संस्मरण (नदी का तट और शाम का वक़्त)
संस्मरण (नदी का तट और शाम का वक़्त)
ढलते हुए सूरज के साथ दिन का उजाला धीरे धीरे अंधेरे के आगोश में समाता जाता है l नदी का एक सुनसान तट जो कि रात के वक़्त ऐसा मालूम होता है कि मानो अपने भीतर हजारों रहस्य समेटे हो और बहुत कुछ जाहिर करना चाहता हो l
मेरे घर से कुछ दूरी पर नदी का तट है जब कभी भी निराश होता हूं या किसी बात से आहत होता हूं तो अक्सर नदी का ये तट ही मेरा सबसे अच्छा हमसफर साबित होता है l
अक्सर शाम के वक़्त जब दिन भर की भागदौड़ से परेशान होकर मैं थका हुआ महसूस करता हूं तो यहीं चला आता हूं l निःसंदेह यहां आने से मुझे काफी ऊर्जा और स्फूर्ति प्राप्त होती हैं l मैं अपनी आंखों को बंद कर के एकदम निश्चिन्त हो जाता हूँ जैसे कि बस अब जीवन में सब कुछ पा लिया हो l
मैं यहां पर जो कुछ भी महसूस करता हूं उसे बता पाना निश्चित रूप से असंभव है फिर भी कुछ सुखद अनुभूतियों से रुबरु करवाना आवश्यक समझता हूं l
बादलों की लालिमा का सुहाना दृश्य जो ढलते हुए सूरज की वज़ह से धीरे धीरे बनता है और फिर दिन का उजाला सूरज के डूब जाने से अंधेरे में परिवर्तित हो जाता है l ये वो वक़्त होता है जब सभी जीव जंतु एवं पंछी अपने अपने ठिकानों पर पहुंच कर विश्राम करने लगते है और ऐसा लगता है मानो पूरा वातावरण एकदम शांत सा होकर भी जैसे बहुत कुछ कहना चाहता हो और मैं भी जुट जाता हूँ इस खामोशी को समझने में इनसे बाते करने में l
शाम का हो वक़्त और, नदी का किनारा हो
कोई न हो आसपास, सूना हर नज़ारा हो
आंखें मूंद बैठ जा, हवाओं की तू मैं गोद में
दिल में छुपे ग़म से, पाना जब छुटकारा हो
मैं पलकों को हल्का सा मूंदकर रात के वक़्त नदी के किनारे बैठता हूं l नदी के किनारे बहने वाली हवा के शीतल मंद झोंके जैसे ही मेरे शरीर को स्पर्श करते है ठीक उसी वक़्त मेरे भीतर से भी एक प्रवाह बाहर की ओर होने लगता है और ये प्रवाह होता है मेरे दुखों का मेरे ग़मों का जो मेरे मन से निकल कर वातावरण मे मिल जाते हैं और मैं फिर से तरोताजा हो जाता हूँ मानो कि जीवन की सबसे बड़ी खुशी हांसिल कर ली हो l नदी का शीतल जल जैसे ही मेरे शरीर के संपर्क मे आता है मेरी सारी थकान सारी चिंताएं खत्म हो जाती है और फिर मैं ऊर्जावान हो जाता हूँ l
ढलती हुई शाम का कैसा लुभावना सा ये मंजर है
बैठा हूं किनारे पर जबकि ख्वाहिश मेरी समुंदर है
मंद हवा के झोंकों ने जैसे ही छुआ बदन को मेरे
ग़म को कर के गायब भरा सुकून दिल के अंदर है
वर्तमान में हर इंसान अपनी अपनी भौतिक आवश्यकताओं एवं जिम्मेदारियों में उलझ कर प्रकृति से काफी दूर होता चला जा रहा है इसकी अहमियत को भूलता जा रहा है l अपने ही निजी स्वार्थ में फंसकर अपने आप के लिए ही वक़्त नहीं निकाल पा रहा है l निश्चित रूप से इसी कारण इंसान नशे के गर्त में भी उतरता जा रहा है जबकि वो यह भूल रहा है कि असली नशा तो इन्हीं प्राकृतिक वातावरण में है जिसका हमें सेवन करते आना चाहिए l
हरे भरे वृक्षों के बीच बेहतर एवं शुद्ध वायु प्रवाह में वो शक्ति है जिससे मानसिक अवसाद के शिकार हो चुके व्यक्तियों के भी मानसिक स्तर में अतुल्य सुधार हो सकता है इस बात को स्वयं वैज्ञानिकों द्वारा भी स्वीकारा गया है l इसके अतिरिक्त प्रकृति से जुड़े हुए इंसान का रचनात्मक स्तर भी उन्नत दर्जे का होता है l
हजारों समस्याओं का एक समाधान ही प्रकृति की वास्तविकता है l
अजीब है रहस्य इसके, जानने का प्रयास तो कर
यूं ही नहीं होगा तू खास, पहले कुछ खास तो कर
बैठ कर इसकी गोद में, दुख दर्द भूल जायेगा तू
बिता थोड़ा वक़्त यहां, सुकून का आभास तो कर
निःसंदेह प्रकृति से जुड़कर मेरे जीवन में जो बदलाव आए है उसके बाद से मुझे हर परिस्थितियां आसान सी नजर आने लगी है l
