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Geeta Bhadauria

Drama Tragedy

4  

Geeta Bhadauria

Drama Tragedy

सपनों के पंख

सपनों के पंख

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"पापा! देखो मेरी पेंटिंग! ...कितनी प्यारी हैं ना!!! ये ममा, ये आप, ये छोटा भैया और ये मैं!!!"

परी ने एक हाथ से पापा का हाथ हिलाते हुए दूसरे हाथ में पकड़ी अपनी पैंटिंग सामने कर दी। 


"सिली गर्ल! यु डोंट नो हाऊ तो बिहैव विद योर फादर? सारी चाय गिर गई। अलका!!!......" पापा ने दूसरे हाथ से अखबार टेबल पर रखते हुए मम्मी को आवाज लगाई। 

मम्मी ने आकर जल्दी से गिरी हुई चाय को पोंछा और अपने लिए बनाई हुई चाय को पापा को लाकर दे दिया। फिर परी को दूसरे सोफे के पीछे से गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गई। 

"दिखाओ मुझे आपका हाथ तो नहीं जला?" 

नन्ही परी ने एक हाथ आगे करके नहीं में गर्दन हिला दी। वह अब भी सुबक रही थी। 

"दूसरा हाथ भी दिखाओ!" 

परी ने डरते हुए दूसरा हाथ आगे किया तो मम्मी उस हाथ में पकड़ी हुई पेंटिंग अपने हाथ में लेकर खुशी से निहारने लगीं और भूल गई कि दूसरा हाथ भी देखना है। वैसे भी उसके हाथ पर चाय नहीं गिरी थी, उसके दिल पर गिरी थी। जिसने नन्ही परी के दिल में फफोले कर दिए थे। 

"ये आपने कब बनाई बेटा? और मुझे क्यों नहीं दिखाई?" मम्मी ने प्यार से पुचकारा।

"ये वाली बहुत सुंदर बनी थी ....पापा को दिखानी थी... फिर पापा मुझे भी 'राजा बेटा!' कहकर गोद में उठाकर बालकनी में इंद्रधनुष दिखाते।" 6 साल की परी ने मासूमियत से कहा। 


"मेरा राजा बेटा!" अलका परी को गोद में उठाकर बालकनी में ले आई और वहां खड़ी एक गाय को दिखाने लगी। तभी गाय के पीछे कुछ गठरी सी गिरी। अलका ने ध्यान से देखने की कोशिश की। थोड़ी देर में उस गठरी ने गाय जैसी एक छोटी आकृति ले ली और वह आकृति कांपते कदमों से उठकर खड़ी हो गई फिर थोड़ी ही देर में एक ओर बैठ गई। गाय भी थककर उसी से सटकर बैठ गई। अलका की आंखें भर आईं, उसने डबडबाई आंखों से परी को देखा और अपनी उंगली से उस प्यारी सी बछिया की ओर इशारा किया।

"देखो! गाय ने बच्चे को जन्म दिया। कितनी प्यारी बछिया है। है ना! आंखों में काजल भी लगा हुआ है।"

"मम्मा! ये भी अपनी गाय ममा के पेट से आई है।"

"हाँ बेटा!"

"इसका भाई भी है?"

"पता नहीं"

"इसके गाय पापा कहाँ है? इसके भी पापा अपनी बेटी को प्यार नहीं करते?"

अलका का दिल धक से रह गया। उसने जल्दी से परी के मुँह पर हाथ रख दिया। "बेटा! ऐसे नहीं बोल......."


"अच्छा!!!!! तो तुम इसके दिमाग में मेरे खिलाफ ज़हर भरती रहती हो। अरे! ........ कुछ......अच्छा सिखाओ इसे ..नहीं .. तो ... तुम्हारी तरह किसी की जिंदगी जहन्नुम कर देगी।" गुस्से में एक एक शब्द चबाकर बोलेते हुए पापा पैर पटकते हुए मॉर्निंग वॉक के लिये घर से निकल गए। 


परी डर के मारे अपनी मम्मी की गर्दन से लिपट गई और अपनी आंखें बंद कर ली। जब उसकी मम्मी ने उनकी गर्दन में कसकर लिपटी उसकी बाहों का घेरा जबरदस्ती खोला, तब जाकर परी ने अपनी आंखें खोलीं। फिर उसने अपनी मम्मी के साथ पार्क जाकर उस गाय को हरा पालक खिलाया और मम्मी की देखादेखी, बछिया के गर्दन पर हाथ फेरने लगी। पर थोड़ी देर में उसे अहसास हुआ कि कोई उसकी गर्दन पर हाथ रख रहा है। उसने बिना देखे वह हाथ झटक दिया।

परी!!!!!

परी!!!!

डॉक्टर आकाश ना जाने कब से उसे कंधे पकड़कर हिला रहा था। परी ने टेबल से सर उठाकर अपनी आंखें खोली तो आकाश दोनों हाथ अपनी कमर पर रखे झुंझलाता हुआ सा सामने खड़ा था। 

"कॉफी" उसने अपनी आईब्रो उचकाकर टेबल के दूसरे छोर पर रखे मग की ओर इशारा किया और सामने पड़ी कुरसी को हत्थे से पकड़कर अपनी ओर खींचा और धम्म से उसपर बैठ कर फिर से परी की ओर देखा। फिर अपने दाहिने हाथ की उंगली और अंगूठे में मग फंसाकर कॉफी की सिप ली और उकताहट से परी को घूर कर देखा। 


जब डॉक्टर आकाश का घूरना परी की बर्दाश्त के बाहर हो गया तो वह दोनों हाथों को ऊपर की तरफ स्ट्रेच करके अहसान जताती हुई, चेयर से उठी और पीछे बने वॉशबेसिन में मुँह धोकर आई।


"नाईट डयूटी थी.....और आज डे ड्यूटी भी है। थकान से आंख लग गई थी। " डॉ परिणीता यानी परी ने कहा और अपना कॉफी का मग अपने होठों से लगा लिया। 

"सपने में कुछ मम्मी! मम्मी! बड़बड़ा रही थी, आंटी ठीक हैं ना!"

"ओह! शी इज मोर देन फाइन!" डॉ परिणीता ने जवाब दिया और कॉफी पीने लगी।


डॉक्टर परिणीता को अपने बचपन के कटु दिनों के ऐसे रेफ़्लेक्सेस आते रहते हैं। जिनसे छुटकारा पाने के लिए उसने कई डॉक्टर्स को दिखाया। यहां तक कि मनोचिकित्सक से भी सलाह ले चुकी है। पर उसकी समस्या जस की तस है। लेकिन इस सब से उसे बहुत तकलीफ होती है। रह-रह कर पुराने दिनों की ये कटु यादें, उसके घावों को बार-बार हरा कर देती है। उसे तो लगता है कि उसके ये घाव अब नासूर बन गए है जो कभी ठीक नहीं होंगे। 

"फिर से वही डरावने सपने देखे क्या?" 

"हाँ...आँ...." परी ने चौन्क कर कहा। 

"यार! फॉरगेट आल दैट!... गॉन इज गॉन। क्यों अभी तक बुरी यादों को अब तक अपने से चिपका रखा है? हम अपने अतीत, अपनी यादों से इसलिए चिपके रह जाते हैं क्योंकि हम उसे गुजरा हुआ मान ही नहीं पाते। अब सालों हो चुके इसलिए मान लो कि वह दौर गुजर चुका है। वह तुम्हारी पुरानी जिंदगी थी, कडवीं यादें! जिनसे तुम्हारे आज का कुछ लेना देना नहीं है। जब आप पिछली जिंदगी का कुछ नहीं कर सकते हो, तो उसे वहीं छोड़ो और आगे बढ जाओ। पीछे ही देखती रहोगी तो आगे नहीं बढ़ पाओगी।" आकाश ने एक बार फिर उसे समझाया।


"हो गया आपका लेक्चर डॉक्टर आकाश!" डॉ परिणिता ने गुस्से से कहा और अपना मग खाली करके टेबल पर रख दिया। 


डॉक्टर आकाश ने भी बाकी बची कॉफी एक बार में ही पी ली और डॉ परिणीता की ओर मुखातिब होते हुए बोला, "देखो परी! एक कहावत है - 'बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले', यानी अतीत भुला कर भविष्य की ओर ध्यान करना चाहिए। जिंदगी का बहाव किसी के लिए नहीं रुकता। इसमें बहना ही प्रकृति है। जितनी जल्दी यह मान लोगी, उतना ही तुम्हारे खुद के लिए, तुम्हारे अपनों के लिए और अपने माहौल के लिए अच्छा है।"


"जानती हूँ आकाश! पर तुम नहीं समझोगे, जाने दो। व्हाट्सअप! डे ड्यूटी है या ....."


"डे है डॉक्टर!"

"गुड! कम विद मी फ़ॉर राउंड।"

........


परी जब छोटी थी तब अपने माता -पिता के साथ दिल्ली में किराए के मकान में रहती थी। उसके पापा किसी आफिस में सुपरवाईज़र थे और मेंस' सुपिरिओरिटी काम्प्लेक्स से ग्रसित थे। उन्हें लगता है कि इस दुनिया को भगवान ने पुरुषों के लिए बनाया है और महिलाओं को उनकी सेवा के लिए भेजा गया है। अब क्योंकि सारा दिन वे खटकर कमा कर लाते थे, इसलिए घर आते ही सबको उनके चरणों में लेटकर दंडवत प्रणाम करना चाहिए। दूसरे को भागकर पानी लेकर आना चाहिए, तीसरे को सजी हुई ट्रे में चाय लेकर प्रस्तुत हो जाना चाहिए, और अगर बिजली ना हो, तो चौथे को पंखा झलना चाहिए, और पाँचवें को उनकी हुक्म की तामील करने के लिए तत्पर हाथ बांध कर वहीं खड़े रहना चाहिए। 


लेकिन अब चूंकि घर में इतने लोग नहीं थे, तो तो ये सारी जिम्मेदारी निभाने की ड्यूटी परी की मम्मी की थी। लेकिन वे इतनी नासमझ थीं कि पापा के आफिस से आते ही, कभी पानी लेने चली जाती तो कभी चाय बनाने। अब आफिस का बैग वहीं पड़ा रहता, अगर लाइट चली जाती है तो वे पसीना -पसीना हो जाते। ऐसी परिस्थिति में उनको गुस्सा आना तो लाज़मी था ना! परी की मम्मी को ये समझ ही नहीं आता। उसके पापा के शब्दों में उन्होंने पापा की 'जिंदगी जहन्नुम कर दी थी।"


परी के जन्म से पहले परी के पापा बहुत खुश थे कि घर में एक लड़का आ जायेगा तो इस घर की तस्वीर बदल जाएगी। वह उनकी ही तरह समझदार और ज़हीन जो होगा। पर, हाय! री किस्मत! आ गई लड़की। 

.......


डॉक्टर परिणीता शाम को अपनी शिफ़्ट खत्म कर घर आते ही अपनी मम्मी के कमरे में गई। मेड दो कप चाय और नमकीन रख गई। डॉक्टर परिणीता की कमजोरी है चाय के साथ नमकीन खाना। उसने एक कप मम्मी की ओर बढ़ाया। मम्मी थोड़ी देर उसे एकटक देखतीं रहीं, फिर मुस्करा हाथ में चाय का कप पकड़ लिया। 


परिणीता मम्मी को मुस्कराते देख खुश हो गई। और चाय पीते -पीते, यादों के समंदर में फिर से गोते लगाने लगी।

"इस औरत से कोई काम ढंग का हुआ है जो अब होगा!" परी के पापा ने अपने माथे पर हाथ मारा। 

लेकिन उसकी मम्मी का संसार अब बहुत ही प्यारा हो गया था। वह रात दिन अपनी इस नन्ही सी दुनिया में व्यस्त रहतीं, उन्हें खुश रहने का एक बहाना जो मिल गया था। 


दीवार पर आड़ी-तिरछी रेखाएं खींचते देख, रीझती हुई बोलती, "मैं इसे खूब पढ़ाऊंगी और टीचर बनाऊंगी।"  

मम्मी के एलान को सुनने वाले दो ही जन थे, मम्मी और मम्मी की प्यारी नन्ही परी।


एक दिन परी को तेज बुखार आ गया, सारी रात मम्मी परी को गोद में लेकर बैठी रहीं। सुबह पापा को खाना पैक कर के आफिस भेजने के बाद, पास के एक वैद्यजी को दिखाने ले गईं। वैधजी ने अनेक प्रकार के चूर्ण की दो-तीन पुड़िया दीं, पर शाम तक बुखार नहीं उतरा। अब मम्मी घबराई कि शाम को पापा को पता चल जाएगा तो गुस्सा होंगे की एक लड़की को भी नहीं संभाल पाई। 


शाम को पापा के आने से पहले ही उसकी मम्मी ने हर चीज़ यथास्थान रख दी। चाय-पानी, पंखे की हवा, सब कुछ परफेक्ट! चायपान के बाद पापा को कुछ मिसिंग लगा। याद आया कि अरे! आज किसी को डांटा ही नहीं। मम्मी की तरफ से कुछ बदइन्तज़ामी ना मिलने पर परी की पुकार हुई।


मम्मी ने कहा , "वह सो रही है।"


"शाम को इस समय?" कहते हुए पापा अंदर कमरे में ही चले आये। और परी को आंखें खोल कर गुड़िया पकड़े लेटे देखकर उसके सिर पर हल्के से चपत लगाते हुए बोले, "कुछ पढ़ लिख लिया कर नहीं तो अपनी मां की तरह ज़ाहिल ही रह जाएगी।"


"अरे! इसे तो तेज बुखार है! ज़ाहिल औरत! तूने बताया क्यों नहीं?" और दौड़कर परी को गोद में उठाकर बाहर चल दिये। मम्मी पीछे-पीछे भागी पर पापा ने गुस्से में दूसरे हाथ से ऐसा धक्का मारा कि मम्मी का सिर दीवार से टकराया और वो गिरकर बेहोश हो गईं। 


जब परी अपने पापा के साथ डॉक्टर से दवाई लेकर आई तो घर पर पड़ोस की तीन-चार आंटियां मम्मी को घेरकर खड़ी थीं। जो शायद शोर सुनकर और घर खुला देखकर आ गई होंगीं। मम्मी के माथे पर चुन्नी बंधी थी और वो वहीं फर्श पर लेटी थीं। परी अपने पापा की गोद ले उतरकर भागकर मम्मी से चिपटकर उन्हें उठाने लगी, पर वह अभी भी बेहोश थीं। पापा ने भी उन्हें जगाने की कोशिश की, पर जब कुछ असर नहीं हुआ तो घबराकर पड़ोसियों की मदद से गाड़ी में डालकर हॉस्पिटल ले गए। परी ने सारे रास्ते अपनी मम्मी को नहीं छोड़ा। 


जब परी जागी तो पता चला वह भी मम्मी के गम में बेहोश हो गई थी। लेकिन उसकी मम्मी अभी तक बेहोश थीं। परी ने उस रात रो-रोकर सारा हॉस्पिटल सिर पर उठा लिया था।  


परी की मम्मी को दूसरे दिन होश आया। जब पापा ने उनको जूस का ग्लास थमाने की कोशिश की तो वह अजनबी निगाहों से पापा को ताकती रहीं। "ज़ाहिल औरत!" पापा धीरे से भुनभुनाये और जूस का ग्लास साइड टेबल पर रख दिया। 


जब डॉक्टर राउंड पर आए, तो मम्मी से बात करने के बाद, पापा को एक ओर ले जाकर धीरे से बोले, "लगता है आपकी पत्नी को भूलने की दिक्कत है, उनकी मानसिक स्थिति किसी और तरफ इशारा कर रही है। डॉक्टर प्रताप को बुलाया है, वही सही बता पाएंगे।" 


परी ने पापा की गोद से ही बड़े ध्यान से डॉक्टर प्रताप को सुना ।


"नयी बातें याद करने में दिक्कत, तर्क न समझ पाना, लोगों से मेल-जोल करने में झिझकना, सामान्य काम न कर पाना, अपनी भावनाओं को संभालने में मुश्किल आना, व्यक्तित्व में बदलाव होना आदि लक्षण, मस्तिष्‍क रोग या आघात से उत्पन्न एक गंभीर मानसिक विकार है जो व्यक्ति की सोचने, याद रखने और सामान्‍य व्‍यवहार की क्षमता पर प्रतिकूल असर डालता है। ऐसे रोगी के साथ बड़े ध्यान से और प्यार से पेश आना होगा, जैसे किसी छोटे बच्चे के साथ।"


अगले साल परी का एक भाई भी आ गया। परी और उसकी मम्मी को एक खिलौना मिल गया। पर उन दोनों की ये खुशी ज्यादा दिन तक नहीं टिकी।  


पापा ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि उनके बेटे पर मम्मी की परछाई भी ना पड़े। उन्होंने उसके लिए एक आया रख दी। और जैसे ही वह 5 साल का हुआ, उसे बोर्डिंग में डाल दिया। परी और उसकी मम्मी तो भूल ही गए कि वह दिखता कैसा है?


धीरे-धीरे इसी तरह कई साल ऐसे ही बीत गए। अब परी खुद ही अपनी मम्मी को डॉक्टर के पास ले जाने लगी। अगली बार जब वह डॉक्टर के पास गई तो उसने डॉक्टर को बताया कि शाम को जब पापा घर आते हैं, तो मम्मी उन्हें पानी देतीं हैं, चाय का भी पूछतीं है, पर जैसे ही पापा फोन पर किसी से बात करते हैं तो वह किचन में बर्तन उठा कर फेकने लगतीं हैं। 


डॉक्टर ने बताया कि "डिमेंशिया को कुछ लोग “भूलने की बीमारी” कहते हैं, परन्तु डिमेंशिया सिर्फ भूलने की बीमारी नहीं हैं, इसके अन्य भी कई लक्षण हैं। यह सभी लक्षण मस्तिष्क की हानि के कारण होते हैं, और ज़िंदगी के हर पहलू में दिक्कतें पैदा करते हैं। यह ज़रूरी नहीं है कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की याददाश्त ही खराब हो। कुछ प्रकार के डिमेंशिया में, शुरू में चरित्र में बदलाव, चाल और संतुलन में मुश्किल, बोलने में दिक्कत या अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, पर याददाश्त सही रह सकती है। डिमेंशिया के लक्षण अनेक रोगों की वजह से भी पैदा हो सकते हैं, जैसे कि अल्ज़ाइमर रोग, लुई बॉडीज वाला डिमेंशिया, वास्कुलर डिमेंशिया, पार्किन्सन, वगैरह।"


ये सब सुनकर परी बुरी तरह डर गई। परी ने उन्हें बताया कि "मम्मी हाल में हुई घटना को भूल जाती हैं। बातचीत करते समय सही शब्द याद नहीं आता, तो सोच में पड़ जाती है। यदि वह उन्हें किसी भीड़ में या दुकान में सामान खरीदने अपने साथ ले जाती है, तो भी वह घबरा जाती हैं। मोबाईल के बटन, बार-बार बताने पर भी नहीं समझ पाती। कोई निर्णय ही नहीं ले पाती। यहाँ तक की, जान - पहचान के लोगों और बहुत सी रोजमर्रा की वस्तुओं को भी कभी-कभी नहीं पहचान पाती।"


"हाँ! अक्सर ऐसा होता है। पर तुम्हें इन्हें छोटे बच्चे की तरह ही मानकर समझाना है। इसमें रोगियों का व्यवहार अकसर काफी बदल जाता है। कई डिमेंशिया वाले व्यक्ति ज्यादा शक करने लगते हैं।" डॉक्टर ने परी की बात समझकर जवाब दिया।


अब परी को समझ आया कि जब पापा फोन पर बात करते हैं तो क्यों मम्मी को गुस्सा आता है? क्या पापा रश्मि आंटी से हॉस्पिटल में बात नहीं कर सकते?


एक दिन इस रहस्य का भी पर्दाफाश हो गया। परी जान गई कि वे जानबूझकर मम्मी के सामने बात करते थे ताकि मम्मी को गुस्सा आये और वे तोड़-फोड़ करें। जिससे लोगों की नजरों में परेशान होने का दिखावा करके, पापा को घर छोड़कर जाने का बहाना मिल जाये। आखिरकार एक दिन परी के पापा सचमुच ही घर छोड़ कर चले गए। 


परी ने किसी तरह ट्यूशन पढ़ाकर और कुछ अपने मामाजी की मदद से मम्मी का इलाज जारी रखा और साथ ही साइंस विषयों के साथ बारहवीं क्लास बहुत अच्छे नंबरों से उतीर्ण की। जिस नीट परीक्षा को बच्चे 5-5 साल लगाकर कोचिंग की मदद से भी उत्तीर्ण नहीं कर पाते, परी ने वह प्रथम प्रयास में, महज़ NCERT की बुक्स पढ़कर, अच्छी मेरिट से उत्तीर्ण कर ली। जिससे उसका एडमिशन दिल्ली के प्रख्यात मेडिकल कॉलेज MAMC में हो गया। 


MAMC से एमबीबीएस करने के बाद जब MD में ब्रांच चयन का विकल्प मिला तो उसने न्यूरोलॉजी को ही चुना। 


तंत्रिका विज्ञान की क्लास में डॉक्टर परिणीता पूरी एकाग्रता से सुनती है कि कैसे मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और तंत्रिकाओं का जाल, सब आपस में एक परिवार की तरह जुड़े हुए हैं। जिनका अस्तित्व अलग-अलग होते हुए भी ये एक-दूसरे पर किस कदर निर्भर हैं। यदि एक ने भी पापा की तरह साथ छोड़ दिया तो मम्मी की तरह दूसरे का अस्तित्व कमजोर पड़ जायेगा। उसने जाना कि मस्तिष्क ही शरीर के हर पहलू को नियंत्रित करता है। भावनाओं और स्मृति से लेकर बुनियादी शारीरिक गतिविधियों तक। जैसे कि श्वास का संयमित चलना, हाथ-पैर चलाना, भागना, सोचना, और हृदय की धड़कन, मस्तिष्क सभी को नियंत्रित करता है। 


कल नन्ही परी अब डॉक्टर परिणीता बन चुकी है। बचपन में पापा से डरकर मम्मी की गर्दन से लिपट जाने वाली परी, मम्मी का हाथ पकड़कर, पापा की सारी जिम्मेदारियां पूरी कर रही है।  


......


डॉ राम मनोहर लोहिया होस्पिटल, दिल्ली में डॉक्टर परिणीता को डेढ़ साल हो चुका है। जहां वह मानसिक रूप से दृढ़ हुई है वहीं आर्थिक रूप से भी सम्पन्न हो चुकी है, फिर उसकी जरूरतें हैं ही कितनी? यहां मम्मी का इलाज तो फ्री में ही हो रहा है। 


डॉक्टर परिणीता की आज ओपीडी में ड्यूटी है। एक 25-26 साल का नवयुवक सामने आकर स्टूल पर बैठ गया और अपनी पर्ची उसके सामने रख दी। 


"जी !अमित जी, बताइए क्या परेशानी है?" डॉक्टर परिणीता ने उससे मुखातिब होते हुए पूछा।


"इसको पता नहीं क्या हो गया है? मुझ पर शक करता रहता है। मैं बाहर जाता हूँ, तो मेरे पीछे-पीछे आता है। रात को बार-बार दरवाजा चेक करने जाता है कि अंदर से ठीक से बंद है या नहीं। मैं किचन में खाना बनाता हूँ तो ताक-झांक करता है। कभी आकर गैस बंद कर देगा, कभी बंद गैस की नॉब को चेक करेगा ठीक से बंद है या नहीं।" अमित के पास खड़े एक प्रौढ़ व्यक्ति ने जवाब दिया। 


अमित नाम का वह लड़का चुपचाप सुनता रहा और जब उस शख्स की बात समाप्त हो गई तो बोला, "आप बैठिए पापाजी, थक गए होंगे।" 

अमित के आग्रह पर वह व्यक्ति बैठ गया और अपने बेटे अमित के बारे में बताने लगा कि वह अपने बेटे से कितना परेशान है।


"डॉक्टर! पापाजी सही बता रहे हैं, आप मुझे कुछ अच्छी सी दवाएं लिख दें।" इसी दौरान, अमित ने एक और पर्चा डॉक्टर परिणीता के सामने खिसका दिया। "पापाजी को भी कुछ कमजोरी सी है, क्योंकि घर और बाहर का सारा काम यही देखते हैं। आप इनके लिए भी कुछ अच्छी दवाइयां लिख दें।"


"फालतू बात करता है, मुझे क्या हुआ है? कुछ नहीं हुआ है। तेरी इन्हीं हरकतों से परेशान हूँ मैं।" 

"मैं अकेला दवाई नहीं खाऊंगा, आपको भी अपनी सेहत का ध्यान रखना है। आपको भी दवाई लेनी पड़ेगी, है ना! डॉक्टर?"


"आप दोनों चुप......" डॉक्टर परिणीता के साथ बैठी जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने कहना चाहा पर डॉक्टर परिणीता ने उसे हाथ के इशारे से चुप करा दिया। उसने दोनों की पर्चियों पर कुछ दवाइंया लिखीं और एक दूसरे का ख्याल रखने की हिदायत देकर एक महीने बाद आने के लिए कहा। 


उनके जाने के बाद डॉक्टर परिणीता ने बताया कि पेशेंट वो लड़का अमित नहीं, बल्कि उसका पिता है, तो दोनों जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर हैरान रह गए। अब तो डॉक्टर परिणीता किसी के बात करने के लहज़े से ही मरीज को पहचान जाती है। शायद इसकी वजह यह है कि बचपन से वह खुद एक पेशेंट के साथ रह रही है। 


"अधिकतर डिमेंशिया के केस में दवाई की भूमिका सीमित है। न तो दवाई मस्तिष्क को दोबारा ठीक कर सकती है, न ही बीमारी को बढ़ने से रोक सकती है। फिर भी कुछ केसों में हमारी दवाई लक्षणों से कुछ राहत पंहुचा पाती है, इसलिए डॉक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए। क्योंकि डिमेंशिया का सिलसिला कई सालों तक चलता है और केवल दवाई से रोग कम नहीं होता, इसलिए डिमेंशिया वाले व्यक्ति और परिवार की खुशहाली पेशेंट की उचित देखभाल पर निर्भर है।" डॉक्टर परिणीता ने दोनों जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर को समझाया।


"पर मैडम! WHO के अनुमानके अनुसार है कि 65 साल से कम उम्र में होने वाले डिमेंशिया- young onset या early onset तो अकसर पहचाने ही नहीं जाते और ऐसे केस शायद 6 से 9 प्रतिशत हैं।"


"यस! यू आर राइट!"


" डिमेंशिया विदेशों में ज्यादा होता है, भारत में आमतौर पर नहीं होता......." दूसरी जूनियर डॉक्टर कहते -कहते रुक गई। 


"यही तो गलतफहमी है। लोग छुपाते हैं, या समझ नहीं पाते। ऐक्चुली यह बड़ी उम्र के लोगों में अधिक होता है, और जैसे जैसे भारत में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ता जा रहा है, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों का अनुपात भी बढ़ता जा रहा है। मुझे तो डर है कि यह समस्या अनेक परिवारों के जीवन को बर्बाद ना कर दे।"  डॉक्टर परिणीता ने कहा।

......


"आंटी के क्या हाल हैं?"

"बढ़िया ! ये वाला घर बड़ा है, तो यहां बागवानी का शौक पूरा कर रही हैं। अधिकतर फूलों वाले पौधे ही लगाए हैं। एक-एक कली, एक-एक फूल को अपने बच्चे की तरह प्यार करती हैं, घंटों उनसे बातें करती रहती हैं। शायद फूलों की सुगंध ने उनके मष्तिष्क पर सकारात्मक असर डाला है। अब शांत रहती हैं। अपने काम खुद कर लेतीं है। आज सुबह गुलाब के पौधे से बातें कर रहीं थीं। पता नहीं क्यों, उसमें फूल ही नही आते मैंने माली को कहा कि दूसरा पौधा लगा दे, पर वो उस पौधे को हटाने ही नहीं देतीं।"


डॉक्टर परिणीता और डॉक्टर आकाश कैंटीन में बैठे कॉफी पीते हुए बातें कर रहे हैं। 

"मैं आऊंगा आंटी से मिलने।"

"सॉरी! पर मत आना। किसी नए व्यक्ति या वस्तु के साथ कम्फ़र्टेबल नहीं हो पातीं।"

"पर मैं तो कई बार मिल चुका हूँ।"

"हाँ!......पर....."

"चलो! ओपीडी का टाइम हो गया।"

 ......


ओपीडी में आज बहुत भीड़ है। जूनियर डॉक्टर्स पेशेंट से बात करके उनकी केस हिस्ट्री लिखते जा रहे हैं, और डॉ परिणीता और डॉ आकाश फाइनली डायग्नोज करके दवाइयां और हिदायतें दे रहे हैं। 

तभी अमित और उसके पिताजी ने रूम में प्रवेश किया। 

"बताइए अंकलजी! अब अमित की तबीयत कैसी है?"


"अब थोड़ा-थोड़ा सुधार आ रहा है। ताला बंद करने की ड्यूटी मैंने इसे ही दे दी है। पर अभी भी ताक-झांक तो करता है। आपकी दवाई का असर तो हो रहा है।" अमित के पिताजी आज थोड़ा संयमित लग रहे थे। 

"और अमित! आप बताइए आप के क्या हाल हैं?"

"मुझे तो दवाइयों से बहुत ज्यादा फायदा हुआ। मैं अपनी दवाई टाइम पर खाता हूं और पापाजी को भी खिलाता हूँ, सुधार हो रहा है।"

"बस ऐसे ही प्यार और विश्वास के साथ आपस में मिल-जुल कर रहें, ठीक हो जाएंगे।"


डॉ परिणीता ने दोनों को ही दवाइयाँ लिख कर दे दीं और उसके पिताजी के कुछ टेस्ट भी लिख दिए।


"ये अमित तो नार्मल है।"

"जानती हूँ। अपने बहाने, अपने पिताजी का इलाज कराने आता है। नहीं तो वे आते नहीं होंगे, शायद। अपने आपको बीमार ही नहीं मानते, औरों की तरह। उसके पिताजी को दिखाने के लिए, अमित को केवल मल्टी विटामिन्स और कैल्शियम लिख देतीं हूँ।" कोई और मरीज ना देख, परिणीता ने सीट से उठते हुए जवाब दिया। 

"यदि परिवार वाले यह समझ जाएं कि डिमेंशिया वाले व्यक्ति को किस प्रकार की दिक्कतें हो रही हैं, और उस व्यक्ति से वे अपनी उम्मीदें उसी हिसाब से रखें, तो मरीज का मर्ज आगे नहीं बढ़ेगा या कहें, केस बिगड़ेगा नहीं।" डॉक्टर आकाश ने भी अपना स्टेथेस्कोप उठा लिया और दोनों रूम से बाहर आ गए। ....


"मम्मी! देखो आपसे मिलने कौन आया है!" परिणीता बगीचे में अपनी मम्मी के पास चली आई।


डॉक्टर आकाश ने दोनों हाथ जोड़कर उन्हें नमस्ते की पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और अपने पौधों में पानी देने में ही व्यस्त रहीं। 


आकाश वहीं पैरों के बल बैठ गया और मनी प्लांट के पत्तों पर जमी मिट्टी की हल्की परत को अपने रुमाल से पोंछने लगा। फिर उसने पास पड़ी खुरपी लेकर पौधों की गुड़ाई शुरू कर दी। थोड़ी देर बाद उसके हाथ से खुरपी लेकर परिणीता की मम्मी ने गुलाब के पौधे के आस-पास खुद गुड़ाई कर दी। 


"चाय!" मेड तीन कप चाय और बिस्किट को ट्रे में लेकर आ गई। 


आकाश ने हाथ धोकर एक चाय का कप मम्मी को पकड़ाया तो उन्होंने धीरे से कप पकड़ लिया। यह देखकर परिणीता मुस्करा दी। 

"आंटी! कल हॉस्पिटल आओ, आपके कुछ टेस्ट कराते हैं।"

आकाश की बात सुनकर भी मम्मी का नहीं भड़कना, परिणीता के मन को तसल्ली दे गया। 

....


अगले दिन डॉ परिणीता अपनी मम्मी को लेकर हॉस्पिटल के अंदर जा रही थी तो सामने से अमित अपने पिताजी के साथ आ रहा था। दोनों ने डॉ परिणीता को हाथ जोड़कर नमस्ते की और आगे निकल गए। लेकिन उसकी मम्मी उन दोनों को बड़े ध्यान से देखती रहीं। 


जब वह मम्मी को लेकर लैब में पहुंची तो ज्यादा भीड़ नहीं थी। उसने एक चेयर पर अपनी मम्मी को बैठा दिया। लैब असिस्टेंट उनका टेस्ट करने वहीं पर आ गया। ब्लड देने के बाद जब वे दोनों वापिस मुड़ रहीं थीं तो लैब असिस्टेंट ने जोर से अमित भारद्वाज और शेखर भारद्वाज का नाम पुकारा। उसकी मम्मी परिणीता का हाथ छोड़, चौन्ककर पीछे मुड़ उन लोगों को ध्यान से देखने लगी। 


अमित के पिताजी भी उठकर उनको ध्यान से देखने लगे। 

"अलका!!!!!"

"शेखर जी!!!!"

डॉक्टर परिणीता और अमित हैरानी से कभी एक को देखते, कभी दूसरे को, दोनों को ही कुछ समझ नहीं आ रहा था। 


तभी अमित के पिताजी ने आगे बढ़कर परिणीता की मम्मी के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले लिया और रोने लगे। किसी से भी बात ना करने वाली उसकी मम्मी ने अपने हाथों को हटाया भी नहीं। 


"तुम्हारा ......हमारा बेटा....अमित......और...... ये...ये...परी..... मतलब डॉक्टर परिणीता जी..." अमित के पिताजी रोते जा रहे थे। 


लैब में अच्छा-खासा सीन क्रिएट हो गया। सब काम छोड़ कर उन्हें ही ताकने लगे। परिणीता ने कुछ समझते और कुछ ना समझते हुए, अपनी मम्मी का हाथ पकड़ा और जबरदस्ती खींचते हुए बाहर ले आई। मम्मी को गाड़ी में बैठाया और ड्राइवर को उनको घर छोड़ आने का बोलकर अपने केबिन में आकर सिर पकड़ कर बैठ गई।


"मम्मी कहाँ है, लैब में ही बिठा दिया क्या?" डॉ आकाश ने थोड़ा सा दरवाजा खोलकर बाहर से ही झांकते हुए पूछा। लेकिन जब परिणीता ने सिर उठाकर नहीं देखा तो आकाश ने अंदर आकर उसके हाथ को धीरे से हिलाया।


"क्या हुआ परी!"

इतना सुनना था कि परिणीता की आंखों से आंसू बहने लगे। 

"क्या हुआ परी? किसी ने कुछ कहा क्या?" आकाश ने दुबारा पूछा तो परिणीता ने आँसू पोंछते हुए रुंधे गले से पूरी घटना बता दी। 

"अभी आता हूँ!" कहकर आकाश बाहर निकल गया।। परिणीता उसे दरवाजे आए बाहर जाते देखती रही ।

.....


परिणीता सुबह देर से जागी क्योंकि आज संडे है और उसका आज हॉस्पिटल से ऑफ भी है। मेड को उसने दो कप चाय बनाने को कहा तो मेड ने उत्तर दिया कि आंटी तो बाहर लॉन में मेहमानों के साथ चाय पी रहीं है। 


"मेहमान!" परिणीता ने हैरानी जताते हुए, विंडो से कर्टेन हटाकर देखा। आकाश, अमित, उसके पिताजी और परिणीता की मम्मी, हाथ मे चाय का कप लिए चेयर्स पर बैठे हैं। 


परिणीता गुस्से से भर गई। हिम्मत कैसे हुई ऐसे इंसान की उसके घर में घुसने की, जिसने उनकी जिंदगी को नरक बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। हद है!!!!!अपनी मर्जी हो तो चले जाओ, अपना मन करे तो मुँह उठाकर आ जाओ। गैरत नाम की भी कोई चीज है इस इंसान के अंदर! अभी बाहर निकालती हूँ.....


हाथ-मुँह धोकर, जब वह लॉन में आई, तो अमित ने आगे बढ़कर उसके पैर छू लिए, "नमस्ते दीदी! मैंने तो कभी आपको देखा ही नहीं, पहचानता कैसे? मुझे माफ़ कर दो प्लीज!!!!पापा ने आकर उसके सिर पर हाथ रख दिया। 


"बेटा ! इस जन्म में तो कोई अच्छा काम किया नहीं, शायद पिछले जन्म के पुण्य-प्रताप से तुम लोग फिर मिल गए, जिनको अपनी नादानी में मैंने खो दिया था। मुझे माफ़ कर दो बेटा!"


परिणीता क्या-क्या सोचकर आई थी, पर उसे अपने अंदर सब कुछ पिघलता हुआ सा महसूस हुआ। उसे जब कुछ नहीं सूझा, तो वह अंदर अपने कमरे में आ गई। 


उसके पीछे-पीछे आकाश भी चला आया। और उसके दोनों हाथों को अपने हाथों मे लेता हुआ बोला, "माफ कर दो परी। जितनी जल्दी माफ करोगी, उतनी जल्दी अपने पिछले कटु अनुभव भुला पाओगी। आगे बढ़ने के लिए, पिछला छोड़ना बहुत जरूरी है। नहीं तो ऐसे ही पुराने ख्याल तुम्हें हमारी जिंदगी के बारे में कुछ सोचने ही नहीं देंगे!!"

परिणीता ने असमंजस से आकाश की ओर देखा। 


"तुझे प्रपोज़ कर रहा हूँ पागल! उन लोगों की फैमिली कम्पलीट हो गई, हमारी के बारे में सोचो।"


परिणीता मुस्करा दी और आकाश को वहीं हैरान छोड़कर, पौधों में पानी डालने बाहर चल दी। लॉन में आकर उसने देखा कि गुलाब की एक छोटी सी कली कांटों के बीच में मुस्कराते हुये उसी की ओर निहार रही है और उसके ऊपर एक तितली पंख फैलाये उड़ रही है। 


परिणीता के सपनों को भी आज सही मायनों में पंख मिल गए थे। 



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