तीनों लोकों के स्वामी भगवान्
तीनों लोकों के स्वामी भगवान्


एक राजा के चार लड़के थे। राजा ने उनको बुलाकर बताया कि ‘जो सबसे बड़े धर्मात्मा को ढूँढ़ लायेगा, वही राज्य का अधिकार पायेगा।’ चारों लड़के घोड़ों पर सवार हुए और दिशाओं में चले गये।
एक दिन बड़ा लड़का लौटा। उसने पिता के सामने एक सेठ जी को खड़ा कर दिया और बताया – ‘ये सेठजी सदा हजारों रुपये दान करते हैं। इन्होने बहुत-से मन्दिर बनवाये हैं, तालाब खुदवाये हैं और अनेक स्थान पर इनकी ओर से प्याऊ चलते हैं। तीर्थों में इनके सदाव्रत चलते हैं, ये नित्य कथा सुनते हैं, साधु-ब्राह्मणों को भोजन कराकर भोजन करते हैं। गौ-पूजन करते हैं, इनमें बड़ा धर्मात्मा संसार में कोई नहीं है।’
राजा ने कहा – ‘ये निश्चय धर्मात्मा हैं।’ सेठ जी का आदर – सत्कार हुआ और वे चले गये।
दूसरा लड़का एक दुबले-पतले ब्राह्मण को लेकर लौटा। उसने कहा – ‘इन विप्रदेव ने चारों धामों तथा सातों पुरियों की पैदल यात्रा की है। ये सदा चान्द्रायण व्रत ही करते रहते हैं। झूठ से तो सदा डरते हैं। इन्हें क्रोध करते किसी ने कभी नहीं देखा। नियम से मन्त्र-जप करके तब जल पीते हैं। तीनों समय स्नान करके संध्या करते हैं। इस समय विश्व में ये सबसे बड़े धर्मात्मा हैं।’
राजा ने ब्राह्मण देवता को प्रणाम किया। उन्हें बहुत-सी दक्षिणा दी और कहा – ‘ये अच्छे धर्मात्मा हैं।’
तीसरा लड़का भी आया। उसके साथ एक बाबाजी थे। बाबाजी ने आते ही आसन लगाकर नेत्र बंद कर दिये। उनकी बड़ी भारी जटा थी, शरीर में केवल हड्डियाँ भर जान पड़ती थीं। उस लड़के ने बताया कि ‘महाराज बहुत प्रार्थना करने पर पधारे हैं। बहुत बड़े तपस्वी हैं। सात दिनों में केवल एक बार दूध पीते हैं। गरमी में पंचाग्नि तापते हैं। सर्दी में जल में खड़े रहते हैं। सदा भगवान् का ध्यान करते हैं, इनके समान धर्मात्मा की बात सोचना भी कठिन है।’
राजा ने महात्मा को दण्डवत किया – महात्मा आशीर्वाद देकर बिना कुछ कहे चलते बने। राजा ने कहा – ‘अवश्य ये बड़े धर्मात्मा हैं।’
सबसे अन्त में छोटा लड़का आया। साथ में मैले कपड़े पहने एक देहाती किसान था। वह किसान दूरसे ही हाथ जोड़कर डरता हुआ राजा के सामने आया। तीनों बड़े लड़के छोटे भाई की मूर्खता पर हँसने लगे। छोटे भाई ने कहा – ‘एक कुत्ते के शरीर में घाव हो गये थे। पता नहीं किसका कुत्ता था, इसने देखा और लगा घाव धोने। मैं इसे ले आया हूँ। पता नहीं, यह धर्मात्मा है या नहीं? आप पूछ लें।’
राजा ने पूछा – ‘तुम क्या धर्म करते हो ?’
डरते हुए किसान ने कहा – ‘मैं अनपढ़ हूँ, धर्म क्या जानूँ। कोई बीमार होता है तो सेवा कर देता हूँ। कोई माँगता है तो मुट्ठीभर अन्न दे देता हूँ।’
राजा ने कहा – ‘यह सबसे बड़ा धर्मात्मा है।’ सब लड़के इधर-उधर देखने लगे, तो राजा ने कहा –
दान-पुण्य करना, देवताओं की और गौकी पूजा करना धर्म है। झूठ न बोलना, क्रोध न करना, तीर्थ यात्रा करना, संध्या करना, पूजा करना भी धर्म है – तपस्या करना तो धर्म है ही; किंतु सबसे बड़ा धर्म है – बिना किसी चाह के असहाय प्राणियों की सेवा करना। बिना किसी स्वार्थ के भूखे को अन्न देना, रोगी की टहल करना, कष्ट में पड़े हुए की सहायता करना – सबसे बड़ा धर्म है। जो दूसरे प्राणियों की भलाई करता है, उसकी भलाई अपने-आप होती है।