मुट्ठीभर आसमान!
मुट्ठीभर आसमान!
मीता के ऑफिस की आज छुट्टी है। रात को सोच कर सोई थी कि साढ़े पांच के बजाय साढ़े छै: बजे उठेगी। घड़ी देखी अभी तो छै: बजे हैं। सासू मां की भी कोई आहट नहीं। अंगड़ाई लेकर करवट बदली तो सीधे सवा सात बजे आंख खुली।
अरे बाप रे!
कोहराम मच जाएगा, जो कि प्रत्येक शनिवार- इतवार मचना तय है। या फिर माताजी सिर बांधकर लेट जाएंगी, ससुर पैताने बैठ जाएंगे, ननद जमाने भर का दर्द चेहरे पर ओढ़े किचन में नाश्ते की आशा में चक्कर काटती रहेगी, देवर मंद - मंद मुस्कराते चाय की चुस्कियों में सुबह का लुत्फ लेता रहेगा। कई बार तो उसने कह भी दिया,
"मम्मी आपकी तबीयत शनिवार- इतवार को ही खराब क्यों होती है?"
बेटा है तो घूरकर बात बदल दी जाती। मैं या मेरे पतिदेव कहते तो मेरी सातों पुश्तों को लानतें - सलामते भेजी जाती।
अरे हां! पतिदेव जिनका घर में अस्तित्व इतना है कि मां बालाएं लेती नहीं अघाती कि मेरा बेटा तो सतयुगी है। वहीं बेटा छुट्टी वाले दिन अगर मां- बाप, भाई बहनों के अलावा बीवी से बात कर ले तो पता नहीं कौन कौन से बहुब्रीह समास से नवाजा जाता। घर के छज्जे पर जाकर पड़ोसियों को बताया जाता कि ऐसी कलंकी औलाद किसी को न मिले। पड़ोसी आग में घी डालते,
"रोशनी की अम्मा बेटे की कोई गलती नहीं आजकल बहुएं आकर उसको बिगाड़ देती है।"
"बेटा आदमी ना हुआ 6 महीने का बच्चा हो गया।"
मीता की यही आदत है। सोचने लगती है तो अदरक की तरह पता ही नहीं चलता, कहां से शुरू हुई कहां पहुँच जाती है।
हां! तो सवा सात बज रहे है। घर में कोई आहट नहीं। भगवान का नाम लेकर घबराती हुई उठती है।
"उठ गई महारानी? दोपहर हो गई। लड़की चार दिन को आई है टाइम से खाना भी नहीं मिलता। एक हम थे 4 बजे मुँह अँधेरे उठकर, कब खाना बना देते थे किसी को पता भी नहीं चलता था। बहू का नहाना- धोना भी किसी ने देखा था उस ज़माने में किसी ने ? न लाज न शर्म, न रेस्पेक्ट - सम्मान । "
"रेस्पेक्ट - सम्मान"! यही एक अंग्रेजी का शब्द आता है अम्माजी को जो 24 घंटे में न जाने कितनी बार बोला जाता । साढ़े नौ बजे का ऑफिस है मीता का।साढ़े पांच बजे उठकर घर का सारा काम करके भागते- भागते 9 बजे निकल पाती है और ऑफिस पहुंचने में तो 10:30 - 1100 बज जाते है। ऑफिस में सबकी आँखों में खटकता है उसका लेट आना। पर सारे दिन जो जी तोड़ मेहनत करती है! काम में अच्छी है तो ऑफिसर्स नजरंदाज कर देते कभी-कभी डांट भी देते।
लेकिन इस भाग दौड़ में नाश्ता तो भूल ही जाती सीधा लंच ही करती। शाम को फिर भागती हुई बस पकड़ती और बैठते ही सो जाती। डेली पैसेंजर्स देखकर हँसते, उनको क्या पता कि उसे बैठते ही नीम बेहोशी छाने लगती और याद आने लगती पिछली रात से लेकर सुबह तक के ताने - उलहाने, शिकायतें, मां- बाप को घर बुलाकर ज़लील करने की धमकियाँ।
मीता के सारे शरीर में खारिश होती है सोचा शायद तेल - मॉइस्चराइज़र वगैरह नहीं लगा पाती इसीलिए । लेकिन कुछ ही दिनों बाद लाल- लाल दाने पूरे शरीर में निकल आये तो साफ़ हो गया कि कुछ सीरियस है। डॉक्टर ने बताया लाइकेन प्लेनुस है जो कभी ठीक नहीं होगी दवाइयों से केवल सप्रेस यानी दबाया जा सकता है।
कारण? अत्यधिक मानसिक तनाव!
"सारी बहनों की शादी हो गई अब किस बात का तनाव है?" सास ने जुमला उछाला और सब हंसने लगे।
"भई ! हमारा तो दिल साफ़ है तो हम तो तनाव नहीं लेते। अपना दिल साफ़ रखो सब का मान सम्मान करो।"
इतना गुस्सा आया कि तुम लोगों कि तरह जब मन करे किसी को भी कुछ भी उल्टा - सीधा बोल दो व् गाली देने का मन करे तो गाली दे दो, तो दिल तो साफ रहेगा ही । मुझे तो सबके सामने अपनी भावनाये छुपा कर रखनी है । गुस्सा किसी पर कर नहीं सकती, गाली देना संस्कार में ही नहीं है। गुस्सा आये तो अंदर ही अंदर घुटना है।
आज छुट्टी है लेकिन घरवालों की, जो रोज घर पर रहते हैं। मेरे लिए तो वर्किंग डे ही है, बस ! प्लेस बदल गया और साथ में घुटन भरा माहौल भी है। दिल साफ़ कहाँ से रहेगा ।
मीता ने ठान लिया कि अब और नहीं । वह खुद ही ठीक नहीं रहेगी, खुश नहीं रहेगी तो क्या फायदा ऐसी जिंदगी का । अब वह अपने लिए भी समय निकालेगी।
बाहर तो जाना संभव ही नहीं और पति से कोई उम्मीद ही नहीं है । घर पर ही अपने टाइम में किताबें पढ़ेगी , कुछ लिखेगी , जिसका शौक उसे बचपन से ही रहा है। उसने थोड़ा लोगों को अवॉयड करना सीख लिया है । घरवालों की फरमाइशों को पूरा करने के बाद वह अपने शौक पूरे करती । बीच - बीच में सास - ससुर ताक -झांक करते तो ध्यान नहीं देती । थोड़ी सी खुशी ने और दवाइयों ने प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया है। वो जानती है उसके बारे में पड़ोसियों और किरायेदारों से बुराइयों की बाढ़ आ गई है।
लेकिन वो खुश है।
इस दुनिया में मुट्ठी भर आसमान तो उसका भी है।
"चलो कोहराम मचने से पहले एक गिलास नीबू पानी पी लूँ ।"
