मुमकिन कथा एक पिता के संघर्षों की
मुमकिन कथा एक पिता के संघर्षों की
ऐसा क्या है जो किया नहीं जा सकता
डर से खुलकर क्यूं जिया नहीं जा सकता
कहते है कि इस दुनिया में कोई भी कार्य असंभव नहीं होता जरूरत है तो बस थोड़े से हौसले कि और कुछ कर गुज़रने के चाहत की l
हमारी ये कहानी भी एसे ही एक शख्स पर आधारित है जिसके सपनों पर दुनिया हंसा करती थी किन्तु जिस दिन उसके कद ने बादलों को चीरा उस दिन दुनिया इतनी छोटी हो गई कि शायद उससे नजरे मिलाना तो दूर दुनिया की नजरे उस शख्स की नजरों तक देख पाने में भी असमर्थ थी l
चंद हौसलों की चाहत में
बिक पूरा बाजार गया
अपनी हार से जो ना हारा
वो हर बाज़ी मार गया
ये कहानी है झारखंड के निवासी सुनील की जो अपने छोटे से परिवार के साथ जिसमें उसके बूढे मां बाप, पत्नी और दो छोटे बच्चे थे झारखंड के एक कस्बे में रहता थाl हर पिता की तरह सुनील की भी इच्छा थी कि उसके बच्चे बड़े होकर डॉक्टर या इंजीनियर बने और अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए वो दिन रात मेहनत किया करता था l सुनील की एक छोटी सी चाय की दुकान थी जिससे उसकी इतनी आमदनी हो ही जाती थी कि उसका परिवार पल सके l
बच्चे थोड़े बड़े हुए तो सुनील ने उनका दाखिला पास ही के एक विद्यालय में करवा दियाl बच्चों की पढ़ाई में किसी भी प्रकार की कोई कमी ना हो इसलिए सुनील दिन भर चाय की दुकान चलाने के बाद रात को कोयले की खदान में काम करने लगा और उसकी पत्नी ने भी धोबी का काम शुरू कर दिया और लोगों के कपड़े धोने लगीl वक़्त गुजरता गया और बच्चे जब थोड़े बड़े हुए तो सुनील ने बच्चों की अच्छी पढ़ाई के लिए गांव से 40 किलोमीटर दूर शहर के एक स्कूल में उनका दाखिला करवा दिया जिसकी फीस भी बहुत ज्यादा थी पर सुनील की जिद के आगे ये कुछ भी नहीं था l
हौंसले कि उड़ान भरने से
परिंदे कभी थका नहीं करते
इनकी चहचहाहट से ही सुबह होती है
ये सुबह का इंतजार किया नहीं करते
तिनका तिनका बिन कर
घोंसला बनाना आसान नहीं
लाख मुश्किलें होती है बेशक पर ये
हार को स्वीकार किया नहीं करते
अब जहां एक ओर सुनील अपने बच्चों के लिए देखे गए सपनों को साकार करने की जिद में दिन रात मेहनत कर रहा था तो वही दूसरी ओर गांव के लोग उसकी हंसी उड़ाते थे कि ये चाय बेचने वाला अपने बच्चों को डॉक्टर बनाएगा l
गांव वाले सुनील का मज़ाक उड़ाया करते थे परन्तु सुनील अपने सपनों पर अडिग था और इन सब बातों का उस पर कोई खास प्रभाव न पड़ता थाl वक़्त गुज़रता गया और सुनील भी जी तोड़ मेहनत करता रहा इस बीच सुनील का बड़ा बेटा हाई स्कूल की परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ और आगे की पढ़ाई के लिए सुनील ने अपने दोनों बच्चों को शहर के ही एक हॉस्टल में शिफ्ट कर दिया जिससे सुनील की आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो गयी उसने बड़े बेटे का दाखिला शहर की एक मशहूर आईआईटी कोचिंग क्लास में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए करवा दिया जिसमें सुनील के लाखों रुपये खर्च हो गए
इस कारण सुनील की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि वो कर्ज में उतर गया पर उसके हौंसले अभी भी बुलंदियों पर ही थेl
निगाहें शिखर ए मंज़िल पर क्या गई
बेताब कदम खुद ब खुद चल पड़े
मुश्किलों से भरे रास्तों की थाह न ली
नजरे शिखर से मिलाकर निकल पड़े
कुछ एसे ही हालातों का सामना सुनील भी कर रहा था सपने तो वो देख ही चुका था अब चाहे जीवन खत्म हो जाए पर सपने अधूरे नहीं रहने देना l सुनील भी अब दोगुनी मेहनत करने लगा वो पूरे दिन में मात्र दो घंटे ही सोता था और यही सिलसिला महीनों तक चलता रहा पर उसने बच्चों को इस बात की भनक तक न लगने दी ताकि उनकी पढ़ाई में कोई रुकावट पैदा न हो जाए तो वही दूसरी ओर अपने पिता के हालातों से बेख़बर उसके बच्चे भी बड़ी मेहनत और लगन के साथ पढ़ाई करते थे l और कहीं ना कहीं बच्चे भी अपने पिता की परिस्थितियों से अनजान ना थे और अप्रत्यक्ष रूप से अपने पिता के संघर्ष के बारे मे सब जानते थे l
सुनील के हालात इतने बदतर हो गए थे कि गांव वाले उसका मज़ाक बनाने लगे थे और बात बात पर उसे बेवकूफ़ कहा करते थे जिससे सुनील भी एक अप्रिय मानसिक वेदनाओं से त्रस्त हो चुका था l
गांव वालों के मज़ाक से सुनील की मानसिक दशा खराब होती जा रही पर सुनील भी एक रबर की भांति अडिग था कोई कितना भी तोड़ मरोड़ ले पर अंत मे वह अपना आकार फिर से ले ही लेता है l
कूद पड़ा समुंदर में वो
तैरना भी नहीं जानता था
उफान पर था समुंदर भी
पर उसे नही पहचानता था
पागलपन में तूफ़ान से भिड़ा
बंदा वो अनजान था शायद
मंज़िल मिली जुनून से उसको
उसके साथ भगवान था शायद
अब परिस्थितियां कुछ यूं थी कि दिन भर की मेहनत से थककर रात को कोयले की खदान में काम करने वाले सुनील को अचानक ही दिल का दौरा पड़ने से से वो कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा किन्तु अपने बच्चों को इस बात की भनक तक नहीं लगने दी इस दौरान सुनील की पत्नी ने चाय की दुकान भी संभाली और अपना काम भी करती रही तो वही दूसरी ओर सुनील की बुढ़ी मां अस्पताल में सुनील की देखरेख करती थी l
पूरे बीस दिनों बाद सुनील जब अस्पताल से वापस अपने घर आया तो डॉक्टर की दी हुई सलाह को भूलकर वो रात को फिर कोयले की खदान में काम करने चला गया इस बात से सुनील के माता पिता और उसकी पत्नी भी नाराज थे परन्तु वो लोग भी सुनील की जिद से परिचित थे इसलिए कुछ न कर सके l
कुछ समय बाद सुनील के बड़े बेटे ने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा भी दी और नतीजे के इंतजार में कुछ दिनों के लिए अपने गांव आने के लिए तैयार था किंतु सुनील के पिताजी ने उसे मना कर दिया क्योंकि वो जानते थे कि उनकी परिस्थितियों से परेशान होकर कहीं उनका पुत्र हताश ना हो जाये इसलिए वो खुद ही जाकर अपने बच्चों से मिल आए और उन्हें जरूरत के सभी सामान भी दे आए l
फिर कुछ दिनों के बाद नतीजे घोषित हुए और सुनील के बड़े पुत्र का चयन आईआईटी कानपुर में हो गया जिससे खुश होकर सुनील अपने पुत्र से मिलने के लिए अपनी पत्नी के साथ शहर गया l
पुत्र के साथ आईआईटी कानपुर में जाकर सारी जानकारियां प्राप्त कर वो वापस लौट रहा था किंतु उसके मन में फीस एवं अन्य खर्च को लेकर चल रहे विचारों को उसने तनिक भी प्रकट नहीं होने दिया और पुत्र को वापस शहर छोड़कर अपने गांव आ गया जिसके बाद तो वो पैसों की व्यवस्था में इतना उलझ गया कि तीन दिनों तक ठीक से खाना भी नहीं खाया l
तुम्हारे हर अरमान की खातिर
जो झेल गया हर दुख-संताप को
खुद को भूला जो तुम्हारी खातिर
कभी न भूलना उस बाप को
सुनील पैसों की व्यवस्था में खुद को पूरी तरह भूल चुका था सुनील को तकरीबन पांच लाख रुपयों की जरूरत थी ताकि वो अपने पुत्र की फीस और अन्य जरूरतें पूरी कर कानपुर में उसके रहने के सभी प्रबंध कर सके और अपने छोटे पुत्र जो कि हाल ही में हाई स्कूल की परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ था उसका भी दाखिला NEET की तैयारी के लिए एक अच्छे से कोचिंग संस्थान में करवा सके l
अगले ही दिन वो सुबह अपनी पत्नी से इस बारे मे बात करता है और फिर उसकी सलाह पर एक साहूकार के पास जाकर पांच लाख रुपये ब्याज पर मांगता है जिस पर साहूकार उसकी हालत देखकर पैसे देने से इंकार कर देता है फिर सुनील निराश मन से घर पर आकर अपनी असमर्थता पर इतना चिन्तित हो जाता है कि उसे खाने तक का होश नहीं रहता और गर्मी के मौसम में भरी दोपहर में बिना कुछ खाए पीए पैसों की जुगाड़ में निकल पड़ता है अपने हर एक सगे संबंधियों और रिश्तेदारों के सामने हाथ फैलाकर भी जब उसे निराशा ही हाथ लगती है तो एक पल के लिए जीवन से उसका मोह ही खत्म हो जाता है पर उसके सपने उसे जिन्दा रहने पर मजबूर कर रहे थे इसलिए परिस्थितियों का मारा बेचारा मौत के घूंट पीकर भी जिन्दा रहा l
मुश्किलों से भाग जाना आसान होता है
हर एक पल एक नया इम्तिहान होता है
जो भाग गया मैदान से उसे क्या मिला
जो लड़ता है उसके कदमों में जहां होता है
अंत मे जब उसे कोई राह नजर न आयी तो उसने अपना घर बेचने का निर्णय लिया और अपने पिता से इस बारे मे जिक्र किया तो अपने पुत्र की हालत पर वो बुढ़ा बाप अपने आंसुओ को न रोक पाया और उसके निर्णय से सहमत होकर उसने घर के कागजात अपने पुत्र को दे दिए जिसे लेकर पुत्र दुबारा से साहूकार के पास गया और चार लाख रुपयों में अपने घर का सौदा कर दिया अब इस नई विपत्ति का सामना करने के लिए सुनील का पूरा परिवार राम भरोसे निकल पड़ा किन्तु जाना कहां था ये किसी को नहीं पता l
राह न बदली, पर सफर नया था l
दुख दर्द बना, हमसफर नया था ll
जिद के आगे झुका नहीं, वो l
भले टूटकर, बिखर गया था ll
इस कथा के सबसे मार्मिक दृश्य में आपने देखा कि किस तरह सुनील अपने परिवार के साथ घर छोड़कर निकल पड़ता है और इस गांव में उसका कोई भी दूसरा ठिकाना नहीं था और अपने आत्मसम्मान के कारण किसी भी रिश्तेदारों के घर जाना भी उसे मंजूर न था इसलिये वो अपने परिवार को लेकर दूसरे गांव में एक भले मनुष्य के यहां किराये पर कमरा लेकर रहने लगा फिर अपने परिवार के रहने का सारा प्रबंध कर वो अपने पुत्र को लेकर कानपुर चला गया और उसका एडमिशन आईआईटी कानपुर में करवा कर उसके सभी जरूरी इंतजामात कर दिए और फिर लौटकर अपने छोटे पुत्र को भी शहर की एक मशहूर कोचिंग संस्थान में NEET की तैयारी के लिए दाखिला करवा दिया l
किन्तु असली जंग तो अब शुरू हुई जब उसके दोनों पुत्रों के पढ़ाई के खर्च को वहन करने के लिए उसके पास बिलकुल भी रुपये न बचे और न रुपयों के इंतजाम के लिए कोई साधन इसलिए एक नए गांव में काम की तलाश में वो दर दर भटकने लगा फिर उसे एक गोदाम में हम्माल का काम मिल गया जहां वो पूरा दिन हम्माली करता और फिर रात को उसी गोदाम की पहरेदारी करता था जिससे उसके परिवार का गुजर बसर चलने लगा l
दिन बीतते गये और फिर एक ओर जहां सुनील का बड़ा पुत्र अपनी मेहनत और लगन से आईआईटी कानपुर मैं थर्ड ईयर में आ गया तो वहीं दूसरी ओर उसके छोटे पुत्र का भी NEET के जरिए AIMS दिल्ली मे चयन हो गया जिससे सुनील की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि एम्स दिल्ली एक प्रतिष्ठित संस्थान तो था ही और उसकी फीस भी ज्यादा न थी और फिर सुनील उसके छोटे पुत्र के साथ दिल्ली जाकर उसका एडमिशन दिल्ली एम्स में एमबीबीएस कोर्स में करवाकर उसका सारा प्रबंध कर वापस अपने गांव लौट आया हैरत की बात थी कि सुनील के साथ इतना सब कुछ हो गया पर उसके दोनों पुत्रों को उसने कुछ भी न बताया था l
परिस्थितियों का मारा सुनील भी शारीरिक रूप से इतना कमजोर हो गया था कि वक़्त के पहले ही बुढ़ा हो चला था पर जिम्मेदारियों के कारण वो मानसिक रूप से अपनी जिद पर हमेशा अटल रहा l
चट्टानों सी हिम्मत, और जज्बातों
का दिल में, तूफ़ान लिये चलता है l
पूरा करने की जिद, में एक पिता
बच्चों के अरमान लिए, चलता है ll
सुनील के ऊपर मंडरा रहे संकटों के बादल अब छटने लगे थे और खुशियो के पल तेजी से उसकी ओर बढ़े चले आ रहे थे और देखते ही देखते वो पल भी आ गया जिसके लिए सुनील ने वर्षों तपस्या की थी उसके बड़े पुत्र का आईआईटी कानपुर से एक एमएनसी कंपनी में अठारह करोड़ रुपये के पैकेज पर प्लेसमेंट हो गया और अपने पिता को यह खुश खबरी देने की लिए सुनील का बड़ा पुत्र अपने गांव लौटा तो उसने देखा कि उसके घर पर कोई और रह रहा था जिस पर पुत्र ने पूछताछ की तो उसे पता लगा कि वो घर सुनील ने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए साहूकार को बेच दिया है और खुद अपने परिवार के साथ गांव छोड़कर चले गए और पास ही के गांव में किराये पर रहते हुए गोदाम में हम्माली करते है ये वृत्तांत सुनकर पुत्र अपने पिता के संघर्षों की पराकाष्ठा के अनुमान में बेकाबू होकर अपनी आंखों से झरने के समान बह रहे आंसुओ को रोक नहीं पा रहा था और उसे बार बार पिता का एक ही झूठ याद आ रहा था
कहते थे की साहिब हूं
में हूं कोई हम्माल नहीं
धन दौलत भरपूर है बेटा
बाप तेरा कंगाल नहीं
इतना सब कुछ सह कर भी
था दिल मे कोई मलाल नहीं
सब कुछ खोकर भी क्यों
कभी बताया अपना हाल नहीं
एक बच्चे को अपने पिता के संघर्षों की दास्तान सहसा ही पता चल जाती है शायद ये ईश्वर की ही रज़ा थी कि बच्चे को भी अपने पिता के संघर्षों के बारे मे जानने का मौका मिला और फिर उस गांव के लोगों ने भी उस बच्चे को उसके पिता की वो दर्दभरी दास्तान सुनाई की बच्चा भाव विभोर हो उठा और उसने एसा निर्णय लिया जो कि वाकई में अद्भुत था वो अपने पिता से मिले बगैर वापस कानपुर लौट गया और पूरे दो महीने बाद उसने वहां रहते हुए ही वो गोदाम खरीद लिया जिसमें उसके पिता जी हम्माली किया करते थे तो वही दूसरी ओर सुनील इन सब बातों से अनजान था और निरंतर अपना काम कर रहा था किन्तु एक दिन सुबह जब वो काम पर गया तो गोदाम के मालिक ने उसे गोदाम के काग़ज़ और चाबियां देकर अपनी कुर्सी पर बैठा दिया और खुद बिना किसी को कुछ बताये वहां से निकल गया इस बात से सुनील हैरान था और कुछ सोच ही रहा था कि इतने में वो ही साहूकार जिसने सुनील का घर खरीदा था वो उसके पास आकर उसे घर के कागजात दे कर बिना कुछ कहे ही निकल गया सुनील के समझ मे कुछ भी नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है l
इस वाकिये पर मुझे चंद पंक्तियाँ सूझ रही है जो कुछ इस प्रकार हैं
मेहनत से उसने अपनी घमासान कर दियाl
मुश्किलों को जीत के आसान कर दियाll
जुनून से उसने अपने अतीत को नचा दियाl
जीत ने उसकी दुनिया मे तहलका मचा दियाll
जीत लिया युद्ध जो था वक़्त के विरुद्धl
तूफानों को भी रोक के कर दिया अवरुद्धll
जिद से अपनी हार को भी शंका में ला दियाl
जुनून से जग में जीत का डंका बजा दियाll
बस अब बहुत हुआ सुनील भले ही अनजान था पर अब गांव वालों की नजरे कुछ इस तरह झुकी की कोई उससे आँख मिलाकर बात करने के लायक भी न बचा क्योंकि ये वहीं लोग थे जिन्होंने कभी भी सुनील के सपनों को नहीं समझा और बस उसका मज़ाक बनाते गए ये सब देखकर सुनील बड़ी असमंजस की स्थिति में आ गया कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि गांव वाले उससे नजरे मिलाकर बात करने से भी डर रहे है ये सब बात सुनील ने उसकी पत्नी को बताई जिससे वो खुद भी हैरान थी और उसने भी सुनील को एक बात बतायी जिसे सुनकर सुनील की खुशी का कोई ठिकाना ही न था कि साहूकार के साथ गांव के कुछ लोग घर आए थे और गिड़गिड़ा कर माफी मांगते हुए गांव में मुफ्त शिक्षा हेतु बहुत ही भव्य विद्यालय बनवाने का काम शुरू किए जाने की खुशी में धन्यवाद अदा कर के चले गये l
सुनील अपने साथ हो रही इस ख़ुशनुमा बातों को लेकर हैरान था इसलिये सारा माजरा समझने के लिये वो वापस अपने पुराने गांव मे अपने परिवार के साथ लौट जाता है और वहां पहुंच कर जब उसने वहां का नज़ारा देखा तो गर्व से उसका कद आसमान को चीरने लगा क्योंकि वो जैसे ही पुराने गांव में पहुंचा तो उसने देखा कि गांव के बीचो बीच एक विशाल भूभाग पर एक भव्य विद्यालय का निर्माण जोरों शोरो से चल रहा है वो कुछ समझ पाता इससे पहले ही उसे प्रवेश द्वार पर बना हुआ सीमेंट का एक छोटा सा बोर्ड दिखाई देता है जिसके मध्य में काले रंग की ग्रेनाइट की प्लेट पर स्वर्णिम अक्षरों मे लिखा हुआ था कि [बच्चों के लिए उच्च श्रेणी की मुफ्त शिक्षा हेतु श्री सुनील जी द्वारा सप्रेम भेंट स्वरूप लोकार्पित] जिसे देखकर सुनील का परिवार भी खुशी से फूला नहीं समाता और इसके बाद सुनील अपने पुराने घर पर पहुंच जाता है अपने परिवार को घर पर छोड़कर वो गांव वालों से मिलने निकल जाता है फिर जब वो गांव की चौपाल पर पहुंचता है तो उसे देख चौपाल पर बैठे हुए सभी लोग उसके सम्मान में खड़े होकर उसे आदर के साथ वहां बिठाते है और फिर सुनील उनसे पूछता है कि ये सब क्या हो रहा है ये विद्यालय का निर्माण कौन करवा रहा है फिर चौपाल पर बैठा एक बुजुर्ग सुनील को सारी बातें बताता है कि उसका पुत्र कुछ दिनों पहले यहां आया था और आपके संघर्ष पर व्याकुल होकर रो रहा था फिर उसने उसी दिन हम लोगों के सामने शपथ ली की जो संघर्ष आपने किया वो गांव के किसी और पिता को नहीं करना पड़ेगा और फिर यहां से चला गया l अब जाकर सुनील को पता चला कि ये सब उसके पुत्र के द्वारा किया जा रहा था और फिर वो ये सब बातें अपने परिवार को बताने के लिए चल दिया पर जैसे ही वो घर पहुंचा तो उसने देखा कि उसका पुत्र परिवार के साथ भोजन कर रहा है उसने अपने पुत्र को सीने से लगा लिया और उसकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे ये वो पल था जिसे हम सुनील की मंज़िल मान सकते है फिर पिता और पुत्र काफी देर तक बैठ कर चर्चा करते है l पुत्र अपने नए जॉब के बारे मे पिता को बताता है जिसे सुन सुनील बहुत खुश हो जाता है और उसे ढेर सारा आशीर्वाद देता है l अगले दिन सुबह पुत्र वापस लौट जाता है और गोदाम का काम देखने के लिए एक मैनेजर को नियुक्त कर जाता हैl सुनील भी अब निश्चिंत होकर गोदाम और विद्यालय निर्माण कार्य मे व्यस्त हो जाता है और फिर एक दिन वो अपने छोटे बेटे से मिलने दिल्ली जाता है और वहाँ पहुंचकर जब वो अपने पुत्र से मिलता है तो उसका पुत्र भी बहुत खुश हो जाता है और विद्यालय निर्माण के लिए अपने पिता को बधाईयाँ देता है फिर कुछ देर बैठकर बातें करने के बाद वो सुनील को स्टेशन तक छोड़ देता है और सुनील वापस अपने गांव लौट आता हैl
और फिर देखते ही देखते दो साल बीत जाते है और विद्यालय भी बनकर तैयार हो जाता है तो वहीं दूसरी ओर उसका छोटा बेटा भी दिल्ली एम्स से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर कुछ दिनों तक वहां प्रैक्टिस कर झारखंड मे ही अपना एक अस्पताल खोल लेता है जो देखते ही देखते पूरे झारखंड में मशहूर हो जाता है l
ये कथा उन सभी के मुंह पर लगा एक करारा तमाचा है जो किसी संघर्षरत गरीब का कुछ इस कदर मज़ाक बनाते है कि यदि वो ग़रीब सुनील जैसे हौंसले न रखे तो शायद निराशा और गुमनामी के दलदल मे उतर कर
जीवन से हार मान कर खुद को मुकद्दर के भरोसे छोड़कर ही संतुष्ट जाते हैं l
मुमकिन कर दिया नामुमकिन को
मुश्किलों को भी सरल कर गया
मुकद्दर उसे कहां बदल पाया वो तो
जिद से मुकद्दर को ही बदल गया
