स्टेज फियर
स्टेज फियर


स्टेज पर कभी काँपते हाथो में माइक लेकर, एक ब्लैकड आउट माइंड के साथ दिल की बढ़ती धड़कनो से राब्ता किया है क्या?, अगर नहीं, तो जीवन एक खूबसूरत अनुभव वंचित है आप, मुझे आज भी अच्छे से याद है स्कूल का वो दिन जब स्कूल में पोएट्री कांटेस्ट था, और मैं और मेरे दोस्तों का ग्रुप ऑडियंस की भीड़ में बैठा किसी पर टिप्पणियाँ करता तो कभी मजाक उड़ाता, जैसा कि अक्सर ऑडियंस में बैठे लोग किया करते हैं, इसी बीच हमारा एक मित्र अमित स्टेज पर पहुचा और अपने ग्रुप के किसी दोस्त को स्टेज पर वो भी पोएट्री के लिए देख कर तो हमारी हँसी रोके ना रुके, अब हमारे हस्ते चहरे देख कर किसी तरह अपनी सारी हिम्मत बटोर कर स्टेज पर खड़ा अमित भी हिम्मत खो बैठा और अपनी पोएट्री भूल कर बीच मे अटक गया, और हमारा ग्रुप जो की किसी तरह पहले ही अपनी हँसी रोक कर बैठ था, वो भी ठहाके मार कर हँस दिया, हमारी इस हरकत को देख कर हमारी टीचर को गुस्सा आ गया और उसने मेरे साथ मेरे पूरे ग्रुप को स्टेज पर बुलाया, और अब सबको एक एक कर के माइक लेकर स्टेज पर जाना था और एक पोएम सुननी थी, मेरा नंबर था, हाथ मे माइक आते ही दिल की धड़कने तेज़ हो गयी और हाथ पैर काँपने लगे, और दिमाग मे कुछ नहीं आ रहा था, इतने में टीचर माइक लेकर बोली क्या हुआ अब क्यों नहीं आ रही हँसी, ये बिल्कुल ऐसा एहसास था मानो किसी ने बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पे लेजाकर वहाँ से धक्का दे दिया हो और जमीन पे गिरने से पहले ही पकड़ लिया हो, दिल दहल सा गया था, वो हाथ पैरों का काँपना दिल की धड़कनों का तेजी से बढ़ना ।ऐसा कभी मैंने महसूस नहीं किया था, उस वक्त समझ आया कि स्टेज पर जाकर माइक में बोलने के लिए कितनी हिम्मत चाहिए होती है, और अमित का मजाक उड़ा कर कितनी बड़ी गलती की थी उसका भी एहसास हो गया था ।उस दिन तो अमित से माफी मांग कर किसी तरह घर पहुँचा, मगर दिल में एक बेचैनी सी थी, कि जब ऑडियंस में बैठ कर हम सबका मजाक उड़ाया करते थे तो अक्सर ये सोचा करते थे, कि ये क्या बकवास बोल रहा है इससे अच्छा तो हम ही बोल लेंगे, मगर उस दिन स्टेज पर तो कुछ समझ नहीं आ रहा था, बस उस दिन से शुरू हुआ मेरा स्टेज-फियर, अब तो स्टेज और माइक के नाम से ही डर लगने लगा था ।
मेरा नाम आकाश है और ये नाम काफी कॉमन है, हमारे देश मे हर मोहल्ले में आपको कम से कम एक आकाश नाम का लड़का तो मिल ही जाएगा, तो स्टेज पे किसी और आकाश का नाम भी बुलाए जाने पर दिल की धड़कने बड़ जाया करती थी । एक स्टेज और माइक का इतना खौफ हो सकता है इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी मैंने । 26 जनवरी नजदीक थी और इस बार हमारी क्लास की स्पेशल असेंबली होनी थी, सभी उत्सुक बच्चों ने अपना अपना किरदार चुन लिया था, कोई मंच से निर्देशन करना चाहता था, तो कोई गाना गाना, और एक नाटक के लिए भी सबके किरदार चुन लिए जा चुके थे । मेरे सभी दोस्तों ने वो किरदार चुन लिए थे जिनका नाटक में कम भाग था, ताकी उनको बाकी किसी चीज़ में ना डाल दिया जाए, अब बची थी पोएट्री और सभी उत्सुक छात्र अपनी अपनी मर्जी के कुछ चुन चुके थे, अब टीचर पोएट्री के लिए किसी को ढूंढ रही थी, और अपनी बेंन्च पर नीचे छुपता हुआ डरा सहमा सा मैं बस ये सोच रहा था कि टीचर मेरा नाम ना ले, इतने में टीचर ने अमित का नाम बोला मेरी जान में जान आयी, मगर मेरी किस्मत इतनी अच्छी कहाँ अमित उठ कर बोल पड़ा कि असेंबली वाले दिन उसकी बहन की शादी है और वो एप्लीकेशन पहले ही जमा कर चुका है । एक वाजिब कारण तो था उसके पास, और उसके साइड वाली बेंच पर बैठा था मैं, तो टीचर ने मुझे उठाया और पूछा आकाश तुम असेंबली में कुछ कर रहे हो?,सहमा सा मैं डरी से आवाज में बोला नहीं, तो तय हुआ पोएट्री तुम बोलोगे । मैं जो स्टेज के नाम से ही कतराने लगा था, उसको पोएट्री का जिम्मा दिया गया था, जो 2 दिन में तैयार कर के स्टेज पर सुनानी था, मैं कुछ भी कर के इससे बचना चाहता था तो हर तरह के बहाने सोचने लगा "अगर छुट्टी मार कर घर पे रुकू तो मम्मी की डांट पड़ेगी, और पोएट्री की जिम्मेदारी लेकर छुट्टी मारने पर टीचर से भी मार पड़ेगी, नहीं-नहीं ये आईडिया तो बेकार था", तो बस में घर लौटते वक्त दोस्तो से पूछा क्या बहाना दिया जाए, किसी ने पेट दर्द का बहाना बताया किसी ने सरदर्द का, पूरे रास्ते कुछ भी ऐसा नहीं सोच पाए जिससे की इससे बचा जा सके ।
अब मेरे दोस्तों का बस-स्टॉप आ गया था, और वो सभी उतर गए, मेरा स्टॉप सबसे आखरी था, तो अकेला बैठा ये सोच रहा था की क्या बहाना दूं, इतने में मेरी सीट पर एक सीनियर आकर बैठे, वही सीनियर जो हमारे स्कूल में ज्यादा तर प्रतियोगिताएं जीता करते थे, और अब तो हमे ये तक लगने लगा था कि उनके स्टेज पर ना आये बिना स्कूल की कोई प्रतियोगिता पूरी ही नहीं होती है । एक तरफ वो थे जिनको मानो स्टेज से प्यार सा था और दूसरी तरफ मैं जिसकी स्टेज का नाम सुनकर ही डर लगने लगता था, वो बहोत देर से हमारी बातें तो सुन रहे थे, मगर मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि आज वो मेरे पास क्यों आये है, मैं सोच ही रहा था की वो बोल पड़े "स्टेज से डर लगता है?, माइक पकड़ने से कतराते हो? स्टेज पर जाते ही हाथ पैर काँपने लगते है?,स्टेज पर जाते ही बलैकं हो जाते हो?", मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब इनको कैसे पता बेशक वो हमारी बाते सुन रहे थे मगर ऐसी कुछ बात तो हमने की नहीं थी। तो मैंने पूछ लिया आखिर आपको कैसे पता तो उन्होंने मुझे अपनी कहानी सुनाई और बताया कैसे पहेली बार उनके साथ भी ये सब हुआ था, उनके भी हाथ काँपे थे, मगर उनकी इन सब बातों पर मुझे भरोसा नहीं हूँ रहा था, आखिर हो भी कैसे वो हमेशा स्टेज पर जो दिखाई देते थे, मगर जाते वक्त उन्होंने मुझे एक राज की बात बताई कि किस तरह उनको भी किसी सीनियर ने समझाया था, कि स्टेज पर जाने के बाद जो पहेली बात याद रखनी है वो ये है कि नीचे जितने भी लोग बैठे है सब गूंगे और अँधे है, और अब मैं जैसा भी बोलू अच्छा या बुरा अब तो उन्हें सुनना पड़ेगा क्योंकि अब माइक मेरे हाथ मे है, और अगर अच्छा नहीं भी बोल पाए तो सब 2 दिन में भूल जाएंगे, इस बात ने मुझे थोड़ा हौसला तो दिया था, और मुझमे थोड़ी हिम्मत भी आ गयी थी, उन्होंने मुझे शीशे के आगे खड़े होकर अभ्यास करने की भी राय दी । अब घर जाकर बस पोएम याद करनी थी, पोएम याद करी और उसे कई बार दोहराया कभी छत पर टहलते हुए तो कभी शीशे के आगे, तो कभी घर वालो को सुनाया ।अब परफॉरमेंस का दिन था, स्टेज पर माइक पकड़ कर हाथ तो अभी भी काँप रहे थे, मगर किसी तरह 1 2 बार अटकने के बाद पोएम सुना ही दी, और ऑडियंस जोर जोर से तालियाँ पीटने लगी, मगर मैं जानता था कि ये तो मेरी बेस्ट परफॉरमेंस नहीं थी । मैं इससे अच्छा कर सकता था, और आज तो मैं कुछ चीज़ें भूल भी गया था ।, उस पल में मुझे समझ आ गया था कि अगर माइक आपके हाथ मे हो तो सामने वाले सब गूंगे और अँधे है । उन्हें बस हर चीज़ पर ताली पिटनी है, उस दिन से मानो स्टेज का डर काम सा होने लगा था, धीरे धीरे हाथ भी काँपने बंद हो गए, और उस तालियों की गूंज से प्यार हो गया जो सिर्फ हमारे लिए बजती है । वो एक अलग ही अनुभव होता है । तो अगर आपने कभी ऐसा अनुभव किया है, तो अच्छा है और नहीं तो जब मौका मिले तो छोड़िएगा नहीं और उस वक्त ये जरूर याद रखना की अब माइक तुम्हारे हाथ मे है।