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Anjana Shrivastav

Tragedy

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Anjana Shrivastav

Tragedy

तपोभूमि

तपोभूमि

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मैंने उसे तापसी नाम दिया है ।हाँ ,यहाँ यह बताना आवश्यक है कि उसका असली नाम तो कुछ और ही है , हम सब उसे उसी नाम से संबोधित करते हैं । उसे तो क्या किसी को भी नहीं पता कि मैंने उसके लिए तापसी नाम क्यों चुना ।

 सांवली सूरत पर दो सलोनी बोलने को आतुर आँखें, हँसना जिंदगी का मक़सद , बस ज़रा सा उसके मन में गुदगुदा दो और वह खिलखिला उठेगी । 

 मेरा उसका परिचय अनोखा है । बड़ी दीदी के परिचित की बहू के रूप में । पहली मुलाकात , शादी की भीड़ -भाड़ में गठरी बनी दुल्हन ,बस इतना ही याद है। ससुराल पक्ष से तो घनिष्ठ संबंध वर्षों से चले आ रहे हैं । वैसे ही बरकरार हैं ।

 पढ़े-लिखे सम्मानित परिवार की बहू , मर्यादा का पालन , सास द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार ही करती है । सर पल्लू से ढककर झुकती तापसी का ढंग मेरे मन में एक अजीब सी हलचल मचा देता है । बहुओं से पांव छूवाने की प्रथा कब बदल कर उन्हें गले लगाने में परिवर्तित होगी ? ना जाने क्यों गले लगाने को जी मचलता । पर मुझसे उसके सास के बनाए रीति-रिवाजों के आगे ऐसा करना असंभव होता । मेरी शादी को 50 साल से भी ज्यादा हो गए ।इतने लंबे वैवाहिक जीवन में मैंने अपनी सास के पैर कुल मिलाकर चार या पांच बार ही छुए ,उस पर भी मुझे डाँट पड़ती थी । क्या कर रही हो क्यों नहीं सुनती , कितनी बार कहा है मैंने मत छुआ करो मेरे पैर , गले लगने में क्या शर्म आती है ।

  वैसे यह परिवार अनोखा नहीं है लगभग पूरे भारत में प्रचलित है । महिलाएं ही नहीं पुरुष भी चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेते हैं । मैं भी अपने से बड़ों के पैर छूती हूं लेकिन तापसी से जब भी मिलती हूं उसे गले लगाने की तीव्र इच्छा के पीछे क्या है समझ नहीं पाई । उसकी शादी को 25 साल से ज्यादा हो गए। इतने वर्षों में अब मैं उसको इतने करीब से जान गई हूं शायद वह भी अपने को नहीं जानती होगी। मेरी परिस्थिति बड़ी दुविधा जनक है । एक तरफ मैं उसकी सास गिरजा देवी के इतने करीब हूं कि वह हर बात मुझसे शेयर करती हैं। इधर तापसी का भी वही हाल है , वह भी मुझसे कुछ नहीं छुपाती, यह जानते हुए भी कि मेरी एक छोटी सी चिंगारी उसकी बिखरी जिंदगी को कहाँ से कहाँ पहुंचा देगी । इतनी समझदार है कि उसे समझाने की जरूरत नहीं पड़ती । छल कपट विहीन उसका हृदय कर्त्तव्यों के प्रति सजग है । चाहे परिवार खुश हो या ना हो वह अपने तरीके से आगे बढ़ रही है । गिरजा देवी को तापसी में कुछ भी ऐसा नहीं दिखता जिसकी वे तारीफ करें। उनकी सोच ही अलग है। उनके हिसाब से बहू से दूरी बनाए रखना जरूरी है क्योंकि जरा सी भी निकटता दिखाई तो समझो वह फौरन सर चढ़ जाती हैं । घर के कायदे कानून तोड़ देती है । मजे़े की बात यह है कि कामवालियाँ उन्हें बहू से ज्यादा करीब लगती है क्योंकि पूरीे कॉलोनी की खबरें नमक मिर्च के तड़के के साथ देती है । पहले यह काम खुद ही अच्छे से कर लेती थीं। पति ऑफिस ,बच्चे कॉलेज या नौकरी पर तब इस काम को बखूबी खुद ही निभाती थीं । मेल -मिलाप की शौकीन ,मोहल्ले के हर घर में आना जाना, किसकी बहू की सास से नहीं पटती , किसकी सास खड़ूस है वगैरह वगैरह । अब उम्र और बीमारी की वजह से लाचार हैं ।

 घर में ले देकर 3 प्राणी हैं -बेटा बहू और सास । तापसी के दोनों बेटे पढ़ाई के लिए दूसरे शहर में रहते। पढ़ाई पूरी होते ही वहीं नौकरी में लग गए । पहले छुट्टियों में आते थे। पर अब वह भी नहीं के बराबर। तापसी ही मिलने चली जाती है। बड़ा बेटा सहनशील है जबकि दूसरा इसके विपरीत । पिता और दादी का उसकी माँं के साथ का व्यवहार उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं। वह उन दोनों से उलझ जाता ,नतीजा यह है कि उसे घर के प्रति कोई लगाव ही नहीं रहा। इन हालात के लिए सबसे बड़ी जिम्मेदार अगर कोई है तो वह तापसी की सास गिरजा देवी । वैसे उनकी दोनों बेटियाँ भी कुछ हद तक जिम्मेदार हैं । दोनों की अच्छी जगह शादी हो गई । दो-दो बच्चों की माँ हैं । बड़ी बेटी समझदार है । जब भी आती है सास बहू के पचड़े में नहीं पड़ती। उसे तापसी पसंद है ,कई बार माँ को सलाह देने की कोशिश भी की पर उसके परिणाम विपरीत होते हुए देखकर वह जितने दिन रहती अपने तरीके से रहती । वैसे बड़ी होने के नाते उसका काफी दबदबा है । वह चाहे तो बहुत कुछ सामान्य हो सकता ,पर वह उलझनों से बचना पसंद करती हैं । जबकि छोटी लड़की का आना ,उसके नखरे सहना तापसी के जिम्मे होता है। 'माँ सेर तो बेटी सवा सेर ' कहो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं ।सुशिक्षित के झूठे आवरण में उसके मन का कलुष झलकता है । जितने दिन रहती माँ के इर्द-गिर्द घूमती जैसे वह ना हो तो बेचारी माँ क्या करेें। उसके जाते ही गिरजा देवी उसकी तारीफों के कसीदे पढ़ना शुरू कर देतीं और उनका खास जुमला बेटी तो बेटी ही होती है बहू कभी बेटी नहीं बन सकती । दिल तो चाहता है कि उन्हें समझाऊं एक बार सास माँ बनकर दिखाए तो बहू को बेटी बनने में देर नहीं लगेगी । मगर उनसे कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती।


गिरजा देवी सर्वगुण संपन्न महिला हैं। मधुर आवाज , तबला, ढोलक, हारमोनियम पर थिरकतीं उंगलियाँ ,सिलाई, कढ़ाई , बुनाई में भी पीछे नहीं है । घूमने की शौकीन ,पाक कला में निपुण ,अड़ोस पड़ोस से मिलना - मिलाना । सब कुछ होने के बावजू़द उनका सबसे बड़ा अवगुण उनका दर्प। अपने को हर तरह से ऊँचा समझना, अपने खानदानी परिवार का पूरे समय बखान करना , सामने वाले को नीचा दिखाना खासकर बहुओं के परिवार से अपने को श्रेष्ठ समझना । दोनों बेटियों को दहेज में बहुत दिया पर बहू के यहाँ से एक ढेला भी नहीं लिया यह बताना अपनी शान समझ कर बखान करतीं। इसी अवगुण का नतीजा परिवार के अंदर विस्फोट का काम करता रहा । सब 'घर' नाम के दडबे में घुटन भरी जिंदगी काट रहे हैं। सबसे बड़ी शिकार है तापसी।

 पति की मृत्यु ने गिरजा देवी को वैसे ही तोड़ कर रख दिया बाकी कसर बढ़ती उम्र ने पूरी कर दी। पहले जैसा ना स्वास्थ रहा ना ही पहले जैसे घूमना फिरना । मगर याददाश्त और जुबान की वाचालता में रत्ती भर भी कमी नहीं आई । तापसी के प्रति कटु वचन, उसकी पूरी समय बेटे के आगे बुराई करना ,उनका समय व्यतीत करने का एक मात्र साधन बन गया है । मजे की बात है तो यह कि बहू की बुराई मुझे भी उनके साथ शेयर करनी पड़ती है। वह मुझे अपनी सबसे विश्वसनीय दोस्त मानती हैं । मैंने उन्हें अपनी बड़ी बहन का पद दे रखा था । वह मुझसे 7- 8 साल बड़ी जो हैं। बड़ी बहू ने शुरू से ही उनसे दूरी बना रखी क्योंकि वह उनके बनाए नियमों और रवैया में अपने को ढालना नहीं चाहती थी । पति के साथ दूसरे शहरों में पोस्टिंग की वजह से उसके लिए यह आसान हो गया । जब भी आती 4-6 दिन रह कर लौट जाती । कुछ सास को लुभाने का काम करती और वाहवाही लूट कर लौट जाती जबकि तापसी जाए तो जाए कहाँं।

 पति पढ़ा लिखा , हर काम में माहिर ,अपना उसका व्यवसाय, अधिकतर समय घर पर ही व्यतीत करता है । तापसी के प्रति उसकी बेरुखी की वजह बताना जरा मुश्किल है पर जो गिरजा देवी ने बताया, बेटे को तापसी से शादी माँ के कहने पर करनी पड़ी। उसे माँ से शिकायत थी कि उन्होंने उसके पसंद नापसंद का ख्याल नहीं रखा । रिश्तेदारों के कहने में आकर शादी करा दी। आज्ञाकारी पुत्र जो ठहरा । जबकि तापसी का रहन-सहन बातचीत का सलीका देख कर कहीं से भी नहीं लगता कि वह किसी संस्कारहीन परिवार की है। उसने अपने घुटन भरे माहौल से निकलने में ही समझदारी समझी। अपनी उच्च शिक्षा का लाभ लेते हुए एक प्रतिष्ठित शिक्षा केंद्र में शिक्षिका का पद ग्रहण कर अपनी योग्यता का प्रमाण दे दिया। स्वाभिमानी ,शिक्षित ,संस्कारी तापसी ने स्वावलंबी बनकर अपनी अलग पहचान बना ली। कहीं जाना हो अपने ही बलबूते पर। घर से ज्यादा से ज्यादा दूर रहने का निर्णय उसकी मजबूरी थी । घर तो चूने, मिट्टी ,ईंट से बनता है , उसमें दिल की धड़कन नहीं होती है , वह तो घर के प्राणी ही दे सकते हैं । तापसी इसके लिए तरसती ।

घर आए मेहमानों का आदर के साथ मुस्कुराते हुए स्वागत करना उसकी परवरिश का बेहतर नमूना है । तापसी का बस सास के सामने एक बात पर कंट्रोल नहीं रहता, वह उसकी दिल खोलकर हंसने की आदत ।उसकी खिलखिलाती मनमोहक हँंसी का जहाँ सब लोग मजा़ लेते वहीं उसकी सास का खून खौल जाता। 

भाग्यशाली हैं गिरजा देवी । बेटा एक पल भी माँ को छोड़ता नहीं। पूरे समय उनका ख्याल रखता । उसकी जिंदगी माँ के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है । नतीजा पत्नी और बेटों के प्रति अपने कर्त्तव्यों से विमुख होता गया। मैं उस छुईमुई तापसी के करीब आती गई ।जिंदगी का हर पन्ना उसने मेरे सामने खोल दिया । मुझ पर इतना विश्वास कैसे कर बैठी और मैं हर पल उसकी जिंदगी की खुशियाँ लौटा कर लाने का प्रयास करने में लगी रहती हूँ।

अफसोस तो इस बात का है कि गिरजा देवी ने अपने व्यवहार से अपने ही बेटे की जिंदगी कंटकमय कर डाली । अभी तो शुरुआत है पर आगे क्या होगा? क्या दिलों के दरार जुड़ पाएंगे। यहाँं मुझे यह कहने में ज़रा भी संकोच नहीं होता । माँ से ज़्यादा जि़म्मेदार तो बेटा है। वह यह कैसे भूल गया माँ के साथ साथ घर में पत्नी और बच्चे भी हैं। उनके प्रति उसकी जिम्मेदारी भी उतनी है जितनी माँ के प्रति ।उसका फर्ज़ था माँ के विचारों को बदलना लेकिन वह खुद उसमें कैसे ढल गया ।वह तो माँ से ज्यादा गुनहगार है तापसी का ।

मैंने उन्हें एक दो बार आगाह किया - आज आपके हाथ पैर में ताकत है कल उम्र के साथ आप शिथिल हो जाएंगी और वक्त किसने देखा । आप थोड़ा बदलने का प्रयास करें ।घर में प्यार का माहौल बनाएं , जिससे सब को बड़ी खुशी मिलेगी मगर उन पर कुछ खास असर नहीं हुआ। एक दिन मैंने अनजाने में उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया-' बहुत समय हो गया आपके दोनों पोते नहीं आए' फिर क्या था तापसी के साथ अपने दोनों पोतों की शिकायत भी मुझसे करने लगीं- 'मैंने उन्हें पाला पोसा, क्या नहीं किया उनके लिए, अब बड़े हो गए, कमाने लगे, ना तीज त्यौहार ना ही छुट्टियों में आने की फुर्सत और मां है कि उन्हें समझाएं खुद ही मिलने चली जाती है ,क्या जमाना आ गया है ।'

मैंने धीरे धीरे अपने स्वास्थ्य का बहाना बनाकर उनके यहाँ जाना कम कर दिया ।बहुत घबराहट होने लगी उनके घर जाने में। वही वही बातें ,शिकवा- शिकायत। तापसी का स्वास्थ्य भी अब पहले जैसा नहीं रहा। सुबह 7:00 बजे घर से निकल कर 4:00 बजे घर आना । स्कूल का काम थकाने वाला ,घर का माहौल और तकलीफ दायक ,पति का सानिध्य ,प्यार के दो बोल उस के नसीब में क्यों नहीं ?

आज जब उनके घर पहुंची तो हक्की बक्की रह गई । एक पलंग पर पति लेटा हुआ था और दूसरी पर गिरजा देवी । पति को वायरल हुआ , वह बहुत कमजोर हो गया था । तीन-चार दिन पहले गिरजा देवी को कमर में नहाते समय झटका लगने से उन्हें भी उठने बैठने में तकलीफ हो रही थी। तापसी तीन गिलास शरबत लेकर आई। पहले मुझे एक गिलास थमाया फिर दूसरा ग्लास पति को सहारा देकर बिठाकर थमाया ,तीसरा ग्लास गिरजा देवी को धीरे से बैठाकर पिलाने लगी । इस बीच में गिरजा देवी के मुंह से हर वाक्य में तापसी को बेटा बेटा कहकर संबोधित करते सुनकर मेरा हैरान होना जायज़ था । गिरजा देवी ने बताया बेटी को कहा थोड़े दिन के लिए आ जाओ ,जवाब आया माँं इस उम्र में यह तो होता ही रहता है ,सब ठीक हो जाएगा । बेटी , दामाद और बच्चों के साथ कहीं घूमने जा रही है अभी आना मुश्किल है। बड़ी बहू से रिक्वेस्ट की आने के लिए तो उन्होंने अपनी मजबूरी बताई बेटे का बेंगलुरु से पुणे तबादला हो गया इसलिए उन्हें वहां जाना जरूरी है। गिरजा देवी का मोह भंग हो गया शायद अपनी करनी पर पछता रही हैं या हालात की मारी है । बेटे के अहंकार ने उसको अपनी ही निगाह में गिरा दिया। गिरजा देवी ने शायद बहू को बेटी मानना ही उचित समझा ।आगे का पता नहीं । जो तापसी ने खोया पति का प्यार ,सानिध्य, वह उसे नसीब होगा या नहीं। मैं उठी गिरजा देवी को प्रणाम करके जाने के लिए और आज मेरी मनोकामना पूरी हुई तापसी ने मेरे पैर नहीं छुए मेरे गले से लिपट गयी। घर है पर माहौल नहीं ,पति है पर बाहों का आलिंगन नहीं सास है पर ममता नहीं । तापसी ने अपने लिए अपना घर ही तपोभूमि बनाकर तपस्या में लीन कर लिया। कब तक यह तो समय ही बताएगा।


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