ना टॉफी मिली ना तुम
ना टॉफी मिली ना तुम
नया शहर, नए लोग, दिल मे अरमान, आँखों में सपने, वो आखरी बैंच और कॉलेज का पहला दिन, काफी अजीब सी शुरुवात थी कॉलेज की, कॉलेज में पहले दिन पढ़ाई जो शुरू हो गई थी, मगर मुझे नए लोगो से पहचान बनाने का बहुत शौक है तो मैंने तो पढ़ाई छोड़कर जानपहचान में ध्यान लगाया, कुछ 2 हफ्ते और 3 बार री-शफलिंग के बाद गिन कर कुछ 7 लडकियँ बची थी क्लास में , और हम 53 लड़के, बस इसी के साथ एडजस्ट कर ही रहे थे कि गणित की क्लास के बीच पिउन की एंट्री हुई 1 नई लड़की के साथ हुई, हये बला की खूबसूरत थी वो, मैं सोच ही रह था कि आवाज आई, 'ये इसी सेक्शन में है न्यू अडमिंशन', नाह अभी प्यार नही हुआ था मुझे दरहसल ये लव-एट-फर्स्ट-साइट का किस्सा तो आज तक मेरी समज ही नही आया, अब क्या था, नए लोगो से पहचान बनाने का शौक तो था ही और वो क्लास मे नई आई थी, मगर वो किसी से बात नही करती थी लंच और बाकी ब्रेक्स में भी बस खिड़की के किनारे खड़ी हो जाय करती थी, और आसमान को निहारा करती है कि मानो उसकी जगह यहाँ बंद कमरो में नही, उसे तो खुले आसमान में उड़ान भरने को बनाया गया हो, अब उसकी एक आदत से वाकिफ हो चुका था मैं की वो हर ब्रेक में खिड़की के किनारे खड़ी हो जाती थी, तो एक दिन लंच स्किप कर के वही रुकने का सोचा की किसी बहाने उससे पहचान कर लूंगा, किसी तरह क्लास से बच्चो की भीड़ कम हुई वो हर रोज की तरह अपनी उसी खिड़की के किनारे खड़ी थी, अब बात की शुरुवात हो तो कैसे, क्या मैन आपको बताया कि हर बार जब मैं घर से बाहर जाता तो मेरी छोटी बहन एक टॉफी का पैकेट पकड़ाया करती थी और अक्सर मेरी जेब उन टॉफियों से भारी रहती थी, तो सोचा कि क्यों न टॉफी से शुरुवात की जाए उस दिन पहली बार उस टॉफी का नाम पड़ा मैने 'My love' वो हार्ट शेप वाली टॉफी, मैं और घबरा गया और पहेली बार किसी नए शख्स से जानपहचान करना मेरे लिए मुश्किल सा हो रहा था, किसी तरह हिम्मत कर के उस खिड़की के पास गया और टॉफी आफर करते हुए बोला "Hi" , उसने साइड देखा मेरे हाथ से टॉफी उठाई और स्माइल करते हुए एक प्यारी सी आवाज में बोल "Hello", मैन अपना नाम बताया, उसने अपना और बातो का सिलसिला शुरू ही ह
ोना था कि हमारे कॉलेज के punctual टीचर्स जो 1:00 बजे की क्लास में 12:58 पे ही आ जाते है उनकी एंट्री हुई और सब अपनी अपनी सीट पर, पहेली बार जिंदगी में दो मिनट की एहमियत समझ आई थी, उस पल जितने कीमती वो दो मिनट लग रहे थे, उतना ही अपने टीचर पे गुस्सा आ रहा था, किसी तरह सब सह लिया, आखिर कर भी क्या सकता था, फिर क्या था हर रोज जल्दी से लंच, क्लास की बैंच, वो मैं, एक टॉफी और बहोत सारी बाते, दिन निकल ही रहे थे कि कॉलेज की छुटियां आ गयी और मेरी टॉफियां भी खत्म हो ही गयी थी और बाजार से जाकर खुद लेन में मुझे आलास आता था, तो घर जाने के बहाने एक टॉफी का नया पैकेट आ जाय करता था, घर पे आखरी दिन था, पौने-दस की ट्रेन और मैं हर बार की तरह निकलने में लेट, निकल ही रहा था कि पीछे से आवाज आई 'भईया रुको आप कुछ भूल गए' पीछे मुड़ा तो बहन के हाथ मे एक टॉफी का पैकेट इस बार टॉफी का नाम था 'Darling' वही हार्ट शेप वाली टॉफी, तो कहानी अब 'my love'से 'darling' पे आ गयी थी, प्यार का तो पता नही मगर उससे बाते करना उसके साथ टाइम बिताना, उसका वो बचपना बड़ा अच्छा से लगने लगा था, यू ही कहानी बढ़ती रही और ये साल भी खत्म हो गया ग्रेजुएशन का तीसरा साल आना था और छुट्टियों में टॉफियों का नया पैकेट, घर गया इस बार और लौटते समय जो टॉफी का पैकेट मेरे हाथ मे थमाया गया वो था 'kismi', ये टॉफियों के नाम की कुछ अलग ही साजिश चल रही थी जिसमे मेरा कोई हाथ नही था, मतलब 'My Love' से 'Darling'. और ' Darling' से 'Kismi', मानो सब सब पहले से प्लांड हो, खैर वक्त गुजरता गया और कॉलज का ये साल भी खत्म ही था अब उसके साथ कई यादे जुड़ चुकी थी मेरी, कॉलेज का आखरी सेमिस्टर था और छुट्टियों में मैं बेताब था कि इस बार कौन सी टॉफी का पैकेट मिलना है, छुट्टियां खत्म होने को ही थी कि सुर्खियों में एक खबर थी कि पूरा देश एक नए वायरस के खतरे के कारण lockdown हो रहा है, और कॉलेज का वो आखरी वक्त मेरे हाथ से फिसलता जा रहा था, और वो टॉफी जो 'My Love' से 'Darling'. और ' Darling' से 'Kismi' का सफर तय कर चुकी थी वो भी नही मिली थी, मैं आज भी हर शाम खिड़की के किनारे बैठा करता हूँ और बस यही सोचता हूँ कि इस बार "ना टॉफी मिली ना तुम"।