CHARWAK GAUTAM

Others

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"भई वाह! रेस।" एक गलतफहमी

"भई वाह! रेस।" एक गलतफहमी

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दुनिया में ऐसी बहुत सारी चीजें हैं जो बिना किसी मतलब के, बिना किसी अर्थ के पैदा होती हैं और लोगों को विनाश के पथ पर डाल कर चली जाती हैं। आज आप उनमें से किसी एक का वर्णन यहाँ करने वाले हैं। आज आप जिसका वर्णन यहाँ करने वाले हैं वह इतनी अर्थहीन है कि किसी के अंदर स्थायी रूप से बैठ जाने पर उसका सर्वनाश करने के बाद ही पीछा छोड़ती है और बाद में रह जाता है कि"अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गयी खेत यानी कि पछताना। आप अभी खोलना नहीं चाहते कि वह क्या चीज है। बड़े दुःख के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि आप उस"ग़लतफ़हमी " कहते हैं। नाम की तरह इसका काम भी बड़ा ही है। आज आप दुनिया से कुछ अलग कहना चाहते हैं।

लेकिन कोई समझदार व्यक्ति ही अपनी समझदारी से उसे समझ सकता है। बाकी के आगे तो "भैंस के आगे बीन बजाने" जैसा उदाहरण है। ग़लतफ़हमी का शिकार होकर मनुष्य अपने वास्तविक धरातल से बाहर हो जाता है और छोटी बड़ी ग़लतियाँ करने लगता है। और उसकी ये ग़लतियाँ विकराल रूप लेकर उसके खुद के लिए और दुनिया के किसी अन्य मनुष्य, जीव या अन्य के लिए घातक साबित हो सकती है। ग़लतफ़हमी हमारा एक ऐसा सोचने का ढंग है जो हमें दूसरों को सही तरीके से समझने से रोकता है और मानवीय संबंधों में, रिश्तों में, समाज में टकराव पैदा करता है। ग़लतफ़हमी जरूर हो सकती है, हर किसी व्यक्ति को हो सकती है, किसी के भी प्रति हो सकती है, कैसे भी हो सकती है, कहीं पर भी हो सकती है, केवल अपने सिवाय ग़लतफ़हमी होने से कोई नहीं रोक सकता। शायद नासमझ और ग़लतफ़हमी के बीच बहुत पतली रेखा है। नासमझ तो कुछ हद तक सही है लेकिन ग़लतफ़हमी हानिकारक। ग़लतफ़हमी हमारे जीवन में आने वाली अनगिनत समस्यायों की श्रंखला का सन्देश है जिसे हमें समय रहते ही समझना चाहिए। कोई भी कार्य, बातचीत आदि की शुरुआत ग़लतफ़हमी को साथ लेकर कभी नहीं करनी चाहिए। अतः एक बेहतर दुनिया में बेहतर तरीके से जीवन जीने के लिए यह आवश्यक है कि हम बेहतर समझ का प्रयोग करें। ऐसी समझ का प्रयोग जो हमें गलतफहमियों से बचाये। इस कार्य के लिए सबसे पहले आपको सभी से सौहार्दपूर्ण, प्रिय, सुलभ और सरल होना पड़ेगा ताकि सामने वाले को आपके साथ व्यवहार करने में किसी तरह का संकोच महसूर न हो। इसको लेकर उनके मन में कोई शंका न हो। यदि आपकी अंतरात्मा साफ़ है और अभिव्यक्ति विनम्र और सटीक है तो आपके जीवन में किसी भी प्रकार की ग़लतफ़हमी की तनिक भी गुंजाइश नहीं रहेगी और आप बड़ी सहजता से सौहार्दपूर्ण संबंधों को बनाने में कामयाब रहेंगे। लिखने के लिए आप तब ही बैठते हैं जब आपके अंदर से कोई आवाज़ आती है और आप उसे किसी के साथ साझा नहीं कर पाते। माना आपको किसी व्यक्ति के प्रति कोई ग़लतफ़हमी पैदा हो जाती है और आपने उस व्यक्ति पर कोई टिप्पणी कर दी तो इसका मतलब ये है की आपने भरे तालाब में पत्थर फेंक दिया अब आपको ये नहीं पता की पत्थर तालाब में कितनी गहराई तक गया होगा। यह तो केवल तालाब को ही पता है की घाव कितना गहरा है। इस तरह की सभी ग़लतफ़हमीयों को ख़त्म करने का रास्ता केवल एक ही है कि गलतफहमियों को अपने अंदर पैदा ही न होने दिया जाए और पैदा ये जब नहीं होंगी जब आप सत्य का मार्ग अपना लेंगे, किसी कार्य को करने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी रखेंगे और अपनी "नासमझ" से "ना" का स्थायित्व मिटा देंगे और सबसे बेहतर ये कि आप अपने मन पर नियंत्रण रखेंगे आदि बहुत सारे ऐसे हल हैं कि जो आपके अंदर पैदा होने वाली गलतफहमियों को विराम दे सकते है।

 

अपनी जिंदगी का एक बहुत छोटा सा अनुभव आज आप सबके साथ साझा करना चाहते हैं

 

"पिछले रोज़ की तरह आज भी मैं अच्छे मन से जागा। घड़ी में समय देखा तो रोज़ जागने के समय से कुछ विलम्ब था। जल्दी- जल्दी जूते पहने और गेट का ताला खुलवाकर निकल गया सुबह की बहती हवा का आनंद लेने। सुबह के इस झपझपे अंधेरे में ठंडी- ठंडी हवा बह रही थी और टहलने का आनंद मैं ले रहा था। थोड़ी ज्यादा ठंडी हवा होने के कारण मेरा मन दौड़ने को करने लगा और मैंने दौड़ना प्रारम्भ कर दिया। लगभग 150 मीटर दौड़ने के बाद मैंने अपने लगभग 100 मीटर आगे एक लड़की को दौड़ते देखा। वह लड़की शायद अच्छे चरित्र की नहीं थी और मैं उसे जानता भी था क्योंकि कॉलोनी की गलियों में मैंने उसे हमेशा घूमते देखा था। उसे देखकर मेरा माथा ठनका और सोचने लगा आज का दिन पता नहीं कैसा होगा मेरा? सोचा तेज़ दौड़कर इससे आगे निकलता हूँ और बिना इसकी शक्ल देखे वापस लौट जाऊँगा। दौड़ते हुए मैं अपनी ही उम्र के दो लड़कों से ग़लती से स्पर्श हो गया तो इस बात के लिए मैं उनसे सॉरी कहते हुए निकल गया। वे दोनों भी टहल ही रहे थे। वह लड़की वहां रुकी तो मुझे ख़ुशी हुई कि अब मैं जल्दी इससे आगे निकल जाऊँगा इसके पीछे नहीं भागना पड़ेगा और शायद ये भी अब वापस चली जायेगी। इस समय वह सड़क के दूसरी तरफ जाकर मंदिर के आगे हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी। मैंने अपनी गति थोड़ी सी बढ़ाई ही थी कि वह फिर मेरे आगे आकर दौड़ना शुरू करने वाली थी। तो मैं वहीं मंदिर के पास खड़े होकर अपने मोबाइल में समय देखने लगा और लगभग एक मिनट रूक कर वापस अपने कमरे की तरफ लौटने लगा। सोचने लगा चलो इससे पीछा छूटा कल दौड़ लूँगा। अब जब वे दोनों लड़के मेरे बगल से निकले तो उन्होंने मेरे ऊपर दो चार टिप्पणियाँ की। जैसे "भई वाह! रेस।" उनकी टिप्पणीयों से मैंने समझा कि उन्हें शायद ऐसा लगा कि मैं उस लड़की के पीछे दौड़ रहा था। लेकिन मैं कुछ कह नहीं सका और सीधे घर का रास्ता नापा। मुझे उनकी ग़लतफ़हमी पर थोड़ी गुस्सा आयी लेकिन बाद में हँसी आयी। क्योंकि ये उनकी ग़लतफ़हमी ही तो थी। लेकिन उन दोनों की इस ग़लतफ़हमी ने मेरा पूरा दिन ख़राब कर दिया।"


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