नाम कोविड-19 है मनुष्य की नाक में दम किये हुए है यह वायरस आज तक दुनियाँ में लगभग 70000 लोगों की जान ले चुका है और लगभग 12 लाख लोग इससे प्रभावित हैं और अभी तक मनुष्य के पास इसे रोकने की कोई तकनीक नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि मनुष्य इतना बुद्धिमान है कि जल्द ही इसे रोक देगा लेकिन जब तक प्रकृति अपना कार्य पूरा कर चुकी होगी। असल में इस वायरस की शुरुआत तो 2019 में ही हो गयी थी इसलिए इसका नाम कोविड-19 रखा गया है। “2020 में कोरोना” के कारण दुनिया के लगभग 75% लोग आज घरों में कैद हैं और प्रकृति की शक्तियों का खेल देख रहे हैं।
इस कहानी का मुख्य उद्देश्य केवल यह बताना है कि प्रकृति की सारी चीजों पर केवल मनुष्य का ही अधिकार नहीं हैं बल्कि इन सभी चीजों पर परिवार के अन्य सदस्यों का भी हक़ है। प्रकृति की सभी चीजों को मनुष्य को अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ साझा करना चाहिए और परिवार का सबसे समझदार बच्चा होने के नाते सभी का ध्यान भी रखना चाहिए न कि दूसरे बच्चों को परेशान करना चाहिए। अगर मनुष्य जाति अब भी नहीं समझती है तो इसे आगे बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।