Vikram Singh

Drama Crime Thriller

2.5  

Vikram Singh

Drama Crime Thriller

तोता मैना कुलटा पत्नी

तोता मैना कुलटा पत्नी

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Kahani tota maina ki karma says

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जुनागढ़ नाम के शहर पर चन्द्रगुप्त नाम का राजा राज्य करता था। चन्द्रगुप्त के चार बेटे थे और चारों ही बहादुर थे। लेकिन उन चारों बेटों में मदनसेन प्रतापी होने के साथ-साथ काफी सुन्दर भी था। मदन की पत्नी का नाम चन्द्रप्रभा था। वह भी बेहद सुन्दर व रूपवान थी। अपने समान किसी दूसरी स्त्री को सुंदर नहीं समझती थी। हर काम में होशियार थी। गाना भी उसे खूब आता था।

एक दिन राजा चन्द्रगुप्त ने मदनसेन को उसकी किसी खता पर नाराज होकर देश निकाला दे दिया। राजा का ये हुक्म सुनकर मदन चिन्तित हो गया और अपने महल में आ गया। मदन को उदास देखकर उसकी पत्नी ने पूछा-‘‘हे प्राणनाथ ! आप उदास क्यों हैं? आप का चन्द्रमुख मुरझाया हुआ क्यों है? राजकुमार होकर भी आप इस तरह चिन्तित क्यों हैं?”

मदनसेन बोला-”हे प्राणेश्वरी ! तुम से क्या कहूं? और तुमसे कहने से लाभ भी कुछ नहीं। आज मेरे पिता ने मुझे बारह वर्ष के लिए देश निकाला दे दिया है। इसीलिए मैं तुमसे विदाई मांगने आया हूं।”

यह सुनते ही चन्द्रप्रभा गश खाकर गिरी और बेहोश हो गई। उसकी ये हालत देखकर मदन के होशो-हवास जाते रहे। वह सोचने लगा-‘मैंने बहुत बुरा किया जो अपनी पत्नी से ये सब कुछ बता दिया।’

दासियों ने जब चन्द्रप्रभा पर गुलाब जल छिड़का तो उसे होश आया।।

होश में आकर चन्द्रप्रभा ने मदनसेन से कहा- “हे प्राणेश्वर ! आप मुझ दासी को छोड़कर परदेस चले जाएंगे तो मैं आपके बिन कैसे जी पाऊंगी? मैं भी आपके साथ ही चलूंगी।”

“तुम मेरे साथ कैसे चल सकती हो, क्योंकि परदेस में अनेक प्रकार के संकट भोगने पड़ते हैं और तुम नर्म व नाजुक गलीचों पर चलने वाली, महलों में रहने वाली इन दु:खों को कैसे बर्दाश्त कर पाओगी?” मदनसेन ने पत्नी को समझाने वाले अन्दाज में कहा।

“जितने भी दुःख परदेस में उठाने पड़ेंगे, वे सब आपके साथ रहते सुखी से भी अधिक सुखमय मालूम होंगे। महल के सुख आपके बगैर जंगल के दुखों से भी अधिक भयानक प्रतीत होंगे। इससे अच्छा तो यही है कि मैं आपके साथ ही चलू।”

चन्द्रप्रभा ने आंखों में आंसू भरकर कहा।

मदनसेन ने सोचा कि ये मेरे बगैर नहीं रह सकती, इसलिए मुझे यह शोभा नहीं देता कि इसको तड़पता छोड़कर चला जाऊं। बेहतर यही रहेगा कि इसे साथ ले चलू। इस विचार के मन में आते ही मदन ने अपनी पत्नी से कहा- “अच्छा, तुम उदास मत हो। हम तुम्हें अपने साथ ले चलेंगे।”

पति की यह बात सुनकर चन्द्रप्रभा बड़ी खुश हुई और अपने पति के साथ जाने की तैयारियों में जुट गई। अगली सुबह चन्द्रप्रभा और मदन शहर से निकलकर एक जंगल में पहुंच गए। जब चलते-चलते थक गए तो एक उचित सी जगह देखकर वे एक बरगद के वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे। वे बहुत अधिक थके हुए थे, अत: ठन्डी हवा के झोंकों ने उन्हें नींद के आगोश में पहुंचा दिया। मगर कुछ देर बाद ही एक सांप ने रानी को डस लिया। सांप के डसते ही रानी तड़पने लगी। मदन की आँख खुली तो रानी को तड़पते देखकर और सांप को जाते देखकर मदन बेचैन हो गया। 

कुछ देर बाद रानी बेहोश होकर विषाग्नि से व्यथित होकर मर गई। मृतक रानी को देखकर मदनसेन ऊंचे स्वर में रुदन विलाप करने लगा। उसका रोना-धोना सुनकर जंगल के जीव जन्तु गुर्राने लगे।

मदनसेन ने मन में सोचा–‘जब जीवन संगिनी ही मर गई तो मैं अब जी कर क्या करूंगा? इसी जंगल में प्राण त्याग दूंगा।’ मन में यह विचार आते ही वह रानी की लाश के पास से उठा और जंगल से लकड़ियां बीनकर इकट्ठी करने लगा। वह रो-रोकर कहता जाता था कि “रानी की चिता में मैं भी जल जाऊंगा।”

संयोगवश उसी जंगल में महादेव-पार्वती पृथ्वी लोक का भ्रमण करते हुए वहां आ पहुंचे।

माता पार्वती ने जब मदन के रोने की आवाज सुनी तो उन्हें उस पर बड़ी दया आई। उन्होंने महादेव से कहा-“हे प्रभु ! कोई मानव हृदय विदारक स्वर में रो रहा है। उसके रोने से मेरा हृदय कांपता है। आप उस पर दया करके उसका दुःख दूर कीजिए।”

पार्वती की बातें सुनकर महादेव ने कहा-“हे प्रिय ! मैं तुम्हें इसीलिए अपने साथ नहीं ला रहा था, क्योंकि पृथ्वी पर हर प्रकार के दु:खी मनुष्य हैं। हम किस-किसका दुःख दूर करेंगे?”

इस पर पार्वती ने कहा-“हे स्वामी ! कुछ भी हो, इसका दुःख आपको जरूर दूर करना पड़ेगा।”

पार्वती की बात सुनकर शिवजी पार्वती को अपने साथ लेकर वहां आए, जहां मदनसेन करुण विलाप कर रहा था। शिवजी ने मदनसेन से पूछा-“तू क्यों रो रहा है? तुझको क्या दुःख है?”

“आप मेरा दुःख क्या जाने। मुझमें अपना दुःख कहने की भी शक्ति नहीं है। जी चाहता है कि यह धरती फट जाए और मैं इसमें समा जाऊ।’ मदनसेन ने काफी दुःखी स्वर में कहा।।

मदन की ये बात सुनकर शिवजी को भी उस पर दया आ गई और उन्होंने उससे कहा-“तू हमसे अपना हाल कह।”

तब मदन ने उनसे कहा-“महाराज ! मैं जूनागढ़ के राजा चन्द्रगुप्त का बेटा हूं। मेरे पिता ने मुझको देश निकाला दे दिया। इसलिए मैं और मेरी पत्नी इस जंगल में आ गए। यहां आकर मेरी पत्नी सर्प के काटने से मर गई है। उसका विरह मुझसे सहन नहीं हो रहा है। इसलिए मैं लकड़ियां एकत्र कर रहा हूं ताकि अपनी प्यारी पत्नी के साथ ही जल कर अपने आपको भी अग्नि के हवाले कर दूं।”

मदन की ऐसी दु:खभरी बातें सुनकर महादेव ने कहा- ‘‘राजकुमार ! तू बड़ा मूर्ख है। यह तो संसार है। यहां इंसानों का आना-जाना लगा ही रहता है। एक दिन ये शरीर सब को छोड़ना पड़ेगा। तू ये भी जानता है कि इस संसार में कोई किसी के साथ न आया है, न किसी के साथ जाएगा। तू बुद्धिमान होकर भी ऐसी बात करता है। अगर तू जीवित रहा तो तुझे बहुत-सी रानियां मिल जाएंगी। इसलिए तू मेरा कहना मान और इस विचार को त्याग दे।”

महादेव के इन शब्दों को सुनकर मदन बोला- “महाराज ! आपने जो कुछ कहा, वह सत्य है। किन्तु ऐसी पतिव्रता पत्नी तो मुझे किसी जन्म में भी नहीं मिलेगी और न इसका वियोग मुझसे सहन होगा। इसलिए मैं इसके साथ ही मरूंगा।”

मदन के विचार सुनकर महादेव ने जान लिया कि यह अपनी पत्नी के बिना नहीं रह सकता। तब वे मदन से बोले-‘‘राजकुमार ! तेरी पत्नी के जीवित होने का एक उपाय है। इस रानी की आयु 20 वर्ष थी, सो इसने भोग ली। तेरी उम्र सत्तर वर्ष की है, जिसमें से तीस वर्ष बीत चुके हैं तेरी उम्र में चालीस वर्ष अभी और बाकी हैं। यदि तुम अपनी आयु का आधा भाग अपनी रानी को दे दो तो तुम दोनों की आयु बराबर हो जाएगी। यदि यह बात तुम्हें स्वीकार है तो रानी अभी जीवित हो जाएगी।”

महादेव की बात सुनकर मदन ने कहा-“मुझे स्वीकार है प्रभु–स्वीकार है।”

अब महादेव ने मदन के हाथ में पानी देकर उससे बीस वर्ष आयु देने का संकल्प लिया और रानी के हाथ पैरों पर पानी डालने से पूर्व मदन से कहा-“इसमें एक रहस्य की बात और है, जब तुम्हें रानी की आवश्यकता न हो तो यह संकल्प वापिस भी ले सकते हो। ज्यों ही संकल्प वापिस लोगे, रानी मर जाएगी। परन्तु सावधान, रानी से यह बात मत कहना। किसी समय यह बात तेरे काम आएगी।”

ऐसा कहकर रानी पर जल छिड़ककर महादेव पार्वती वहां से अन्र्तधान हो गए।

रानी उसी समय उठकर बैठ गयी और बोली-“प्रिये ! आज तो मैं बहुत सोई आपने मुझे जगाया क्यों नहीं?”

“तुम थकी मांदी थी, इसी कारण मैंने तुम्हें नहीं जगाया।” मदन ने सब बातें छिपाते हुए कहा।

अब वे दोनों फिर आगे चल दिए। काफी दिन बाद उन्हें एक बहुत सुन्दर स्थान दिखाई दिया। वहां एक फकीर की कुटिया थी। जब वे दोनों वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक सुन्दर नौजवान फकीर तकिया लगाए बैठा हुक्का पी रहा है।

वह दोनों थके हारे थे ही। फकीर के पास बैठ गए। उसी समय राजकुमार ने रानी से कहा–‘रानी ! हमें प्यास लगी है। हम कुएं पर जाकर पानी पी कर आते हैं, अगर तुम्हें भी प्यास लगी हो तो तुम्हारे लिए भी ले आएं।”

यह सुनकर रानी ने कहा-“मैं तो प्यासी नहीं हूं। आप जाकर पी आइए।”

रानी का जवाब सुनकर मदनसेन डोल-रस्सी लेकर कुएं पर पानी पीने चला गया। जब मदनसेन पानी पीने गया तो चन्द्रप्रभा और फकीर की निगाहें चार हुई। चन्द्रप्रभा उसी क्षण उस फकीर पर आशिक हो गयी।

चन्द्रप्रभा फकीर से बोली-“फकीर साहब ! आप तो यहां बड़े सुख से रहते है।”

“आप भी यहां रहो और ऐश करो।’ फकीर ने कहा।

‘‘फकीर साहब। आपके साथ रहने को दिल तो कर रहा है। मगर मेरा पती मेरे साथ है। इसीलिए मैं आपके साथ किस प्रकार रह सकती हूं।’ चन्द्रप्रभा ने फकीर के सामने अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए कहा।

“किसी तरह अपने पति को कुएं में धकेल दो, फिर हम ऐश करेंगे।” फ़क़ीर ने उपाय सुझाया।

फकीर की बात सुनकर चन्द्रप्रभा ने कहा–”ठीक है, मैं ऐसा ही करूगी।”

इतने में मदनसेन पानी पीकर रानी के पास आया तो रानी कहने लगी- ” मुझे भी अब प्यास लग आई है, कुएं पर चल कर मुझे भी पानी पिला लाओ।”

“मैंने तुमसे पहले ही पूछा था, तब तुमने मना कर दिया था। खैर ! तुमको अगर प्यास लगी है तो मैं अभी पानी लेकर आता हूं।” मदनसेन ने कहा।

जब मदनसेन पानी लेने चला तो रानी भी उसके साथ चल दी और कहने लगी। “मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं।”

बेचारा मदनसेन तो उसके प्रेम में पागल था। उसको मालूम नहीं था कि यह मेरे प्राण लेने चल रही है।

सच है, स्त्रियों के चरित्र को देवता भी नहीं जान सकते तो मनुष्य तो चीज ही क्या है? उनके जाल में तो अच्छे-अच्छे होशियार इन्सान फंस कर रह जाते हैं।

तोता बोला–‘‘ऐ मैना ! जब मदनसेन कुएं पर जाकर डोल भरने लगा तो रानी ने पीछे से उसे धक्का देकर कुएं में गिरा दिया और खुद उस फकीर के पास आ गई। वह फकीर रानी को वहां से लेकर चलता बना और दोनों एक बड़े शहर में जाकर आनन्द से रहने लगे। उस फकीर ने चन्द्रप्रभा को थोड़े ही दिनों में ऐसा नाचना-गाना सिखाया कि उसके समान नाचने वाली कोई नृत्यांगना उस शहर में दूसरी नहीं थी। वह सारे नगर में प्रसिद्ध हो गयी। इस प्रकार रानी के नाचने गाने के कारण वह फकीर लाखों रुपये का मालिक हो गया। रानी उस फकीर के साथ बड़ी मौज-मस्ती के साथ रहने लगी।

तोते ने कहा-“ऐ मैना ! रानी तो उधर फकीर के साथ ऐश करने लगी, अब तू मदनसेन का हाल सुन—जिस समय रानी ने मदनसेन को कुएं में धकेला था, दैवयोग से एक जंजीर जो कुएं में लटकी हुई थी, उसके हाथ में आ गई। मदनसेन उसको पकड़कर कुएं में लटक गया और ईश्वर को याद करता रहा और सोचने लगा कि मैंने रानी को जीवन दान दिया और रानी ने मेरे साथ यह विश्वासघात किया, क्या यही मेरे प्यार की सजा है? उसी दिन बंजारों का एक काफिला उस स्थान पर आकर ठहरा। एक बंजारा डोल और रस्सी लेकर कुएं पर पानी भरने आया। जब उसने डोल कुएं में डाला तो मदन ने उसका डोल पकड़ लिया।

“कुएं में कौन है…?” बंजारे ने चौंक कर पूछा

“भाई ! मैं आफत का मारा एक इंसान हूं। ईश्वर के लिए मुझको बाहर निकाल कर मेरी जान बचाओ।’ मदन ने बंजारे से प्रार्थना की।

यह सुनकर बंजारे को उस पर दया आ गई और उसने मदन को कुएं से निकाल लिया और पूछा-“हे भाई ! तुम कौन हो? तुम इस कुएं में कैसे गिरे ? तुम मुझे अपना हाल बताओ।”

“भाई ! मैं अपना हाल आपसे कैसे कहूं। जो मुसीबत मुझ पर पड़ी है उसे कहने से मेरा दिल फट जाएगा।” मदनसेन ने कहा-“मैं जूनागढ़ का राजकुमार हूं। मेरे पिता ने मुझे देश निकाला दिया था तो मैं अपनी प्यारी पत्नी को लेकर एक जंगल में जा पहुंचा। मैं और मेरी पत्नी एक दूसरे को बहुत प्रेम करते थे। जंगल में एक सांप ने मेरी पत्नी को काटा, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। जब मैं विलाप कर रहा था तो महादेव और पार्वती ने मुझ पर दया की और मेरी आयु के आधे वर्ष मेरी पत्नी को देकर उसे जीवित कर दिया। हम उस जंगल से आगे चल पड़े। कुछ दिन बाद इस जंगल में पहुंचे। यहां एक फकीर का डेरा था। मुझे प्यास लगी थी। मैं पानी पीने चला आया, जब वापस गया तो मेरी पत्नी ने कहा कि मुझे भी प्यास लगी है, पानी पिला लाओ। यह कहकर वो भी मेरे साथ उस कुएं पर आ गई। जब मैं कुएं से पानी निकाल रहा था तो उसने मुझे पीछे से धक्का दे दिया। संयोगवश एक जंजीर जो कुएं में लटक रही है, वह मेरे हाथ में आ गयी, जिससे मैं कएं में डूबने से बच गया। जब आप आए तो मैंने आवाज दी, जिसे सुनकर आपने मुझे वहां से निकाल लिया।”

मदनसेन ने दु:खी मन से सारा वृतान्त उस बंजारे से कह दिया।

अपनी व्यथा सुनाकर मदनसेन चुप हो गया। बंजारा उसकी नेकी और रानी की करतूत सुनकर अफसोस करते हुए कहने लगा–“त्रिया चरित्र जाने नहीं कोय, खसम मार कर खुद सती होय।”

यह कहकर बंजारे ने मदनसेन को सीने से लगा लिया और बोला-“तुम किसी प्रकार की कोई चिन्ता न करो। भगवान बड़ा दयालु है। वह सब भला करेगा।” यह कहकर उसने मदनसेन से पुनः कहा-“अगर चाहो तो तुम हमारे लश्कर में हमारे साथ रह सकते हो।”

मदनसेन ने उसके साथ रहना स्वीकार कर लिया। संयोगवश बंजारों का वह लश्कर कुछ दिनों के बाद उसी शहर में आया जिसमें रानी चन्द्रप्रभा और वह फकीर रह रहे थे। उस शहर को देखकर मदनसेन ने बंजारे से कहा-“भाई ! मेरी इच्छा कुछ दिन इस शहर में रहने की है। यदि आपकी आज्ञा हो तो कुछ दिन मैं इस शहर में बिताऊं।”।

“आपकी जैसी मर्जी हो, आप करें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।” मदनसेन की बात सुनकर बंजारे ने कहा।

मदनसेन बंजारे से विदा लेकर शहर में आया और वह किसी काम की तलाश में घूमने लगा। कुछ दिन बाद उसकी मेहनत रंग लाई और उसे एक बड़े व्यापार के यहां नौकरी मिल गई। वह व्यापारी के यहां रहने लगा और बड़ी लगन और पार से अपने कर्तव्य का निर्वाह करने लगा। उस व्यापारी ने मदन को बड़ा मान दिया और उसे अपने यहां का मुनीम बना लिया। अब मदनसेन के दिन चैन से गुजरने लगे।

एक दिन संयोगवश उस नगर के राजा के यहां चन्द्रप्रभा के नृत्य का आयोजन हुआ। राजा ने उस शहर के तमाम बड़े व्यापारियों और सेठ-साहूकारों को अपने यहां इस नृत्य का अवलोकन करने को आमन्त्रित किया।

जिस दिन चन्द्रप्रभा का नृत्य था, शहर के सब व्यापारी और सेठ-साहूकार राजा के यहां पहुंचे। मदनसेन ने भी रानी के नृत्य और गायन की बड़ी तारीफ सुन रखी थी। उसने अपने मन में सोचा कि इस नर्तकी का नृत्य अवश्य देखना चाहिए। यही सोचकर मदनसेन भी राजा के यहां जा पहुंचा। रानी साज-श्रृंगार करके नृत्य करने के लिए खड़ी हो गई। उस समय वह अप्सरा के समान सुन्दर लग रही थी। मदनसेन अपने मालिक के पास बैठा था। रानी ने नृत्य शुरू किया और एक ठुमरी उसने उस महफिल में गायी।

चन्द्रप्रभा ने ऐसे-ऐसे कई राग बड़े ही सुन्दर ढंग से अपनी सुरीली आवाज में गाए जिन्हें सुनकर महफिल के सब लोग वाह-वाह करने लगे। राजा से लेकर प्रजा तक सबने उसे ढेरों इनाम दिए। मदनसेन ने भी अपने हाथ की अंगूठी जिसमें हीरा जड़ा हुआ था. उतारकर रानी चन्द्रप्रभा को भेंट दी। रानी चन्द्रप्रभा ने अंगठी को पहचान लिया और मन ही मन में कहने लगी-“बड़ा गजब हो गया, कम्बख्त मेरा पति तो जिन्दा है और यहां आ पहुंचा है। अब यह मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगा। इसलिए कुछ ऐसा उपाय करना चाहिए जिससे कि ये मारा जाए। फिर उसने अपने दिल में उपाय सोचा इससे बेहतर और कोई उपाय नहीं हो सकता कि एक तड़पती, कड़कती रागिनी गाऊं और राजा को रिझाऊ, और जब राजा खुश हो जाए तो राजा से उसे मरवाने की आज्ञा ले लूं। ये बात अपने मन में सोचकर रानी चन्द्रप्रभा ने लचकती हुई रागिनी गाना शुरू कर दिया।

रानी की इस बसन्त की बहार को सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। वह चन्द्रप्रभा से बोला–“हम तुझसे बहुत प्रसन्न हैं। बोल, क्या मांगती है? जो कहेगी, तुझे मिलेगा।”।।

“आप यदि मुझ पर प्रसन्न हैं तो पहले आप मुझे वचन दीजिए कि मैं जो मांगूंगी, आप मुझे देंगे।” रानी ने राजा को वचनबद्ध करना चाहा।

चन्द्रप्रभा की बात सुनकर राजा ने चन्द्रप्रभा को वचन दे दिया। तब चन्द्रप्रभा ने राजा से कहा-“आपकी इस सभा में मेरा एक चोर है, उसको आप इसी समय मरवा दीजिए।’

“चोर को मेरे सामने लाओ।” राजा ने तुरन्त कहा।

तब रानी ने मदनसेन का हाथ पकड़ा और उसे राजा के सामने ले आई। इसे जल्लादों के हवाले कर दो।’ राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया।

यह सुनकर जल्लाद मदनसेन का हाथ पकड़कर उसे मारने के लिए ले जाने लगे।

इस समय मदनसेन का मालिक व्यापारी घबराकर मदनसेन के पास आया और पूछा-“तूने इस नर्तकी का क्या चुराया है जिस वजह से ये तुझे मरवाना चाहती।”

मदनसेन ने अपने मालिक से कहा-“मैंने इसका कुछ नहीं चुराया। बस, तुम इस राजा को मेरी दो बातें सुन लेने के लिए राजी कर लो तो मेरी जान बच जाएगी।”

मदनसेन का मालिक यह सुनकर अपने साथी व्यापारियों और साहूकारों के पास आया और उन सबसे मशवरा किया। उसने कहा-‘‘मित्रो ! या तो राजा न्याय करे, वरना हम सब इस शहर को छोड़कर चले जाएंगे।”

यह सलाह-मशवरा करके सारे व्यापारी राजा के पास आए और कहने लगे -“राजा साहब ! हमारा मुनीम निर्दोस ही मारा जा रहा है। वो कहता है की राजा ने मुझे मारने की आज्ञा दी है, सो मुझे भी उस राजा की आज्ञा से मरना स्वीकार है, लेकिन मेरी दो बातें सुन ली जाये।”

राजा ने व्यापारियों की बात सुनकर कहा-“मुनीम को लेकर आओ।”

व्यापारी मदनसेन को लेकर राजा की सेवा में उपस्थित हुए। राजा बोला-“तुम जो कुछ कहना चाहते हो, वो मेरे सामने कहो।”

“मैंने क्या दोष किया है, जिसके कारण आपने मेरी हत्या की आज्ञा दी है।”

मदनसेन ने पहला प्रश्न किया।

“तू इस नर्तकी का चोर है।” राजा ने कहा।

यह सुनकर मदनसेन ने कहा-“मैं इस वेश्या का चोर नहीं हूं। मैं इस कुलटा स्त्री का पति हूं। ये मुझे कुएं में धकेल कर एक फकीर के साथ चली आई है।”

“महाराज ! मैं इस झूठे को क्या जानूं कि ये कौन है? ये तो बस मेरा चोर है।” चन्द्रप्रभा ने बात को बिगड़ते देखकर कहा।

“राजा साहब ! अगर ये मेरी पत्नी नहीं है तो जो कुछ चीज मैंने इसे रास्ते में दी थी, यह मेरी वो अम्रौनत मुझे लौटा दे।” मदनसेन ने रानी की ओर घृणित नजरों से देखा।

“मुझे स्वीकार है।’ रानी ने तुरन्त स्वीकार कर लिया।

“अच्छा अपने हाथ में पानी ले। मेरा तेरा न्याय इसी सभा में होगा। पानी लेकर कह कि जो वस्तु इसने रास्ते में मुझे दी थी, वो मैं आज इसे वापिस करती हूं।” मदनसेन ने कहा।

रानी ने अपने हाथ में पानी लेकर कहा–“जो वस्तु इसने मुझे रास्ते में दी थी, वो मैं आज इसे वापिस करती हूं।”

यह कहकर रानी ने जैसे ही अपने हाथ का पानी छोड़ा, वैसे ही रानी के प्राण पखेरू उड़ गए। यह देखकर सब लोग आश्चर्य चकित रह गए। राजा ने घबराकर मदनसेन से कहा-“यह क्या हुआ? इसका कारण सही-सही मेरे समक्ष कहो।”

तब मदनसेन ने अपने बारे में राजा को बताना प्रारंभ किया और अपने के देश निकाला दिए जाने से लेकर अब तक का सारा हाल सबके सामने कह सुनाया, ये सारी बातें सुनकर राजा ने मदनसेन को अपने सीने से लगा लिया। उसने अपनी बेटी की शादी मदनसेन के साथ कर दी और उस फकीर को फांसी का हुकुम दिया।

तोता बोला–“ऐ मैना ! जब से मैंने ये दास्तान सुनी है, मैं भी स्त्रियों से घ्रणा करता हूं और इसी कारण मैंने आज तक दूसरी शादी नहीं की।”

मैना बोली- ”ऐ तोते ! तूने बात सच्ची कही है. लेकिन ये भी सच है की पुरुष अधिक निष्ठुर होते हैं। स्त्री तो सौ में से एक-दो ही चरित्रहीन या निष्ठुर हैं। यदि तू मेरी इस बात को झूठी समझता है तो मैं तुझे एक और दास्तान सुनाती हूं, ध्यान लगाकर सुन :-


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