Khayal-e- pushp

Inspirational

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Khayal-e- pushp

Inspirational

"तृप्त"

"तृप्त"

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"तुम यहाँ की चिंता क्यों करती हो ?"

रात के लास्ट मेट्रो का सफर खत्म कर पत्नी से बातों का सिलसिला जारी रखते हुए उसने मोटरसाइकिल को स्टैंड से निकालकर स्टार्ट करने से पहले मोबाइल को हेलमेट में ही एडजस्ट कर लिया।

"कैसे ना करूं !.वहाँ भी संभालने वाला है ही कौन ?"

उसकी पत्नी की आवाज में अपने घर के प्रति फिक्र साफ झलक रही थी।

"अरे !.दो लोगों का खाना कोई पहाड़ थोड़े ही है !..तुम निश्चिंत होकर कुछ दिन वहाँ परिवार के साथ रहकर अपनी मम्मी का मन लगाने की कोशिश करो।"

अचानक दिल का दौरा पड़ने से गुजर गए पिता के अंतिम दर्शन से भी वंचित रह गई पत्नी को ससुराल की जिम्मेदारियों से बेफिक्र कर उसे मायके की जिम्मेदारियाँ निभाने की सलाह देता वह खाली सड़क पर तेजी से मोटरसाइकिल दौड़ाता सीधा घर की ओर निकल पड़ा।

"मुझे तो मम्मी जी की फिक्र हो रही है,.उन्होंने खड़े होकर रसोई में रोटियाँ कैसे बनाई होगी !"

उसकी पत्नी ने अपनी सास के अर्थराइटिस से दुखते घुटनों के प्रति चिंता जताई लेकिन उसके पास अपनी पत्नी के हर चिंता का निदान पहले से ही मौजूद था..

"माँ को खड़े होकर मेरे लिए रोटीयाँ बनाने की नौबत ही नहीं आई।"

"क्यों?" 

"माँ ने सुबह कुर्सी पर बैठे-बैठे ही दर्जन भर रोटियां बेल दी थी और मैंने खुद ही खड़े होकर रसोई में तवे पर सेंक दिया था।"

"अरे वाह ! ! सच !"

उसकी पत्नी के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा।

"हाँ।..और मैंने अभी ऑफिस से ही फोन कर माँ को बता दिया था कि मेरे लिए रोटियाँ बनाने की जरूरत नहीं !.आज ऑफिस के कैफेटेरिया से डिनर करके लौटूंगा।"

"अच्छा !.तो डिनर कर लिया आपने?"

"नहीं !.आज रात नौ बजे ही कैफेटेरिया बंद हो गया था लेकिन मेरा काम साढ़े दस बजे तक चलता रहा।"

"अब तो बारह बजने को है !" 

उसकी पत्नी फिक्रमंद हुई लेकिन वह हंस पड़ा..

"हाँ !.तो क्या हुआ?.वैसे भी मुझे रात में ज्यादा भूख नहीं लगती।..तुम्हारी बनाई मठरी-नमकीन रखी है उसी में से कुछ खा लूंगा।"

इस बात पर पत्नी की हुँकारी ना पाने के बावजूद उसने बातचीत जारी रखा.. 

"अच्छा !.अब मैं घर पहुंच गया हूँ।..वैसे भी रात बहुत अधिक हो गई है तुम सो जाओ। कल सुबह फोन करके मुझे जल्दी जगा देना। गुड नाइट !"

वह मोटरसाइकिल का स्टैंड लगा डोरबेल बजाने ही वाला था की सन्नाटे में डूबी उसकी बातें सुनती पत्नी अचानक बोल पड़ी..

"सुनिए !..मम्मी जी सो गई होगी।..आप डोरबेल बजाकर डिस्टर्ब मत कीजिए।" 

पत्नी की यह बात सुन डोरबेल तक पहुंची उसकी उंगलियां अचानक रूक गई लेकिन उसकी पत्नी ने अपनी बात जारी रखी..

"मेन गेट की एक चाबी आपके मोटरसाइकिल के की-रिंग में लगी है उसी से गेट खोल लीजिए।" 

अपनी सास की नींद का ख्याल रखते हुए मायके जाने से पहले उसकी पत्नी घर के मेनगेट की एक चाबी उसकी मोटरसाइकिल के की-रिंग में उलझा गई थी।

"अच्छा किया तुमने मुझे याद दिला दिया !..मैं तो भूल ही गया था।" 

वह मुस्कुराया और इधर उसकी पत्नी ने उसके गुड नाइट का जवाब दे फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

वह की-रिंग में मौजूद चाबी से घर का मेनगेट खोल भीतर प्रवेश कर गया। 

अपनी मोटरसाइकिल को गेराज में लगा मेनगेट का ताला भीतर से जड़ वह घर के उस दरवाज़े तक आ पहुंचा जिसके पल्ले बाहर से आपस में जुड़े थे लेकिन उसके इंतजार में भीतर से खुले थे। 

उसके आधी रात में घर आने से माँ की नींद में कोई खलल नहीं पड़ी यह जानकर उसने राहत की सांस ली। खैर हाथ-मुँह धोकर रसोई में पहुंचते ही उसकी भूख दुगनी हो गई जो नमकीन-मठरी को स्वीकार करने के बावजूद भरपूर भोजन की उम्मीद में बढ़ती ही जा रही थी। 

दो-चार मठरी रसोई में खड़े-खड़े ही खा चुका वह पानी की एक बोतल के संग मठरी का डब्बा उठाए अपने कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गया। 

थकान के बावजूद भूख ने नींद को उसकी आंखों से कोसों दूर कर दिया और बेवजह रतजगा करने की जगह उसने कुछ जरूरी इमेल चेक करने की सोच अपना लैपटॉप ऑन कर लिया।

अभी मुश्किल से पंद्रह-बीस मिनट ही बीते होंगे कि उसके कमरे के दरवाजे पर आहट सी हुई। उसने सर घुमा कर देखा।

सामने मां अपने हाथों की खुशबू फैलाती गरमा-गरम पोहा से भरे प्लेट और अपनी बहू की एक मीठी सी शिकायत के साथ दरवाजे पर खड़ी थी..

"कुछ ही दिनों में बहू ने मुझे इतना सुख दिया कि मेरी आदत बिगड़ गई !..बेटे का इंतजार भी नहीं किया जाता मुझसे।..आँख लग गई थी।"

अब तक माँ को सुख देने के लिए भरसक प्रयासरत बेटा माँ की बात खत्म होने से पहले ही बिस्तर से उठकर दरवाजे तक जा माँ के हाथों से प्लेट ले उसमें मौजूद चम्मच से पोहे का पहला कौर मुँह में डालते हुए लाख कोशिशों के बावजूद आखिर माँ के सामने खुद को सच बोलने से रोक नहीं पाया।

"अच्छा हुआ माँ कि,.आप जाग गई !.मुझे नींद नहीं आ रही थी।" 

वहीं बिस्तर पर बैठते हुए माँ ने उसके माथे पर बड़े स्नेह से हाथ फेरा..

"हम्म !.जानती हूँ !..तुझे भूखे पेट नींद नहीं आती।"

आज बड़े दिनों बाद आधी रात में जागकर बेटे की भूख मिटा तृप्त होती माँ मुस्कुराई।


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