स्त्री का अस्तित्व
स्त्री का अस्तित्व


स्त्री के जीवन की शुरुआत ही अस्तित्व की खोज से होती है हर समय हर क्षण एक स्त्री अपने अस्तित्व को तलाशती है मां की कोख में आने से लेकर जीवन की अंतिम सैया पर लेटने तक अपने अस्तित्व की खोज में जुटी यही सवाल पूछती है क्या अस्तित्व है मेरा....
"काशी। उठो क्या हुआ उठो" काशी के पति राजेश बदहवास से काशी को उठाने की कोशिश कर रहे थे, काशी अपने पिता की पुत्र चाह में जन्मी चौथी पुत्री थी। काशी की तीन और बड़ी बहनें भी थी शायद इसलिए हमेशा पिता के प्यार से वंचित ही रही। तिरस्कार और घृणा को झेलती बड़ी हुई तो पिता ने उसकी शादी गांव के एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति राजेश से करवा दी ताकि दान दहेज और बोझ से छुटकारा मिल सके। पति शराबी और अय्याश किस्म का था ।दौलत की कमी ना थी ससुराल में पर काशी को जिस प्यार और अपनेपन की आवश्यकता थी वो सास ससुर और पति ना दे पाए थे। समय गुजारा एक पुत्र और एक पुत्री के रूप में काशी को कुछ उम्मीद मिली। पुत्री बड़ी हुई उसकी शादी एक अच्छा घर और वर देख कर कर दी पर पुत्र गलत संगत में पड़ गया ।पिता दादी बाबा के प्यार में इस कदर बिगड़ा के खुद को सर्
वोपरि मान बैठा। एक समय वह भी आया जब दादी बाबा भी साथ छोड़ कर जा चुके थे। उनके जाने के बाद उसकी मनमानियां और भी बढ़ गई एक दिन वह पास के गांव की एक लड़की जिसका नाम नैना था विवाह कर ले आया। काशी को नैना कुछ चालचलन की ठीक नहीं लगी ।उसने इस शादी का पुरजोर विरोध किया लेकिन उसकी एक न चली वक्त फिर अपनी रफ्तार से चलने लगा एक दिन काशी संकीर्तन से लौटी घर के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था। उसे समझ ही नहीं आया आज सब कहां चले गए अचानक काशी को याद आया कि उसके पास घर की दूसरी चाबी भी है। जो उसने आज तक उपयोग नहीं की है उसने जैसे ही दरवाजा खोला देखकर चीख पड़ी और गश खाकर जमीन पर गिर पड़ी ।काशी के पति राजेश और नैना हड़बड़ा गए और अपने अपने कपड़े पहनने लगे। काशी को अस्पताल ले जाया गया डॉक्टरी जांच के बाद काशी से मिलने की इजाजत मिली। पति के सामने आते ही काशी बिलख पड़ी उसने कहा मैं तुमसे बस इतना जाना चाहती हूं.. क्यों किया तुमने ऐसा ? क्या अस्तित्व था मेरा तुम्हारे जीवन में? मैं और नहीं जीना चाहती.... हृदयाघात ने उसकी जान ले ली| छोड़ गई वह एक अनसुलझा सवाल अपने अस्तित्व की अधूरी तलाश।